सरदार पूर्ण सिंह का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय एवं भाषा शैली || Sardar Purn Singh ka Jivan Parichay

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सरदार पूर्ण सिंह का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय एवं भाषा शैली || Sardar Purn Singh ka Jivan Parichay

सरदार पूर्ण सिंह का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय एवं भाषा शैली || Sardar Purn Singh ka Jivan Parichay

सरदार पूर्णसिंह

(जीवनकाल : सन् 1881-1931 ई०)

सरदार पूर्णसिंह का जीवन परिचय यहां पर सबसे सरल भाषा में लिखा गया है। यह जीवन परिचय कक्षा 9वीं से लेकर कक्षा 12वीं तक के छात्र के लिए महत्वपूर्ण है। इसमें सरदार पूर्णसिंह के सभी पहलुओं के विषय में चर्चा की गई है, तो इसे कोई भी व्यक्ति भी पढ़ सकता है।

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जीवन-परिचय –


सरदार पूर्णसिंह का जन्म एब्टाबाद जिले के एक संपन्न एवं प्रभावशाली परिवार में सन् 1881 ईस्वी में हुआ था। 


कवि परिचय : एक दृष्टि में -


नाम

सरदार पूर्णसिंह

जन्म

सन् 1881 ईस्वी

जन्म-स्थान

एबटाबाद

प्रारंभिक शिक्षा

रावलपिंडी

लेखन-विधा 

निबंध

भाषा-शैली

भाषा - सौष्ठव, शुद्ध खड़ीबोली।

शैली - भावात्मक, विचारात्मक वर्णनात्मक।

प्रमुख रचनाएं

सच्ची वीरता, आचरण की सभ्यता, मजदूरी और प्रेम, अमेरिका का मस्त योगी वाल्ट व्हिटमैन, कन्यादान, पवित्रता।

निधन

सन् 1931 ईस्वी

साहित्य में स्थान

सरदार पूर्णसिंह हिंदी निबंधकारों की प्रथम पंक्ति में उच्च स्थान पर सुशोभित हैं।


इनकी मैट्रिक तक की शिक्षा रावलपिंडी में हुई और इंटरमीडिएट की परीक्षा इन्होंने लाहौर से उत्तीर्ण की। इस परीक्षा के पश्चात वे रसायन शास्त्र के अध्ययन के लिए जापान गए और वहां 3 वर्ष तक 'एंपीरियल यूनिवर्सिटी' में अध्ययन किया। यहीं इनकी भेंट स्वामी रामतीर्थ से हुई और वे सन्यासी का-सा जीवन व्यतीत करने लगे। इसके पश्चात विचारों में परिवर्तन होने पर इन्होंने गृहस्थ धर्म स्वीकार किया और देहरादून के 'फॉरेस्ट कॉलेज' में अध्यापक हो गए। यहीं से 'अध्यापक' शब्द उनके नाम के साथ जुड़ गया। जीवन के अंतिम दिनों में अध्यापक पूर्णसिंह ने खेती भी की। मार्च सन् 1931 ईस्वी में इनका निधन हो गया।


साहित्यिक परिचय –


अध्यापक पूर्णसिंह भावात्मक निबंधों के जन्मदाता और उत्कृष्ट गद्यकार थे। पूर्णसिंह जी विराट् हृदय साहित्यकार थे। इनके हृदय में भारतीयता की विचारधारा कूट-कूटकर भरी हुई थी। इनका संपूर्ण साहित्य भारतीय संस्कृति और सभ्यता से प्रेरित होकर रचा गया है।


अध्यापक पूर्णसिंह ने प्रायः सामाजिक और आचरण संबंधी विषयों पर निबंधों की रचना की है। इनके लेखन में जहां विचारशीलता है, वहीं भावुकता के तत्व भी विद्यमान हैं। विचारशीलता के साथ भावुकता ने मिलकर इनके लेखन को आकर्षक और प्रभावपूर्ण बना दिया है।


कृतियां –


सरदार पूर्णसिंह के हिंदी में कुल 6 निबंध उपलब्ध हैं– 


सच्ची वीरता, आचरण की सभ्यता, मजदूरी और प्रेम, अमेरिका का मस्त योगी वाल्ट व्हिटमैन, कन्यादान, पवित्रता।


पंजाबी कृतियां - 


अवि चल जोत, खुले मैदान, खुले खुंड, मेरा सांई, कविदा दिल कविता । 


अन्य - 


वीणाप्लेयर्स, गुरु गोविंदसिंह, दी लाइफ एंड टीचिंग्स ऑफ़ श्री गुरु तेज, ऑन दि पाथ्स ऑव लाइफ, स्वामी रामतीर्थ महाराज की असली जिंदगी पर तैराना नजर इत्यादि ।


