जीवन में खेलकूद की उपयोगिता | Essay on importance of Games in Hindi

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जीवन में खेलकूद की उपयोगिता | Essay on importance of Games in Hindi

जीवन में खेलकूद की उपयोगिता | Essay on importance of Games in Hindi 


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जीवन में खेलकूद की उपयोगिता (2020, 19)

अथवा   शिक्षा और खेलकूद (2017,16)

अथवा  जीवन में खेलकूद का महत्व (2018,21)



संकेत बिंदु:- भूमिका, खेलकूद के लाभ, खेलों की आवश्यकता, खेलों की विविधता, जीवन हेतु आवश्यक गुणों का विकास, शिक्षा तथा खेलकूद का संबंध, स्कूलों में खेल, भविष्य निर्माण में खेल का महत्व, उपसंहार।



भूमिका (प्रस्तावना)


मानव ईश्वर की उत्कृष्ट कृति है। मानव में चिंतन की शक्ति है, जिसके द्वारा यह प्राचीन काल से अब तक सब पर शासन करता आया है। आज प्रकृति भी इसके सामने नतमस्तक है। संसार के संपूर्ण ऐश्वर्य के पीछे मानव मस्तिष्क के विकास का इतिहास अंतर्निहित है, लेकिन यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि केवल मस्तिष्क का विकास एकांगी है, मस्तिष्क के साथ-साथ शारीरिक शक्ति का होना भी अनिवार्य है। अतः मस्तिष्क के विकास के लिए जहां शिक्षा की आवश्यकता है, वहीं शारीरिक विकास के लिए खेलकूद भी अनिवार्य है। छात्र जीवन में तो खेलों का महत्व और भी बढ़ जाता है। महान दार्शनिक प्लेटो ने कहा था- "बालक को दंड की अपेक्षा खेल द्वारा नियंत्रण करना कहीं अधिक अच्छा होता है।" आज शैक्षणिक संस्थानों में अवकाश के समय छात्रों को खेलकूद में व्यस्त रखा जाता है, जिससे अध्ययन या खेलकूद के अतिरिक्त उनका ध्यान कहीं और ना भटके। शिक्षा हमारे जीवन के सर्वोत्तम विकास के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। व्यक्ति को एक सच्चे मानव के रूप में स्थापित करके मानवता के गुणों को परिष्कृत करना शिक्षा का उद्देश्य होता है।


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शिक्षा हमारे मस्तिष्क का विकास करती है तथा हमें स्वस्थ बनाती है। जीवन की सार्थकता, मानसिक शारीरिक, बौद्धिक एवं चारित्रिक विकास में निहित है। जिसे शिक्षा संभव बनाती है। बहुत पुरानी कहावत है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। शरीर को स्वस्थ बनाए रखने में आहार,खेलकूद एवं व्यायाम सबसे महत्वपूर्ण है। इसी कारण शिक्षा के साथ खेलकूद को उसके एक अंग के रूप में पाठ्य चर्चा का हिस्सा बनाया जाता है। हमारे देश के प्रत्येक विद्यालय में खेल गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जाता है। अलग से शारीरिक शिक्षक नियुक्त किए जाते हैं। हमारे जीवन में खेलों का बड़ा महत्व रहा है। प्राचीन काल से ही खेल चलन में थे। संभवत आदिकाल में मानव ने समय व्यतीत करने मनोरंजन के उद्देश्य से खेलों की खोज की होगी। उस समय मनोरंजन के बेहद सीमित साधन हुआ करते थे। शुरू शुरू में खेलकूद महज मनोरंजन की पूर्ति का साधन था , कालांतर में यह हमारी जीवन शैली का एक अंग बन गया है। समय बीतने के साथ ही खेलों के स्वरूप बदलते गए नए नए खेलों की खोज हुई और आज हम खेलकूद की प्रतियोगिता के जमाने में जी रहे हैं।



