बेरोजगारी पर निबंध || Berojgari Per Nibandh

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बेरोजगारी पर निबंध || Berojgari Per Nibandh

बेरोजगारी पर निबंध || Berojgari Per Nibandh

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बेरोजगारी की समस्या और उसका समाधान (2016,15,14)

अथवा बेरोजगारी और उसे दूर करने के उपाय (2019,17,18)

अन्य शीर्षक  बेरोजगारी की समस्या (2020,16,11,21)

बढ़ती बेरोजगारी: कारण और निवारण (2015)


संकेत बिंदु:- प्रस्तावना, बेरोजगारी का अर्थ, बेरोजगारी के कारण, बेरोजगारी कम करने के उपाय, बेरोजगारी के दुष्प्रभाव, उपसंहार।


बेरोजगारी का अर्थ -

बेरोजगारी का अर्थ है-जब कोई योग्य तथा काम करने का इच्छुक व्यक्ति काम मांगे और उसे काम ना मिल सके अथवा जो अनपढ़ और अप्रशिक्षित हैं, वे भी काम के अभाव में बेकार हैं। एक कुशल और प्रतिभाशाली व्यक्ति को कई कारणों से उचित नौकरी नहीं मिलना यही स्थिति बेरोजगारी को संदर्भित करती है।


कुछ बेरोजगार काम पर तो लगे हैं, लेकिन वे अपनी योग्यता से बहुत कम धन कमा पाते हैं, इसलिए वे स्वयं को बेरोजगार ही मानते हैं। बेरोजगारी के कारण देश का आर्थिक विकास रुक जाता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, यह संख्या वर्ष 1985 में 3 करोड़ से अधिक थी, जबकि एक अन्य अनुमान के अनुसार प्रत्येक वर्ष यह संख्या लगभग 70 लाख की गति से बढ़ रही है। बेरोजगारी किसी भी देश के विकास में प्रमुख बाधाओ में से एक है। भारत में बेरोजगारी एक गंभीर मुद्दा है शिक्षा का अभाव, रोजगार के अवसरों की कमी और प्रदर्शन संबंधित समस्याएं कुछ ऐसे कारक हैं जो बेरोजगारी का कारण बनते हैं। जो बेरोजगारी का कारण बनती है इस समस्या को खत्म करने के लिए भारत सरकार को प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है।


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विकासशील देशों के सामने आने वाली मुख्य समस्याओं में से एक बेरोजगारी है। यह केवल देश के आर्थिक विकास में खड़ी प्रमुख बाधाओ में एक ही एक नहीं बल्कि व्यक्तिगत और पूरे समाज पर भी एक साथ कई तरह के नकारात्मक प्रभाव डालती है। भारी जनसंख्या के कारण भारत देश कई प्रकार की समस्याओं से घिरा हुआ है। उनमें से बेरोजगारी की समस्या ने सरकार और प्रजा दोनों की नींद उड़ा कर रख दी है। बेरोजगारी किसी भी देश के विकास में एक बैठक है। रोजगारी अपने साथ गरीबी तथा दरिद्रता जैसी कई अनेक समस्याओं को जन्म देती है किसी व्यक्ति की उसकी योग्यता के अनुसार रोजगार ना मिलना है उसे बेरोजगारी कहते हैं।


जनसंख्या वृद्धि मशीनीकरण शिक्षा तथा योग्यता में कमी,आरक्षण,नीति,मंदा आर्थिक विकास, कुटीर उद्योग में गिरावट और मौसमी व्यवसाय जैसे बेरोजगारी के लिए कई कारण जवाबदेही हैं। रोजगारी के भी कई प्रकार होते हैं जैसे कि नीचे आपको बताए गए हैं।


बेरोजगारी के कारण -


बेरोजगारी के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-


1. जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि होना।

2. शिक्षा प्रणाली में व्यावहारिक शिक्षा के स्थान पर सैद्धांतिक शिक्षा को अधिक महत्व दिया जाना।

3. कुटीर उद्योगों की उपेक्षा करना।

4. देश के प्राकृतिक संसाधनों का पूरी तरह से उपयोग नहीं करना।

5. भारतीय कृषि की दशा अत्यंत पिछड़ी होने के कारण कृषि क्षेत्र में भी बेरोजगारी का बढ़ना।

6. कुशल एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों की कमी के कारण उद्योगों को संचालित करने के लिए विदेशी कर्मचारियों को बाहर से लाना।


