आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय एवं भाषा शैली

top heddar

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय एवं भाषा शैली

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय एवं भाषा शैली || Mahaveer Prasad Dwivedi ka Jivan Parichay 

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी

(जीवनकाल : सन् 1864 - 1938 ईस्वी)

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय यहां पर सबसे सरल भाषा में लिखा गया है। यह जीवन परिचय कक्षा 9वीं से लेकर कक्षा 12वीं तक के छात्र के लिए महत्वपूर्ण है। इसमें आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सभी पहलुओं के विषय में चर्चा की गई है, तो इसे कोई भी व्यक्ति भी पढ़ सकता है।

Aacharya mahaveer Prasad Dwivedi ka Jivan,mahaveer Prasad Dwivedi,mahaveer Prasad Dwivedi ka Jivan Parichay,mahaveer Prasad Dwivedi ka sahityik Parichay,महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय,आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय,महावीर प्रसाद जीवन परिचय,महावीर प्रसाद द्विवेदी की जीवनी,महावीर प्रसाद द्विवेदी,महावीर प्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक परिचय,biography of Mahavir Prasad Dwivedi

जीवन परिचय –

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1864 ईस्वी में रायबरेली जिले के दौलतपुर ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित राम सहाय दुबे था। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण इनकी शिक्षा सुचारू रूप से संपन्न नहीं हो सकी। स्वाध्याय से ही इन्होंने संस्कृत, बांग्ला, मराठी, फारसी, गुजराती, अंग्रेजी आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया और तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में अपनी रचनाएं भेजने लगे। प्रारंभ में इन्होंने रेलवे के तार-विभाग में नौकरी की, परंतु बाद में नौकरी छोड़कर पूरी तरह साहित्य सेवा में जुट गए। 'सरस्वती' पत्रिका के संपादक का पद-भार संभालने के बाद इन्होंने अपनी अद्वितीय प्रतिभा से हिंदी साहित्य जगत को आलोकित किया।

कवि परिचय : एक दृष्टि में

नाम

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी

पिता का नाम

पंडित राम सहाय दुबे

जन्म

सन् 1864 ईस्वी

जन्म-स्थान

ग्राम-दौलतपुर, जिला-रायबरेली (उत्तर प्रदेश)

प्रारंभिक शिक्षा

घर पर ही

संपादन

सरस्वती पत्रिका

लेखन-विधा

निबंध, नाटक, काव्य

भाषा-शैली 

भाषा-अत्यंत प्रभावशाली, साहित्यिक और संस्कृतमयी।

शैली-विविध शैलियों का प्रयोग प्रमुख रूप से भावात्मक और विचारात्मक शैली का प्रयोग।

प्रमुख रचनाएं

हिंदी-नवरत्न, मेघदूत, शिक्षा, सरस्वती, कुमारसंभव, रघुवंश, हिंदी महाभारत आदि।

निधन

सन् 1938 ईस्वी

साहित्य में स्थान

हिंदी-साहित्य के युग प्रवर्तक साहित्यकारों में से एक थे।

साहित्यिक आंदोलन

भारतीय स्वाधीनता आंदोलन

अन्य बातें

मैट्रिक तक शिक्षा, रेलवे की नौकरी तथा 'सरस्वती' का संपादन


द्विवेदी जी का सबसे महत्वपूर्ण कार्य था –हिंदी-भाषा का संस्कार और परिष्कार। इन्होंने आरंभिक युग की स्वच्छंदता को नियंत्रित किया। द्विवेदी जी ने हिंदी-भाषा को व्याकरणसम्मत बनाने, उसके रूप को निखारने-संवारने, उसके शब्द भंडार को बढ़ाने और उसको सशक्त, समर्थ एवं परिमार्जित बनाने का महान् कार्य किया। सन् 1931 ईस्वी में 'काशी नागरी प्रचारिणी सभा' ने इन्हें 'आचार्य' की तथा 'हिंदी-साहित्य सम्मेलन' ने 'वाचस्पति' की उपाधि से विभूषित किया।

सन् 1938 ईस्वी में हिंदी के यशस्वी साहित्यकार आचार्य द्विवेदी जी का निधन हो गया।

साहित्यिक परिचय –

भारतेंदु जी के पश्चात द्विवेदी जी दूसरे प्रवर्तक साहित्यकार के रूप में विख्यात हुए। 'सरस्वती' के संपादक के रूप में इन्होंने हिंदी साहित्य की अमूल्य सेवा की। तत्कालीन साहित्य, भाषा और शैली में इन्हें जो त्रुटियां और दुर्बलताएं दिखाई दीं, 'सरस्वती' के माध्यम से उन्हें दूर करने का अथक प्रयास किया। इन्होंने प्रतिभासंपन्न नए लेखकों को प्रेरित किया और उनके साहित्य में सुधार किए। उनके द्वारा संपादित 'सरस्वती' पत्रिका वास्तव में इस युग की साहित्यिक चेतना का प्रतीक बन गई थी। द्विवेदी जी ने अनेक निबंधों की रचना भी की। इनके निबंधों में आलोचनात्मक निबंधों की संख्या सर्वाधिक है। ऐसे निबंधों में उनकी निर्भीकता और तथ्यात्मकता स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है।

