सोहनलाल द्विवेदी जी का जीवन परिचय || Sohanlal Dwivedi ji ka jivan Parichay
सोहनलाल द्विवेदी जी का जीवन परिचय यहां पर सबसे सरल भाषा में लिखा गया है। यह जीवन परिचय कक्षा 9वीं से लेकर कक्षा 12वीं तक के छात्र के लिए महत्वपूर्ण है। इसमें सोहनलाल द्विवेदी जी के सभी पहलुओं के विषय में चर्चा की गई है, तो इसे कोई भी व्यक्ति आसानी से पढ़ सकता है।
Table of Contents :-
सोहनलाल द्विवेदी
(जीवनकाल : सन् 1906-1988 ई०)
जीवन परिचय :-
पं० सोहनलाल द्विवेदी जी का जन्म सन् 1906 ई० में फतेहपुर जिले के बिंदकी नामक कस्बे में एक धनी और सम्मानित परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम वृंदावनप्रसाद द्विवेदी था।
कवि परिचय : एक दृष्टि में
सोहनलाल जी ने बी.ए., एल-एल.बी. तक शिक्षा प्राप्त की थी। इन्हें संस्कृत भाषा का भी अच्छा ज्ञान था। द्विवेदी जी सदैव देशोद्धार और समाज-सुधार के कार्यों में संलग्न रहे। इन्होंने राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत, जोशीली कविताओं की रचना कर नवयुवकों को भी आंदोलन में भाग लेने के लिए उत्साहित किया। इनकी राष्ट्रभक्ति के पीछे पंडित मदन मोहन मालवीय का भी बहुत बड़ा योगदान रहा है। इन्होंने “बाल-सखा’ और ‘अधिकार’ नामक पत्रों का कुशल संपादन किया।
द्विवेदी जी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित हुए। इनकी रचनाओं में गांधीवाद की स्पष्ट छाप देखी जा सकती है। आजीवन साहित्य-सेवा में संलग्न रहने वाले द्विवेदी जी सन् 1988 ईस्वी में 82 वर्ष की अवस्था में पंचतत्व में विलीन हो गए।
साहित्यिक परिचय :-
हिंदी-काव्य में गांधीवादी विचारों का प्रयोग करने वाले पंडित सोहनलाल द्विवेदी जी का हिंदी साहित्य में वही स्थान है, जो मैथिली शरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी और बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ का है। राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत इनकी काव्य-वाणी युग-युग तक हिंदी प्रेमियों के गले की कंठ हार बनी रहेगी। श्रेष्ठ बाल साहित्य के सृजन के लिए द्विवेदी जी स्मरणीय हैं। वास्तव में द्विवेदी जी की कविताओं में जीवन की प्रेरक शक्ति विद्यमान है।
कृतियां :-
द्विवेदी जी के ‘पूजा के स्वर’, ‘भैरवी’, ‘पूजा-गीत’, ‘युगाधार’, ‘प्रभाती’, ‘चेतना’, ‘वासन्ती’, ‘चित्रा’ आदि काव्य संग्रह हैं। ‘कुणाल’, ‘वासवदत्ता’ और ‘विषपान’ द्विवेदी जी के इतिहास और कल्पना से समन्वित प्रबंध काव्य हैं। इनके अतिरिक्त ‘दूध-बताशा’, ‘शिशु-भारती’, ‘बाल-भारती’, ‘झरना’, ‘बच्चों के बापू’ आदि बच्चों के लिए लिखी गई रचनाएं हैं।
भाषा शैली :-
भाषा - द्विवेदी जी ने अपने काव्य की रचना खड़ी बोली में की है। उनकी भाषा सरल, सुबोध, आडंबरहीन तथा मधुर है। स्पष्टता और स्वाभाविकता भाषा के प्राण हैं। इन्होंने अपनी भाषा में संस्कृत और उर्दू के शब्दों को पर्याप्त रूप में अपनाया है। मुहावरों के प्रयोग से द्विवेदी जी ने भाषा को और भी रोचक तथा प्रभावशाली बना दिया है। इनकी भाषा इतनी सहज और बोधगम्य है कि इसे ‘व्यवहारिक भाषा’ का नाम दिया जा सकता है।
शैली - द्विवेदी जी की शैली इनके व्यक्तित्व के अनुरूप ही है। यही कारण है कि इनकी शैली में सरसता, मधुरता, स्पष्टता और प्रवाह सर्वत्र दिखाई देता है। इस प्रकार इनकी शैली भाषा के समान ही स्पष्ट और सुबोध है। द्विवेदी जी ने वर्णनात्मक और गीतात्मक शैली में अपने काव्य की रचना की है। इनकी गीतात्मक शैली में गंभीरता, तन्मयता, संगीतात्मकता और संक्षिप्तता जैसे गुणों के दर्शन होते हैं। इनकी राष्ट्रीय कविताएं ओजपूर्ण हैं। इस प्रकार द्विवेदी जी की शैली रोचक, ओजपूर्ण, सरल, सुबोध और प्रभावशाली बन पड़ी है।
हिंदी साहित्य में स्थान :-
सोहन लाल द्विवेदी जी ने जनमानस का मार्गदर्शन एवं बच्चों को सद्मार्ग बताने वाला श्रेष्ठ साहित्य दिया है। इन्होंने अपने संपूर्ण साहित्य में सरल ढंग से अपनी बात कही है। राष्ट्रीय चेतना के इस प्रतिभासंपन्न कवि का आधुनिक काल के कवियों में महत्वपूर्ण स्थान है।
सोहनलाल द्विवेदी जी के पद (उन्हें प्रणाम)
भेद गया है दीन-अश्रु से जिनका मर्म,
मुहताजों के साथ न जिनको आती शर्म,
किसी देश में किसी वेश में करते कर्म,
मानवता का संस्थापन ही है जिनका धर्म!
