शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जीवन परिचय || Biography of Shivmangal Singh ‘Suman’ in Hindi
Table of Contents:-
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
जीवनकाल (सन् 1916-2002 ई०)
जीवन परिचय :-
प्रेम-गीतों के मधुर गायक, राष्ट्रीय चेतना के कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का जन्म सन् 1916 ईस्वी में बसंत पंचमी के दिन उत्तर प्रदेश के जिला उन्नाव के झगरपुर नामक गांव में हुआ था। सुमन जी वाल्यावस्था में ही ग्वालियर ( मध्य प्रदेश ) चले गए तथा वहीं उनकी शिक्षा संपन्न हुई। ग्वालियर में ही क्रांतिकारियों के संपर्क में आने से इनके हृदय में भी क्रांति की ज्वाला धधक उठी, जिसके कारण इनकी पढ़ाई में बाधा उत्पन्न हो गई। सन् 1940 ईस्वी में इन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदी में एम.ए. किया, फिर इसी विश्वविद्यालय से डी.लिट्. की उपाधि भी प्राप्त की।
कवि परिचय एक दृष्टि में :-
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का अधिकांश जीवन शिक्षक के रूप में व्यतीत हुआ। कुछ समय तक सुमन जी विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। वे नेपाल में भारतीय दूतावास के सांस्कृतिक सचिव भी रहे। ‘उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान’ के उपाध्यक्ष के रूप में इन्होंने हिंदी की सेवा की।
साहित्यिक परिचय :-
सुमन जी ने छायावाद के अंतिम चरण में काव्य क्षेत्र में प्रवेश किया था। प्रारंभ में ये प्रेम गीत लिखते रहे। धीरे-धीरे इन्हें अनुभव हुआ कि प्रेम से भी अधिक कोई महत्वपूर्ण भाव या विचार है और वह है कर्तव्य। प्रकृति के विशाल क्षेत्र से उठती हुई मानवता की अकुलाहट को इन्होंने सुना और फिर ये देश के राष्ट्रीय आंदोलन से प्रभावित हुए। इनके मन में क्रांति की आग धधक उठी।
सुमन जी की कविताएं हर्ष और पुलक, राग और विराग तथा आशा और उत्साह से परिपूर्ण हैं। प्रगतिवाद और राष्ट्रीय चेतना से परिपूर्ण इनकी अनेक सुंदर रचनाएं हिंदी साहित्य की शोभा बढ़ा रही हैं।
कृतियां :-
‘हिल्लोल’ सुमन जी के प्रेम गीतों का प्रथम काव्य संग्रह है। इसमें हृदय की कोमल भावनाओं का चित्रण किया गया है। ‘जीवन के गान’, ‘युग का मोल’, ‘प्रलय सृजन’, ‘विश्वास बढ़ता ही गया’, ‘विन्ध्य हिमाचल’, ‘मिट्टी की बरात’, ‘वाणी की व्यथा’ एवं ‘कटे अंगूठों की वंदन वारें’ इनके अन्य काव्य संग्रह हैं। इनकी संकलित कविता ‘युगवाणी’ में जीवन की वास्तविकताओं का चित्रण किया गया है।
सुमन जी की क्रांतिकारी भावनाओं से ओत-प्रोत, प्रतिवादी रचनाओं के संग्रह इस प्रकार हैं – ‘जीवन के गान’, ‘प्रलय सृजन’ और ‘विश्वास बढ़ता ही गया”। ‘विन्ध्य हिमाचल’ में देशप्रेम और राष्ट्रीयता की भावनाओं से ओत-प्रोत कविताएं हैं।
‘महादेवी की काव्य साधना’ एवं ‘गीति काव्य : उद्गम और विकास’ इनकी गद्य रचनाएं हैं। इन्होंने ‘प्रकृति पुरुष कालिदास’ नामक एक नाटक की रचना भी की।
शिवमंगल सिंह सुमन की कुछ कविताएं और कविता संग्रह निम्नलिखित हैं–
इनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए इन्हें सरकार और अनेक संस्थाओं ने विभिन्न पुरस्कार एव सम्मान देकर सम्मानित किया, जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्म भूषण, पदम श्री, देवा पुरस्कार, नेहरू पुरस्कार, शिखर सम्मान और भारत भारती पुरस्कार प्रमुख है।
भाषा :- सुमन जी की भाषा प्राजंलता कोमल और लालित्य से परिपूर्ण है।
शैली :- इनकी शैली में प्रसाद और ओज गुण की प्रधानता है। इन्होंने मुक्त छंद भी लिखे हैं और परंपरागत छंदों में भी काव्य रचना की है। इनके गीतों में मस्ती, उल्लास और संगीतात्मकता की प्रचुरता है।
