तुलसीदास जी की जीवनी, रचनाएं एवं भाषा शैली || biography of Tulsidas in Hindi

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तुलसीदास जी की जीवनी, रचनाएं एवं भाषा शैली || biography of Tulsidas in Hindi

तुलसीदास जी की जीवनी, रचनाएं एवं भाषा शैली || biography of Tulsidas in Hindi

गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय यहां पर सबसे सरल भाषा में लिखा गया है। यह जीवन परिचय कक्षा 9वीं से लेकर कक्षा 12वीं तक के छात्र के लिए महत्वपूर्ण है। इसमें संत कबीरदास के सभी पहलुओं के विषय में चर्चा की गई है, तो इसे कोई भी व्यक्ति भी पढ़ सकता है।

Table of contents –


संक्षिप्त परिचय

जीवन परिचय

साहित्यिक परिचय

कृतियां

भाषा 

शैली 

हिंदी साहित्य में स्थान

तुलसीदास का बचपन

अभावग्रस्त बचपन

तुलसीदास का विवाह

तुलसीदास के गुरु

तुलसीदास का निधन

तुलसीदास की प्रमुख रचनाएं

तुलसीदास का तपस्वी बनना 

तुलसीदास के दोहे

तुलसीदास से संबंधित प्रश्न

FAQ Questions 


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कवि परिचय : एक दृष्टि में


    नाम

गोस्वामी तुलसीदास

      जन्म

1532 ई०

    जन्म स्थान

राजापुर गांव

        मृत्यु

1623 ई०

  मृत्यु का स्थान

काशी

  माता का नाम

हुलसी देवी

  पिता का नाम

आत्माराम दुबे

  बचपन का नाम

रामबोला

  पत्नी का नाम

रत्नावली

  गुरु का नाम

नरहरिदास

      शिक्षा

संत बाबा नरहरिदास ने भक्तों की शिक्षा वेद- वेदांग, दर्शन, इतिहास, पुराण आदि की शिक्षा दी।

      भक्ति

राम भक्ति

प्रसिद्ध महाकाव्य

'रामचरितमानस'

    उपलब्धि

लोकमानस कवि

साहित्य में योगदान

हिंदी साहित्य में कविता की सर्वतोन्मुखी उन्नति


जीवन परिचय:-


लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास भारत के ही नहीं, संपूर्ण मानवता तथा संसार के कवि हैं। उनके जन्म से संबंधित प्रमाणिक सामग्री अभी तक प्राप्त नहीं हो सकी है। इनका जन्म 1532 ई० स्वीकार किया गया है। तुलसीदास जी के जन्म और जन्म स्थान के संबंध को लेकर सभी विद्वानों में पर्याप्त मतभेद हैं। इनके जन्म के संबंध में एक दोहा प्रचलित है


''पंद्रह सौ चौवन बिसै, कालिंदी के तीर।

श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धर्र्यो सरीर।।


तुलसीदास का जन्म बांदा जिले के 'राजापुर' गांव में माना जाता है। कुछ विद्वान इनका जन्म स्थान एटा जिले के सोरो नामक स्थान को मानते हैं। तुलसीदास जी सरयूपारीण ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे एवं माता का नाम हुलसी था। कहा जाता है कि अभुक्त मूल नक्षत्र में जन्म होने के कारण इनके माता-पिता ने इन्हें बाल्यकाल में ही त्याग दिया था। इनका बचपन अनेक कष्टों के बीच व्यतीत हुआ।

इनका पालन-पोषण प्रसिद्ध संत नरहरी दास ने किया और इन्हें ज्ञान एवं भक्ति की शिक्षा प्रदान की। इनका विवाह पंडित दीनबंधु पाठक की पुत्री रत्नावली से हुआ था। इन्हें अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम था और उनके सौंदर्य रूप के प्रति वे अत्यंत आसक्त थे। एक बार इनकी पत्नी बिना बताए मायके चली गई तब ये भी अर्ध रात्रि में आंधी तूफान का सामना करते हुए उनके पीछे-पीछे ससुराल जा पहुंचे। इस पर इनकी पत्नी ने उनकी भर्त्सना करते हुए कहा-