खेलकूद के लाभ


खेल का एक लाभ तो यह होता है कि इससे संस्थान में अनुशासन स्थापित करने में सहायता मिलती है। दूसरी ओर विद्यार्थियों में संयम, दृढ़ता, गंभीरता, एकाग्रता, सहयोग एवं अनुशासन की भावना का विकास होता है। खेलकूद में होने वाली हार जीत भी विद्यार्थियों को जीवन में सफलता-असफलता के समय संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देती है। खेल खेलने से शरीर पुष्ट होता है, मांसपेशियां स्वस्थ होती हैं, भूख बढ़ती है और आलस्य दूर भागता है। शरीर तथा मन से दुर्बल व्यक्ति जीवन में सच्चे सुख और आनंद को प्राप्त नहीं कर सकता।


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शारीरिक विकास के लिए खेलों के अतिरिक्त अन्य साधन भी हैं। व्यायाम के द्वारा एवं प्रातः कालीन भ्रमण द्वारा भी स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है। कुश्ती, कबड्डी, दंगल, भ्रमण, दौड़ना आदि स्वास्थ्य वृद्धि के लिए अत्यंत लाभकारी हैं। खेलों से हमारे उत्तम स्वास्थ्य के साथ-साथ मनोरंजन की भी पर्याप्त मात्रा में आपूर्ति होती है। खेलों से मनुष्य में आत्मनिर्भरता की भावना आती है और उसका मनोबल बढ़ता जाता है। खिलाड़ी केवल अपने लिए ही नहीं खेलता, बल्कि पूरी टीम की जीत उसकी जीत तथा टीम की हार उसकी हार होती है, इसलिए उसमें खेल भावना का भी विकास होता है तथा साथियों के लिए स्नेह एवं मैत्री की भावना का विकास होता है। उसमें अपनत्व तथा एकता की भावना जन्म लेती है।



खेलों की आवश्यकता  


शिक्षा को जीवन उपयोगी और रोचक बनाने के लिए इसमें खेलकूद की महत्वपूर्ण भूमिका है। जो कुछ ज्ञान हम किताबों में सीखते हैं उन्हें खेल के मैदान में जीवन में अपनाने की कोशिश करते हैं। खेल से मस्तिष्क और बुद्धि का तीव्र विकास होता है। हर समय पढ़ते रहने से तनाव भी हावी होने लगता है। ऐसे में खेलकूद ही उसे तनाव मुक्त करती है। खेलों के माध्यम से हम अपनी गलतियां तथा मजबूत पक्ष को भी समझने लगते हैं। धीरे-धीरे उनमें सुधार की कोशिश भी करते हैं। उनका यह गुण शिक्षा भी बेहद कारगर साबित होता है। खेलकूद और शिक्षा को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। बच्चों को खेलकूद की तरफ अग्रसर करते रहना चाहिए जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य अच्छा बना रहे और जीवन भर सीखने की गति को बरकरार रख सके।


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संसार के उन्नति शील देशों ने खेलों के महत्व को अच्छी प्रकार से समझ लिया है इसलिए वे जीवन के हर क्षेत्र में खेलों को अधिक से अधिक महत्व देते हैं। उन्नति शील देशों में खेलों का प्रबंध केवल विद्यार्थियों अथवा नौजवानों के लिए ही नहीं बल्कि अधिक उम्र के लोगों के लिए भी किया जाता है। खेलों के इतने अधिक लाभ होने की वजह से भी आज भी विद्यार्थी में खेलों के प्रति उदासीनता पाई जाती है। सरकार को पढ़ाई के साथ-साथ खेलों का भी एक विषय अलग बनाना चाहिए जिसमें केवल खेलों के विषय में समझाना चाहिए। और विद्यार्थियों के मन में खेल के प्रति अधिक से अधिक रूचि पैदा करनी चाहिए।



खेलों की विविधता 


रुचि की भिन्नता के कारण प्रत्येक व्यक्ति अपनी-अपनी रूचि के अनुसार खेल चुनता है। किसी को हॉकी खेलना पसंद होता है, तो किसी को फुटबॉल। एक की क्रिकेट में रुचि होती है तो दूसरे की बैडमिंटन में। कोई भी खेल हो, स्वास्थ्य व मनोरंजन दोनों की दृष्टि से ये सभी उपयोगी एवं लाभकारी होते हैं।


