Dr. Bhagwat Sharan Upadhyay ka jeevan parichay | डॉ भगवतशरण उपाध्याय जीवन परिचय

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Dr. Bhagwat Sharan Upadhyay ka jeevan parichay | डॉ भगवतशरण उपाध्याय जीवन परिचय

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                   जीवन परिचय



डॉ भगवतशरण उपाध्याय


संक्षिप्त परिचय ----



      नाम

डॉ. भगवतशरण उपाध्याय

      जन्म

सन् 1910

    जन्म-स्थान

बलिया जिले के उजियारपुर गांव में

      शिक्षा

एम.ए.

    आजीविका

प्रोफेसर एवं साहित्य सृजन

      मृत्यु

सन् 1982

  लेखन-विधा

आलोचना, यात्रा साहित्य, पुरातत्व, संस्मरण एवं रेखाचित्र

साहित्य में पहचान

महान शैलीकार, समर्थ आलोचक एवं पुरातत्व ज्ञाता

        भाषा

शुद्ध, प्राकृत और परिमार्जित

      शैली

विवेचनात्मक, वर्णनात्मक, भावात्मक शैली

साहित्य में योगदान

उपाध्याय जी ने साहित्य, संस्कृति के विषयों पर 100 से भी अधिक पुस्तकों की रचना की है। ये संस्कृत एवं पुरातत्व के परम ज्ञाता रहे हैं।



जीवन परिचय:- पुरातत्व कला के पंडित, भारतीय संस्कृति और इतिहास के सुप्रसिद्ध विद्वान एवं प्रचारक तथा लेखक डॉ भगवतशरण उपाध्याय का जन्म सन् 1910 में बलिया जिले के उजियारपुर गांव में हुआ था। अपनी प्रारंभिक शिक्षा समाप्त करने के पश्चात उपाध्याय जी काशी आए और यहीं से प्राचीन इतिहास में m.a. किया। वे संस्कृत साहित्य और पुरातत्व के परम ज्ञाता थे। हिंदी साहित्य की उन्नति में इनका विशेष योगदान था। उपाध्याय जी ने पुरातत्व एवं प्राचीन भाषाओं के साथ-साथ आधुनिक यूरोपीय भाषाओं का भी अध्ययन किया। इन्होंने क्रमशः 'पुरातत्व विभाग' , 'प्रयाग संग्रहालय' , 'लखनऊ संग्रहालय' के अध्यक्ष पद पर, 'बिड़ला महाविद्यालय' में प्राध्यापक पद पर तथा विक्रम महाविद्यालय में प्रोफेसर एवं अध्यक्ष पद पर कार्य किया और यहीं से अवकाश ग्रहण किया। उपाध्याय जी ने अनेक बार यूरोप, अमेरिका, चीन आदि देशों का भ्रमण किया तथा वहां पर भारतीय संस्कृति और साहित्य पर महत्वपूर्ण व्याख्यान दिए। इनके व्यक्तित्व की एक महत्वपूर्ण बात यह है कि प्राचीन भारतीय संस्कृति के अध्येता और व्याख्याकार होते हुए भी ये रूढ़िवादिता और परंपरावादिता से ऊपर रहे। अगस्त, 1982 में इनका देहावसान हो गया। हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने की दिशा में उपाध्याय जी का योगदान स्तुत्य है।


 इन्होंने साहित्य, कला, संस्कृति आदि विभिन्न विषयों पर 100 से अधिक पुस्तकों की रचना की। आलोचना, यात्रा साहित्य, पुरातत्व, संस्मरण एवं रेखा चित्र आदि विषयों पर उपाध्याय जी ने प्रचुर साहित्य का सृजन किया।


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रचनाएं- उपाध्याय जी ने 100 से अधिक कृतियों की रचना की। इनकी प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं-


आलोचनात्मक ग्रंथ:- विश्व साहित्य की रूपरेखा, साहित्य और कला, इतिहास के पन्नों पर, विश्व को एशिया की देन, मंदिर और भवन आदि।


यात्रा साहित्य- कोलकाता से पीकिंग।


अन्य ग्रंथ:- ठूंठा आम, सागर की लहरों पर, कुछ फीचर कुछ एकांकी, इतिहास साक्षी है, इंडिया इन कालिदास आदि।


