खगोलीय पिंड किसे कहते हैं? Khagoliy pind Kise Kahate Hain
खगोलीय पिंड या खगोलीय वस्तु ऐसी वस्तु को कहा जाता है जो ब्रह्मांड में प्राकृतिक रूप से पाई जाती है, यानी जिसकी रचना मनुष्यों ने नहीं की होती है। इसमें तारे, ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, गैलेक्सी, उल्का पिंड, ब्लैक होल, पल्सर आदि।
खगोलीय पिंड क्या होते हैं?
आकाशीय पिंड या खगोलीय पिंड अंतरिक्ष में मौजूद सूर्य, चंद्रमा, ग्रह और तारे आदि सभी पिंड हैं। वे उस विशाल ब्रह्मांड का एक हिस्सा हैं जिसमें हम रहते हैं और आमतौर पर हम से बहुत दूर होते हैं। खगोलीय पिंड शब्द उतना ही विस्तृत है जितना कि संपूर्ण ब्रह्मांड, ज्ञात और अज्ञात दोनों। परिभाषा के अनुसार आकाशीय पिंड पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर का कोई भी प्राकृतिक पिंड है। आसान उदाहरण चंद्रमा, सूर्य और हमारे सौर मंडल के अन्य ग्रह हैं। लेकिन वे बहुत सीमित उदाहरण हैं। अंतरिक्ष में कोई भी क्षुद्र ग्रह एक खगोलीय पिंड है।
कौन से खगोलीय पिंड हमारे सौरमंडल का हिस्सा हैं
खगोलीय पिंडों में सितारे ग्रह, उपग्रह, धूमकेतु, क्षुद्र ग्रह, उल्का और उल्कापिंड, उल्का हमारे सौरमंडल का हिस्सा है। जबकि क्षुद्रग्रह, चंद्रमा, ग्रह और तारे खगोलीय पिंड हैं। एक धूमकेतु की पहचान शरीर और वस्तु दोनों के रूप में की जा सकती है: यह एक पिंड है जब बर्फ और धूल के जमे हुए नाभिक का जिक्र होता है, और एक वस्तु जब पूरे धूमकेतु को उसके फैलाने वाले कोमा और पूछ के साथ वर्णित करती है।
चंद्रमा (Moon)
चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट स्थित खगोलीय पिंड है। पृथ्वी और चंद्रमा का जोड़ा अंतरिक्ष में साथ-साथ विचरण करता है, यहां चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है तथा स्वयं पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। चंद्रमा रात्रि में आकाश में दिखाई देने वाले अन्य किसी भी पिंड से अधिक बड़ा तथा चमकदार है। इसका अपना कोई प्रकाश नहीं होता लेकिन यह सूर्य के परावर्तित प्रकाश के कारण चमकता रहता है; क्योंकि यह हमारे ग्रह के चारों ओर चक्कर लगाता है, अतः चंद्रमा के सूर्य से प्रकाशित भाग का परिवर्तनशील भाग अथवा प्रावस्थाएं दिखाई पड़ती हैं।
पृथ्वी का उपग्रह (Earth's satellite) - चंद्रमा पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है। अधिकांश चंद्रमा अपने जनक ग्रह से बहुत छोटे होते हैं, लेकिन हमारा चंद्रमा अपेक्षाकृत बहुत बड़ा है, जिसका व्यास पृथ्वी के व्यास का एक चौथाई है। यह इतना बड़ा है कि पृथ्वी तथा चंद्रमा को एक दोहरे ग्रह तंत्र के रूप में भी विचार किया जा सकता है।
चंद्रमा की प्रावस्थाएं (Phases of the Moon) - पृथ्वी की तरह ही, चंद्रमा के आधे भाग में भी सदैव सूर्य का प्रकाश पड़ता रहता है, जबकि दूसरे भाग में अंधकार रहता है। जब चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है, तो इसका आकार बदलता हुआ दिखाई देता है, क्योंकि हमें इसके सूर्य के प्रकाशित भाग की भिन्न मात्राएं अथवा प्रावस्थाएं दिखाई पड़ती हैं। प्रावस्थाएं एक चक्र में होती हैं। नवचंद्र/अमावस्या, जब उसका अंधेरा पक्ष हमारी ओर होता है, से लेकर पूर्ण चंद्रमा अर्थात पूर्णिमा तक जब हमें पूर्णतः सूर्य से प्रकाशित भाग दिखाई पड़ता है और फिर वापस वह नवचंद्र की ओर अग्रसर हो जाता है।