जनसंख्या में वृद्धि - देश की जनसंख्या में तेजी से होती वृद्धि बेरोजगारी के प्रमुख कारणों में से एक है।


मंदी आर्थिक विकास - देश के जी में आर्थिक विकास के परिणाम स्वरूप लोगों को रोजगार के कम अवसर प्रदान किए जाते हैं जिससे बेरोजगारी बढ़ती जा रही है।


मौसमी व्यवसाय - देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि क्षेत्र में जुड़ा हुआ है। मौसमी व्यवसाय होने के कारण केवल वर्ष के एक निश्चित समय के लिए काम का अवसर प्रदान करता है।


औद्योगिक क्षेत्र की धीमी वृद्धि - देश में औद्योगिक क्षेत्र की वृद्धि बहुत धीमी है। इस प्रकार इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर सीमित हैं।


कुटीर उद्योग में गिरावट - कुटीर उद्योग में उत्पादन काफी गिर गया है और इस वजह से कई कारीगर बेरोजगार हो गए हैं।


बेरोजगारी कम करने के उपाय -


बेरोजगारी कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जाने चाहिए-


1. जनता को शिक्षित कर जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाना।


2. शिक्षा प्रणाली में व्यापक परिवर्तन तथा सुधार करना।


3. कुटीर उद्योगों की दशा सुधारने पर जोर देना।


4. देश में विशाल उद्योगों की उपेक्षा लघु उद्योगों पर अधिक ध्यान देना। मुख्य उद्योगों के साथ-साथ सहायक उद्योगों का भी विकास करना।


5. सड़कों का निर्माण, रेल परिवहन का विकास, पुलों व बांधों का निर्माण तथा वृक्षारोपण आदि करना, जिससे अधिक-से-अधिक संख्या में बेरोजगारों को रोजगार मिल सके।


6. सरकार द्वारा कृषि को विशेष प्रोत्साहन एवं सुविधाएं देना, जिससे युवा गांवों को छोड़कर शहरों की ओर ना जाएं।


जनसंख्या पर नियंत्रण - यह सही समय है जब भारत सरकार देश की आबादी को नियंत्रित करने के लिए एक कठोर कदम उठाए।


शिक्षा व्यवस्था - भारत में शिक्षा प्रणाली कौशल विकास की बजाय सैद्धांतिक पहलुओं पर केंद्रित है। कुशल श्रम शक्ति उत्पन्न करने के लिए प्रणाली को सुधारना होगा।


औद्योगिकीकरण - लोगों के लिए रोजगार के अधिक अवसर बनाने के लिए सरकार को औद्योगिक क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए एक अहम कदम उठाना होगा।


विदेशी कंपनियां - सरकार को रोजगार के अधिक संभावनाएं पैदा करने के लिए विदेशी कंपनियों को अपनी इकाइयों को देश में खोलने के लिए प्रोत्साहन करना चाहिए।


रोजगार के अवसर - एक निश्चित समय में काम करके बाकी समय बेरोजगार रहने वाले लोगों के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा किए जाने चाहिए।


बेरोजगारी के दुष्प्रभाव -


Unemployment essay in Hindi || बेरोजगारी पर निबंध

बेरोजगारी अपने आप में एक समस्या होने के साथ-साथ अनेक सामाजिक समस्याओं को भी जन्म देती है। उन्हें यदि हम बेरोजगारी के दुष्परिणाम अथवा दुष्प्रभाव कहें, तो अनुचित नहीं होगा। बेरोजगारी के कारण निर्धनता में वृद्धि होती है तथा भुखमरी की समस्या उत्पन्न होती है। बेरोजगारी के कारण मानसिक अशांति की स्थिति में लोगों के चोरी, डकैती, हिंसा, अपराध, हत्या आदि की ओर प्रवृत्ति होने की पूरी संभावना बनी रहती है। अपराध एवं हिंसा में हो रही वृद्धि का सबसे बड़ा कारण बेरोजगारी ही है। कई बार तो बेरोजगारी की भयावह स्थिति से तंग आकर लोग आत्महत्या भी कर बैठते हैं।


