वाष्पोत्सर्जन किसे कहते हैं? वाष्पोत्सर्जन की परिभाषा | Definition of transpiration Vaspotsarjan Kise Kahate Hain

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वाष्पोत्सर्जन किसे कहते हैं? वाष्पोत्सर्जन की परिभाषा | Definition of transpiration Vaspotsarjan Kise Kahate Hain

वाष्पोत्सर्जन किसे कहते हैं? वाष्पोत्सर्जन की परिभाषा | Definition of transpiration Vaspotsarjan Kise Kahate Hain

मित्रों स्वागत है! आपका एक और नई पोस्ट में इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि वाष्पोत्सर्जन किसे कहते हैं, वाष्पोत्सर्जन का महत्व, वाष्पोतर्जन के चार प्रमुख महत्व तो आपको इस पोस्ट को पूरा पढ़ना है और इस पोस्ट को अपने दोस्तों में जरूर शेयर करें।

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वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) - वाष्पोत्सर्जन वह क्रिया है जिसमें जीवित पौधे, अपने वायवीय भागों; जैसे पत्तियों, हरे प्ररोह आदि के द्वारा आंतरिक ऊतकों से, अतिरिक्त पानी को वाष्प के रूप में बाहर निकालते हैं। वाष्पोत्सर्जन पौधे के सभी वायवीय भागों से होता है, परंतु पौधे में पत्तियां वाष्पोत्सर्जन करने वाले महत्वपूर्ण अंग है। ये अत्यधिक चौरस होती हैं और पौधे की वायवीय सतह का एक महत्वपूर्ण भाग बनाती हैं। इन पर अधिक संख्या में पर्णरन्ध्र (stomata) दोनों सतहों पर वितरित रहते हैं।


वाष्पोत्सर्जन का महत्व


वाष्पोत्सर्जन को 'आवश्यक बुराई' (necessary evil) कहा गया है, अतः विशेष (शुष्क) स्थानों के पौधे तो इसे रोकने के लिए भी अनेक उपाय करते हैं फिर भी यह पौधे के लिए अत्यंत उपयोगी है। पौधे के लिए वाष्पोत्सर्जन के निम्नलिखित महत्व हैं-


1. अतिरिक्त जल का निस्तारण - पौधे भूमि से लगातार अपने मूलरोमों द्वारा परासरणअन्तः शोषण (osmosis and imbibition) के द्वारा जल का अवशोषण करते हैं। शरीर में आवश्यकता की अपेक्षा यह जल कई गुना अधिक होता है, अतः वाष्पोत्सर्जन द्वारा अनावश्यक तथा अतिरिक्त जल (excess water) पौधों के शरीर के बाहर निकलता रहता है।



2. खनिज लवणों की प्राप्ति - वाष्पोत्सर्जन तथा जल के अवशोषण (absorption) में एक घनिष्ठ संबंध होता है। पौधे द्वारा जितना अधिक वाष्पोत्सर्जन होता है उतना ही अधिक भूमि से जल का अवशोषण होता है। मृदा जल में खनिज लवणों की मात्रा बहुत ही कम होती है अतः पौधों के द्वारा जितना अधिक जल का अवशोषण होता है उतने ही अधिक खनिज लवण (mineral salts) इसमें घुलकर पौधे के शरीर में पहुंचते रहते हैं। अधिक वाष्पोत्सर्जन से रिक्तका रस में परासरण दाब बढ़ जाता है, इस प्रकार और अधिक लवण पादप शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।


3. वाष्पोत्सर्जन कर्षण तथा रसारोहण - वाष्पोत्सर्जन के द्वारा चूषण बल (suction pressure) उत्पन्न होता है जो रसारोहण (ascent of sap) के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इससे जल बड़े-बड़े वृक्षों में भी उनकी अत्यधिक ऊंचाई तक पहुंच जाता है।


4. ताप का नियमन - वाष्पोत्सर्जन के कारण ही पौधे झुलसने से बच जाते हैं, क्योंकि जल की वाष्प बनने के कारण ठंडक पैदा होती है। इस प्रकार गुप्त ऊष्मा के वाष्प में चले जाने के कारण उसका उपयोग पौधा ताप से बचने में करता है।


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5. जल का समान वितरण - वाष्पोत्सर्जन द्वारा पौधों के सभी भागों में पानी का वितरण (distribution) समान रूप से हो जाता है।


6. फलों में शर्करा की सांद्रता - अधिक वाष्पोत्सर्जन के कारण फलों में शर्करा की सांद्रता बढ़ जाती है जिससे फल अधिक मीठे हो जाते हैं।


7. यांत्रिक ऊतकों व आवरण का निर्माण - अधिक वाष्पोत्सर्जन से पौधों में अधिक यांत्रिक ऊतकों की वृद्धि होती है जिसके कारण पौधे मजबूत होते हैं। ये ऊतक पौधे की जीवाणुओं, कवकों आदि से रक्षा भी करते हैं, विशेषकर बाहरी भागों पर बने उपचर्म (cuticle) आदि के आवरण से।


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