"लाज ना आई आपको दौरे आयेहु साथ"


पत्नी की इस फटकार ने तुलसीदास जी को सांसारिक मोह माया से विरक्त कर दिया और उनके हृदय में श्री राम के प्रति भक्ति भाव जागृत हो उठा। तुलसीदास जी ने अनेक तीर्थों का भ्रमण किया और ये राम के अनन्य भक्त बन गए। इनकी भक्ति दास्य-भाव की थी। 1574 ई० में इन्होंने अपने सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य 'रामचरितमानस' की रचना की तथा मानव जीवन के सभी उच्चादर्शों का समावेश करके इन्होंने राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया। 1623 ई० में काशी में इनका निधन हो गया।


साहित्यिक परिचय:-


तुलसीदास जी महान लोकनायक और श्री राम के महान भक्त थे। इनके द्वारा रचित 'रामचरितमानस' संपूर्ण विश्व साहित्य के अद्भुत ग्रंथों में से एक है। यह एक अद्वितीय ग्रंथ है, जिसमें भाषा, उद्देश्य, कथावस्तु, संवाद एवं चरित्र चित्रण का बड़ा ही मोहक चित्रण किया गया है। इस ग्रंथ के माध्यम से इन्होंने जिन आदर्शों का भावपूर्ण चित्र अंकित किया है, वे युग-युग तक मानव समाज का पथ-प्रशस्त करते रहेंगे।

इनके इस ग्रंथ में श्रीराम के चरित्र का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है। मानव जीवन के सभी उच्च आदर्शों का समावेश करके इन्होंने श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया है। तुलसीदास जी ने सगुण-निर्गुण, ज्ञान भक्ति, शैव-वैष्णव और विभिन्न मतों एवं संप्रदायों में समन्वय के उद्देश्य से अत्यंत प्रभावपूर्ण भावों की अभिव्यक्ति की।


कृतियां (रचनाएं):-


महाकवि तुलसीदास जी ने 12 ग्रंथों की रचना की। इनके द्वारा रचित महाकाव्य 'रामचरितमानस' संपूर्ण विश्व के अद्भुत ग्रंथों में से एक है। इनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं-


1. रामलला नहक्षू - गोस्वामी तुलसीदास ने लोकगीत की 'सोहर' शैली में इस ग्रंथ की रचना की थी। यह इनकी प्रारंभिक रचना है।


2. वैराग्य संदीपनी - इसके तीन भाग हैं, पहले भाग में 6 छंदों में 'मंगलाचरण' है तथा दूसरे भाग में 'संत-महिमा वर्णन' एवं तीसरे भाग में 'शांति भाव वर्णन' है।


3. रामाज्ञा प्रश्न - यह ग्रंथ 7 सर्गो में विभाजित है, जिसमें शुभ-अशुभ शकुनों का वर्णन है। इसमें राम कथा का वर्णन किया गया है।


4. जानकी मंगल -  इसमें कवि ने श्री राम और जानकी के मंगलमय विवाह उत्सव का मधुर वर्णन किया गया है।


5. रामचरितमानस - इस विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के संपूर्ण जीवन के चरित्र का वर्णन किया गया है।


6. पार्वती मंगल - यह मंगल काव्य है, इसमें पूर्वी अवधि में 'शिव पार्वती के विवाह' का वर्णन किया गया है। गेय पद होने के कारण इसमें संगीतात्मकता का गुण भी विद्दमान है।


7. गीतावली - इसमें 230 पद संकलित है, जिसमें श्री राम के चरित्र का वर्णन किया गया है। कथानक के आधार पर ये पद सात कांडों में विभाजित है।


8. विनय पत्रिका - इसका विषय भगवान श्रीराम को कलयुग के विरुद्ध प्रार्थना पत्र देना है। इसमें तुलसी भक्त और दार्शनिक कवि के रूप में प्रतीत होते हैं। इसमें तुलसीदास की भक्ति-भावना की पराकाष्ठा देखने को मिलती है।


9.गीतावली - इसमें 61 पदों में कवि ने बृजभाषा में श्रीकृष्ण के मनोहारी रूप का वर्णन किया है।