सरदार पूर्ण सिंह के हिंदी में कुल 6 निबंध उपलब्ध है।


• सच्ची वीरता 

• आचरण की सभ्यता 

• मजदूरी और प्रेम 

• अमेरिका का ग्रस्त योगी वाल्ट ह्रिटमैन

• कन्यादान

• पवित्रता


इन्हीं निबंधों के बल पर इन्होंने हिंदी गद्य साहित्य के क्षेत्र में स्थान बना लिया। इन्होंने निबंध रचना के लिए मुख्य रूप से नैतिक विषयों को ही चुना। इनके निबंध मुख्यता भावनात्मक शैली में है जिसमें विचारों के सूत्र जुड़े हुए हैं। इन 6 निबंधों के बल पर सरदार पूर्ण सिंह जी ने अपना एक विशेष स्थान लेखकों के रूप में दर्ज किया है।


भाषा-शैली :


भाषा – मात्र छः निबंधों के लेखक होते हुए भी सरदार पूर्णसिंह हिंदी-साहित्यकारों की प्रथम पंक्ति में गिने जाते हैं। इसका श्रेय विशेष रूप से उनके भाषा-सौष्ठव को दिया जाता है।


एक सफल चित्रकार की भांति अध्यापक पूर्णसिंह जी शब्दों की सहायता से एक परिपूर्ण चित्र पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर देते हैं।


इनकी भाषा शुद्ध खड़ीबोली है, किंतु इसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ फारसी और अंग्रेजी के शब्द भी यथास्थान प्रयुक्त हुए हैं। इन्हें किसी शब्द-विशेष से मोह नहीं है। वह तो उसी शब्द का प्रयोग कर देते हैं, जो शैली के प्रवाह में स्वाभाविक रूप से व्यक्त हो जाता है।


शैली – 


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भावात्मक शैली - अध्यापक पूर्व सिंह ने प्रायः भावात्मक निबंध लिखे हैं, इसीलिए उनकी शैली में भावात्मकता और काव्यात्मकता स्थान-स्थान पर मिलती है। यहां तक कि इनके विचार भी भावुकता में लिपटे हुए ही व्यक्त होते हैं।


विचारात्मक शैली -  विषय की गंभीरता के साथ इनकी शैली में विचारात्मकता का गुण भी देखने को मिलता है। ऐसे स्थानों पर संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है और वाक्य लंबे हो गए हैं।


वर्णनात्मक शैली - अध्यापक पूर्णसिंह जी द्वारा प्रयुक्त वर्णनात्मक शैली अपेक्षाकृत अधिक सुबोध और सरल है। इस शैली के वाक्य छोटे-छोटे हैं। विषय का चित्रण बड़ी मार्मिकता के साथ हुआ है। यह शैली अधिक प्रवाहमयी और ह्रदय ग्राहणी भी है।


सूत्रात्मक शैली - अपने कथन को स्पष्ट करने से पहले अध्यापक पूर्णसिंह उसे सूत्र रूप में कह देते हैं और फिर उसकी व्याख्या करते हैं। उनके ये सूत्र वाक्य सूक्तियों का-सा आनंद प्रदान करते हैं।


व्यंग्यात्मक शैली - पूर्ण सिंह जी के निबंधों के विषय प्रायः गंभीर हैं, फिर भी इनके निबंधों में हास्य और व्यंग का पुट आ गया है।


हिंदी-साहित्य में स्थान -


मात्र 6 निबंध लिखकर ही सरदार पूर्णसिंह हिंदी निबंधकारों की प्रथम पंक्ति में उच्च स्थान पर सुशोभित हैं। वे सच्चे अर्थों में एक साहित्यिक निबंधकार थे। पूर्ण सिंह हिंदी व पंजाबी भाषा के पाठकों में समान रूप से लोकप्रिय हुए। अपने महान् दार्शनिक व्यक्तित्व एवं विलक्षण कृतित्व के लिए वे सदैव स्मरणीय बने रहेंगे।


शिक्षा –


पूर्ण सिंह की प्रारंभिक शिक्षा तहसील हवेलिया में हुई यहां मस्जिद के मौलवी से उन्होंने उर्दू पढ़ी और सिक धर्मशाला के भाई बेलासिंह से गुरुमुखी सीखी। रावलपिंडी के मिशन हाई स्कूल से 1897 में प्रवेश परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। सन 1899 में डी.ए.वी कॉलेज, लाहौर; 28 सितंबर 1900 को वे टोक्यो विश्वविद्यालय जापान के फैकल्टी ऑफ मेडिसिन में औषधि निर्माण संबंधी रसायन का अध्ययन करने के लिए 'विशेष छात्र' के रूप में प्रविष्ट हो गए और वहां उन्होंने 3 वर्ष तक अध्ययन किया।


