रस किसे कहते हैं? रस की परिभाषा, प्रकार एवं उदाहरण सबसे सरल भाषा में - Nitya study point

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रस किसे कहते हैं? रस की परिभाषा, प्रकार एवं उदाहरण सबसे सरल भाषा में - Nitya study point

रस किसे कहते हैं? रस की परिभाषा, प्रकार एवं उदाहरण

प्रिय पाठक ! इस पोस्ट में हम आपको हिंदी व्याकरण से संबंधित एक बहुत ही महत्वपूर्ण पाठ के बारे में बताने वाले हैं उस पाठ का नाम है रस और उसकी परिभाषा उनके प्रकारों का बहुत ही सरल तरीके से वर्णन और सब का उदाहरण तो आपको इस पोस्ट को पूरा पढ़ना है और आपको इस पोस्ट को अन्य लोगों तक भी पहुंचाना है इसके लिए आपको यह पोस्ट शेयर करनी पड़ेगी।

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रस हमारे अंदर के भाव Emotions को कहते हैं। रस यानी हमारे अंदर छुपे हुए ऐसे भाव होते हैं जिन्हें हम हर दिन अलग-अलग तरीके से व्यक्त करते रहते हैं।


इन्हीं रस के वजह से हर इंसान अपने अंदर के भाव को प्रगट करके दूसरों के सामने रखता है जिससे सामने वालों को पता चलता है असल में वह क्या कहना चाहता है या उसका उद्देश्य क्या है।रस को  किसी भाषा की जरूरत नहीं होती अपने चेहरे के भाव से यह प्रगट होते रहते हैं।


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रस किसे कहते हैं?

कविता,कहानी और नाटक आदि पढ़ने सुनने या देखने से पाठक को जो एक प्रकार के विलक्षण आनंद की अनुभूति होती है उसे रस कहते हैं। दूसरे शब्दों में काम के पढ़ने सुनने अथवा उसका अभिनय देखने में पाठक, दर्शक को जो आनंद मिलता है वही काव्य में रस कहलाता है। रस 10 प्रकार के होते हैं नीचे 10 और उनके स्थाई भाव के साथ दिए गए हैं।



उपन्यास और कहानी में अंतर

महाकाव्य और खंडकाव्य में अंतर


रस के कितने अंग होते हैं


रस के चार अंग है और हर एक का अलग ही महत्व है।


1 विभाव 


2 अनुभाव

 

3 स्थाई भाव


4 संचारी भाव


रस कितने प्रकार के होते हैं


रस एक प्रकार के होते हैं इसलिए उन्हें नवरस  भी कहा जाता है। इन्हें अपनी जिंदगी के साथ साथ एक्टिंग और डांस में भी बहुत महत्व है नवरस मतलब जो एक इमोशंस है वह कौन से हैं, नौ रसों के नाम से बारे में हम अभी विस्तार से पड़ेंगे इन्हें नवरस के जरिए लोग अंदाजा लगाते हैं कि आपका Character कैसा है।


रस के प्रकार और स्थाई भाव


1 श्रृंगार रस का स्थाई भाव - रति


2 हास्य रस का स्थाई भाव - हास


3 करूणा रस का स्थाई भाव - शोक


4  रौद्र रस का स्थाई भाव - क्रोध

 

5 वीर रस का स्थाई भाव - उत्साह


6  वीभत्स रस का स्थाई भाव - जुगुप्सा


7 भयानक रस का स्थाई भाव - भय


8 अद्भुत रस रस का स्थाई भाव - विस्मय


9 शांत रस का स्थाई भाव - निर्वेद


10 वात्सल्य रस का स्थाई भाव - वत्सल्य



1.श्रृंगार रस - श्रृंगार रस को रसराज और रसपति पिक आ जाता है। नायक और नायिका के मन में संस्कार रूप में स्थित प्रेम या प्रति जब रस की अवस्था को पहुंचकर आस्वादन के योग हो जाता है तो वह श्रृंगार रस कहलाता है।


सरल शब्दों में बताएं तो श्रृंगार रस की प्रेम समझना थोड़ा मुश्किल होता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का प्यार जताने का तरीका अलग अलग होता है।