10. बरवै-रामायण - यह तुलसीदास की स्फुट रचना है, जिसमें श्री राम कथा संक्षेप में वर्णित है। बरवै छंदों में वर्णित इस लघु काव्य में अवधि भाषा का प्रयोग किया गया है।


11. दोहावली - इस संग्रह ग्रंथ में कवि की सूक्ति शैली के दर्शन होते हैं। इसमें दोहा शैली में नीति, भक्ति और राम महिमा का वर्णन है।


12. कवितावली - इस कृति में कवित्व और सवैया शैली में राम कथा का वर्णन किया गया है। यह ब्रज भाषा में रचित श्रेष्ठ मुक्तक काव्य है।


काव्यगत विशेषताएं –


(अ) भावपक्ष


महाकवि तुलसी ने अपनी अधिकांश कृतियों में श्री राम के अनुपम गुणों का गान किया है। शील, शक्ति और सौंदर्य के भंडार मर्यादा पुरुषोत्तम राम इनके इष्ट देव हैं। तुलसी अपना संपूर्ण जीवन उन्हीं के गुणगान में लगा देना चाहते हैं।

तुलसी की भक्ति दास्य भाव की है। इन्होंने स्वयं को श्री राम का दास और अपना स्वामी माना है। ये राम को बहुत बड़ा और स्वयं को दीन-हीन व महापतित मानते हैं। अपने उद्धार के लिए ये प्रभु भक्ति की याचना करते हैं। यथा –

मांगत तुलसीदास कर जोरे। बसहु राम सिय मानस मोरे।।

तुलसी ने समग्र ग्रंथों की रचना 'स्वान्तःसुखाय' अर्थात् अपने अंतःकरण के सुख के लिए की है। इन्होंने लिखा है –

स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा।

तुलसीदास जी समन्वय भावना के साधक हैं। इन्होंने सगुण-निर्गुण, ज्ञान-भक्ति, शैव-वैष्णव और विभिन्न मतों व संप्रदायों में समन्वय स्थापित किया। निर्गुण और सगुण को एक माना है। यथा –

अगुनहिं सगुनहिं नहिं कछु भेदा। गावहिं मुनि पुरान बुध वेदा।।


तुलसी के काव्य में विभिन्न रसों का सुंदर परिपाक हुआ है। यद्यपि इनके काव्य में शांत रस प्रमुख है, तथापि श्रृंगार रस की अद्भुत छटा भी दर्शनीय है। श्रीराम और सीता के सौंदर्य, मिलन तथा विरह के प्रसंगों में श्रंगार का उत्कृष्ट रूप उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त, करूण, रौद्र, वीभत्स, भयानक, वीर, अद्भुत एवं हास्य रसों का भी प्रयोग किया गया है। इस प्रकार तुलसी का काव्य सभी रसों का अद्भुत संगम है।

तुलसी के काव्य में दार्शनिक तत्वों की व्याख्या उत्तम रूप में की गई है। ब्रह्म, जीव, जगत और माया जैसे गूढ़ दार्शनिक पहलुओं पर कवि ने अपने विचार बड़े ही प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किए हैं।


(ब) कलापक्ष 


भाषा –


तुलसीदास की भाषा पर विचार करने से यह ज्ञात होता है कि इनकी भाषा-सामर्थ्य अद्भुत है। भाषा प्रयोग में तुलसीदास की समता का कवि हिंदी साहित्य में दूसरा नहीं है। तुलसीदास की भाषा में विविधता और पूर्णता के दर्शन होते हैं –

तुलसीदास ने अपने रामचरितमानस की भूमिका में लिखा है–

''स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा।

भाषा निबंध मति मंजुलमातनोति।।''