भाषा शैली:- डॉ उपाध्याय ने शुद्ध परिष्कृत और परिमार्जित भाषा का प्रयोग किया है। भाषा में प्रवाह और बोधगम्यता है, जिसमें सजगता और चिंतन की गहराई दर्शनीय है। उपाध्याय जी की शैली तथ्यों के निरुपण से युक्त कल्पनामयी और सजीव है। इसके अतिरिक्त विवेचनात्मक, वर्णनात्मक और भावात्मक शैलियों का इन्होंने प्रयोग किया है।


हिंदी साहित्य में स्थान:- डॉ भगवतशरण उपाध्याय की संस्कृत साहित्य एवं पुरातत्व के अध्ययन में विशेष रूचि रही है। भारतीय संस्कृति एवं साहित्य विषय पर इनके द्वारा विदेशों में दिए गए व्याख्यान हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि है। पुरातत्व के क्षेत्र में इन्हें विश्वव्यापी ख्याति मिली। इन्हें कई देशों की सरकारों ने शोध के लिए आमंत्रित किया। डॉ उपाध्याय हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।


इनकी प्रमुख रचनाएं हैं - 


  • विश्व साहित्य की रूपरेखा

  • साहित्य और कला

  • खून के छींटे

  • इतिहास के पन्नों पर

  • कोलकाता से पीकिंग

  • कुछ फीचर कुछ एकांकी

  • इतिहास साक्षी है

  • ठूँठा आम

  • सागर की लहरों पर

  • विश्व को एशिया की देन

  • मंदिर और भवन

  • इंडिया इन कालिदास

आदि अंग्रेजी में लिखी इनकी पुस्तकें विदेशों में बड़ी रुचि के साथ पढ़ी जाती हैं।


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संकलित पाठ अजंता पुरातत्व संबंधी लेख है जिसमें लेखक ने अजंता की गुफाओं की चित्रकारी और शिल्प के इतिहास एवं सौंदर्य का ही वर्णन नहीं किया है, बल्कि दर्शक के मन पर पड़ने वाले उनके प्रभाव को भी अपनी मनोरम शैली में साकार कर दिया है। उपाध्याय जी ने आलोचना, यात्रा साहित्य, पुरातत्व, संस्मरण एवं रेखा चित्र आदि पर प्रचार साहित्य का सृजन किया। इनकी रचनाओं में इनके गहन अध्ययन एवं विद्वत्ता की स्पष्ट छाप परिलक्षित होती है। बहन से गहन विषय को भी सरल भाषा में प्रस्तुत कर देना इनकी प्रधान साहित्यिक विशेषता थी। इनमें विवेचन एवं तुलना करने की विलक्षण योग्यता विद्यमान थी। अपनी योग्यता के कारण उन्होंने भारतीय साहित्य, कला एवं संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं को संपूर्ण विश्व के सामने स्पष्ट कर दिया।


नीचे अजंता पुरातत्व संबंधी लेख है जिसमें लेखक ने अजंता की गुफाओं की चित्रकारी और शिल्प के इतिहास एवं सुंदर का ही वर्णन नहीं किया बल्कि दर्शक के मन पर पड़ने वाले उनके प्रभाव को भी अपने मनोरम शैली में साकार कर दिया है।


पत्थरों पर खुद ही जीवन गाथा -


जीवन को अमर बनाने के लिए मनुष्य ने पहाड़ काटा है। उसने अपनी कामयाबी को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए अनेकानेक उपाय सोचें। चट्टानों पर खोदे गए संदेश, ऊंचे ऊंचे पत्थरों के खंभे, तांबे पीतल के पत्थरों पर लिखे अक्षरों में उसके जीवन मरण के सरकती कहानी आज हमारी अमानत विरासत बन गई है। इन्हीं उपायों में एक है - पहाड़ काटकर मंदिर बनाना और उनकी दीवारों पर नयनाभिराम चित्र बनाना।