चंद्र प्रभाव (Lunar Influences) - हालांकि चंद्रमा पृथ्वी से बहुत छोटा है, फिर भी पृथ्वी पर इसका प्रभाव पड़ता है। जैसे पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण चंद्रमा को खींचता है, ठीक वैसे ही चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी को खींचता है, जो उसको हल्का सा अंडाकार कर देता है। यह विरूपण ठोस भूपिंडों को तो बहुत कम प्रभावित करता है, लेकिन यह महासागरों को ग्रह के दोनों और उभार देता है जिससे समुद्रतटों पर ज्वार आ जाते हैं। ज्वार फिर पृथ्वी के घूमने की गति को तथा पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी को प्रभावित करते हैं।
चंद्रमा की सतह (Moon's Surface) - चंद्रमा पर दो विविक्तकारी भूदृश्य दिखाई पड़ते हैं। गहरे धूसर मैदान अथवा मारिया (एकवचन-मेयर mare) तथा अपेक्षाकृत हल्के रंग के पहाड़। असंख्य गर्तों से घिरे पर्वत चंद्रमा के पटल के सबसे प्राचीन भाग हैं। चिकने मैदान बड़े गर्त हैं, जो लावे से भरे हुए हैं। इनमें अक्सर कुछ छोटे, अधिक नए बने गर्त होते हैं, जो सामान्यतः पहाड़ों द्वारा घिरे रहते हैं।
चंद्रमा का अन्वेषण (Exploring the Moon) - सैकड़ों वर्षो से लोग चंद्रमा के अन्वेषण का सपना देखते रहे हैं। बीसवीं शताब्दी के मध्य में अमेरिका तथा रूस ने इस सपने को सच कर दिया। 1959 ईस्वी में, लूना-I (पहला अंतरिक्ष यान जो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण को छोड़कर अंतरिक्ष में गया था) को चंद्रमा की ओर भेजा गया। इसके बाद एक दशक तक सघन अंतरिक्ष गतिविधियां जारी रहीं, क्योंकि रूसी तथा अमेरिकी खोजकर्ता, रोबोट तथा अंतरिक्ष यात्रियों के दल सहित यानों को चंद्रमा की सतह की जांच पड़ताल करने तथा वहां उतरने के लिए भेजा गया। लूना-2 ऐसा पहला अंतरिक्ष यान था जिसने 1959 ईस्वी में चंद्रमा की सतह को स्पर्श किया। अगले महीने लूना-3 ने वहां के पहले चित्र लिए। 1966 ईस्वी में लूना-9 ने चंद्रमा की सतह से पहले दूरदर्शन पर देखे जा सकने वाले चित्र भेजे।
चंद्रमा का निकटस्थ तथा दूरस्थ भाग (Nearside and Farside of the Moon) - चंद्रमा के निकटस्थ भाग (वह भाग जो पृथ्वी की ओर होता है) में गहरे गड्ढे (Maria) हैं, जिन्हें खगोलशास्त्री पहले समुद्र समझते थे। अंतरिक्ष यान हमेशा चंद्रमा के निकटस्थ भाग में ही उतरते हैं।
चंद्रमा का दूरस्थ भाग हमेशा पृथ्वी से दूर स्थित होता है। 1959 ईस्वी तक यह एक रहस्य बना हुआ था कि यह कैसा दिखाई देता है, जब तक कि एक रूसी स्पेस प्रोब लूना-3 चंद्रमा के पिछले दूरस्थ भाग की यात्रा करने तथा उसके फोटोग्राफ पृथ्वी पर भेजने में सफल नहीं हुआ था। दूरस्थ भाग में भी बहुत अधिक गड्ढे हैं। खगोलशास्त्री परेशान हैं कि ऐसा क्यों है।
अपोलो कार्यक्रम (Apollo programme) - 1961 ईस्वी में संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपोलो कार्यक्रम की स्थापना की, जिसका लक्ष्य दशक के अंत तक अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर भेजना था। इसके लिए एक शक्तिशाली राॅकेट, सेटर्न V (Saturn V) की रचना की गई तथा उसे बनाया गया। आरंभिक अपोलो मिशनों ने संभावित यात्रा के विभिन्न भागों के लिए इसका प्रयोग करके देखा था। 1969 ईस्वी में अपोलो -II से आरंभ करने के बाद