तुलसीदास के उक्त कथन में इनकी रामकथा के विभिन्न स्रोतों की ओर संकेत तो है ही, साथ ही इसमें तुलसीदास के भाषा ज्ञान का संकेत भी निहित है। इन्होंने 'श्रीरामचरितमानस' की रचना जिस भाषा में की है, वह अवधी है, किंतु इन्हें अन्य भाषाओं का भी ज्ञान था। इनकी 'कवितावली' में ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग हुआ है। इसी प्रकार श्रीकृष्णगीतावली की रचना भी ब्रजभाषा में हुई है। श्रीरामचरितमानस प्रधान रूप से अवधि की रचना होते हुए भी इसमें ब्रज का पुट भी प्राप्त होता है। साथ ही संस्कृत का प्रयोग भी इसमें हुआ है। इसके अतिरिक्त तुलसीदास को प्राकृत एवं अपभ्रंश का भी ज्ञान था। यद्यपि अवधि और ब्रजभाषा इन्हें परंपरा से प्राप्त हुई परन्तु अवधी बोली को साहित्य के आसन पर प्रतिष्ठित करने में इनका योगदान सर्वोपरि है।

तुलसीदास संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे, अतः इनके साहित्य में तत्सम शब्दावली का प्रयोग प्रचुर परिमाण में हुआ है, किंतु तद्भव और देशज शब्दों का इनके काव्य में नितांत अभाव नहीं है। साथ ही विदेशी शब्दावली (अरबी-फारसी इत्यादि के शब्दों) का तुलसीदास ने सर्वथा त्याग नहीं किया है। इनके काव्य में जहां तद्भव शब्दों; यथा – बांझ,अहेर,नैहर,गांठि इत्यादि का प्रयोग है, वहीं साहिब, गरीब फौज इत्यादि अरबी शब्दों का खजाना, शहनाई, बाजार, दरबार इत्यादि फारसी शब्दों का भी प्रयोग तुलसीदास ने किया है। इन्होंने अपनी भाषा में मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग भी किया है।


शैली –


शैली की दृष्टि से तुलसीदास जी के काव्य में विविधता के दर्शन होते हैं। तुलसी ने अपनी रचनाओं में सभी शैलियों का प्रयोग किया है। इनकी शैली की प्रमुख विशेषताएं हैं – स्वाभाविकता, सरलता, सरसता और नाटकीयता। तुलसीदास के काव्य में जिन विविध शैलियों के दर्शन होते हैं, वे हैं –


दोहा चौपाई पद्धति – रामचरितमानस में प्रयुक्त

कवित्त सवैया पद्धति – कवितावली में प्रयुक्त

दोहा पद्धति – दोहावली में प्रयुक्त

गेयपद शैली – विनय पत्रिका और गीतावली में प्रयुक्त

स्रोत्र शैली – रामचरितमानस और विनय पत्रिका में प्रयुक्त 

लोकगीत शैली – रामलला नहक्षू तथा पार्वती मंगल में प्रयुक्त


हिंदी साहित्य में स्थान -


गोस्वामी तुलसीदास हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं, इन्हें समाज का पथ प्रदर्शक कवि कहा जाता है। इसके द्वारा हिंदी कविता की सर्वतोमुखी उन्नति हुई। मानव प्रकृति के जितने रूपों का सजीव वर्णन तुलसीदास जी ने किया है, उतना अन्य किसी कवग ने नहीं किया। तुलसीदास जी को मानव जीवन का सफल पारखी कहा जा सकता है। वास्तव में, तुलसीदास जी हिंदी के अमर कवि हैं, जो युगों-युगों तक हमारे बीच जीवित रहेंगे।


तुलसीदास का बचपन -


जन्म लेने के बाद प्रायः सभी शिशु रोया ही करते हैं। लेकिन जन्म लेने के बाद तुलसीदास ने जो पहला शब्द बोला वह राम था। आता उनका घर का नाम ही रामबोला पड़ गया। मां तो जन्म देने के बाद दूसरे ही दिन चल बसी। बाप ने किसी और अनिष्ट से बचने के लिए बालक को चुनिया मां की एक दासी को सौंप दिया। और स्वयं विरक्त हो गए जब रामबोला 5 वर्ष का हुआ तो चुनिया भी नहीं रही। वो गली-गली भटकता हुआ अनाजों की तरह जीवन जीने को विवश हो गया। इस तरह तुलसी का बचपन बड़े कष्टों में बीता।