सरदार पूर्ण सिंह की भाषागत विशेषताएं - 


मात्र 6 निबंधों के लेखक होते हुए भी सरदार पूर्ण सिंह हिंदी साहित्यकारों की प्रथम पंक्ति में गिने जाते हैं। इनका श्रेय विशेष रूप से उनके भाषा सौष्ठव को दिया जाता है इनकी भाषा की विशेषताएं इस प्रकार है - 


विषय को मूर्तिमान करने की अद्भुत क्षमता - 


पूर्ण सिंह की भाषा में विषय की मूर्तिमान करने की अद्भुत क्षमता है। एक सफल चित्रकार की भांति वह शब्दों की सहायता से एक परिपूर्ण चित्र पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर देते हैं। विचारों की दृष्टि से वह पूर्ण भारतीय हैं उन्हें किसानों से अत्यधिक प्रेम था। देश की उन्नति की चिंता उनके हृदय में रही और मानव की प्रतिष्ठा के लिए उनका अंतःकरण अजीवन व्याकुल रहा।


व्यवहारिक भाषा का प्रयोग - 


उनकी भाषा शुद्ध खड़ी बोली है किंतु उनमें संस्कृत शब्दों के साथ-साथ फारसी और अंग्रेजी के शब्द भी हैं। उन्हें किसी शब्द विशेष से मोह नहीं है। वह तो उसी शब्द का प्रयोग कर देते हैं जो शैली के प्रवाह में स्वाभाविक रूप से व्यक्त हो जाता है।


स्वतंत्रता के प्रति सहानुभूति - 


1901 में टोक्यो के 'ओरिएंटल क्लब' में भारत की स्वतंत्रता के लिए सहानुभूति प्राप्त करने के उद्देश्य से पूर्ण सिंह ने कई उग्र भाषण दिए तथा कुछ जापानी मित्रों के सहयोग से भारत-जापानी क्लब की स्थापना की। टोक्यो में वे स्वामी जी के विचारों से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनके शिष्य बन कर उन्होंने संन्यास धारण कर लिया। वहां आवासकाल में लगभग डेढ़ वर्ष तक उन्होंने एक मासिक पत्रिका 'थंडरिंग डॉग' का संपादन किया। सितंबर 1930 में भारत लौटने पर कोलकाता में उस समय के ब्रिटिश शासन के विरुद्ध उत्तेजनात्मक भाषण देने के अपराध में वे बंदी बना लिए गए किंतु बाद में मुक्त कर दिए।


व्यावसायिक जीवन - 


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एबटाबाद में कुछ समय बिताने के बाद पूर्ण सिंह लाहौर चले गए वहां उन्होंने विशेष प्रकार के तेलों का उत्पादन आरंभ किया किंतु साजा का काम चल ना सका। तब अपनी धर्मपत्नी माया देवी के साथ मसूरी चले गए और वहां से स्वामी रामतीर्थ से मिलने टिहरी गढ़वाल में वशिष्ठ आश्रम गए वहां से लाहौर लौटने पर अगस्त 1904 में विक्टोरिया डायमंड जुबली हिंदू टेक्निकल इंस्टीट्यूट के प्रिंसिपल बन गए और 'थंडरिंग डॉग' पुनः निकालने लगे 1905 में कांगड़ा के भूकंप पीड़ितों के लिए धन संग्रह किया और इसी प्रसंग में प्रसिद्ध देशभक्त लाला हरदयाल और डॉक्टर खुदादाद से मित्रता हुई जो उत्तरोत्तर घनिष्ठता में परिवर्तित होती गई तथा जीवन पर्यन्त स्थाई रही।


स्वामी रामतीर्थ के साथ उनके अंतिम भेंट जुलाई 1906 हुई थी। 1960 के आरंभ में वे देहरादून की प्रसिद्ध संस्था वन अनुसंधान शाला में रसायन के प्रमुख परामर्शदाता नियुक्त किए गए। इस पद पर उन्होंने 1918 तक कार्य किया यहां से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात पटियाला, ग्वालियर, पंजाब आदि स्थानों पर थोड़े थोड़े समय तक कार्य करते रहें।


द्विवेदी युग के श्रेष्ठ निबंधकार - 


सरदार पूर्ण सिंह को अध्यापक पूर्ण सिंह के नाम से भी जाना जाता है। वह द्विवेदी युग के श्रेष्ठ निबंधकारों में से एक है। मात्र 6 निबंध लिखकर निबंध साहित्य में अपना नाम अमर कर लिया। इनके निबंध नैतिक और सामाजिक विषयों से संबंधित है। आवेगपूर्ण, व्यक्तिव्यंजक लाक्षणिक शैली उनकी विशेषता है। विशेष प्रतिपादन की दृष्टि से उन्होंने भावुकता प्रदान शैली का विशेष प्रयोग किया है। सरदार पूर्ण सिंह के निबंधों की विषय वस्तु समाज, धर्म, विज्ञान, मनोविज्ञान तथा साहित्य रही है। 'सच्ची वीरता' निबंध में उन्होंने सच्चे वीरों के लक्षण एवं विशेषताओं का भावनात्मक एवं काव्यात्मक वर्णन किया है।