से, चंद्रमा पर छः मिशन भेजे जा चुके हैं। बारह अंतरिक्ष यात्रियों ने उसका अन्वेषण करके उसकी सतह के फोटोग्राफ लिए तथा वहां से 388 किग्रा पत्थर तथा मृदा विश्लेषण के लिए पृथ्वी पर लेकर आए। 1969 ईस्वी में नील आर्मस्ट्रांग चंद्रमा पर चहलकदमी करने वाले पहले व्यक्ति थे।
गृह (Planets)
गृह शैली तथा गैस का बना एक गोलाकार पिंड होता है जो तारे की परिक्रमा करता है। ग्रह का अपना कोई प्रकाश नहीं होता है, बल्कि यह तारे के प्रकाश को परावर्तित करता है। हमारे सूर्य, जो कि एक तारा है, के चारों ओर आठ ग्रह परिक्रमा करते हैं जिनके 60 से भी अधिक चंद्रमा हैं। गृहों के दो भिन्न समूह हैं – भीतरी/आंतरिक तथा वाह्य ग्रह; जो क्षुद्रग्रहों की पट्॒टिका द्वारा एक-दूसरे से अलग रहते हैं, जिसमें अरबों छोटे अंतरिक्ष शैल होते हैं।
आंतरिक ग्रह (Inner planets) - सूर्य के निकट स्थित ग्रह - बुध, शुक्र पृथ्वी तथा मंगल आंतरिक ग्रह कहलाते हैं। ये शैलों के बने होते हैं तथा बाह्य ग्रहों से छोटे हैं। सिर्फ पृथ्वी तथा मंगल के ही चंद्रमा है।
बाह्य गृह (Outer planets) - बृहस्पति, शनि अरुण तथा वरुण,बाह्य ग्रह है। इन चार ग्रहों को अक्सर गैस के विशाल पिंड कहा जाता है। क्योंकि ये वृहत् ग्रह अधिकांशतः गैसों से बने होते हैं। इनमें से प्रत्येक वलय तंत्र तथा चंद्रमाओं का परिवार है।
कक्षाएं (Orbits) - ग्रह सूर्य के चारों ओर गोल वृत्त में नहीं बल्कि दीर्घवृत्तीय घेरों में चक्कर लगाते रहते हैं। सूर्य का पूर्ण परिपथ कक्षा कहलाता है। कक्षा की लंबाई तथा एक कक्षा पूर्ण करने में लगने वाला समय ग्रह की कक्षीय अवधी अथवा वर्ष ग्रहों की दूरी के अनुसार बढ़ता जाता है।
ग्रहीय झुकाव (Planetary tilts) - ग्रह सूर्य की परिक्रमा करने के साथ ही अपनी धुरी पर भी गोल घूमते हैं। ग्रह सूर्य की सीध में नहीं होते हैं, क्योंकि उनकी धुरी/अक्ष (वह रेखा जिस पर वे घूमते हैं) कोण पर झुकी होती है। प्रत्येक ग्रह का धुरी/अक्ष भिन्न मात्रा में झुकी होती हैं। ग्रह के इस झुकाव को ग्रहीय झुकाव कहते हैं।
धूमकेतु (Comets)
सौरमंडल में अरबों धमूकेतु हैं, जो उसके किनारे पर स्थित हैं तथा विशाल तथा गोलाकार ओर्ट बादल बनाते हैं।ओर्ट बादल का यह है नाम एक डच खगोलशास्त्री जान ओर्ट के नाम पर रखा गया है। वैयक्तित रूप से, ये अनियमित आकार के बर्फ तथा शैलीय धूल के पिंड हैं, जो अपनी अलग कक्षा में सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते रहते हैं। कभी-कभी इनमें से कोई बादलों को छोड़कर भीतरी सौर तंत्र में आ जाता है।
धूमकेतु का केंद्र भाग उसका केंद्रक कहलाता है। केंद्रक के चारों ओर स्थित गैस तथा धूल के बादल कोमा कहलाते हैं। केंद्रक तथा कोमा धूमकेतु का शीर्ष भाग बनाते हैं। सूर्य के समीप आने पर, धूमकेतु का शीर्ष से भाग गर्म होता जाता है तथा फेल जाता है। समय के साथ, शीर्ष भाग फैलकर कई सौ हज़ार अथवा लगभग दस लाख किलोमीटर बड़ा हो जाता है।
सूर्य एक शक्तिशाली सौर पवन उत्पन्न करता है जो उच्च-ऊर्जा कणों से बनी होती है। यह सौर पवन कोमा को बाहर की ओर एक लंबी पूंछ के रूप में बाहर निकाल देती है जो हमेशा सूर्य से दूर बढ़ती रहती है। अंदर आने वाले धूमकेतु की पूंछ उसके पीछे लहराती रहती है तथा बहार आने वाले धूमकेतु की पूंछ उसके सामने की ओर होती है।