आज भाषा और शैली का जो परिष्कृत और विकसित रूप दिखाई देता है, वह द्विवेदी जी के ही प्रयासों का परिणाम है। वे भाषा के महान् शिल्पी थे। एक चतुर शिल्पी की भांति उन्होंने हिंदी खड़ी बोली को संवारा और उसमें प्राण-प्रतिष्ठापना भी की। द्विवेदी जी ने नए-नए लेखकों और कवियों को प्रभावपूर्ण लेखन की दृष्टि से दक्ष बनाया। इन्होंने हिंदी-भाषा का प्रचार-प्रसार करके जनसाधारण के हृदय में हिंदी के प्रति प्रेम जागृत किया।

कृतियां – द्विवेदी जी ने 50 से भी अधिक ग्रंथों तथा सैकड़ों निबंधों की रचना की। उनकी प्रमुख कृतियां इस प्रकार हैं–

काव्य-संग्रह – काव्य-मंजूषा।

निबंध – द्विवेदी जी के सर्वाधिक निबंध 'सरस्वती' कथा अन्य पत्र-पत्रिकाओं एवं निबंध संग्रहों के रूप में प्रकाशित हुए हैं।

आलोचना – नाट्यशास्त्र, हिंदी-नवरत्न, रसज्ञ-रंजन, साहित्य-सीकर, विचार-विमर्श, साहित्य-संदर्भ, कालिदास एवं उनकी कविता, कालिदास की निरंकुशता आदि।

विविध – जल-चिकित्सा, संपत्तिशास्त्र, वक्तृत्व-कला आदि।

संपादन – 'सरस्वती' मासिक पत्रिका।

भाषा-शैली -

mahaveer prasad dwivedi ji ka jivan parichay,mahavir prasad dwivedi ka jeevan parichay,acharya mahavir prasad dwivedi ka jeevan parichay,mahaveer prasad dwivedi ji ka jivan parichay kaksha 11,mahavir prasad dwivedi ka jivan parichay,महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय,आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय,महावीर प्रसाद द्विवेदी,आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी,महावीर प्रसाद द्विवेदी की रचनाएँ,महावीर प्रसाद द्विवेदी जीवन परिचय,महावीर प्रसाद द्विवेदी निबंध,आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का जीवन परिचय

भाषा – द्विवेदी जी संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे, किंतु वे निबंधों में केवल संस्कृत के शब्दों को ही रखने के पक्षपाती नहीं थे। इन्होंने अन्य भाषाओं के लोकप्रचलित शब्दों के प्रयोग को भी मैं तो प्रदान किया। द्विवेदी जी की भाषा के विविध रूप दिखाई देते हैं। कहीं उनकी भाषा बोलचाल के बिल्कुल निकट है तो कहीं शुद्ध साहित्य का और क्लिष्ट संस्कृतमयी। द्विवेदी जी ने अपनी बात को प्रभावी बनाने तथा विषय की गहराई तक पहुंचने के लिए संस्कृत की सूक्तियों का प्रयोग भी किया है। साथ ही लोकोक्तियों और मुहावरों से अपनी भाषा का श्रंगारकर उसे प्रभावशाली बनाया। द्विवेदी जी विषय के अनुसार भाषा का प्रयोग करने में पारंगत थे। इनके आलोचनात्मक निबंधों की भाषा शुद्ध संस्कृतनिष्ठ है तो समसामयिक आलोचनाओं में मिश्रित भाषा का प्रयोग हुआ है। गंभीर तथा विवेचनात्मक निबंधों की भाषा शुद्ध साहित्यिक है, तो भावात्मक निबंधों की भाषा काव्यात्मक एवं आलंकारिक।

शैली – द्विवेदी जी ने अपनी रचनाओं में निम्नलिखित शैलियों का प्रयोग किया है–

भावात्मक शैली – द्विवेदी जी ने भावात्मक शैली में अनेक निबंध लिखे हैं। इनमें विचारों की सरस अभिव्यक्ति हुई है। इस शैली में अनुप्रास की छटा सर्वत्र व्याप्त है। कोमलकांत पदावली का प्रयोग इसकी एक अन्य प्रमुख विशेषता है।