ज्ञात नहीं है जिनके नाम!
उन्हें प्रणाम! सतत प्रणाम!
कोटि-कोटि नंगो, भिखमंगों के जो साथ,
खड़े हुए हैं कंधा जोड़े, उन्नत माथ,
शोषित जन के, पीड़ित जन के, कर को थाम,
बढ़े जा रहे उधर जिधर है मुक्ति प्रकाम!
ज्ञात और अज्ञात मात्र ही जिनके नाम!
वंदनीय उन सत्पुरुषों को सतत प्रणाम!
जिनके गीतों के पढ़ने से मिलती शांति,
जिनकी तानों के सुनने से झिलती भ्रांति,
छा जाती मुखमंडल पर यौवन की क्रांति,
जिनकी टेकों पर टिकने से टिकती क्रांति!
मरण मधुर बन जाता है जैसे वरदान,
अधरों पर खिल जाती है मादक मुस्कान,
नहीं देख सकते जग में अन्याय वितान,
प्राण उच्छवसित होते, होने को बलिदान!
जो घावों पर मरहम का कर देते काम!
उन सा्हृदय हृदयों को मेरे कोटि प्रणाम!
उन्हें जिन्हें है नहीं जगत में अपना काम,
राजा से बन गए भिखारी तज आराम,
दर-दर भीख मांगते सहते वर्षा घाम,
दो सूखी मधुकरियां दे देती विश्राम!
जिनकी आत्मा सदा सत्य का करती शोध,
जिनको है अपनी गौरव-गरिमा का बोध,
जिन्हें दुःखी पर दया, क्रूर पर आता क्रोध,
अत्याचारों का अभीष्ट जिनको प्रतिशोध!
उन्हें प्रणाम! सतत प्रणाम!
People Also ask :-
प्रश्न - सोहनलाल द्विवेदी जी का जन्म कब हुआ था?
उत्तर - सोहनलाल द्विवेदी जी का जन्म 22 फरवरी 1906 ई० को हुआ था।
प्रश्न - सोहनलाल द्विवेदी के गीतों का उद्देश्य क्या रहा है?
उत्तर - उन्होंने गांधी जी को महामानव का स्थान देकर उनके संदेश को अपने काव्य का मूल विषय बनाया और उसे जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास किया। खादी,अहिंसा और सत्याग्रह उनके काव्य का प्रेरक स्वर रहा। सोहनलाल द्विवेदी को युगकवि कहा जाए तो अत्युक्ति ना होगी।
प्रश्न - सोहनलाल द्विवेदी जी प्रकृति की सीख से हमें क्या संदेश देते हैं?
उत्तर - ‘प्रकृति की सीख’ कविता के कवि का नाम सोहनलाल द्विवेदी है। प्रकृति हमें यह संदेश देता है कि सिर उठाकर जीवन में ऊंचे बन जाओ।
प्रश्न - सोहनलाल द्विवेदी जी की मृत्यु कब हुई थी?
उत्तर - सोहन लाल द्विवेदी जी की मृत्यु 1 मार्च 1988 ई० को हुई थी।
प्रश्न - पंडित सोहनलाल द्विवेदी की रचना कौन-कौन सी है?
उत्तर - सोहनलाल द्विवेदी हिंदी के प्रसिद्ध कवि थे। उनकी कृतियां ऊर्जा और चेतना से भरपूर रही हैं। ‘किसान’, ‘भैरवी’, ‘कुणाल’, ‘पूजा गीत’, ‘दूध-बताशा’, आदी उनकी प्रमुख रचनाएं हैं।
प्रश्न - सोहनलाल द्विवेदी जी की भाषा कौन सी थी?
उत्तर - सोहनलाल द्विवेदी जी की भाषा हिंदी थी।
प्रश्न - सोहनलाल द्विवेदी जी की कविता का मुख्य स्वर क्या है?
उत्तर - देश प्रेम की अटूट और अंतरिम भावना उनकी राष्ट्रीय कविता का मूल और मुख्य आधार बनी तथा राष्ट्रोउत्थान उनके गीतों का सर्वोच्च स्वर। द्विवेदी जी बच्चों के महाकवि और बाल साहित्य के जनक के रूप में चर्चित हुए।
प्रश्न - सोहन लाल द्विवेदी द्वारा रचित प्रेम गीत संग्रह कौन सा है?
उत्तर - भैरवी, पूजा गीत, सेवाग्राम, प्रभाती, युगाधार, कुणाल, चेतना, बांसुरी तथा बच्चों के लिए दूधबताशा उनकी प्रमुख रचनाएं हैं। द्विवेदी जी की साहित्य साधना और हिंदी जगत में उनके योगदान को देखते हुए 1969 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री की उपाधि से नवाजा। 29 फरवरी 1988 को उन्होंने अंतिम सांस ली।
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