अभावग्रस्त बचपन -


माता-पिता दोनों चल बसे और इन्हें भीख मांग कर अपना पेट पालना पड़ा। इसी बीच इनका परिचय राम भक्त साधुओं से हुआ और इन्हें ज्ञानार्जन का अनुपम अवसर मिल गया। तुलसी भ्रमण करते रहे और इस प्रकार समाज की तत्कालीन स्थिति से इनका सीधा संपर्क हुआ। इसी दीर्घकालीन अनुभव और अध्ययन का परिणाम तुलसी की अमूल्य कृतियां हैं, जो उस समय के भारतीय समाज के लिए उन्नायक सिद्ध हुई। आज भी जीवन को मर्यादित करने के लिए उतने ही उपयोगी हैं। तुलसी द्वारा रचित ग्रंथों की संख्या 39 बताई जाती है। इसमें रामचरितमानस, विनय पत्रिका, दोहावली, कवितावली, जानकी मंगल, हनुमान चालीसा, बरवै रामायण आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय है।


तुलसीदास का विवाह -


रामशैल पर रहनेवाले नरहरि बाबा ने इस रामबोला के नाम से बहुत चर्चित हो चुके इस बालक को ढूंढना और विधिवत उसका नाम तुलसीराम रखा। तदुपरान्त वे उसे अयोध्या, उत्तर प्रदेश ले गए। वहां राम मंत्र की दीक्षा दी और अयोध्या में ही रहकर उसे विद्या अध्ययन कराया। बालक रामबोला की वृद्धि बड़ी प्रखर थी। वह एक ही बार में गुरु मुख से जो सुन लेता उसे वह याद हो जाता। 29 वर्ष की आयु में राजापुर में थोड़ी ही दूर यमुना के उस पार स्थित एक गांव की अति सुंदरी भारद्वाज गोत्र की कन्या रत्नावली के साथ उनका विवाह हुआ। तुलसीदास जी वा रत्नावली दोनों का बहुत सुंदर जोड़ा था। दोनों विद्वान थे। दोनों का सरल जीवन चल रहा था। परंतु विवाह के कुछ समय बाद रत्नावली अपने भाई के साथ मायके चली गई तब उनका वियोग तुलसी जी के लिए असहनीय हो गया था। एक दिन रात को वे अपने को रोक नहीं पाए और और अंधेरी रात में तेज बरसात में ही एक लाश को लकड़ी का लट्ठा समझकर उफनती यमुना नदी तैरकर पार कर गए। और रत्नावली के गांव पहुंच गए वहां रत्नावली के मायके के घर के पास पेड़ पर लटके सांप को रस्सी समझकर ऊपर चल गए और उसके कमरे में पहुंच गए।


इस पर इतना बलि ने उन्हें बहुत धिक्कार है और भाव भरे मार्मिक लहजे में अपने द्वारा रचित दोहा सुनाया - 


अस्थि चर्म में देय यह , ता सो ऐसी प्रीति

नेकु जो होती राम से, तो काहे भव - भीत ? "


अर्थात् मेरे इस हाड़-मास के शरीर के प्रति जितनी आसक्तिक है उसकी आधी भी अगर प्रभु से होती तो तुम्हारा जीवन संवर गया होता। यह सुनकर तुलसीदास सन्न रह गए। उसके हृदय में यह बात गहरे तक उतर गई। और उसके ज्ञान नेत्र खुल गए उनको अपनी मूर्खता का एहसास हो गया वे एक क्षण भी रुके बिना वहां से चल दिए। और उनका हृदय परिवर्तन हो गया इन्हीं शब्दों की शक्ति पाकर सुनती दास को महान गोस्वामी तुलसीदास बना दीया।


तुलसीदास के गुरु -


गोस्वामी जी श्री संप्रदाय के आचार्य रामानंद की शिष्य परंपरा में थे। इन्होंने समय को देखते हुए लोक भाषा में रामायण लिखा। इसमें ब्याज से वर्णाश्रमधर्म, अवतारवाद, साकार उपासना, सगुणवाद, गो ब्राह्मण रक्षा, देवादि विविध योनियों का यथोचित सम्मान एवं प्राचीन संस्कृति और वेद मार्ग का मंडल और साथ ही उस समय के विधर्मी अत्याचारों और सामाजिक दोषों की एक पंथवाद आलोचना की गई है। गोस्वामी जी पंत व संप्रदाय चलाने की विरोधी थे। उन्होंने ब्याज से भ्रातप्रेम, स्वराज्य के सिद्धांत, रामराज्य का आदर्श, अत्याचारों से बचने और शत्रु पर विजय होने के उपाय सभी राजनीतिक बातें खुले शब्दों में उसे कड़ी जासूसी के जमाने में भी बतलायीं। परंतु उन्हें राज्याज्श्रय प्राप्त ना था। रामचरितमानस का राजनीतिक उद्देश्य तय नहीं हो पाया।


