भ्रष्टाचार पर हिंदी में निबंध | Corruption Essay in Hindi Language

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भ्रष्टाचार पर हिंदी में निबंध | Corruption Essay in Hindi Language

भ्रष्टाचार पर हिंदी में निबंध | Corruption Essay in Hindi Language


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संकेत बिंदु:- भूमिका, भारत में भ्रष्टाचार की स्थिति, भ्रष्टाचार के कारण, भ्रष्टाचार से होने वाली हानियां, भ्रष्टाचार रोकने के उपाय, निष्कर्ष या उपसंहार।


भूमिका (प्रस्तावना)


भ्रष्टाचार दो शब्दों- 'भ्रष्ट' और 'आचार' के मेल से बना शब्द है। 'भ्रष्ट' शब्द के कई अर्थ होते हैं-मार्ग से विचलित, ध्वस्त एवं बुरे आचरण वाला तथा 'आचरण' का अर्थ- 'चरित्र' , 'व्यवहार', या  'चाल-चलन' है। इस तरह भ्रष्टाचार का अर्थ हुआ-अनुचित व्यवहार एवं चाल-चलन। विस्तृत अर्थों में इसका तात्पर्य व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले ऐसे अनुचित कार्य या व्यवहार से है, जिसे वह अपने पद का लाभ उठाते हुए आर्थिक या अन्य लाभों को प्राप्त करने के लिए स्वार्थपूर्ण ढंग से करता है। इसमें व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से व्यक्तित्व लाभ के लिए निर्धारित कर्तव्य की जान-बूझकर अवहेलना करता है।


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भारत में भ्रष्टाचार की स्थिति


भारत में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं है। ऐतिहासिक ग्रंथों में भी इसके प्रमाण मिलते हैं। चाणक्य ने अपनी पुस्तक 'अर्थशास्त्र' में भी विभिन्न प्रकार के भ्रष्टाचारों का उल्लेख किया है। आज धर्म, शिक्षा, राजनीति, प्रशासन, कला, मनोरंजन, खेलकूद इत्यादि क्षेत्रों में भ्रष्टाचार ने अपने पांव फैला दिए हैं। रिश्वत लेना-देना, खाद्य पदार्थों में मिलावट, मुनाफाखोरी, अनैतिक ढंग से धन-संग्रह, कानूनों की अवहेलना करके अपना स्वार्थ पूरा करना आदि भ्रष्टाचार के ऐसे रूप हैं, जो हमारे देश में व्याप्त हैं। विभिन्न राष्ट्रों में भ्रष्टाचार की स्थिति का आकलन करने वाली स्वतंत्र अंतरराष्ट्रीय संस्था 'ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल' द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्ट के अनुसार, 178 देशों की सूची में भारत काफी ऊपर है। इसका अर्थ यह निकलता है कि हमारा देश दुनिया के सर्वाधिक भ्रष्ट देशों में से एक है।


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भ्रष्टाचार के कारण


आज हर वर्ग में धन की लिप्सा बढ़ी है, इसके लिए उसे अनुचित मार्ग अपनाने में भी संकोच नहीं है। भ्रष्टाचार के अनेक कारण हैं-इनमें गरीबी, बेरोजगारी, सरकारी कार्यों का विस्तृत क्षेत्र, महंगाई, नौकरशाही का विस्तार, लालफीताशाही, अल्प वेतन, प्रशासनिक उदासीनता, भ्रष्टाचारियों को सजा देने में देरी, अशिक्षा, अत्यधिक प्रतिस्पर्धा, महत्वाकांक्षा, वरिष्ठ अधिकारियों का कनिष्ठ अधिकारियों पर दबाव इत्यादि मुख्य हैं।



भ्रष्टाचार से होने वाली हानियां


भ्रष्टाचार की वजह से जहां लोगों का नैतिक एवं चारित्रिक पतन हुआ है, वहीं दूसरी ओर देश को आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ी है। आज भ्रष्टाचार के फलस्वरुप अधिकारी एवं व्यापारी वर्ग के पास काला धन अत्यधिक मात्रा में इकट्ठा हो गया है। इस काले धन के कारण अनैतिक व्यापार, मद्दपान, वेश्यावृत्ति, तस्करी एवं अन्य अपराधों में वृद्धि हुई है। भ्रष्टाचार के कारण लोगों में अपने उत्तरदायित्व से भागने की प्रवृत्ति बढ़ी है। देश में सामुदायिक हितों के स्थान पर व्यक्तिगत एवं स्थानीय हितों को महत्व दिया जा रहा है। संपूर्ण समाज भ्रष्टाचार की जकड़ में है। सरकारी विभाग भ्रष्टाचार के केंद्र बिंदु बन चुके हैं। कर्मचारीगण मौका पाते ही अनुचित लाभ उठाने से नहीं चूकते।