   खेलों से अनेक लाभ हैं, इनका जीवन और जगत में अति विशिष्ट स्थान है। शारीरिक और मानसिक स्थिति को संतुलित रखने में खेलों का विशेष महत्व है, इसलिए प्राचीन काल से ही खेलों को बहुत महत्व दिया जाता रहा है।

    

खेलों से केवल शरीर ही नहीं, अपितु इनसे मस्तिष्क और मनोबल का भी पर्याप्त विकास होता है, क्योंकि पुष्ट और स्वस्थ शरीर में ही सुंदर मस्तिष्क का वास होता है। बिना शारीरिक शक्ति के शिक्षा पंगु है। मान लीजिए कि एक विद्यार्थी अध्ययन में बहुत अच्छा है, पर शरीर से कमजोर है, तो उसके लिए किसी भी बाधा का सामना करना संभव नहीं है। अपने मार्ग में पड़े, एक भारी पत्थर को हटाकर अपना मार्ग निष्कंटक कर लेने का सामर्थ्य उसमें नहीं होता।


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इस प्रकार का विद्यार्थी भला देश की रक्षा में किस प्रकार अपना सहयोग प्रदान कर सकता है। केवल रात-दिन किताब पर दृष्टि गड़ाकर रखने वाला विद्यार्थी जीवन में कभी सफल नहीं हो सकता है। शक्ति के अभाव में अन्य सभी गुण व्यर्थ सिद्ध हो जाते हैं। यहां तक की तप, त्याग और अहिंसा भी शक्ति के अभाव में व्यर्थ हैं।



जीवन हेतु आवश्यक गुणों का विकास 


शरीर की वलिष्ठता के साथ-साथ खेलों से विद्यार्थियों में क्षमाशीलता, दया, स्वाभिमान, आज्ञापालन, अनुशासन आदि गुणों का विकास होता है। बहुत से विद्यार्थी तो खेलों के बल पर ही ऊंचे-ऊंचे पदों को प्राप्त कर लेते हैं, खेलों के अभाव तथा निर्मल काया होने के कारण अधिकांश विद्यार्थी कई बार महत्वपूर्ण स्थान से वंचित रह जाते हैं।


अतः शिक्षण के साथ-साथ खेलकूद में भी कुशल होना उज्जवल भविष्य का प्रतीक है। खेलों से राष्ट्रीयता और अंतर्राष्ट्रीयता का भी उदय होता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेले जाने वाले खेलों के आधार पर खिलाड़ियों को विश्व भ्रमण का भी सुअवसर मिलता है।


शिक्षा तथा खेलकूद का संबंध:- शिक्षा तथा खेलकूद का परस्पर घनिष्ठ संबंध है। शिक्षा मनुष्य का सर्वागीण विकास करती है। शारीरिक विकास इस विकास का पहला रूप है जो खेलकूद में गतिशील रहने से ही संभव है। दिमाग भी एक शारीरिक अवयव है, अत: खेलकूद को अनिवार्य रूप से अपनाने पर मस्तिष्क परिपक्व होता है और वही शिक्षा में भी आगे बढ़ता है। शिक्षा से खेलकूद की इस घनिष्ठता को दृष्टिगत रखकर ही प्रत्येक विद्यालय में खेलकूद की व्यवस्था की जाती है और इनसे संबंध व्यवस्था पर पर्याप्त धनराशि व्यय की जाती है। शिक्षा प्रणाली को पहले से बेहतरीन और रोचक बनाने के लिए खेलों की आवश्यकता है। व्यक्ति किताबों में जो कुछ भी पड़ता है उन्हें वह खेल के मैदान में अपनी असल जिंदगी में अपना आता है।


खेलने से व्यक्ति के मस्तिष्क का विकास होता है और उसकी बुद्धि में वृद्धि होती है। सारा दिन पढ़ने से व्यक्ति तनावग्रस्त हो जाता है लेकिन खेल उसे तनावमुक्त बनाते हैं। बच्चों का तो खेलकूद से बहुत ही गहरा नाता है क्योंकि इससे वे जो गण सीखते हैं वे उन्हें जिंदगी भर याद रहते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शिक्षा तथा खेलकूद का आपस में एक बहुत ही घनिष्ट संबंध है।



