अनुशासन का महत्व पर निबंध || Essay on Importance of Discipline in Life

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अनुशासन का महत्व पर निबंध || Essay on Importance of Discipline in Life

अनुशासन का महत्व पर निबंध || Essay on Importance of Discipline in Life in Hindi        

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नुशासन का महत्व (2014,16,10)

अथवा जीवन में अनुशासन का महत्व (2018,19)

अथवा छात्र जीवन में अनुशासन (2020,15,17)


संकेत बिंदु:- भूमिका, अनुशासन का महत्व, अनुशासन की आवश्यकता, अनुशासन की प्रवृत्ति का विकास करना, अनुशासन का खत्म होना, अनुशासन के लाभ, उपसंहार।



भूमिका (प्रस्तावना)


अनुशासन शब्द 'शासन' में 'अनु' उपसर्ग के जुड़ने से बना है, इस तरह अनुशासन का शाब्दिक अर्थ है-शासन के पीछे चलना। प्रायः माता पिता एवं अर्थ को सीमित करने जैसा है। व्यापक रूप से देखा जाए तो स्वशासन अर्थात आवश्यकतानुरूप स्वयं को नियंत्रण में रखना भी अनुशासन ही है। अनुशासन का अर्थ है नियमों के अनुसार जीवन यापन। अनुशासन मानव की प्रगति का मूल मंत्र है। अनुशासन से मनुष्य की सारी शक्तियां केंद्रित हो जाती हैं। उससे समय बचता है। बिना अनुशासन के बहुत सारा समय इधर-उधर एवं सोच विचार में नष्ट हो जाता है। यदि सूर्य और चंद्रमा को भी अनुशासन ना बांध रखा होता, तो शायद यह भी किसी दिन अंगड़ाई लेने ठहर जाते। तब इस सृष्टि का ना जाने क्या होता!



   अनुशासन के व्यापक अर्थ में, शासकीय कानून के पालन से लेकर सामाजिक मान्यताओं का सम्मान करना ही नहीं, बल्कि स्वस्थ रहने के लिए शारीरिक नियमों का पालन करना भी सम्मिलित है। इस तरह, सामान्य एवं व्यवहारिक रूप में, व्यक्ति जहां रहता है, वहां के नियम, कानून एवं सामाजिक मान्यताओं के अनुरूप आचरण एवं व्यवहार करना ही अनुशासन कहलाता है। अनुशासित व्यक्ति आज्ञाकारी होता है और उसके पास उचित सत्ता के आज्ञा पालन के लिए स्वा शासित व्यवहार होता है। अनुशासन पूरे जीवन में बहुत महत्व रखता है और जीवन के हर कार्य में इसकी जरूरत होती है। यह सभी के लिए आवश्यक है जो किसी भी प्रोजेक्ट पर गंभीरता से कार्य करने के लिए ज़रूरी है। अगर हम अपने वरिष्ठों की आज्ञा और नियमों को नहीं मानेंगे तो अवश्य में परेशानियों का सामना करना पड़ेगा और असफल भी हो सकते हैं।



अनुशासन का महत्व 


मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसके लिए यह आवश्यक है कि वह समाज के सभी प्राणियों के साथ सामंजस्य स्थापित करे। इसके लिए अनुशासन का होना अत्यंत अनिवार्य है। अनुशासन के बिना किसी भी समाज में अराजकता का माहौल व्याप्त होना स्वभाविक है। अनुशासन रहित समाज के सभी मनुष्यों को अनेक कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। अनुशासन के बिना आनंददायक तथा सुखी जीवन की कल्पना करना कठिन है। अनुशासन प्रत्येक संस्था की आवश्यकता है, फिर वह चाहे परिवार ही क्यों ना हो। इसी तरह परिवार के सदस्य यदि अनुशासित ना हों, तो उस परिवार का अव्यवस्थित होना स्वभाविक है। इसी तरह सरकारी कार्यालयों में यदि कर्मचारी अनुशासित ना हो, तो वहां भ्रष्टाचार का बोलबाला हो जाएगा। इस तरह स्पष्ट है कि अनुशासन के बिना न तो परिवार चल सकता है, न कोई संस्थान और न ही कोई राष्ट्र। अनुशासन किसी भी सभ्य समाज की मूलभूत आवश्यकता है। अनुशासन न केवल व्यक्तिगत हित, बल्कि सामाजिक हित के दृष्टिकोण से भी अनिवार्य है।