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ को मिले सम्मान एवं पुरस्कार-
• 1974 में साहित्य अकादमी पुरस्कार
• 1999 में पद्म भूषण
• 1974 में पद्म श्री
• 1958 में देवा पुरस्कार
• 1974 में सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार
• 1973 में डी.लिट्. भागलपुर विश्वविद्यालय
• 1983 में डी.लिट् जबलपुर विश्वविद्यालय
• 1993 में शिखर सम्मान और भारत भारती पुरस्कार
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की मृत्यु –
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी का दिल का दौरा पड़ने से 27 नवंबर 2002 में 87 वर्ष की आयु में उज्जैन, मध्य प्रदेश में स्वर्गवास हो गया।
सुमन जी प्रारंभ से साहित्य प्रेमी रहे हैं, उन्हें साहित्य आदि विषयों पर चर्चा करना अच्छा लगता था। उन्होंने साहित्य को कभी भी बोझ नहीं माना। उनका व्यक्तित्व अत्यधिक सरल था। वे अपने प्रशंसकों से कहते थे–
“मैं विद्वान नहीं बन पाया, विद्वता की देहरी पर छू पाया हूं
प्राध्यापक होने के साथ प्रशासनिक कार्यों के दबाव ने मुझे विद्वान बनने से रोक दिया”।
हिंदी साहित्य में स्थान :-
सुमन जी की आरंभिक कविताओं का मुख्य विषय प्रेम रहा है किंतु देश की तत्कालीन परिस्थितियों के अनुरूप स्वतंत्रता की भावना, मानवीय कर्तव्यों, देश प्रेम एवं शोषण से कराहती मानवता ने इनके मन को झकझोर कर रख दिया और प्रेम की कविता के स्थान पर राष्ट्रय प्रेम नकी कविता का मुख्य विषय हो गया। इसके परिणाम स्वरुप इनकी रचनाओं में पूंजीवादी अर्थव्यवस्था और साम्राज्यवाद के विरोधी स्वर मुखर हुए। देश के युवाओं को भारतीय समाज के नव-निर्माण के लिए प्रोत्साहित करने के लिए इन्हें सदैव स्मरण किया जाता रहेगा। हिंदी साहित्य इनके इस योगदान के लिए सदैव ऋणी रहेगा।
शिवमंगल सिंह सुमन जी के पद :-
युगवाणी
हर क्यारी में पद-चिह्न तुम्हारे देखे हैं
हर डाली में मुस्कान तुम्हारी पाई है,
हर कांटे में दुःख-दर्द किसी का कसका है
हर शबनम ने जीवन की प्यास जगाई है।
हर सरिता की लचकीली लहरें डसती हैं
हर अंकुर की आँखों में कोर समाती है,
हर किसलय में अधरों की आभा खिलती है
हर कली हवा में मचल-मचल इठलाती है।
अम्बर में उगतीं सोने-चाँदी की फसलें
ये ज्वार-बाजरे की मस्ती लहराती है
अन्तर में इसका बिम्ब उभरता आता है,
चाँदनी सिन्धु में सौ-सौ ज्वार जगाती है।
मैं कैसे इनकी मोहकता से मुख मोड़ूं,
मैं कैसे जीवन के सौ-सौ धन्धे छोडूं,
दोनों को साथ लिये चलना क्या संभव है?
तन का मन का पावन नाता कैसे तोडूं?
क्या उम्र ढलेगी तो यह सब जाएगा
सूरज चन्दा का पानी गल जल जाएगा,
जिनके बल पर जीने-मरने का स्वर साधा
उनका आकर्षण साँसों को छल जाएगा।
जिस दिन सपनों के मोल-भाव पर उत्तरूँगा
जिस दिन संघषों पर जाली चढ़ जाएगी,
जिस दिन लाचारी मुझपर तरस दिखाएगी
उस दिन जीवन से मौत कहीं बढ़ जाएगी।
इन सबसे बढ़कर भूख बिलखती मिट्टी की
पथ पर पथराई आँखें पास बुलाती हैं,
भगवान भूल में रचकर जिनको भूल गया
जिनकी हड्डी पर धर्म-ध्वजा फहराती है।
इनको भूलूँ तो मेरी मिट्टी मिट्टी है
मेरी आँखों का पानी केवल पानी है,
इनको भूलूँ तो मेरा जन्म अकारथ है
मेरे जीने मरने की मूक कहानी है।
में देख रहा हूँ तुम इनको फिर भूल चले
बातों-बातों में हमें बहुत बहलाते हो,
बेबसी चौखती जब बच्चों की लाशों पर
उसको आजादी की प्रतिध्यनि बतलाते हो।
यों खेल करोगे तुम कब तक असहायों से
कब तक अफीम आशा की हमें खिलाओगे,
बरबाद हो गई फसल कहीं जोती बोई
क्या बैठ अकेले ही मरघट पर गाओगे?
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