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देश में बेरोजगारी की समस्या लंबे समय से बनी हुई है। हालांकि सरकार ने रोजगार सर्जन के लिए कहीं कार्यक्रम शुरू किए हैं पर अभी तक वांछनीय प्रगति हासिल नहीं हो पाई है। नीति निर्माताओं और नागरिकों को अधिक नौकरियों के निर्माण के साथ ही रोजगार के लिए सही कौशल प्राप्त करने के लिए सामूहिक प्रयास करने चाहिए। वैसे तो बेरोजगारी दूर करना आसान काम नहीं है लेकिन अगर हम थोड़े नीति नियम बनाकर चले तो यह थोड़ी कम हो सकती है। सरकार ने हर परिवार के कम से कम एक सदस्य को नौकरी देने का जरूर प्रयास करना चाहिए। शिक्षा के साथ-साथ तकनीकी शिक्षा भी देनी चाहिए जिससे विद्यार्थियों को विभिन्न प्रकार के क्षेत्र में रोजगार मिल सके। विदेश से आयात करने वाली चीजों पर रोक लगाकर अपने देश की चीजों का उत्पाद करना चाहिए और उन्हें का उपयोग करना चाहिए। जिससे देश के लोगों को काम मिल सके।


भारत में बेरोजगारी के प्रकार -

भारत में बेरोजगारी प्रच्छन्न बेरोजगारी, खुली बेरोजगारी, शिक्षित बेरोजगारी, चक्रीय बेरोजगारी, मौसमी बेरोजगारी, तकनीकी बेरोजगारी, संरचनात्मक बेरोजगारी, दीर्घकालिक बेरोजगारी, घर्षण बेरोजगारी और आकस्मिक बेरोजगारी साहित्य कई श्रेणियों में विभाजित की जा सकती है। इन सभी प्रकार की ब्रिज गाड़ियों के बारे में विस्तार से पढ़ने से पहले हमें यह समझना होगा कि वास्तव में किसको बेरोजगार कहा जाता है? 


मूल रूप से बेरोजगार ऐसा व्यक्ति होता है जो काम करने के लिए तैयार है और एक रोजगार के अवसर की तलाश कर रहा है पर रोजगार प्राप्त करने में असमर्थ है। जो लोग स्वेच्छा से बेरोजगार रहते हैं या कुछ शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण काम करने में असमर्थ होते हैं वह बेरोजगार नहीं गिने जाते हैं।


यहां बेरोजगारी के विभिन्न प्रकारों पर एक विस्तृत नजर डाली गई है:-


प्रच्छन्न बेरोजगारी - जब जरूरी संख्या से ज्यादा लोगों को एक जगह पर नौकरी दी जाती है तो इसे प्रच्छन्न में बेरोजगारी कहा जाता है। इन लोगों को हटाने से उत्पादकता प्रभावित नहीं होती है।


मौसमी बेरोजगारी - जैसा कि शब्द सही स्पष्ट है यह उस तरह की बेरोजगारी का प्रकार है जिसमें वर्ष के कुछ समय में ही काम मिलता है। मुख्य रूप से मौसमी बेरोजगारी से प्रभावित उद्योगों में कृषि उद्योग और बर्फ कारखाना आदि शामिल हैं। यह बेरोजगारी केवल मौसम के अनुसार की जाती है।


खुली बेरोजगारी - खुली बेरोजगारी से तात्पर्य है कि जब एक बड़ी संख्या में मजदूर नौकरी पाने में असमर्थ होते हैं तो उन्हें नियमित आय प्रदान कर सकें। यह समस्या तब होती है क्योंकि श्रम बल अर्थव्यवस्था की विकास दर की तुलना में बहुत अधिक दर से बढ़ जाती है।


तकनीकी बेरोजगारी - तकनीकी उपकरणों के इस्तेमाल से मानवीय श्रम की आवश्यकता कम होने से भी बेरोजगारी बढ़ी है।


संरचनात्मक बेरोजगारी - इस प्रकार की बेरोजगारी देश की आर्थिक संरचना में एक बड़ा बदलाव की वजह बनती है यह तकनीक की उन्नति और आर्थिक विकास का नतीजा है।


चक्रीय बेरोजगारी - व्यवसायिक गतिविधियों के समग्र स्तर में कमी से चक्रीय बेरोजगारी होती है। हालांकि यह घटना थोड़े समय के लिए ही होती है।


शिक्षित बेरोजगारी - उपर्युक्त नौकरी खोजने में असमर्थता, रोजगार योग्य कौशल की कमी और दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली जैसे कुछ कारण है जैसे शिक्षित बेरोजगारी कहा जाता है।