यदि आप अपने माता पिता को प्रेम जता रहे हैं तो आपका प्यार का तरीका अलग होगा और यदि आप अपने पति या पत्नी को प्यार जता रहे हैं तो उसका तरीका बिल्कुल अलग होगा श्रृंगार रस को समझने के लिए सबसे पहले आपको यह समझना होगा कि आप किस व्यक्ति के प्रति अपना प्यार जता रहे हैं। 



मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।

जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।।



2. हास्य रस -लोगों को हंसाना बहुत ही मुश्किल काम है एक्टिंग की दुनिया में खुद सामने वाले ऑडियंस को हासाना  वह भी आसान काम नहीं होता है एक एक्टर को ऑडियंस को हंसाने के लिए बहुत ही ज्यादा presence of Mind और Sense of हुनर होना जरूरी है।


हास रस इसमें ऐसी सिचुएशन होते हैं जिसमें हंसी की बात ज्यादा होती है अगर कोई आपका दोस्त आपसे पूछता है कि कैसा है और आप भी हंसी मजाक में ही उसका जवाब देंगे एकदम मस्त हूं यार यह अलग तरीके की हंसी होती है।



''मैं यह तोही मैं लाखी भगति अपूरब बाल ।

 लाही प्रसाद माला जु भौ  तनु कदम्य की माल'।।





3.करुण रस - सहृदय हृदय में स्थित अशोक नामक स्थाई भाव का जब विभाव अनुभव और संचारी भाव के साथ सहयोग होता है उसे करुण रस कहते हैं।



सब बंघुन उनको सोच ताजी-ताजी गुरुकुल को नेह।

हां सुशील सूत! किमी कियो अंनत लोक में गेह।।



4.वीर रस - सहृदय के हृदय में स्थित उत्साह नामक स्थाई भाव का जब विभव अनुभव और संचारी भाव के साथ सहयोग होता है उसे वीर रस कहते हैं।



बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।



5.रौद्र रस - सहृदय के ह्रदय में स्थित क्रोध नामक स्थाई भाव का जब विभाव अनुभव और संचारी भाव से संयोग होता है उसे रौंद्र रस कहते हैं।



रे बालक ! कलवास बोलत रोही ना संभार।

 धनुहि सम त्रिपुरारी धनु, विदित सकल संसार।।



6.भयानक रस - सहृदय के हृदय में स्थित बैनामा की स्थाई भाव का जब भी भाव अनुभव और संचारी भाव के साथ संयोग होता है उसे भयानक रस कहते हैं।



नभ ते झपटत बाज  लखि भूल्यो सकल प्रपंच।

 कंपित तन व्याकुल नयन, लावक के हिल्यो न रंच।।





7.अद्भुत रस - सहृदय ह्रदय में स्थित आश्चर्य में स्थाई भाव का जब विभाव अनुभव और संचारी भाव के साथ सहयोग होता है उसे अद्रुत रस कहते हैं।



हनुमान की पूंछ में लगन ना पाई आग।

सिग्री लंका जर गई गए निशाचर भाग।।



8.वीभत्स रस -  सह्रदय ह्रदय में स्थित निर्वेद नामक स्थाई भाव का जब विभाव अनुभव संचारी भाव के साथ सहयोग होता है तो उसे वीभत्स रस कहते हैं।



सिर पर बैठो काग आँखि दोउ - खात निकारता ।

खींचत जीभहि स्यार अतिहि आनन्द उर धारत ॥



9.शांत रस - शांत रस में अध्यात्म और मौक्ष की भावना उत्पन्न होती है जिसमें परमात्मा की वास्तविक रूप को जानकर शांति मिलती है। वह है शांत रस  का स्थाई भाव निर्वेद यानी उदासीनता होता है।



मन रे तन कागद का पुतला।

लोगै बूंद बिनसि जाए छिन में, गरब करें क्या इतना।।



10.वात्सल्य रस - जहां से छोटे बच्चे के प्रति प्रेम, स्नेह, दुलारा आदि का प्रमुखता से वर्णन किया जाता है वहां वात्सल्य रस होता है इसका स्थाई भाव वात्सल है। सूरदास ने वात्सल्य रस का सुंदर निरूपण किया है।


बाल दसा सुख निरखी जसोदा, पुनी पुनी नंद बुलवाति अंचरा - तर लैं ढाकी सूर , प्रभु कौ दूध पियावति



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