अजंता की कला - भारत की अमूल्य विरासत - 


पहाड़ काटकर मंदिर बनाने की स्थापत्य कला का प्रारंभ लगभग सवा 2000 वर्ष पहले से चला आ रहा है। अजंता की गुफाएं एनी प्राचीन गुफाओं में से एक हैं। अजंता की गुफाएं गुफा मंदिरों में सबसे विख्यात हैं, जिन की दीवारों पर बने चित्र दुनिया के लिए नमूना बन गए। चीन और श्रीलंका ने इन चित्रों की नकल की थी। यह चित्र इतनी सुंदर हैं कि देशवासी और विदेशी दोनों ही इन्हें देख कर खुश हो जाते हैं। इन दीवारों पर दया और प्रेम की एक दुनिया सुरक्षित हो गई है। शिल्प कारों ने अपनी चेनिया चलाएं और जैसे ही चित्रकारों ने उसमें रंग भरा वैसे ही अजंता की गुफाओं पर सौंदर्य बरस पड़ा। प्रकृति भी सजीव हो उठी। मुंबई और हैदराबाद के बीच विद्यांचल के पूर्व पश्चिम की ओर चलती पर्वत मालाओं के निचले भाग को सहयाद्री कहते हैं। अजंता के गुफा मंदिर इसी पहाड़ी में स्थित है।


पहाड़ों में बने गुफा और मंदिर - 


अजंता गांव से कुछ दूरी पर पर्वतों का आकार अर्द्धचंद्राकार हो गया है। हरे भरे वनों के बीच उठे मंच के आकार वाले पर्वत पूर्वजों को अच्छे लगे, उन्होंने पहाड़ की चट्टानी छाती पर अपने हाथों से चोट करनी शुरू की और वहां बरामदे, मंदिर है तथा हाल का निर्माण कर दिया। पहाड़ों को काटने से बने रिक्त स्थान पर सुंदर भवन बनाएं। खंभो और दीवारों पर मूर्तियां बना दी। कमरे की दीवारों पर सुंदर चित्रकारी कर के रंग भर दिया गया। इससे दीवारों और पहाड़ दोनों का ही सौंदर्य कई गुना बढ़ गया।


अजंता की दीवारों पर खुदी कहानियां - 


अजंता की गुफाओं की दीवारों पर मनुष्य, पशु पक्षी और विविध प्राणियों का ही जीवन बरस पड़ा है। यहां नाना प्रकार की जीवन की कहानियां हैं। बंदरों की कहानी, हाथियों की कहानी, हिरणों की कहानी के पीछे क्रूरता और भय की, दया और त्याग की कहानी। यहां राजा और कंगले, विलासी और भिक्षु, नार - नारी, पशु पक्षी सभी को सुरक्षित रख दिया गया है । हैवानियत को इंसानियत से कैसे जीता जा सकता है, यहां अजंता में देखा जा सकता है। यहां गौतम बुद्ध के जीवन संबंधी चित्रों से आंखें हटाने से भी नहीं हटती है।


गुफा की दीवारों पर बुद्धचरित तथा जातक कथाएं - 


अजंता की दीवारों पर बने चित्र में कमल लिए खड़े हैं। उनके नेत्रों से प्रकाश फूट पड़ा है। कमलनाल धारण किए यशोधरा भी साथ में खड़ी हैं। महाभिनिष्क्रमण का दृश्य, यशोधरा और राहुल निद्रा में सोए और गौतम अपना हृदय संभाले जाने की तैयारी में खड़े हैं। उधर बौद्ध भिक्षु बने नंद का चित्र है। वहीं एक अन्य चित्र में यशोधरा और राहुल साथ-साथ है।


बुद्ध आए हैं, पर पति की तरह नहीं भिक्षु की तरह और अपना भिक्षापात्र आगे बढ़ा देते हैं, पर यशोधरा क्या दे? उसकी मुकुटमणि सिद्धार्थ के खो जाने के पश्चात अब उसके पास बचा ही क्या है? अब तो बस एकमात्र पुत्र राहुल ही बचा है और वह सर्वस्व की तरह उसे ही दे देती है। उधर बंदरों का सजीव और गतिमान चित्र है।


सरोवर में जल विहार करता हाथी कमलदंड तोड़कर हथिनियों को दे रहा है। उधर महलों में प्याले पर चलते प्यालो का दौर और दम तोड़ती रानी का चित्र, न जाने कितने चित्र हैं इन दीवारों पर। बुद्ध के जन्म की घटनाएं कथाओं में चित्रित हैं। इन जातक कथाओं, जिनकी संख्या 555 है, का बौद्धों में बड़ा मान है। इनमें बुद्ध पिछले जन्मों में गज, कपि, मृग आदि रूपों में उत्पन्न हुए थे और आदर्श स्थापना के लिए अपना जीवन कुर्बान कर गए। यहां चित्रों में पशु भी मानवोचित व्यवहार करते दिखाई देते हैं। इसके अतिरिक्त गांव, नगर, महल, झोपड़ी, समुद्र, पनघट आदि भी इन दीवारों पर उतर पड़े हैं।