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भ्रष्टाचार रोकने के उपाय


भ्रष्टाचार के कारण आज देश की सुरक्षा भी खतरे में है। अत: इस पर लगाम लगाना अत्यंत आवश्यक है। वैसे तो भ्रष्टाचारियों के लिए भारतीय दंड संहिता में दंड का प्रावधान है। समय-समय पर भ्रष्टाचार को रोकने के लिए समितियां गठित की गई, भ्रष्टाचार निरोधक कानून पारित किया गया, परंतु इसे अब तक नियंत्रित नहीं किया जा सका। इससे निजात पाने के लिए हमें गरीबी, बेरोजगारी, पिछड़ापन आदि पर काबू पाना होगा। दंड प्रक्रिया और दंड संहिता में संशोधन कर कड़े कानून बनाकर उनका सख्ती से पालन करना होगा।



उपसंहार ( निष्कर्ष )


भ्रष्टाचार देश के लिए कलंक है और इसको मिटाए बिना देश की वास्तविक प्रगति संभव नहीं है। भ्रष्टाचार से निपटने के लिए अन्ना हजारे के नेतृत्व में जन लोकपाल विधेयक की मांग की गई, जिसके कारण सरकार ने लोकपाल विधेयक संसद में पारित करा दिया है।

   इसके अतिरिक्त, काले धन की स्वदेश वापसी की मांग कर रहे अनेक लोग इस दिशा में सार्थक प्रयास कर रहे हैं। ऐसे प्रयासों को जन सामान्य द्वारा यथाशक्ति समर्थन प्रदान करना चाहिए। समाज को यथाशीघ्र कठोर-से-कठोर कदम उठाकर इस कलंक से मुक्ति पाना नितांत आवश्यक है अन्यथा मानव-जीवन बद से बदतर होता चला जाएगा।


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भ्रष्टाचार पर छोटे बड़े निबंध (Short and Long Essay on Corruption in Hindi) (300 शब्द)



परिचय


अवैध तरीके से धन अर्जित करना भ्रष्टाचार है, भ्रष्टाचार में व्यक्ति अपने निजी लाभ के लिए देश की संपत्ति का शोषण करता है। यह देश की उन्नति के पथ पर सबसे बड़ा बाधक तत्व है। व्यक्ति के व्यक्तित्व में दोष नहीं होने पर देश में भ्रष्टाचार की मात्रा बढ़ जाती है।


भ्रष्टाचार क्या है?


भ्रष्टाचार एक ऐसा अनैतिक आचरण है। जिसमें व्यक्ति खुद की छोटी इच्छाओं की पूर्ति हेतु देश को संकट में डालने में तनिक भी देर नहीं करता है। देश के भ्रष्ट नेताओं द्वारा किया गया घोटाला ही भ्रष्टाचार नहीं है अपितु एक ग्वाले द्वारा दूध में पानी मिलाना भी भ्रष्टाचार का स्वरूप है।


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भ्रष्टाचार के कारण - 


देश का लचीला कानून - भ्रष्टाचार विकासशील देश की समस्या है। यहां भ्रष्टाचार होने का प्रमुख कारण देश का लचीला कानून है। पैसे के दम पर ज्यादातर भ्रष्टाचारी बाइज्जत बरी हो जाते हैं। अपराधी को दंड का भय नहीं होता है।


व्यक्ति का लोभी स्वाभाव - लालच और संतुष्टि एक ऐसा विकार है। जो व्यक्ति को बहुत अधिक नीचे गिरने पर विवश कर देता है। व्यक्ति के मस्तिष्क में सदैव अपने धन को बढ़ाने की प्रबल इच्छा उत्पन्न होती है।


आदत - आदत व्यक्ति के व्यक्तित्व में बहुत गहरा प्रभाव डालता है। एक मिलिट्री रिटायर्ड ऑफिसर रिटायरमेंट के बाद भी अपने ट्रेनिंग के दौरान प्राप्त किए अनुशासन को जीवनभर बहन करता है, उसी प्रकार देश में व्याप्त भ्रष्टाचार की वजह से लोगों को भ्रष्टाचार की आदत पड़ गई है।