तुलसीदास का निधन -


पत्नी की इस फटकार ने तुलसीदास जी को सांसारिक मोह माया से विरक्त कर दिया और उनके हृदय में श्री राम के प्रति भक्ति भाव जागृत हो उठा। तुलसीदास जी ने अनेक तीर्थों का भ्रमण किया और ये राम के अनन्य भक्त बन गए। इनकी भक्ति दास्य-भाव की थी। 1574 ई० में इन्होंने अपने सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य 'रामचरितमानस' की रचना की तथा मानव जीवन के सभी उच्चादर्शों का समावेश करके इन्होंने राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया। 1623 ई० में काशी में इनका निधन हो गया।


तुलसीदास की प्रमुख रचनाएं क्या थीं?


रचनाएं :- महाकवि तुलसीदास जी ने 12 ग्रंथों की रचना की। इनके द्वारा रचित महाकाव्य 'रामचरितमानस' संपूर्ण विश्व के अद्भुत ग्रंथों में से एक है। इनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं-


1. रामलला नहक्षू- गोस्वामी तुलसीदास ने लोकगीत की 'सोहर' शैली में इस ग्रंथ की रचना की थी। यह इनकी प्रारंभिक रचना है।


2. वैराग्य संदीपनी- इसके तीन भाग हैं, पहले भाग में 6 छंदों में 'मंगलाचरण' है तथा दूसरे भाग में 'संत-महिमा वर्णन' एवं तीसरे भाग में 'शांति भाव वर्णन' है।


3. रामाज्ञा प्रश्न- यह ग्रंथ 7 सर्गो में विभाजित है, जिसमें शुभ-अशुभ शकुनों का वर्णन है। इसमें राम कथा का वर्णन किया गया है।


4. जानकी मंगल-  इसमें कवि ने श्री राम और जानकी के मंगलमय विवाह उत्सव का मधुर वर्णन किया गया है।


5. रामचरितमानस- इस विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के संपूर्ण जीवन के चरित्र का वर्णन किया गया है।


6. पार्वती मंगल- यह मंगल काव्य है, इसमें पूर्वी अवधि में 'शिव पार्वती के विवाह' का वर्णन किया गया है। गेय पद होने के कारण इसमें संगीतात्मकता का गुण भी विद्दमान है।


7. गीतावली- इसमें 230 पद संकलित है, जिसमें श्री राम के चरित्र का वर्णन किया गया है। कथानक के आधार पर ये पद सात कांडों में विभाजित है।


8. विनय पत्रिका- इसका विषय भगवान श्रीराम को कलयुग के विरुद्ध प्रार्थना पत्र देना है। इसमें तुलसी भक्त और दार्शनिक कवि के रूप में प्रतीत होते हैं। इसमें तुलसीदास की भक्ति-भावना की पराकाष्ठा देखने को मिलती है।


9.गीतावली- इसमें 61 पदों में कवि ने बृजभाषा में श्रीकृष्ण के मनोहारी रूप का वर्णन किया है।


10. बरवै-रामायण- यह तुलसीदास की स्फुट रचना है, जिसमें श्री राम कथा संक्षेप में वर्णित है। बरवै छंदों में वर्णित इस लघु काव्य में अवधि भाषा का प्रयोग किया गया है।


11. दोहावली- इस संग्रह ग्रंथ में कवि की सूक्ति शैली के दर्शन होते हैं। इसमें दोहा शैली में नीति, भक्ति और राम महिमा का वर्णन है।


12. कवितावली- इस कृति में कवित्व और सवैया शैली में राम कथा का वर्णन किया गया है। यह ब्रज भाषा में रचित श्रेष्ठ मुक्तक काव्य है।