मनुष्य को प्रकृति ने छूट दी है। वह चाहे तो अनुशासन अपनाकर अपना जीवन सफल बना सकता है अन्यथा पश्चाताप कर ले। संसार के सभी सफल व्यक्ति अनुशासन की राह से गुजरे हैं। गांधीजी समय और दिनचर्या के अनुशासन का कठोरता से पालन करते थे। अंग्रेजों की थोड़ी सी सेना पूरे भारत पर इसलिए शासन कर सके क्योंकि उनमें अद्भुत अनुशासन था। इसके विपरीत भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम केवल इसलिए विफल हो गया क्योंकि उनमें आपसी तालमेल और अनुशासन नहीं था। अनुशासन को सीखने का सबसे बड़ा उदाहरण प्रकृति है जिस प्रकार से सूर्य अपने नियमित समय पर उगता है और अपने नियमित समय पर ढल जाता है, नदिया हमेशा बैठे हैं गर्मी और ठंडी के मौसम हमेशा आते जाते रहते हैं। यह सारे काम अपने नियमित रूप से चालू रहते हैं अगर प्रकृति यह सारे काम को नियमित रूप से ना करें तो मानव जाति का पतन हो जाएगा ठीक इसी तरह हम भी अपने काम को निमित्त रूप से ना करें और अपने आप को अनुशासन में ना रखें तो हमारे जीवन का भी पतन हो जाएगा इसलिए हमें अपने आपको अनुशासित करना चाहिए।



 अनुशासन की आवश्यकता 


अनुशासन न होने की स्थिति में चारों ओर अनुशासनहीनता व्याप्त हो जाती है और इसके दुष्प्रभाव स्पष्ट ही नजर आने लगते हैं। अतः अनुशासन का होना अनिवार्य है। जैसा कि प्रारंभ में बताया गया है, अनुशासन का अर्थ होता है-शासन के पीछे चलना, इस अर्थ से देखा जाए तो जैसा शासन होगा, वैसा ही अनुशासन होगा।


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      इस प्रकार यदि कहीं अनुशासनहीनता व्याप्त है, तो कहीं-न-कहीं इसमें अच्छे शासन का अभाव भी जिम्मेदार होता है। यदि परिवार के मुखिया का शासन सही नहीं है, तो परिवार में अव्यवस्था व्याप्त रहेगी ही। यदि किसी स्थान का प्रशासन सही नहीं है तो वहां अपराधों का ग्राफ स्वाभाविक रूप से ऊपर ही रहेगा। यदि राजनेता कानून का पालन नहीं करेंगे, तो जनता से उसके पालन की उम्मीद नहीं की जा सकती। यदि क्रिकेट के मैदान में कैप्टन स्वयं अनुशासित नहीं रहेगा, तो टीम के अन्य सदस्यों से अनुशासन की आशा करना व्यर्थ है और यदि टीम अनुशासित नहीं है, तो उसकी पराजय से उसे कोई नहीं बचा सकता। इसी तरह यदि देश की सीमा पर तैनात सैनिकों का कैप्टन ही अनुशासित न हो तो उसकी सैन्य टुकड़ी भी अनुशासित नहीं रह सकती। परिणाम स्वरूप देश की सुरक्षा निश्चित रूप से खतरे में पड़ जाएगी।


"अनुशासन विपत्ति की पाठशाला सीखा जाता है।"


अनुशासन का विद्यार्थी जीवन में बहुत ही ज्यादा महत्व है क्योंकि यह जीवन का वह पढ़ा होता है जहां हम जो कुछ सीखते हैं वह हमारे साथ हमेशा रहता है। अनुशासन के अंदर बड़ो का आदर,छोटो से प्यार,समय का पक्का, नियमों का पालन और अध्यापकों का अनुसरण आदि आता है। अनुशासन प्रिय लोग सभी को बहुत पसंद आते हैं। अनुशासन व्यक्ति को चरित्रवान और कौशल बनने में मदद करता है। सैनिक जीवन में अनुशासन देखने को मिलता है जिसकी वजह से वह कठिन परिस्थितियों में भी जी पाते हैं। खेलों में अनुशासन बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। अनुशासन प्रिय खिलाड़ी ही खेल को जीत सकता है। अनुशासन एक व्यक्ति से लेकर समाज तक सभी के लिए आवश्यक विद्यार्थियों में हर काम समय पर करने की आदत फोटो है वह अपना आज का काम कल पर नहीं टालते। बैठी हुई समय गति में ही कार्य पूरा करने की कोशिश करते हैं जो कि किसी भी नौकरी पेशे के लिए चुने जाते हैं।



