करुण रस किसे कहते हैं? Karun ras ki Paribhasha || सबसे सरल उदाहरण - Nitya Study Point.com
प्रिय पाठक स्वागत है आपका Nitya Study Point.com के एक नए आर्टिकल में इस आर्टिकल में हम करुण रस के बारे में पढ़ेंगे, साथ ही अंग करुण रस की परिभाषा और करुण रस के उदाहरण भी देखेंगे तो चलिए विस्तार से जानते हैं। - Karun ras Kise Kahate Hain.
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करुण रस (Karun Ras)
करुण रस (Karun ras) - करुण शब्द का प्रयोग सहानुभूति एवं दया मिश्रित दुख के भाव को प्रकट करने के लिए किया जाता है, अतः जब स्थाई भाव शोक विभाव, अनुभाव एवं संचारी भाव के सहयोग से अभिव्यक्त होकर आस्वाद रूप धारण करता है तब इसकी परिणीति करुण रस कहलाती है। करुण रस का स्थाई भाव शोक है।
करुण रस की परिभाषा -
प्रिय व्यक्ति या मनचाही वस्तु के नष्ट होने या उसका कोई अनिष्ट होने पर हृदय शोक से भर जाए, तब 'करुण रस' की निष्पत्ति होती है। इसमें विभाव, अनुभाव व संचारी भावों के संयोग से शोक स्थाई भाव का संचार होता है।
अगर कोई आपसे करुण रस की परिभाषा पूछे तो आप यह भी बता सकते हैं-
"जब किसी प्रिय व्यक्ति या मनचाही वस्तु के नष्ट होने या उसका कोई अनिष्ट होने पर हृदय शोक से भर जाए, तब 'करुण रस' जागृत होता है। इसमें विभाव, अनुभाव व संचारी भावों के मेल से स्थाई भाव शोक का जन्म होता है।
करुण रस के अवयव -
स्थाई भाव - शोक
आलंबन (विभाव) - विनष्ट व्यक्ति अथवा वस्तु
उद्दीपन (विभाव) - आलंबन का दाहकर्म, इष्ट के गुण तथा उससे संबंधित वस्तुएं एवं इस्ट के चित्र का वर्णन
अनुभाव - भूमि पर गिरना, नि:श्वास, छाती पीटना,रूदन, प्रलाप, मूर्छा, दैवनिंदा, कम्प आदि।
संचारी भाव - निर्वेद, मोह, अपस्मार, व्याधि, ग्लानि, स्मृति, श्रम, विषाद, जड़ता, दैन्य, उन्माद आदि।
परिभाषा - करुण रस का स्थाई भाव शोक है। शोक नामक स्थाई भाव जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से संयोग करता है, तब 'करुण रस' की निष्पत्ति होती है.
उदाहरण-
मणि खोए भुजंग सी जननी, फन सा पटक रही थी शीश।
अंधी आज बनाकर मुझको, किया न्याय तुमने जगदीश।।
श्रवण कुमार की मृत्यु पर उनकी माता के विलाप का यह उदाहरण करूण रस का उत्कृष्ट उदाहरण है।
स्पष्टीकरण-
1.स्थाई भाव - शोक।
2.विभाव
(क) आलंबन - श्रवण।
(ख) आश्रय - पाठक।
3. अनुभाव - सिर पटकना, प्रलाप करना आदि।
4. संचारी भाव - स्मृति, विषाद आदि।
करुण रस के अन्य उदाहरण -
उदाहरण 1. राम-राम कहि राम कहि, राम-राम कहि राम।
तन परिहरि रघुपति विरह, राउ गयउ सुरधाम।।
उदाहरण 2. तात तात हा तात पुकारी। परे भूमितल व्याकुल भारी।।
चलन न देखन पायउं तोही। तात न रामहिं सौंपेउ मोही
उदाहरण 3. जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फन करिबर कर हीना।।
अस मम जिवन बन्धु बिन तोहि। जौ जड़ दैव जियावै मोही।।
उदाहरण 4. मम अनुज पड़ा है चेतनाहीन होके, तरल हृदय वाली जानकी भी नहीं है।
अब बहु दु:ख से अल्प बोला न जाता,
क्षणभर रह जाता है न उद्धिग्नता से।।
उदाहरण 5. सोक बिकल सब रोवहिं रानि। रूपु सीलु बलु तेजु बखानी।।
करहिं बिलाप अनेक प्रकारा। परहिं भूमितल बारहिं बारा।।
उदाहरण 6. " हां! वृद्धा के अतुल धन हा! वृद्धता के सहारे! हा!
प्राणों के परम प्रिय हा! एक मेरे दुलारे!"
उदाहरण 7. "अभी तो मुकुट बंधा था माथ , हुए कल ही हल्दी के हाथ।
खुले भी न थे लाज के बोल, खिले थे चुंबन शून्य कपोल।।
हाय रुक गया यहीं संसार, बना सिंदूर अनल अंगार।
वातहत लतिका यह सुकुमार, पड़ी है छिन्नाधार!"
उदाहरण 8. सोक बिकल सब रोवहिं रानि ।
रुपु सीलु बलु तेजु बखानी ॥
करहि विलाप अनेक प्रकारा ।
परहिं भूमितल बारहिं बारा ॥
उदाहरण 9. जिस बच्ची ने कुछ नही पाया था।
क्रुर हाथों ने अभी उसे जलाया था ॥
उदाहरण 10. ऐ मेरे वतन के लोगों जरा ऑंख में भर लो पानी जो शहीद हुए है उनकी जरा याद करो कुर्बानी |
उदाहरण 11. अर्ध राति गयी कपि नांहि आवा। राम उठाइ अनुज उर लावा।।
सकल न दृखित देखि मोहि काऊ । बन्धु सदा तव मृदुल स्वभाऊ ॥
जो जनतेऊँ वन बन्धु विछोहु । पिता वचन मनतेऊं नहि ओहु ॥
उदाहरण 12. तदनन्तर बैठी सभा उटज के आगे, नीले वितान के तले दीप बहु जागे ।
उदाहरण 13. हे आर्य , रहा क्या भरत - अभीप्सित अब भी? मिल गया अकण्टक राज्य उसे जब, तब भी ?
उदाहरण 14. हा! इसी अयश के हेतु जनन था मेरा, निज जननी ही के हाथ हनन था मेरा ।
उदाहरण 15. उसके आशय की थाह मिलेगी किसको जनकर जतनी ही जान न पायी जिसको ?
उदाहरण 16. यह सच है तो अब लौट चलो तुम घर को । चौंके सब सुनकर अटल केकयी स्वर को |
उदाहरण 17 . अब कौन अभीप्सित और आर्य, वह किसका ? संसार नष्ट है भ्रष्ट हुआ घर जिसका ॥
उदाहरण 18 . विस्तृत नभ का कोई कोना , मेरा ना कभी अपना होना , परिचय इतना इतिहास यही , उमड़ी कल थी मिट आज चली !
उदाहरण 19 . पथ को ना मलिन करता आना पद चिन्ह ना दे जाता जाना ,सुधि मेरे आंगन की जग में
सुख की सिहरन हो अंत खिली ॥
उदाहरण 20 . मैं क्षितिज भृकुटि पर घिर धूमिल चिन्ता का भार बनी अविरल रज-कण पर जल -कण हो बरसी नव जीवन अंकुर बन निकली !
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