मजदूरी और प्रेम में उन्होंने दोनों के संबंधों का विचारात्मक एवं उद्धरण शैली में वर्णन किया है। 'आचरण की सभ्यता' में देश काल एवं जाति के लिए आचरण की सभ्यता का महत्व प्रतिपादित किया है। अपने जीवन मूल्यों को आचरण में उतारकर श्रेष्ठ बनना ही आचरण की सभ्यता है। प्रायः श्रमिक से दिखने वाले लोगों में आचरण की सभ्यता होती है। उनके निबंधों की भाषा उर्दू और संस्कृत भाषा है। उन्होंने कुछ सूक्तियों का प्रयोग भी निबंधों में किया है। जैसे - 'वीरों के बनाने के कारखाने नहीं होते।' आचरण का रेडियम तो अपनी श्रेष्ठता से चमकता है। उनकी शैली काव्यात्मक, भावनात्मक, अलंकारिक है। कहीं-कहीं वाक्य बहुत लंबे-लंबे एवं जटिल हो गए हैं एवं बुद्धि प्रदान निबंध उनकी शैली की विशेषता है।


मृत्यु - 


सरदार पूर्ण सिंह ने जीवन के अंतिम दिनों में जिला शेखूपुरा की तहसील ननकाना साहब के पास कृषि कार्य शुरू किया और खेती करने लगे वे 1926 से 1930 तक वहीं रहे। नवंबर 1930 में वे बीमार पड़े जिससे उन्हें तपेदिक रोग हो गया और 31 मार्च 1931 को देहरादून में सरदार पूर्ण सिंह का देहांत हो गया ‌


निष्कर्ष - 


सरदार पूर्ण सिंह जी के निबंध लेखन के क्षेत्र में उनके द्वारा दिए गए योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। उनका विशेष रूप से यह योगदान के लिए हिंदी साहित्य पाठक हमेशा ऋणी रहेगा। जो उन्होंने इस तरह के निबंध लिखकर उनके जीवन पर एक महत्वपूर्ण रूप से प्रभाव छोड़ा है। इनके लिखे गए निबंधों के कारण ही ये लेखकों में अपना एक विशेष स्थान बनाकर अमर हो गए।


परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्न –


Q. अध्यापक पूर्ण सिंह किस युग के निबंधकार है?

उत्तर - द्विवेदी युग


Q. सरदारपूर्ण सिंह से क्या थे?

उत्तर - निबंधकार


Q. सरदार पूर्ण सिंह का जन्म कब हुआ?

उत्तर - 17 फरवरी 1881


Q. सरदार पूर्ण सिंह की मृत्यु कब हुई थी?

उत्तर - 31 मार्च 1931


Q. आचरण की सभ्यता के लेखक कौन है?

उत्तर - सरदारपूर्ण सिंह


FAQ'S - 


1. पूर्ण सिंह का पूरा नाम क्या है?


उत्तर - पूर्ण सिंह का पूरा नाम सरदार पूर्ण सिंह है।


2. सरदार पूर्ण सिंह का जन्म कब और कहां हुआ था?


उत्तर - सरदार पूर्ण सिंह का जन्म सन 1881 ईस्वी में एबटाबाद जिले में हुआ था। जो अब पाकिस्तान में है।


3. सरदार पूर्ण किस युग के लेखक है?


उत्तर - सरदार पूर्ण सिंह द्विवेदी युग के श्रेष्ठ तथा सफल निबंधकार हैं। वह हिंदी गद्य साहित्य के प्रचार प्रसार में संलग्न अद्वितीय निबंधकार हैं।


4. अध्यापक पूर्ण सिंह का जन्म कब हुआ था?


उत्तर - अध्यापक पूर्ण सिंह का जन्म 17 फरवरी 1881 में हुआ था।


5. सरदार पूर्ण सिंह की प्रसिद्ध रचना कौन सी है?


उत्तर - सच्ची वीरता, आचरण की सभ्यता, मजदूरी और प्रेम, अमेरिका का ग्रस्त योगी वाल्ट ह्रिटमैन, कन्यादान, पवित्रता।


6. सरदार पूर्ण सिंह के पिता का क्या नाम है ?


उत्तर - सरदार पूर्ण सिंह के पिता का नाम सरदार करतार सिंह भागर है। जो सरकारी कर्मचारी थे।


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