मनसा - व्यक्ति के दृढ़ निश्चय कर लेने पर कोई भी कार्य कर पाना संभव नहीं होता वैसे ही भ्रष्टाचार होने का एक प्रमुख कारण बत्ती की मंशा भी है। या हम एक तरह से कह सकते हैं कि उसकी इच्छा भी है।


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निष्कर्ष - 


भ्रष्टाचार देश में लगा वह दिमक है । जो देश को अंदर ही अंदर खोखला कर रहा है। यह व्यक्ति के व्यक्तित्व का आईना है जो यह दिखाता है व्यक्ति लोग असंतुष्ट की आदत और मंत्र जैसे विकारों के वजह से एक ऐसे मौके का फायदा उठा सकता है।



भ्रष्टाचार पर निबंध 400 (शब्द में)


परिचय


अपना कार्य इमानदारी से ना करना भ्रष्टाचार है। अतः ऐसा व्यक्ति भ्रष्टाचारी है समाज में आए दिन इसके विभिन्न स्वरूप देखने को मिलते हैं। भ्रष्टाचार के संदर्भ में यह कहना मुझे अनुचित नहीं लगता वही व्यक्ति भ्रष्ट नहीं है।जिन्हें भ्रष्टाचार करने का अवसर नहीं मिला।


भ्रष्टाचार के विभिन्न प्रकार -


रिश्वत की लेनदेन - सरकारी काम करने के लिए कार्यालय में चपरासी से लेकर उच्च अधिकारी तक आपसे पैसे लेते हैं। इस काम के लिए उन्हें सरकार से वेतन प्राप्त होता है। वह वहां हमारी मदद के लिए है। इसके साथ ही देश के नागरिक भी अपना काम जल्दी कर आने के लिए उन्हें पैसे देते हैं अतः यह भ्रष्टाचार है।


चुनाव में धांधली - देश के राजनेताओं द्वारा चुनाव में सरे आम लोगों को पैसे,जमीन अनेक उपाय तथा मादक पदार्थ बांटे जाते हैं यह चुनावी धांधली असल में भ्रष्टाचार है।


भाई भतीजावाद - अपने पद और शक्ति का गलत उपयोग कर लोग भाई भतीजावाद को बढ़ावा देते हैं। भाई अपने किसी प्रियजन को उस पद का कार्यभार दे देते हैं। जिसके वह लायक नहीं है ऐसे में योग्य व्यक्ति का हक उसे छीन लिया जाता है।


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नागरिकों द्वारा टैक्स चोरी - नागरिकों द्वारा टैक्स भुगतान करने हेतु प्रत्येक देश में एक निर्धारित पैमाना तय किया गया है। पर कुछ व्यक्ति सरकार को अपने आय का सही विवरण नहीं देते और टैक्स की चोरी करते हैं। यह भ्रष्टाचार की श्रेणी में अंकित है।


शिक्षा तथा खेल में घूसखोरी - शिक्षा देता खेल के क्षेत्र में घूस लेकर लोग मेघा विवाह योग्य उम्मीदवार को सीटें नहीं देते बल्कि जो उन्हें घूस दे देते हैं उन्हें ही सीटें मिलती हैं।


इस प्रकार समाज के अन्य छोटे से बड़े क्षेत्र में भ्रष्टाचार देखा जा सकता है। जैसे राशन में मिलावट, अवैध मकान निर्माण, अस्पताल तथा स्कूल में अत्यधिक फीस आदि यहां तक की भाषा में भी भ्रष्टाचार पर्याप्त है। अजय नावरिया के शब्दों में मुंशी प्रेमचंद की एक प्रसिद्ध कहानी सत्य संगति में लेखक द्वारा कहानी के एक पात्र को दुखी चमार कहां गया है। यह आपत्तिजनक शब्द के साथ भाषा के भ्रष्ट आचरण का प्रमाण है वहीं दूसरे पात्र को पंडित जी नाम से संबोधित किया जाता है कहानी के पहले पात्र को दुखी दलित भी कहा जा सकता है।