अनुशासन की प्रवृत्ति का विकास


अनुशासन मनुष्य की आंतरिक चेतना का परिणाम होता है। अतः इस प्रवृत्ति का विकास करना उसके ही अधिकार क्षेत्र में है। यह स्मरण रहे कि स्वयं के साथ-साथ अपने बच्चों में भी अनुशासन की प्रवृत्ति का विकास करना मनुष्य का नैतिक कर्तव्य है।


    बच्चे का जीवन उसके परिवार से प्रारंभ होता है। यदि परिवार के सदस्य गलत आचरण करते हैं, तो बच्चा भी उसी का अनुसरण करेगा। परिवार के बाद बच्चा अपने समाज एवं स्कूल से सीखता है। यदि उसके साथियों का आचरण खराब होगा, तो इससे उसके भी प्रभावित होने की पूरी संभावना बनी रहेगी।


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      यदि शिक्षक का आचरण गलत है तो बच्चे कैसे सही हो सकते हैं? इसलिए यदि हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे अनुशासित हो, तो इसके लिए आवश्यक है कि हम अपने आचरण में सुधार लाकर स्वयं अनुशासित रहते हुए बाल्यकाल से ही बच्चों में अनुशासित रहने की आदत डालें। वही व्यक्ति अपने जीवन में अनुशासित रह सकता है, जिसे बाल्यकाल में ही अनुशासन की शिक्षा दी गई हो। बाल्यकाल में जिन बच्चों पर उनके माता-पिता लाड़-प्यार के कारण नियंत्रण नहीं रख पाते, वही बच्चे आगे चलकर अपने जीवन में कभी सफल नहीं होते।


   अनुशासन के अभाव में कई प्रकार की बुराइयां समाज में अपनी जड़ें विकसित कर लेती हैं। नित्य-प्रति होने वाले छात्रों के विरोध-प्रदर्शन, परीक्षा में नकल, शिक्षकों से बदसलूकी अनुशासनहीनता के ही उदाहरण हैं। इसका परिणाम उन्हें बाद में जीवन की असफलताओं के रूप में भुगतना पड़ता है, किंतु जब तक वे समझते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। अनुशासन कहीं लोगों में जन्म से ही मौजूद होते हैं और कुछ को उत्पन्न करना पड़ता है। अनुशासन दो प्रकार का होता है पहला जो किसी में जोर जबरदस्ती से लाया जाता है और लोगों पर धक्के से थोपा जाता है इसे बाहरी अनुशासन कहते हैं। दूसरा वह होता है जो लोगों में पहले से ही विद्यमान होता है और इसे आंतरिक अनुशासन कहते हैं। जब कोई व्यक्ति हर काम समय से करेगा व्यवस्थित तरीके से करेगा तो सफलता अवश्य ही उसके कदम चूमेगी और वह अपना लक्ष्य को प्राप्त कर लेगा। इंसानों के साथ-साथ पशु भी अनुशासन में रहना पसंद करते हैं। हर क्षेत्र में अनुशासित लोगों को ही प्राथमिकता दी जाती है। जिस व्यक्ति को समय की कदर नहीं दुनिया भी उसकी कदर नहीं करती। अनुशासन हीन व्यक्ति हमेशा जीवन में पिछड़ा हुआ रह जाता है वह कभी लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाता। आजकल विद्यार्थी बहुत ही अनुशासन हीन होते जा रहे हैं वह समय का महत्व को भूलते जा रहे हैं और बड़ों का आदर करना भी। अनुशासनहीनता को उच्च शिक्षा से नियंत्रित किया जा सकता है। अनुशासन हमें लक्ष्य प्राप्ति और राष्ट्र के विकास में सहायक होता है। हम सब को अपने जीवन में अनुशासन को अपनाना चाहिए।


"हम सभी को दो चीजें बर्दाश्त करनी पड़ती हैं: अनुशासन का कष्ट या पछतावे और मायूसी की पीड़ा"