तुलसीदास का तपस्वी बनना –


तुलसीदास जी का तपस्वी और जीवन की मोह माया को त्याग देने के संबंध में एक प्रसंग बहुत प्रचलित है।


तुलसीदास जी का विवाह बुद्धिमती नाम की लड़की से 1526 ईसवी में हो गया था। बुद्धिमती को लोग रत्नावली के नाम से अधिक जानते थे।


विवाह के पश्चात तुलसीदास जी अपनी पत्नी के साथ राजापुर नामक स्थान में रहा करते थे। तुलसीदास और रत्नावली दंपत्ति का 1 पुत्र था जिसका नाम तारक था। लेकिन किसी कारणवश बहुत ही कम उम्र में तारक की मृत्यु शयन अवस्था में हो गई थी।


पुत्र की मृत्यु के बाद तुलसीदास जी का अपनी पत्नी से लगाव कुछ अधिक ही बढ़ गया था। तुलसीदास जी किसी भी हालत में अपनी पत्नी से अलगाव सहन नहीं कर सकते थे।


दुख से पीड़ित तुलसीदास जी की पत्नी एक दिन बिना बताए अपने मायके चली गईं। जब तुलसीदास जी को इसके बारे में पता चला तो वह रात को चुपके से अपनी पत्नी से मिलने ससुराल पहुंच गए।


यह सब देख रत्नावली बहुत ही ज्यादा शर्म की भावना महसूस हुई और रत्नावली ने तुलसीदास जी से कहा "ये मेरा शरीर जो मांस और हड्डियों से बना है। जितना मोह आप मेरे साथ रख रहे हैं अगर उतना ध्यान भगवान राम पर देंगे तो आप संसार की मोह माया को छोड़ अमरता और शाश्वत आनंद प्राप्त करेंगे।


अपनी पत्नी की यह बात तुलसीदासजी को एक हृदयाघात करती हुई एक तीर की तरह चुभी और उन्होंने घर को त्यागने का मन बना लिया। उसके बाद तुलसीदास जी घर छोड़कर तपस्वी बन गए। तपस्वी बनकर तीर्थ स्थानों का भ्रमण करने लगे।


14 साल तक विभिन्न स्थानों का भ्रमण कर अंत में तुलसीदास जी वाराणसी पहुंचे। वाराणसी पहुंचकर तुलसीदास आश्रम बनाकर रहनेलगे और लोगों को धर्म, कर्म, शास्त्र शिक्षा देने लगे।


दोहे –

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हरो चरहिं, तापहिं बरत, फरे पसारहिं हाथ,                 

तुलसी स्वारथ मीत सब,परमारथ रघुनाथा ।।


मान राखिबो, माँगिबो, पियसों नित नव नेहु। 

तुलसी तीनिउ तब फबैं, जौ चातक मत लेहु।। 


नहिं जाचत, नहिं संग्रही, सीस नाइ नहिं लेइ।

ऐसे मानी माँगनेहिं, को बारिद बिन देइ।। 


चरन चोंच लोचन रँगौ, चलौ मराली चाल। 

छीर-नीर बिबरन समय, बक उघरत तेहि काल।। 


आपु आपु कहँ सब भलो, अपने कहँ कोइ कोइ। तुलसी सब कहँ जो भलो, सुजन सराहिय सोइ।। 


ग्रह, भेषज, जल, पवन, पट, पाइ कुजोग सुजोग।

होइ कुबस्तु सुबस्तु जग, लखहिं सुलच्छन लोग।।


जो सुनि समुझि अनीतिरत, जागत रहै जु सोइ।

उपदेसिबो जगाइबो, तुलसी उचित न होइ।


बरषत हरषत लोग सब, करषत लखै न कोई।

तुलसी प्रजा-सुभाग तें भूप भानु सो होइ ।। 


मंत्री, गुरु अरु बैद जो, प्रिय बोलहिं भय आस। 

राज धरम तन तीनि कर, होइ बेगिही नास।।


तुलसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन। 

अब तौ दादुर बोलिहैं, हमैं पूछिहैं कौन।। 


तुलसीदास से संबंधित प्रश्न –


तुलसीदास का पूरा नाम क्या था?