भ्रष्टाचार पर निबंध 600 शब्दों में



प्रस्तावना


भ्रष्टाचार देश की संपत्ति का आपराधिक दुरुपयोग है। 'भ्रष्टाचार' का अर्थ है - 'भ्रष्ट आचरण' अर्थात नैतिकता और कानून के विरुद्ध आचरण। जब व्यक्ति को ना तो अंदर की लज्जा या धर्माधर्म का ध्यान रहता है (जो अनैतिकता है ) और ना बाहर गार्डन रहता है (जो कानून की अवहेलना है) तो वह संसार में जगन से जगन ने पाप कर सकता है, अपने देश, जाति व समाज को बड़ी से बड़ी हानि पहुंचा सकता है, यहां तक कि मानवता को भी कलंकित कर सकता है। दुर्भाग्य से आज भारत इस भ्रष्टाचार रूपी शहरों मुख वाले दानों की जड़ों में फस कर बहुत तेजी से विनाश की ओर बढ़ता जा रहा है। 



भ्रष्टाचार के विभिन्न रूप


पहले किसी घोटाले की बात सुनकर देशवासी चौक जाते थे, आज नहीं चौंकते। पहले घोटालों के आरोपी लोक लज्जा के कारण अपना पद छोड़ देते थे, किंतु आज पकड़े जाने पर भी वह कुछ राजनेता इस शान से जेल जाते हैं जैसे वे किसी राष्ट्र सेवा के मिशन पर जा रहे हो। इसीलिए समूह प्रशासन तंत्र में भ्रष्ट आचरण धीरे-धीरे सामान बनता जा रहा है। आज भारतीय जीवन का कोई भी क्षेत्र सरकारी या गैर सरकारी, सार्वजनिक या निजी - ऐसा नहीं , जो भ्रष्टाचार से अछूता हो। इसीलिए भ्रष्टाचार इतने आ गणित रूपों में मिलता है कि उसे वर्गीकृत करना सरल नहीं है। फिर भी उसे हैं मुख्यत: 4 वर्गों में बांटा जा सकता है- (1) राजनीतिक,. (2)  प्रशासनिक,   (3) व्यवसायिक एवं (4) शैक्षणिक।


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राजनीतिक भ्रष्टाचार


भ्रष्टाचार का सबसे प्रमुख रूप यही है जिसकी छत्रछाया में भ्रष्टाचार के शेष सारे रूप पनपते और संरक्षण पाते हैं। इसके अंतर्गत मुख्यता लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव जीतने के लिए अपनाया गया भ्रष्ट आचरण आता है। संसार में ऐसा कोई भी कुकृत्य, अनाचार या हथकंडा नहीं है जो भारतवर्ष में चुनाव जीतने के लिए ना अपनाया जाता हो। यही कारण है कि चुनावों में विजई दल ही सरकार बनाता है, जिससे केंद्र और प्रदेशों की सारी राजसत्ता उसी के हाथ में आ जाती है। इसलिए 'येन- केन- प्रकारेण' अपने दल को विजयी बनाना ही राजनीतिज्ञों का एकमात्र लक्ष्य बन गया है। इन राजनेताओं की शनि दृष्टि ही देश में जातीय प्रवृत्तियों को उभारती एवं देशद्रोहियों को पनपाती है। देश की वर्तमान दुरावस्था के लिए यह भ्रष्ट राजनेता ही दोषी हैं। आने के कारण देश में अनेकानेक घोटाले हुए हैं।



प्रशासनिक भ्रष्टाचार


इसके अंतर्गत सरकारी, अर्ध सरकारी,  गैर सरकारी संस्थाओं , संस्थानों,  प्रतिष्ठानों या सेवाओं (नौकरियों) में बैठे हुए सारे अधिकारी आते हैं जो जातिवाद, भाई- भतीजावाद, किसी प्रकार के दबाव या कामिनी - कांचनी के लोबिया अन्याय किसी कारण से अयोग्य व्यक्तियों की नियुक्तियां करते हैं, उन्हें पदोन्नत करते हैं, स्वयं अपने कर्तव्य की अवहेलना करते हैं और ऐसा करने वाले अधीनस्थ कर्मचारियों को आश्रय देते हैं या अपने किसी भी कार्य आचरण से देश को किसी  मोर्चे पर कमजोर बनाते हैं। चाहे वह  गलत कोटा - परमिट देने वाला अफसर हो या सेना के रहस्य विदेशों के हाथ बेचने वाला सेना अधिकारी या ठेकेदारों से रिश्वत खाकर शीघ्र ढह जाने वाले सेतु, सरकारी भवनों आदि का निर्माण करने वाला इंजीनियर या अन्याय पूर्ण फैसले करने वाला न्यायाधीश या  अपराधी को आश्रय देने वालों वाला पुलिस अफसर,  भी इसी प्रकार के भ्रष्टाचार के अंतर्गत आते हैं।