लंबी समयावधि तथा छोटी समयावधि वाले धूमकेतु (Long-period and short-period comets) - सौरमंडल के अधिकांश धूमकेतु बार-बार सूर्य की परिक्रमा करते हैं, इनमें से अनेक लंबी समयावधि के धूमकेतु होते हैं। लंबी समयावधि के धूमकेतु की कक्षा लंबी तथा दीर्घवृत्ताकार होती है, जो संभवतः सौरमंडल के छोर तक पहुंच जाती है। लंबी समयावधि वाले धूमकेतु पृथ्वी के पास दोबारा वापस आने में हजारों वर्ष लगा देते हैं।
छोटी समयावधि के धूमकेतु कुछ वर्षों बाद सूर्य के पास वापस आ जाते हैं। संभवतः सबसे प्रसिद्ध छोटी समयावधि का धूमकेतु हैली का धूमकेतु है, जिसका यह नाम अंग्रेज खगोलशास्त्री एडमंड हैली के नाम पर पड़ा है। हैली का धूमकेतु 75 से 79 वर्ष में वापस जाता है। पिछली बार हैली के धूमकेतु को 1986 ईस्वी में देखा गया था। यह 2062 ईस्वी में फिर वापस आएगा।
उल्का तथा उल्कापिंड (Meteors and Meteorites)
पृथ्वी पर अक्सर बाहरी अंतरिक्ष पिडों द्वारा हमला होता रहता है। अधिकांश पिंड उल्कापिंड हैं, जो शैली अथवा धातु के खंड होते हैं जो सूर्य की परिक्रमा करते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि अधिकांश उल्कापिंड छोटी समयावधि के धूमकेतुओं अथवा क्षुद्रग्रहों से आते हैं। धूमकेतु जब सूर्य के पास पहुंचते हैं तो उनके खंड टूटकर गिर जाते हैं जब वे आपस में टकराते हैं तो क्षुद्रग्रहों के टुकड़े टूट कर गिर जाते हैं।
उल्का (Meteors) - प्रतिदिन लाखों उल्कापिंड पृथ्वी के वायुमंडल में से गुजरते हैं। जब कोई उल्कापिंड वायु मंडल में स्थित गैसों से टकराता है, तो घर्षण के कारण वह जल जाता है। उल्कापिंड के जलने से उत्पल प्रकाश की किरण उनका कहलाती है। उल्काओं को "टूटते हुए तारे" भी कहा जाता है।
उल्कापिंड (Meteorites) - अधिकांश उल्कापिंड वायुमंडल में जल जाते हैं। जबकि कुछ जीवित रहकर पृथ्वी की सतह से टकराते रहते हैं। ऐसे उल्का इतने बड़े होते हैं कि वे पृथ्वी के वायुमंडल में जल नहीं पाते। इनका वजन सामान्यतः 1 किलोग्राम से अधिक होता है। वह उल्का जो पृथ्वी की सतह से टकराता है, उल्कापिंड कहलाता है।
यद्यपि अधिकांश उल्कापिंड बहुत छोटे काण होते हैं, लेकिन कुछ काफी बड़े भी होते हैं। अभी तक पाया गया सबसे बड़ा उल्कापिंड दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका (नामीबिया) का होबा वेस्ट उल्कापिंड है, जिसका वजन लगभग 60 टन था। यह पृथ्वी पर 1920 ईस्वी में गिरा था।
तारे (Stars)
तारा एक स्थूल, तप्त तथा प्रदीप गैस का गोला होता है जो नाभिकीय संलयन के द्वारा ऊर्जा का निर्माण करता है। हजारों वर्ष पहले लोग आसमान में तारों को देखा करते थे। आज भी आप उन्हीं तारों को आसमान में देखते हैं, अतः इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि अधिकांश तारों को अमर समझते हैं। जब तारों का जन्म होता है, उनकी एक निश्चित आयु होती है और अंततः सबसे चमकदार तारे भी नष्ट हो जाते हैं। जब तारे नष्ट होते हैं तो उनके अधिकांश तत्व का पुनः नए तारे के निर्माण में उपयोग हो जाता है।
तारे का जन्म अथवा निर्माण (The Birth of Formation of a Star) -
तारों का निर्माण मुख्यत: हाइड्रोजन गैस तथा धूल के मिश्रण की विशाल निहारिकाओं से होता है। लाखों वर्षों तक गैस तथा धूल गुरुत्वाकर्षण के कारण एक दूसरे की ओर खिंचकर एक घूमते हुए बादल का निर्माण करती हैं। जैसे-जैसे टकराव अधिक होने लगते हैं, तत्व गर्म होने लगता है। जब इस बादल के केंद्र का तापमान लगभग डेढ़ करोड़ डिग्री तक पहुंच जाता है, तो संलयन आरंभ हो जाता है। संलयन की ऊर्जा प्रोटोस्टार अथवा नए तारे को अधिक गर्म कर देती है और यह तेजी से चमकने लगता है। इस तरह एक तारे का जन्म हो जाता है। हमारे सूर्य का जन्म भी इसी प्रकार हुआ था।