अनुशासन का खत्म होना 

प्राचीन काल में गुरुकुल में विद्या प्राप्ति की परंपरा थी। वह विद्यार्थी गुरुकुल के नियम को दृढ़ता से पालन करते थे। उनकी शिक्षा और दीक्षा का प्रमुख आधार अनुशासन ही था, परंतु आज के समय में विद्यार्थी उनके शिष्यों की तरह नहीं है, जो प्राचीन काल में थे। आज के विद्यार्थी में सहनशीलता, आज्ञाकारिता श्रद्धा और अनुशासन की बहुत अधिक कमी है। छात्रों में अहंकार तथा निरंकुशता का भाव उत्पन्न होता जा रहा है। उनकी बातों में शिष्टता और बंता दोनों भाव विलुप्त होते जा रहे हैं। इसलिए आज के विद्यार्थी को अनुशासन का पालन करने की अधिक आवश्यकता है।


अनुशासनहीनता के कारण निवारण   

अनुशासनहीनता का मुख्य कारण यह है कि अरुचिकर पाठ्यक्रम, पुरानी घिसी पिटी शिक्षा प्रणाली, भविष्य के प्रति अनिश्चितता, अध्यापक तथा अभिभावक का विद्यार्थी के प्रति व्यवहार ‍‌‌। यदि हमें इस समस्या से निपटना है तो हमें इन कारणों को गहनता से समझने की आवश्यकता है। ताकि विद्यार्थी या बच्चे में अध्यापक और अरे भाषा के प्रति आदर का भाव उत्पन्न हो सके। इसके अतिरिक्त शिक्षा प्रणाली को रुचिकर बनाने की आवश्यकता है। विद्यार्थी के साथ-साथ अध्यापक तथा उनके माता-पिता को भी अनुशासन को अपनाने की आवश्यकता है।


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अनुशासन के लाभ 

अनुशासन के कई लाभ हैं। कुछ मुख्य अनुशासन के लाभ निम्नलिखित हैं- 


  • अनुशासन हमारे व्यक्तित्व विकास में सहायक होता है।

  • इससे हम तनाव मुक्त रहते हैं।

  • इससे हमें समय के महत्व का पता चलता है जिससे हम अपने समय को सही तरीके से इस्तेमाल कर सकते हैं।

  • अनुशासन में रहने पर हम अपने साथ-साथ अपने समाज का भी विकास करते हैं।

  • अनुशासन में रहने पर हमें खुशहाली की प्राप्ति होती है।

  • यदि हम हनू शासन में रहते हैं तो हमें देखने वाले लोगों में भी अनुशासन अपनाने की इच्छा होती है।

  • अनुशासन में रहने पर हमें शिक्षा की सही प्राप्ति होती है।

  • अनुशासन से हमें उज्जवल भविष्य की प्राप्ति होती है।



उपसंहार 

आज का विद्यार्थी या बच्चे अपने भविष्य के प्रति जागरूक हैं। बस यह आवश्यक है कि वहां अपने मनमानी इच्छा को नियंत्रण में रखें यदि वह ऐसा करते हैं तो वह समाज में परिवार में तथा और लोगों के बीच एक अच्छी छवि छोड़ सकते हैं। किसी भी मनुष्य की व्यक्तिगत सफलता में उसके अनुशासित जीवन की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, सुभाष चंद्र बोस, दयानंद सरस्वती आदि का जीवन अनुशासन के कारण ही सफल तथा प्रेरणादाई बन सका। इसी तरह ही राष्ट्र की प्रगति भी उसके अनुशासित नागरिकों पर निर्भर होती है।


   अतः यदि हम चाहते हैं कि हमारा समाज एवं राष्ट्र प्रगति के पथ पर निरंतर अग्रसर रहे, तो हमें अनुशासित रहना ही पड़ेगा, क्योंकि जब हम स्वयं अनुशासित रहेंगे, तब ही किसी दूसरे को अनुशासित रख सकेंगे। अनुशासन ही देश को महान बनाता है, यह कोई अतिशयोक्ति नहीं, बल्कि वास्तविकता है। देश का नागरिक होने के नाते प्रत्येक व्यक्ति का देश के प्रति कुछ कर्तव्य होता है, जिसका पालन उसे अवश्य करना चाहिए, क्योंकि जिस देश के नागरिक अनुशासित होते हैं, वही देश निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकता है।



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