हास्य रस किसे कहते हैं? Hasya ras ki Paribhasha || सबसे सरल उदाहरण - Nitya Study Point.com
प्रिय पाठक स्वागत है आपका Nitya Study Point.com के एक नए आर्टिकल में इस आर्टिकल में हम हास्य रस के बारे में पढ़ेंगे, साथ ही हास्य रस की परिभाषा और हास्य रस के उदाहरण भी देखेंगे तो चलिए विस्तार से जानते हैं। - Hasya ras Kise Kahate Hain.
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हास्य रस (Hasya ras)
हास्य रस की परिभाषा - हास रस का स्थाई भाव हास है। किसी व्यक्ति के विकृत रूप, आकार, वेशभूषा आदि को देखकर ह्रदय में जो विनोद का भाव उत्पन्न होता है, वही 'हास' कहलाता है। यही 'हास' नामक स्थाई भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से पुष्ट होता है तब हास्य रस की निष्पत्ति होती है।
हास्य रस का उदाहरण -
विंध्य के वासी उदासी तपोव्रतधारी महा बिनु नारि दुखारे।
गौतम तीय तरी तुलसी सो कथा सुनि भै मुनि वृंद सुखारे।।
हैहैं सिला सब चंद्रमुखी, परसे पद-मंजुल-कंज तिहारे।
कीन्हीं भली रघुनायकजु करूना करि कानन को पगु धारे।।
विद्यांचल पर्वत पर रहने वाले तपस्वी-मुनियों की इस सोच पर हंसी आती है कि श्रीराम के चरण-स्पर्श से यहां की सभी शिलाएं अब चंद्रमुखी नारियां बन जाएंगी।
स्पष्टीकरण -
1. स्थाई भाव - हास (हंसी)
2. विभाव -
(क) आलंबन - विंध्य के वासी तपस्वी।
(ख) आश्रय - पाठक।
3. उद्दीपन - अहिल्या की कथा सुनना, राम के आगमन पर प्रसन्न होना, स्तुति करना।
4. अनुभाव - हंसना।
5. संचारी भाव - स्मृति, चपलता, उत्सुकता आदि।
हास्य रस के अन्य उदाहरण
1. शीश पर गंगा हंसै, लट में भुजंगा हंसै।
हास ही के दंगा भयो, नंगा के विवाह में।।
2. जेहि दिसि बैठे नारद फूली।
सो दिसि तेहि न बिलोकी भूली।।
3. काहू न लखा सो चरित विशेखा।
जो सरूप नृप कन्या देखा।।
4. आगे चले बहुरि रघुराई।
पाछे लरिकन धुनी उड़ाई।।
5. पिल्ला लीन्ही गोद में मोटर भाई सवार।
अली भली घूमन चली किये समाज सुधार।।
6. 'नाना वाहन नाना वेषा। विंहसे सिव समाज निज देखा।।
कोउ मुखहीन, बिपुल मुख काहू बिन पद कर कोड बहु पदबाहू।।'
7. "हंसि-हंसि भाजै देखि दूलह दिगंबर को,
पाहुनी जे आवै हिमाचल के उछाह में।"
8."मैं यह तोहीं मैं लखी भगति अपूरब बाल।
लहि प्रसाद माला जु भौ तनु कदंम की माल।"
9. लखन कहा हसी हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष सनाना।
का छती लाभु जून धनु तोरे। रेखा राम नयन के शोरे।।
10. हाथी जैसा देह, गैंडे जैसी चाल।
तरबूजे-सी खोपड़ी, खरबूजे-सी गाल।।
11."बिहसि लखन बोले मृदु बानी, अहो मुनीषु महाभर यानी।
पुनी-पुनी मोहि देखात कुहारू, चाहत उड़ावन फुंकी पहारू।"
12. पत्नी खटिया पर पड़ी, व्याकुल घर के लोग
व्याकुलता के कारण, समझ ना पाए रोग
समझ ना पाए रोग, तब एक बैद्य बुलाया
इसको माता निकली है,उसने यह समझाया
कह काका कविराय, सुने मेरे भाग्य विधाता
हमने समझी थी पत्नी, यह तो निकली माता।।
13. तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेम प्रताप,
साज मिले पन्द्रह मिनट, घंटा भर आलाप।
घंटा भर आलाप, राग में मारा गोता,
धीरे-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता।
14. मैं ऐसा महावीर हूं, पापड़ को तोड़ सकता हूं।
अगर आ जाए गुस्सा, तो कागज को भी मोड़ सकता हूं।।
15. कहा बंदरिया ने बंदर से चलो नहाने चले गंगा।
बच्चों को छोड़ेंगे घर पे होने दो हुडदंगा।।
16. हँसी हंसी भाजैं देखि दूल्ह दिगम्बर को,
पाहुनी जे आवै हिमाचल के उछाह में ।
17. सीस पर गंगा हँसे, भुजनि भुजंगा हँसै,
हास ही को दंगा भयो नंगा के विवाह में।
18. जेहि दिसि बैठे नारद फूली ।
सो दीसि तेहि न बिलोकी भूली ॥
19. विधिस्तु कमले शेते हरिः शते महोदधौ ।
हरो हिमालये शेते मन्ये मत्कुण शंकया ॥
20. बुरे समय को देख कर गंजे तु क्यों रोय ।
किसी भी हालत में तेरा बाल न बाँका होय ॥
21. कोई कील चुभाए गए, उसे हथौड़ा मार ।
इस युग में तो चाहिए, जस को तस व्यवहार
22. इस दौड़ धूप में क्या रखा है ।
आराम करो आराम करो ।
आराम जिंदगी की पूजा है।
इससे ना तपेदिक होती।
आराम शुधा की एक बूंद
तन का दुबलापन खो देती।।
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