संस्मरण किसे कहते हैं? संस्मरण का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए

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संस्मरण किसे कहते हैं? संस्मरण का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए

संस्मरण किसे कहते हैं? संस्मरण का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए। [Nitya Study Point]

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संस्मरण किसे कहते हैं? संस्मरण का क्या अर्थ है?



स्मरण क्या है ?


स्मरण क्या है ? स्पष्ट कीजिए इस प्रश्न को अक्सर परीक्षा में पूछा जाता है। इसलिए आज के इस पोस्ट में हम आपको संस्मरण क्या है और इसकी परिभाषा के साथ-साथ स्मरण की विशेषताएं भी बताएंगे।



स्मृति के आधार पर किसी विषय व्यक्ति के संबंध में लिखित किसी लेख या ग्रंथ को स्मरण कहते हैं। स्मरण लेखक अतीत की अनेक स्मृतियों में से कुछ रमणीय अनुभूतियों को अपनी कल्पना भावना या व्यक्तित्व की विशेषताओं से अनु रंजीत कर प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त करता है। उसी का वर्णन करता है।


संस्मरण शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, सम+स्मरण | इसका अर्थ सम्यक् स्मरण अर्थात किसी घटना, किसी व्यक्ति अथवा वस्तु का स्मृति के आधार पर कलात्मक वर्णन करना है स्मरण कहलाता है। इसमें स्वयं अपेक्षा उस वस्तु की घटना का अधिक महत्व होता है। जिसके विषय में लेखक स्मरण लिख रहा होता है । संस्मरण की सभी घटनाएं सत्यता पर ही आधारित होती हैं। इसमें लेखक कल्पना का अधिक प्रयोग नहीं करता है।


लेखक के स्मृति पटल पर अंकित किसी विशेष व्यक्ति के जीवन की कुछ घटनाओं का रोचक विवरण स्मरण कहलाता है। इसमें लेखक उसी का वर्णन करता है जो उसके साथ देखा या अनुभव किया हो। इसका विवरण सर्वथा प्रमाणित होता है। संस्मरण लेखक जब अपने विषय में लिखता है तो उसकी रचना आत्मकथा के निकट होती है और जब दूसरे के विषय में लिखता है तो जीवनी के।

अतः स्पष्ट है कि संसद में किसी व्यक्ति विशेष के जीवन की घटनाओं का रोचक ढंग से प्रस्तुत विवरण संस्मरण कहलाता है। वर्णन प्रत्यक्ष घटनाओं पर आधारित होता है।



संस्मरण की परिभाषा [Nitya Study Point]



संस्मरण शब्द स्मृ धातु से सम उपसर्ग और प्रत्यय अन लगाकर संस्मरण शब्द बनता है।

स्मृति के आधार पर किसी विषय पर अथवा किसी व्यक्ति पर लिखित आलेख संस्मरण कहलाता है। यात्रा साहित्य भी इसके अंतर्गत आता है। संस्मरण को साहित्यिक निबंध की एक प्रवृत्ति भी माना जा सकता है। ऐसी रचनाओं को संस्मरणात्मक निबंध कहा जा सकता है। व्यापक रूप से संस्मरण आत्मचरित्र के अंतर्गत लिया जा सकता है। किंतु संक्रमण और आत्मचरित्र के दृष्टिकोण में मौलिक अंतर है। आत्म चरित के लेखक का मुख्य उद्देश्य अपने जीवन कथा का वर्णन करना होता है। इसमें कथा का प्रमुख पात्र स्वयं लेखक होता है। संस्मरण लेखक का दृष्टिकोण अलग रहता है। संस्मरण में लेखक जो कुछ स्वयं देखता है और स्वयं अनुभव करता है उसी का चित्रण करता है। लेकर की स्वयं की अनुभूतियां तथा संवेदना संस्मरण में अंतर्निहित रहते हैं। इस दृष्टि से संस्मरण का लेकर निबंधकार के अधिक निकट है। वह अपने चारों ओर के जीवन का वर्णन करता है। इतिहासकार के समान वह केवल यथा तथ्य विवरण प्रस्तुत नहीं करता है। पाश्चात्य साहित्य में साहित्यकारों के अतिरिक्त अनेक राजनेताओं तथा सेना नायकों ने भी अपने संस्मरण लिखे हैं जिनका साहित्यिक महत्त्व स्वीकार आ गया है।


संस्मरण में लेखक अपने अनुभव की हुई किसी वस्तु ,व्यक्ति तथा घटना का आत्मीयता तथा कलात्मकता के साथ विवरण प्रस्तुत करता है। इसका संबंध प्राय: महापुरुषों से होता है। इसमें लेकर अपनी अपेक्षा उस व्यक्ति को अधिक महत्व देता है। जिसका संस्मरण लिखता है। इसमें किसी विशिष्ट व्यक्ति का स्वरूप, आकार प्रकार ,स्वभाव, व्यवहार, जीवन के प्रति दृष्टिकोण, अन्य व्यक्तियों के साथ संबंध, बातचीत आदि सभी बातों का अविश्वसनीय रूप से आत्मीयता के साथ वर्णन होता है। रेखा चित्र में किसी के चरित्र का कलात्मक चित्र प्रस्तुत किया जाता है, किंतु संस्मरण में किसी के चरित्र का यथातथ्य रूप प्रदर्शित किया जाता है। हिंदी के प्रमुख संस्थान लेखकों में श्री नारायण चतुर्वेदी, बनारसीदास चतुर्वेदी, पद्मसिंह शर्मा आदि हैं। श्री हरीभाऊ उपाध्याय के आचार्य द्विवेदी जी नामक संस्मरण आत्मक निबंध को इस विधा के प्रतिनिधि निबंध के रूप में रखा गया है।



हिंदी साहित्य के क्षेत्र में संस्मरण आधुनिक काल की विधा है।


हिंदी संस्मरण को विकास की दिशा में बढ़ाने वाले प्रमुख साहित्यकारों में उल्लेखनीय नाम है-


रामवृक्ष बेनीपुरी - "माटी की मूरतें", "मील के पत्थर"।


देवेंद्र सत्यार्थी - "क्या गोरी क्या सांवरी" , रेखाएं बोल उठी"।


कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर - "भूले हुए चेहरे" , "माटी हो गई सोना"।


संस्मरण के अंग अथवा तत्व (अतीत की स्मृति)[Nitya Study Point]


संस्मरण अधिक पर आधारित होता है इसमें लेखक अपने यात्रा, जीवन की घटना, रोचक पल, आदि जितने भी दुनिया में रोचक यादें होती है, उसको सहेज कर उन घटनाओं को लिखित रूप में व्यक्त करता है। जिसे पढ़कर दर्शक को ऐसा महसूस होता है कि वह उस अतीत की घटना से रूबरू हो रहा है।


संस्मरण के प्रमुख लेखक


सन् 1907 में बाबू बालमुकुंद गुप्त ने पंडित प्रताप नारायण मिश्र के संस्मरण लिखकर इस विधा का सूत्रपात किया। हिंदी के प्रमुख लेखकों में श्री नारायण चतुर्वेदी, बनारसीदास चतुर्वेदी, पदम सिंह शर्मा आदि है।



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