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व्यावसायिक भ्रष्टाचार


 इसके अंतर्गत विभिन्न पदार्थों में मिलावट करने वाले, घटिया माल तैयार करके बढ़िया के मोल बेचने वाले, निर्धारित दर से अधिक मूल्य वसूलने वाले,  वस्तु विशेष का कृत्रिम अब आओ पैदा करके जनता को दोनों हाथों से लूटने वाले, कर चोरी करने वाले एवं अन्याय भ्रष्ट तौर- तरीके अपनाकर देश और समाज को छीन एवं कमजोर बनाने वाले व्यवसाई आते हैं।



शैक्षणिक भ्रष्टाचार


 शिक्षा जैसा पवित्र क्षेत्र भी भ्रष्टाचार के संक्रमण से अछूता नहीं रहा। अतः आज डिग्री से अधिक सिफारिश,  योग्यता से अधिक चापलूसी का बोलबाला है।  परिश्रम से अधिक बल धन में होने के कारण शिक्षा का निरंतर पतन हो रहा है।



भ्रष्टाचार के कारण


भ्रष्टाचार की गति नीचे से ऊपर को ना होकर ऊपर से नीचे को होती है अर्थात भ्रष्टाचार सबसे पहले उच्चतम स्तर पर पनपता है और फिर क्रमशः नीचे की ओर फैलता जाता है। यह कहावत है -  'यथा राजा तथा प्रजा'। इसका यह हास्य कदापि नहीं है कि भारत में प्रत्येक व्यक्ति भ्रष्टाचारी है। लेकिन इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि भ्रष्टाचार से मुक्त व्यक्ति इस देश में अपवाद स्वरूप ही मिलते हैं।


इसका कारण है वह भौतिकवादी जीवन दर्शन, जो अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से पश्चिम से आया है। यह जीवन पद्धति विशुद्ध भोगवादी  है- 'खाओ, पियो और मौज करो' ही इसका मूल मंत्र है। यह परम्परागत भारतीय जीवन दर्शन के पूरी तरह विपरीत है। भारतीय मनीषियों ने चार पुरुषार्थों - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि को ही मानव जीवन का लक्ष्य बताया है। मानव धर्म पूर्वक अर्थ और काम का सेवन करते हुए मोक्ष का अधिकारी बनता है। पश्चिम मैं धर्म और मोक्ष को कोई जानता तक नहीं। वहां तो बस अर्थ (धन- वैभव) और काम (सांसारिक सुख - भोग या विषय- वासनाओं की तृप्ति) ही जीवन का परम पुरुषार्थ माना जाता है। पश्चिम मैं जितनी भी वैज्ञानिक प्रगति हुई है, उस सब का लक्ष्य भी मनुष्य के लिए सांसारिक सुख भोग के साधनों का अधिकाधिक विकास ही है।


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भ्रष्टाचार दूर करने के उपाय


भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जाने चाहिए।


प्राचीन भारतीय संस्कृति को प्रोत्साहन


 जब तक अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से भोगवादी पाश्चात्य संस्कृति प्रचारित होती रहेगी, भ्रष्टाचार कम नहीं हो सकता। अतः सबसे पहले देशी भाषाओं, विशेषकर संस्कृत की शिक्षा अनिवार्य करनी होगी। भारतीय भाषाएं जीवन मूल्यों की प्रचारक और पृष्ठ पोषक हैं। उनसे भारतीयों में धर्म का भाव सुधार होगा और लोग धर्म भीरु बनेंगे।



चुनाव- प्रक्रिया में बदलाव या परिवर्तन


वर्तमान चुनाव पद्धति के स्थान पर ऐसी पद्धति अपनानी पड़ेगी,  जिसमें जनता स्वयं अपनी इच्छा से भारतीय जीवन मूल्यों के प्रति समर्पित ईमानदार व्यक्तियों को खड़ा करके बिना धन व्यय के चुन सके। ऐसे लोग जब विधायक या संसद सदस्य बनेंगे तो ईमानदारी और देशभक्ति का आदर्श जनता के सामने रखकर स्वच्छ शासन प्रशासन दे सकेंगे। अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और जो विधायक या सांसद अवसरवादीता के कारण दल या पार्टी बदले, उन्हें की सदस्यता समाप्त कर दोबारा से चुनाव में खड़े होने की व्यवस्था पर रोक लगानी होगी। जाति और धर्म के नाम का सहारा लेकर वोट मांगने वालों को चुनाव प्रक्रिया से ही प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए।