स्कूलों में खेल 


बच्चों की पूर्ण शिक्षा और विकास के लिए स्कूलों और कॉलेजों में भी खेलकूद एक विषय के रूप में पढ़ाए जाते हैं। रोज 1 घंटे खेलकूद की होती ही होती है। शिक्षकों को भी चाहिए कि वह बच्चों को खेल में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें। समय-समय पर विभिन्न खेल प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। सरकारी भी खेलों को बढ़ावा देती है और बच्चों को खेलों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करती है।



भविष्य निर्माण में खेल का महत्व

स्वस्थ रहकर व्यक्ति अच्छी प्रकार से पढ़ लिख सकता है। हर प्रकार का परिश्रम करके भविष्य में पूर्ण बनने का सफल प्रयास कर सकता है। खेलकूद विद्यार्थी के मन में मुकाबले की स्वस्थ भावना जगाते हैं। उसे मिलजुल कर काम करने, अपने लक्ष्य तक पहुंचने की प्रेरणा देते हैं। एक ओर संगठित होकर काम करना सिखाते हैं। मनुष्य की विजय पाने की भावना को प्रबल बनाते हैं। उसमें उत्साह की भावनाएं रखते हैं। फल स्वरुप खेलों में रुचि रखने वाला व्यक्ति अच्छी प्रकार पढ़ने लिखने के साथ-साथ अपने अन्य सभी कार्य भी चुस्ती से कर सकता है।


खेलकूद में व्यक्ति का अपने और अपने साथियों के साथ मिलकर दोनों तरह से ध्यान अपने लक्ष्य अर्थात् गोल पर रहता है। इससे वह किसी भी काम में ध्यान केंद्रित कर लेने की शिक्षा पाकर उसका उचित अभ्यास भी कर लेता है। पढ़ाई लिखाई के साथ-साथ खेलों का यह मैं तो वास्तव में बड़ा ही लाभदायक और उपयोगी है। शरीर मन और आत्मा के विकास का अच्छा साधन है ।



उपसंहार


निःसंदेह खेल विद्यार्थी जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी है, पर आवश्यकता से अधिक कुछ भी हानिकारक होता है। बहुत से विद्यार्थी खेलकूद में इतनी रुचि लेने लगते हैं कि वे अपने मूल लक्ष्य विद्या-अध्ययन से ही मुंह मोड़ लेते हैं। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि खेलों का महत्व भी शिक्षा से सम्बद्ध होने पर ही है। 


खेल सदैव खेल भावना से खेले जाने चाहिए। कभी-कभी खेलों के कारण द्वेष, ईर्ष्या, गुटबंदी एवं संघर्ष की भावनाएं बढ़ने लगती हैं, जो अत्यंत हानिकारक हैं। अतः शिक्षा एवं क्रीड़ा में समन्वय की नितांत आवश्यकता है। जैसे मस्तिष्क और हृदय का समन्वय अनिवार्य है, वैसे ही शिक्षा तथा खेलकूद का मेल भी जरूरी है। शिक्षण संस्थाओं का यह कर्तव्य है कि वे दोनों की समुचित व्यवस्था करने के साथ-साथ दोनों में समन्वय भी स्थापित करें। खेलों के बिना जीवन नीरस है और व्यक्ति के संपूर्ण विकास के लिए खेलों का होना आवश्यक है। आज के समय में केवल किताबी कीड़ा बनना ही काफी नहीं है अपितु खेलकूद से खुद को स्वस्थ रखना भी जरूरी है। आज के समय में खेलों की वजह से ही बहुत से लोग अच्छे अच्छे पर्दे पर हैं लेकिन अच्छे पढ़े लिखे होने के बावजूद भी बहुत से लोग दुर्बल कार्य होने के कारण उन्हें पदों से वंचित रह जाते हैं। हमें चाहिए कि हम संपूर्ण विकास की तरफ अग्रसर हो और खेलों को अपने जीवन का अंग बनाएं।



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