ठेका बेरोजगारी - इस तरह के बेरोजगार में लोग या तो अंशकालिक आधार पर नौकरी करते हैं या उस समय के काम करते हैं जिसके लिए वे अधिक योग्य होते हैं।


प्रतिरोधात्मक बेरोजगारी - यह तब होता है जब संभल की मांग और इसकी आपूर्ति उचित रूप से समन्वय हित नहीं होती है।


दीर्घकालिक बेरोजगारी - दीर्घकालिक बेरोजगारी बाय होती है जो जनसंख्या में तेजी से वृद्धि और आर्थिक विकास के निम्न स्तर के कारण देश में जारी है।


आकस्मिक बेरोजगारी - मांग में अचानक गिरावट अल्पकालिक अनुबंध या कच्चे माल की कमी के कारण ऐसी बेरोजगारी होती है।


बेरोजगारी ने भ्रष्टाचार, आतंकवाद, चोरी,डकैती अशांति तथा अपहरण जैसी अनेक घातक गुनाहों को जन्म दिया है। बेरोजगारी एक ऐसी समस्या है। जो आजादी के समय से हमारे साथ जुड़ी हुई है सरकार ने इस समस्या को दूर करने के लिए कोई कार्यक्रम शुरू किए हैं पर अभी तक किसी में सफलता हासिल नहीं हुई है।


बेरोजगारी से संबंधित आंकड़े -


भारत में श्रम और रोजगार मंत्रालय देश में बेरोजगारी के रिकॉर्ड रखता है। रोजगारी के आंकड़ों की गणना उन लोगों की संख्या के आधार पर की जाती है जिनकी आंकड़ों के मिलान की तारीख से पहले 365 दिनों के दौरान पर्याप्त समय के लिए कोई काम नहीं था और अभी भी रोजगार की मांग कर रहे हैं।


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वर्ष 1983 से 2013 तक भारत में बेरोजगारी की दर और सत्य 7.3 2% के साथ सबसे अधिक 9.40% थी और 2013 में यह रिकॉर्ड 4.90% थी पूर्णविराम वर्ष 2015 से 2016 में बेरोजगारी की दर महिलाओं के लिए 8.7% हुई और पुरुषों के लिए 4.3% हुई।


बेरोजगारी के परिणाम -

बेरोजगारी की वजह से गंभीर सामाजिक आर्थिक मुद्दे होते हैं। इससे ना केवल एक व्यक्ति बल्कि पूरा समाज प्रभावित होता है। नीचे बेरोजगारी के कुछ प्रमुख परिणामों की व्याख्या की गई है आपको इन सभी परिणाम को पूरा पढ़ना है और आपको अच्छे से समझ में आ जाएगा।


गरीबी में वृद्धि - यह कथन बिल्कुल सत्य है कि बेरोजगारी दर में वृद्धि से देश में गरीबी की दर में वृद्धि हुई है। देश के आर्थिक विकास को बाधित करने के लिए बेरोजगारी मुख्यतः जिम्मेदार है तभी आज भारत में गरीबी दर तेजी से बढ़ती जा रही है।


अपराध दर में वृद्धि - एक उपयुक्त नौकरी खोजने में असमर्थ बेरोजगार आमतौर पर अपराध का रास्ता लेता है क्योंकि यह पैसा बनाने का एक आसान तरीका है। चोरी, डकैती और अन्य खतरनाक अपराधों के तेजी से बढ़ते मामलों के मुख्य कारणों में से एक बेरोजगारी ही है।


श्रम का शोषण - कर्मचारी आम तौर पर कम वेतन की पेशकश कर बाजार में नौकरियों की कमी का लाभ उठाते हैं। अपने कौशल से जुड़ी नौकरी खोजने में असमर्थ लोग आमतौर पर कम वेतन वाली नौकरी के लिए व्यवस्थित होते हैं कर्मचारियों को प्रत्येक दिन निर्धारित संख्या के घंटे के लिए भी काम करने के लिए मजबूर किया जाता है।


राजनैतिक अस्थिरता - बेरोजगार लोगों में असंतोष का स्तर बढ़ता है जिससे यह धीरे-धीरे चिंता, अवसाद और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में बदलने लगती हैं।


कौशल का नुकसान - लंबे समय के लिए नौकरी से बाहर रहने से जिंदगी नीरज और कौशल का नुकसान होता है। यह एक व्यक्ति के आत्मविश्वास काफी हद तक कम कर देता है।


