रूपक अलंकार किसे कहते हैं? Rupak Alankar Kise Kahate Hain | सबसे सरल उदाहरण

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रूपक अलंकार किसे कहते हैं? Rupak Alankar Kise Kahate Hain | सबसे सरल उदाहरण

रूपक अलंकार किसे कहते हैं? Rupak Alankar Kise Kahate Hain | सबसे सरल उदाहरण 

प्रिय पाठक स्वागत है आपका Nitya Study Point.com के एक नए आर्टिकल में इस आर्टिकल में हम रूपक अलंकार के बारे में पढ़ेंगे, साथ ही रूपक अलंकार की परिभाषा और रूपक अलंकार के उदाहरण भी देखेंगे तो चलिए विस्तार से जानते हैं। - Rupak alankar Kise Kahate Hain.

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            रूपक अलंकार की परिभाषा

रूपक अलंकार किसे कहते हैं? Rupak Alankar Kise Kahate Hain | सबसे सरल उदाहरण

परिभाषा (लक्षण) - जहां उपमेय में उपमान का भेदरहित आरोप किया जाता है अर्थात् उपमेय (प्रस्तुत) और उपमान (अप्रस्तुत) में अभिन्नता प्रकट की जाए, वहां रूपक अलंकार होता है।


अथवा


जब गुण की अत्यंत समानता के कारण रूप में को भी उपमान बता दिया जाए यानी उपमेय और उपमान में अभिनेता दर्शाई जाए तब वहां रूपक अलंकार होता है। रूपक अलंकार अर्थ अलंकारों में से एक है रूपक अलंकार में उपमान और उसमें में कोई अंतर नहीं दिखाई पड़ता है।


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रूपक अलंकार के उदाहरण


1. मुख-चंद्र तुम्हारा देख सखे! मन-सागर मेरा लहराता।


स्पष्टीकरण-

यहां मुख (उपमेय) में चंद्र (उपमान) का तथा मन (उपमेय) में सागर (उपमान) का भेद ना करके एकरूपता बताई गई है; अतः यहां रूपक अलंकार है।


2. 'चरण कमल बंदों हरि राइ।'


स्पष्टीकरण- 

यहां चरण में कमल का भेद न रखकर एकरूपता बताई गई है।


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3. वन शारदी चंद्रिका चादर ओढ़े


दिए गए उदाहरण में जैसा कि आप देख सकते हैं चांद की रोशनी को चादर के समान नाम बता कर चादर ही बता दिया गया है । इस वाक्य में उपमेय में चंद्रिका है । और उपमान चादर है । यहां आप देख सकते हैं कि उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शाई जा रही है ।


4. पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।


ऊपर दिए गए उदाहरण में रामरतन को ही धन बता दिया गया है । राम रतन - उपमेय पर धन - उपमान का आरोप है ।यहां आप देख सकते हैं कि उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता बताई जा रही है ।



रूपक अलंकार किसे कहते हैं? Rupak Alankar Kise Kahate Hain | सबसे सरल उदाहरण

अन्य उदाहरण


1. हरि जननी, मैं बालक तेरा।


2. मुनि पद-कमल बंदी दोउ भ्राता।


3. अंसुवन जल सींची सींची प्रेम बेलि बोई।


4. माया दीपक नर पतंग भ्रमि भ्रमि पडंत।


5. बढ़त-बढ़त संपत्ति-सलिलु, मन सरोज बढ़ि जाए।


6. उदित उदयगिरि-मंच पर, रघुवर-बाल पतंग।


7. बिकसे संत-सरोज सब, हरषै लोचन भृंग।


8. अपने अनल-विशिख से आकाश जगमगा दे।


9. अनुराग तडा़ग में भानु उदै, विगसी मनो मंजुल कंज कली।


10. गोपी पद पंकज पावन कि रज जामे सिर भीजे ।


11. बीती विभावरी जागरी ! अम्बर पनघट में डुबो रही तारा घाट उषा नगरी ।


12. प्रभात यौवन है वक्ष सर में कमल भी विकसित हुआ है कैसा।


13. शाशि - मुख पर घूँघट डाले आंचल में दीप छिपाये।


14. मन सागर, मनसा लहरी, बूड़े -बहे अनेक |


15. विषय - वारि मन -मीन भिन्न नहिं होत कबहुँ पल एक ।


16. अपलक नभ तील नयन विशाल ।


17. भजमन चरण कँवल अविनाशी ।


18. बंद नहीं, अब भी चलते हैं निभाती नटी के क्रियाकलाप ।


19. सिंधु विहंग तरंग-पंख को फड़काकर प्रतिक्षण में।


20. मुनि पद कमल बंदि दोउ भ्राता ।



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