तुलसीदास का पूरा नाम गोस्वामी तुलसीदास जी था।


तुलसीदास का जन्म कब हुआ था?

लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास भारत के ही नहीं, संपूर्ण मानवता तथा संसार के कवि हैं। उनके जन्म से संबंधित प्रमाणिक सामग्री अभी तक प्राप्त नहीं हो सकी है। इनका जन्म 1532 ई० स्वीकार किया गया है। तुलसीदास जी के जन्म और जन्म स्थान के संबंध को लेकर सभी विद्वानों में पर्याप्त मतभेद हैं।


तुलसीदास के माता पिता का क्या नाम था?

तुलसीदास जी के माता का नाम हुलसी देवी था तथा पिता का नाम आत्माराम दुबे था।


तुलसीदास का जन्म कहां हुआ था?

तुलसीदास का जन्म बांदा जिले के 'राजापुर' गांव में माना जाता है। कुछ विद्वान इनका जन्म स्थान एटा जिले के सोरो नामक स्थान को मानते हैं। तुलसीदास जी सरयूपारीण ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे एवं माता का नाम हुलसी था। कहा जाता है कि अभुक्त मूल नक्षत्र में जन्म होने के कारण इनके माता-पिता ने इन्हें बाल्यकाल में ही त्याग दिया था। इनका बचपन अनेक कष्टों के बीच व्यतीत हुआ।


तुलसीदास जी को गोस्वामी क्यों कहा जाता है?

गोस्वामी का मतलब है इंद्रियों का स्वामी अर्थात जिसने इंद्रियों को वश में कर लिया हो, यानी जीतेंद्रिय। तुलसीदास जी पत्नी के ठिकाने पर सांसारिक मोहमाया से विरक्त होकर सन्यासी हो गए। अर्थात् जीतेंद्रिय या गोस्वामी हो गए। इसे परिपेक्ष्य में तुलसीदास जी को गोस्वामी की उपाधि से विभूषित किया जाने लगा।


तुलसीदास जी का जन्म कौन से गांव में हुआ था?

तुलसीदास का जन्म उत्तर प्रदेश के कासगंज में सोरों शूकर क्षेत्र में हुआ था।


तुलसीदास की मृत्यु तिथि क्या थी?

इनकी मृत्यु तिथि 1623 ईस्वी वाराणसी में हुई थी।


तुलसीदास जी की पत्नी का क्या नाम था?

उनकी धर्मपत्नी का नाम हुलसी था।


Frequently Asked Questions (FAQ) –


प्रश्न - तुलसीदास जी का जीवन परिचय कैसे लिखा जाता है?

उत्तर - तुलसीदास जी सरयूपारीण ब्राह्मण थे। उनके पिता का नाम आत्माराम दुबे एवं माता का नाम हुलसी देवी था। कहा जाता है कि अभुक्त मूल नक्षत्र में जन्म होने के कारण इनके माता-पिता ने इन्हें बाल्यकाल में ही त्याग दिया था। इनका बचपन अनेक कष्टों के बीच व्यतीत हुआ।


प्रश्न - तुलसीदास का जन्म कब और कहां हुआ था?

उत्तर - तुलसीदास का जन्म चित्रकूट जिले के राजापुर में संवत् 1554 की श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन हुआ था। उनके पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी देवी था। ऐसा कहा जाता है कि उनका जन्म माता के गर्भ में 12 महीने रहने के बाद हुआ और जन्मते ही उनके मुख से रूदन के स्थान पर राम शब्द का उच्चारण हुआ था।


प्रश्न - तुलसीदास की प्रमुख रचनाएं कौन-कौन सी हैं?

उत्तर - अपने दीर्घ जीवन काल में तुलसीदास ने काल क्रमानुसार निम्नलिखित काल जयी ग्रंथों की रचनाएं की –

रामलला नहक्षू, वैराग्य संदीपनी, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, गीतावली, विनय पत्रिका, रामचरितमानस, कृष्ण गीतावली, बरवै रामायण, दोहावली और कवितावली।


प्रश्न - तुलसीदास जी की मृत्यु कब हुई थी?

उत्तर - तुलसीदास जी की मृत्यु सन 1623 ईस्वी में हुई थी।


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