भारत में बेरोजगारी को कम करने के लिए सरकारी पहल -

भारत सरकार ने बेरोजगारी की समस्या को कम करने के साथ-साथ देश में बेरोजगारों की मदद के लिए कई तरह के कार्यक्रम शुरू किए हैं। इनमें से कुछ में इंटीग्रेटेड रूरल डेवलपमेंट प्रोग्राम (IRDP),जवाहर रोजगार योजना,सूखा प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम(DPAP),स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षण,नेहरू रोज़गार योजना (NYR),रोजगार आश्वासन योजना , की शहरी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम,रोजगार कार्यालय,विदेशी देशों , लघु और कुटीर , रोजगार गारंटी योजना और जवाहर ग्राम समृद्धि योजना का विकास आदि शामिल है।


इन कार्यक्रमों के जरिए रोजगार के अवसर प्रदान करने के अलावा सरकार शिक्षा के महत्व को भी संबोधित कर रही है और बेरोजगार लोगों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान कर रही है। वर्षों से हमारी शिक्षा व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। हमारी यह शिक्षा प्रणाली सिर्फ डिग्रियों तक ही सीमित है। उच्च शिक्षा प्राप्त होने के बाद भी योग्यता के अनुसार नौकरी नहीं मिल पाती है। वर्तमान समय में बढ़ती टेक्नोलॉजी की वजह से मशीन ने आदमी की जगह ले ली है। जिसने काफी लोगों की रोजगारी छीन ली है। पूंजी की कमी, निवेश की कमी, कम उत्पादन, व्यापार चक्र में गिरावट, उद्योगों की व्यवस्था कर प्रौद्योगिकी का उपयोग आदि जैसे कारक बेरोजगारी के मूल्य कारक है।


उपसंहार -


बेरोजगारी किसी भी देश के लिए एक अभिशाप से कम नहीं है। इसके कारण नागरिकों का जीवन स्तर बुरी तरह से प्रभावित होता है तथा देश की आर्थिक वृद्धि भी बाधित होती है, इसलिए सरकार तथा सक्षम निजी संस्थाओं द्वारा इस समस्या को हल करने के लिए ठोस कदम उठाए जाने की तत्काल आवश्यकता है। बेरोजगारी समाज के लिए एक अभिशाप है। इससे ना केवल व्यक्तियों पर बुरा प्रभाव पड़ता है बल्कि बेरोजगारी पूरे समाज को भी प्रभावित करती है कई कारक हैं जो बेरोजगारी का कारण बनते हैं। इस पोस्ट में आपको इन कारणों की विस्तार से व्याख्या की गई है और इस समस्या को नियंत्रित करने के लिए सम प्रभावी समाधान बताए गए हैं। भारत सरकार बेरोजगारी को दूर करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम भी उठा रही है। समय आ गया है कि भारत के लोग सरकार के साथ मिलकर एकता के साथ इस समस्या का सामना करें।।


वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी युवाओं के कौशल विकास पर जोर दिया है ताकि वे राष्ट्र निर्माण के मिशन को पूरा कर सकें। देश को अपने वर्तमान परिदृश्य पर गंभीरता से विचार करने और बेरोजगारी की विशाल समस्या का सामना करने के लिए कुछ गंभीर उपचारात्मक उपाय के बारे में सोचने की जरूरत है। आता है यह समस्या राष्ट्र के पतन की ओर ले जाएगी।


बेरोजगारी की भूमिका क्या है?


संघर्ष आत्मक बेरोजगारी उसमें होती है, जब कोई व्यक्ति एक रोजगार को छोड़कर दूसरे रोजगार की तलाश में होता है। इसके अलग-अलग कारण हो सकते हैं जैसे- अच्छे रोजगार की तलाश, वर्तमान रोजगार से निकाले जाने पर अपनी इच्छा से वर्तमान रोजगार छोड़ने पर। दूसरे रोजगार को प्राप्त करने में व्यक्ति को कुछ समय लग जाता है।


बेरोजगारी के कारण क्या है?


बेरोजगारी का मुख्य कारण वृद्धि की धीमी गति है। रोजगार का आकार प्राया बहुत सीमा तक विकास के स्तर पर निर्भर करता है। आयोजन काल के दौरान हमारे देश ने सभी क्षेत्रों में बहुत उन्नति की है लेकिन वृद्धि की दर लक्षित दर की तुलना में बहुत नीची है।


किस वजह से भारत में बेरोजगारी का कारण बनता है?