अस्वाभाविक प्रतिबंधों की समाप्ति


 सरकार ने कोटा - परमिट आदि के जो हजारों प्रतिबंध लगा रखे हैं, उनसे व्यापार बहुत कुप्रभावित हुआ है। फलत: व्यापारियों को विभिन्न विभागों में बैठे अफसरों को खुश करने के लिए भांति भांति के भ्रष्ट हथकंडे अपनाने पड़ते हैं। ऐसी स्थिति में भले और ईमानदार लोग व्यापार की ओर उन्मुख नहीं हो पाते। इन प्रतिबंधों की समाप्ति से व्यापार में योग्य लोग आएंगे जिससे स्वस्थ प्रतियोगिता को बढ़ावा मिलेगा और जनता को अच्छा माल सस्ते दर पर मिल सकेगा।


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कर प्रणाली का सरलीकरण


सरकार ने हजारों प्रकार के कर लगा रखे हैं, जिनके बोझ से व्यापार पनप नहीं पाता। इसके फलस्वरूप व्यापारी को अनैतिक हथकंडे अपनाने को विवश होना पड़ता है अतः सरकार को सैकड़ों करों को समाप्त करके कुछ गिने-चुने कर ही लगाने चाहिए। इन करों की वसूली प्रक्रिया भी इतनी सरल और सुगम हो कि अशिक्षित या अल्प शिक्षित व्यक्ति भी अपना कर सुविधा पूर्वक जमा कर सके और भ्रष्ट तरीके अपनाने को बाध्य ना हो। इसके लिए देशी भाषाओं का प्रत्येक स्तर पर प्रयोग नितांत वांछनीय है।



शासन और प्रशासन व्यय में कटौती


आज देश के शासन और प्रशासन (जिसमें विदेशों में स्थित भारतीय दूतावास भी सम्मिलित है), पर इतना अंधाधुंध व्यय हो रहा है कि जनता की कमर टूटती जा रही है। इस व्यय में तत्काल बहुत अधिक कटौती करके सर्वत्र सादगी का आदर्श सामने रखा जाना चाहिए, जो प्राचीन काल से ही भारतीय जीवन पद्धति की विशेषता रही है। साथ ही केंद्रीय और प्रादेशिक सचिवालय और देश भर के प्रशासनिक तंत्र के बेहद भारी- भरकम ढांचे को छांट कर छोटा किया जाना चाहिए।



देशभक्ति की प्रेरणा देना


सबसे महत्वपूर्ण है कि वर्तमान शिक्षा पद्धति में आमूल- चूल परिवर्तन कर उसे देशभक्ति को केंद्र में रखकर पुनर्गठित किया जाए। विद्यार्थी को, चाहे  वह किसी भी धर्म मत या संप्रदाय का अनुयायी हो, आरंभ से ही देशभक्ति का पाठ पढ़ाया जाए। इसके लिए प्राचीन भारतीय इतिहास ,संस्कृति, भारतीय महापुरुषों के जीवन चरित्र आदि पाठ्यक्रम में रहकर विद्यार्थी को अपने देश की मिट्टी, इसकी परंपराओं मान्यताओं एवं संस्कृति पर्व कर्म करना सिखाया जाना चाहिए।



कानून को अधिक कठोर बनाना


भ्रष्टाचार के विरुद्ध कानून को भी अधिक कठोर बनाया जाए। इसके लिए वर्षों से चर्चा का विषय बने 'लोकपाल विधेयक' को यद्यपि पास किया जा चुका है तथापि भारत जैसे देश; जहां प्रत्येक स्तरों पर भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी ही व्याप्त है; के लिए यह अभी भी नाकाफी है।



सारांश


भ्रष्टाचार ऊपर से नीचे को आता है, इसलिए जब तक राजनेता देश भक्त और सदाचारी ना होंगे, भ्रष्टाचार का उन्मूलन असंभव है। उपयुक्त राजनेताओं के चुने जाने के बाद ही ऊपर बताए गए सारे उपाय अपनाए जा सकते हैं, जो भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ने में पूर्णत: प्रभावी सिद्ध होंगे। आज प्रत्येक व्यक्ति की जुबान पर एक ही प्रश्न है कि क्या होगा इस महान सनातन राष्ट्र का ? कैसे मिटेगा यह भ्रष्टाचार अत्याचार और दुराचार? यह तभी संभव है जब चरित्रवान तथा सर्वस्व- त्याग और देश सेवा की भावना से भरे लोग राजनीति में आएंगे और लोक चेतना के साथ जीवन को जोड़ेंगे।



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