अजंता की गुफाएं, चित्रकला का अलौकिक नमूना


अजंता का संसार की चित्रकलाओं में अलौकिक स्थान है। ये ईसा से करीब 200 वर्ष पूर्व ही बननी प्रारंभ हो गई थी तथा सातवीं सदी तक बनकर तैयार भी हो चुकी थी। गुफाओं पर अंकित अधिकतर चित्र गुप्त काल (पांचवी सदी) और चालुक्य काल (सातवीं सदी) के मध्य के समय में तैयार हुए। 1-2 गुफाओं में लगभग 2000 साल पुराने चित्र भी सुरक्षित हैं। इतने प्राचीन, इतने सजीव व गतिमान और इतनी अधिक संख्या में ऐसे चित्र अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलते। अजंता के चित्रों को देश विदेश में बहुत सम्मान प्राप्त है।



डॉ भगवतशरण उपाध्याय के पिता का क्या नाम है?

भगवतशरण उपाध्याय के पिता का नाम पंडित रघुनंदन उपाध्याय है।


भगवत शरण उपाध्याय का लिखा निबंध क्या है?

भगवतशरण उपाध्याय कालिका निबंध ठूँठा आम और सागर की लहरों पर है।


भगवतशरण उपाध्याय की रचना अहिंसा के विषय में उंगली मार डाकू से किसने कहा था कि मैं तो ठहर गया तू कब ठहरेगा?

भगवतशरण उपाध्याय की रचना अहिंसा के विषय में उंगली मार डाकू से महात्मा बुद्ध ने कहा था कि मैं तो ठहर गया तू कब ठहरेगा।


ठूठा आम इतिहास के पन्नों पर किनकी रचनाएं हैं ?

ठूठा आम इतिहास के पन्नों पर भगवतशरण उपाध्याय की रचना है।


भगवतशरण उपाध्याय के माता पिता का नाम?

भगवतशरण उपाध्याय के पिता का नाम पंडित रघुनंदन उपाध्याय और मां का नाम महादेवी था।


भगवत शरण उपाध्याय का जन्म कहां हुआ था?

भगवत शरण उपाध्याय का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में सन 1910 ईस्वी में हुआ था।


भगवतशरण उपाध्याय का लिखा निबंध कौन सा है?

भगवत शरण उपाध्याय द्वारा बहुत से निबंधों की रचना की गई जिनमें से प्रमुख निबंध निम्न प्रकार से दिए गए हैं -- 

विश्व साहित्य की रूपरेखा, साहित्य और कला, इतिहास के पन्नों पर, कोलकाता से पीकिंग, इतिहास साक्षी है, मंदिर और भवन, विश्व को एशिया के देश और इंडिया इन कालिदास इन की प्रमुख रचनाएं हैं।



भगवतशरण उपाध्याय की रचनाएं?


विश्व साहित्य की रूपरेखा

साहित्य और कला

खून के छींटे

इतिहास के पन्नों पर

कोलकाता से पीकिंग

कुछ फीचर कुछ एकांकी

इतिहास साक्षी है

ठूँठा आम


ठूठा आम कहानी का सारांश।

टूटा आम का प्रकाशन भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा वर्ष 2008 में किया गया इसमें कुल 104 प्रश्न है मुख्य पृष्ठ का नाम सजिल्द है। भारतीय सभ्यता संस्कृति और समाज को प्रभावित करने वाले कारकों को क्रिटिक है ठूठा आम। प्रतिकार भगवतशरण उपाध्याय भारती गौरव के गुण नायक हैं। उन्होंने अपने लेखन में विविध मांगी माय अपनाकर भारतीय परंपरा को प्रतिष्ठित किया है 12 शीर्षको में विभाजित इस संकलन में तत्कालीन अनेक विषयों पर

स्केच और रिपोर्ट आज है।



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