पृथ्वी का तारा (Earth's Star) - हमारा सबसे निकटस्थ तारा सूर्य है जो कि गर्म गैसों का एक गोला है। यह पृथ्वी के व्यास का 109 गुना है तथा इसका द्रव्यमान सौर मंडल के सभी ग्रहों के कुल द्रव्यमान से 745 गुना अधिक है।
सूर्य के सबसे अधिक समीप स्थित तारा एल्फा सेंटोरी है जो पृथ्वी से लगभग 4.3 प्रकाश वर्ष की दूरी पर स्थित हैं।
खगोलीय पिंड से संबंधित प्रश्न -
1. खगोलीय पिंड से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- खगोलीय पिंड या खगोलीय वस्तु ऐसी वस्तु को कहा जाता है जो ब्रह्मांड में प्राकृतिक रूप से पाई जाती हैं, यानि जिसकी रचना मनुष्यों ने नहीं की होती है। इसमें तारे, ग्रह, प्राकृतिक उपग्रह, गैलेक्सी, उल्कापिंड, ब्लैक होल, पल्सर आदि।
2. पृथ्वी का सबसे दूर का खगोलीय पिंड कौन सा है?
उत्तर- सौरमंडल के दूसरे सबसे दूर पिंडों एरिस को वैज्ञानिक लंबे समय से देख रहे हैं यह पृथ्वी और सूरज के बीच की दूरी से 96 गुना ज्यादा दूर है।
3. 2007 में पेरु में कौन सा खगोलीय पिंड गिरा था?
उत्तर- 2007 में, पेरू के क्षेत्र में एक विशाल उल्कापिंड गिरा। स्थानीय निवासी आकाश में एक भयानक गड़गड़ाहट से भयभीत थे और उन्होंने एक उड़ता हुआ आग का गोला देखा जो टिटिकाका झील के पास गिर गया। पृथ्वी की सतह से टकराने से 30 मीटर व्यास और 6 मीटर गहराई वाला एक विशाल गड्ढा बना।
4. क्या सभी खगोलीय पिंडों का अपना प्रकाश होता है?
उत्तर- इसका अपना प्रकाश नहीं होता है।
5. पूरे ब्रह्मांड में कुल कितने ग्रह हैं?
उत्तर- सूर्य या किसी अन्य तारे के चारों ओर परिक्रमा करने वाले खगोल पिंडों को ग्रह कहते हैं। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ के अनुसार हमारे सौरमंडल में 8 ग्रह हैं- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेपच्यून। इनके अतिरिक्त तीन बौने ग्रह और हैं - सीरीस, प्लूटो और एरीस।
6. हमारे सौरमंडल का सबसे नजदीकी खगोलीय पिंड कौन सा है?
उत्तर- सूर्य से उनकी दूरी के क्रम में 4 ग्रह हैं-
बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल
7. पृथ्वी के सबसे नजदीक आकाशीय पिंड कौन सा है?
उत्तर- सूर्य से दूरी के अनुसार ग्रहों का क्रम है- बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण एवं वरुण।
8. सबसे बड़ा क्षुद्र ग्रह कौन सा है?
उत्तर- इनमें से सबसे बड़ा क्षुद्र ग्रह है 'सेरेस'। इतालवी खगोलवेत्ता पीआज्जी ने इस क्षुद्रग्रह 4 जनवरी 1801 में खोजा था। केवल 'वेस्टाल' ही एक ऐसा क्षुद्रग्रह है जिसे नंगी आंखों से देखा जा सकता है यद्यपि इसे सेरेस के बाद खोजा गया था। इनका आकार 1000 किमी व्यास के सेरस से 1 से 2 इंच के पत्थर के टुकड़ों तक होता है।
9. पृथ्वी पर उल्कापिंड कब गिरा था?
उत्तर- ऐसा माना जाता है कि होबा उल्कापिंड लगभग 80,000 साल पहले पृथ्वी पर गिरा था।
10. दूरी मापने की सबसे बड़ी इकाई क्या होती है?
उत्तर- दूरी मापने की सबसे बड़ी इकाई पारसेक है।इन्हें भी पढ़ें 👉👉
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