वर्तमान में बेरोजगारी का प्रमुख कारण जनसंख्या वृद्धि है जिसे जनसंख्या विस्फोट के नाम से भी जाना जाता है। भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण बेरोजगारी को बहुत बढ़ावा मिला है वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश के लगभग 11% जनसंख्या बेरोजगार है जिन्हें रोजगार की आवश्यकता है।


पांच अदृश्य बेरोजगारी से क्या आशय है?


व्यवसायिक गतिविधियों के समग्र स्तर में कमी से चक्रीय बेरोजगारी होती है। हालांकि यह घटना थोड़े समय के लिए ही होती है।

चक्रीय बेरोजगारी ऐसी रोजगारी तब उत्पन्न होती है जब अर्थव्यवस्था में चक्रीय उतार-चढ़ाव आता है। अदृश्य का अर्थ है छिपी हुई बेरोजगारी जिस से पीड़ित व्यक्ति वह होता है जो ऐसे दिखाई देता है जैसे कि वह कार्य में लगा हुआ है परंतु वास्तव में ऐसा नहीं होता है।


भारत में बेरोजगारी की प्रकृति क्या है?


बेरोजगारी भारत में आधुनिक समय में एक सबसे बड़ी समस्या के रूप में उभर रही है। इस दृष्टि से भारत एक अल्पविकसित अर्थव्यवस्था है। अल्पविकसित अर्थव्यवस्था में यह समस्या जनसंख्या वृद्धि पूंजी की कमी उत्पादक व्यवस्थाओ की कमी आदतों की कमी शिक्षा की कमी इत्यादि के कारण उत्पन्न होती है।


बेरोजगारी को कैसे मापा जाता है?


बेरोजगारी को मापने की कुछ विधियां--

सामान्य प्रमुख अवस्था बेरोजगारी यूपीएस

सामान्य प्रमुख तथा सहायक अवस्था बेरोजगारी यूपी एस एस

वर्तमान साप्ताहिक अवस्था बेरोजगारी सी डब्ल्यू एस

वर्तमान दैनिक अवस्था बेरोजगारी सीडीएस


भारत में बेरोजगारी से संबंधित आंकड़ों को दर्शाइए?


भारत में श्रम और रोजगार मंत्रालय देश में बेरोजगारी के रिकॉर्ड रखता है। रोजगारी के आंकड़ों की गणना उन लोगों की संख्या के आधार पर की जाती है जिनकी आंकड़ों के मिलान की तारीख से पहले 365 दिनों के दौरान पर्याप्त समय के लिए कोई काम नहीं था और अभी भी रोजगार की मांग कर रहे हैं।



वर्ष 1983 से 2013 तक भारत में बेरोजगारी की दर और सत्य 7.3 2% के साथ सबसे अधिक 9.40% थी और 2013 में यह रिकॉर्ड 4.90% थी पूर्णविराम वर्ष 2015 से 2016 में बेरोजगारी की दर महिलाओं के लिए 8.7% हुई और पुरुषों के लिए 4.3% हुई।


मौसमी बेरोजगारी और खुली बेरोजगारी में क्या अंतर है?


मौसमी बेरोजगारी - जैसा कि शब्द सही स्पष्ट है यह उस तरह की बेरोजगारी का प्रकार है जिसमें वर्ष के कुछ समय में ही काम मिलता है। मुख्य रूप से मौसमी बेरोजगारी से प्रभावित उद्योगों में कृषि उद्योग और बर्फ कारखाना आदि शामिल हैं। यह बेरोजगारी केवल मौसम के अनुसार की जाती है।


खुली बेरोजगारी - खुली बेरोजगारी से तात्पर्य है कि जब एक बड़ी संख्या में मजदूर नौकरी पाने में असमर्थ होते हैं तो उन्हें नियमित आय प्रदान कर सकें। यह समस्या तब होती है क्योंकि श्रम बल अर्थव्यवस्था की विकास दर की तुलना में बहुत अधिक दर से बढ़ जाती है।


बेरोजगारी किन कारणों से फैल रही है?


बेरोजगारी के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-


1. जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि होना।


2. शिक्षा प्रणाली में व्यावहारिक शिक्षा के स्थान पर सैद्धांतिक शिक्षा को अधिक महत्व दिया जाना।


3. कुटीर उद्योगों की उपेक्षा करना।


4. देश के प्राकृतिक संसाधनों का पूरी तरह से उपयोग नहीं करना।


5. भारतीय कृषि की दशा अत्यंत पिछड़ी होने के कारण कृषि क्षेत्र में भी बेरोजगारी का बढ़ना।


6. कुशल एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों की कमी के कारण उद्योगों को संचालित करने के लिए विदेशी कर्मचारियों को बाहर से लाना।


बेरोजगारी किसे कहते हैं?


बेरोजगारी का अर्थ है-जब कोई योग्य तथा काम करने का इच्छुक व्यक्ति काम मांगे और उसे काम ना मिल सके अथवा जो अनपढ़ और अप्रशिक्षित हैं, वे भी काम के अभाव में बेकार हैं। एक कुशल और प्रतिभाशाली व्यक्ति को कई कारणों से उचित नौकरी नहीं मिलना यही स्थिति बेरोजगारी को संदर्भित करती है।

बेरोजगारी को किन उपायों द्वारा कम किया जा सकता है टिप्पणी कीजिए?


बेरोजगारी कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जाने चाहिए-


1. जनता को शिक्षित कर जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगाना।


2. शिक्षा प्रणाली में व्यापक परिवर्तन तथा सुधार करना।


3. कुटीर उद्योगों की दशा सुधारने पर जोर देना।


4. देश में विशाल उद्योगों की उपेक्षा लघु उद्योगों पर अधिक ध्यान देना। मुख्य उद्योगों के साथ-साथ सहायक उद्योगों का भी विकास करना।


5. सड़कों का निर्माण, रेल परिवहन का विकास, पुलों व बांधों का निर्माण तथा वृक्षारोपण आदि करना, जिससे अधिक-से-अधिक संख्या में बेरोजगारों को रोजगार मिल सके।


6. सरकार द्वारा कृषि को विशेष प्रोत्साहन एवं सुविधाएं देना, जिससे युवा गांवों को छोड़कर शहरों की ओर ना जाएं।


बेरोजगारी बढ़ने के साथ-साथ कौन से अपराध पर हुए हैं?


बेरोजगारी बढ़ने से आतंकवाद, हत्या,डकैती लूट जैसी वारदातों का जन्म हुआ है।

बेरोजगारी अपने आप में एक समस्या होने के साथ-साथ अनेक सामाजिक समस्याओं को भी जन्म देती है। उन्हें यदि हम बेरोजगारी के दुष्परिणाम अथवा दुष्प्रभाव कहें, तो अनुचित नहीं होगा। बेरोजगारी के कारण निर्धनता में वृद्धि होती है तथा भुखमरी की समस्या उत्पन्न होती है। बेरोजगारी के कारण मानसिक अशांति की स्थिति में लोगों के चोरी, डकैती, हिंसा, अपराध, हत्या आदि की ओर प्रवृत्ति होने की पूरी संभावना बनी रहती है। अपराध एवं हिंसा में हो रही वृद्धि का सबसे बड़ा कारण बेरोजगारी ही है। कई बार तो बेरोजगारी की भयावह स्थिति से तंग आकर लोग आत्महत्या भी कर बैठते हैं।

देश में बेरोजगारी की समस्या लंबे समय से बनी हुई है। हालांकि सरकार ने रोजगार सर्जन के लिए कहीं कार्यक्रम शुरू किए हैं पर अभी तक वांछनीय प्रगति हासिल नहीं हो पाई है। नीति निर्माताओं और नागरिकों को अधिक नौकरियों के निर्माण के साथ ही रोजगार के लिए सही कौशल प्राप्त करने के लिए सामूहिक प्रयास करने चाहिए। वैसे तो बेरोजगारी दूर करना आसान काम नहीं है लेकिन अगर हम थोड़े नीति नियम बनाकर चले तो यह थोड़ी कम हो सकती है। सरकार ने हर परिवार के कम से कम एक सदस्य को नौकरी देने का जरूर प्रयास करना चाहिए। शिक्षा के साथ-साथ तकनीकी शिक्षा भी देनी चाहिए जिससे विद्यार्थियों को विभिन्न प्रकार के क्षेत्र में रोजगार मिल सके। विदेश से आयात करने वाली चीजों पर रोक लगाकर अपने देश की चीजों का उत्पाद करना चाहिए और उन्हें का उपयोग करना चाहिए। जिससे देश के लोगों को काम मिल सके।



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