विचारात्मक शैली – द्विवेदी जी की विचारात्मक शैली में तत्समप्रधान भाषा का प्रयोग हुआ है, मुहावरों का प्रयोग कम हुआ है और हास्य-व्यंग का भी अभाव है। साहित्यिक महत्व के निबंधों की रचना द्विवेदी जी ने इसी शैली में की है।

गवेषणात्मक शैली – द्विवेदी जी के साहित्यिक निबंधों में गवेषणात्मक शैली के दर्शन होते हैं। इस शैली पर आधारित निबंधों में उर्दू के शब्दों का अभाव है। यह शैली अपेक्षाकृत गाम्भीर्य लिए हुए है।

संवादात्मक शैली – अपने निबंधों के बीच में द्विवेदी जी कहीं-कहीं पाठकों से वार्तालाप करते हुए दिखाई देते हैं। ऐसे स्थलों पर संवादात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।

वर्णनात्मक शैली – द्विवेदी जी ने बड़ी संख्या में वर्णनात्मक निबंध लिखे हैं। इनमें भौगोलिक एवं ऐतिहासिक स्थानों का वर्णन किया गया है।

व्यंग्यात्मक शैली – सामाजिक कुरीतियों पर चोट के लिए द्विवेदी जी ने व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग किया है। इस शैली के अंतर्गत सरल वाक्यों का प्रयोग किया गया है। कथन को प्रभावी बनाने के लिए मुहावरों का समुचित प्रयोग किया गया है।

हिंदी-साहित्य में स्थान –

आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी हिंदी-साहित्य के युग प्रवर्तक साहित्यकारों में से एक थे। वे समाज और संस्कृति के क्षेत्र में अपने वैचारिक योगदान की दृष्टि से 'नवचेतना के संवाहक' के रूप में अवतरित हुए। उन्हें शुद्ध साहित्यिक खड़ीबोली का वास्तविक प्रणेता माना जाता है।

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की शिक्षा - 

माना जाता है कि महावीर प्रसाद जी के पिता रामसहाय जी भगवान महावीर जी को अपना इष्ट मानते थे इसलिए उन्होंने अपने पुत्र का नाम महावीरसहाय रखा था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही पाठशाला में संपन्न हुई थी। इनके प्रधानाचार्य ने गलती से इनका नाम महावीर प्रसाद लिख दिया था और इसी नाम से साहित्य में अपना एक स्थाई और जाना पहचाना नाम बना गये। इनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण इनकी शिक्षा सही तरीके से नहीं हो पाई तब उन्होंने स्व अध्ययन से ही अपनी शिक्षा संपूर्ण करी उन्होंने स्व अध्ययन से ही संस्कृत, हिंदी, बंगला, मराठी, गुजराती, अंग्रेजी, फारसी आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया और तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में अपनी रचनाएं भेजने लगे थे इन्हें ज्ञान प्राप्त करने के लिए इनकी ज्ञान पिपासा कभी कम नहीं हुई लेकिन जीविका के लिए इन्होंने रेलवे में नौकरी कर ली। द्विवेदी जी को अनेक विषयों का ज्ञान था और वही ज्ञान इनकी लेखनी में कलम बंद होते हुए दिखाई देती है।

भाषा का परिमार्जन - 

भारतेंदु युग में हिंदी गद्य की विभिन्न विधाओं का जन्म हो चुका था। हिंदी गद्य का प्रचार भी प्रारंभ हो चुका था किंतु हिंदी गद्य का स्वरूप अभी तक स्थिर नहीं हो पाया था। भाषा में व्याकरण संबंधी अनेक दोष थे। द्विवेदी जी ने इन दोषों को समझा और हिंदी गद्य को शुद्ध व्यवस्थित तथा परिमार्जित करने का बीड़ा उठाया इन्होंने संस्कृत ग्रंथों का हिंदी में अनुवाद किया और हिंदी कवियों के सामने व्याकरणसम्मत काव्य भाषा का आदर्श उपस्थित किया। इनसे पूर्व हिंदी काव्य में ब्रजभाषा का एकछत्र साम्राज्य था। द्विवेदी जी ने खड़ी बोली को काव्य भाषा के रूप में प्रस्तुत किया। इन्होंने खड़ी बोली में काव्य रचना करने के लिए कवियों को प्रेरित किया। कविवर मैथिलीशरण गुप्त और अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' जैसे खड़ी बोली के कवियों को हिंदी में लाने का श्रेय द्विवेदी जी को ही प्राप्त है।

साहित्य का विकास - 

सन् 1930 ई० में द्विवेदी जी ने 'सरस्वती' पत्रिका के संपादन का कार्यभार संभाला। इस पत्रिका के माध्यम से उन्होंने हिंदी साहित्य की जो सेवाएं कि उन्हें भुलाया नहीं जा सकता। इसमें द्विवेदी जी के आलोचनात्मक निबंध प्रकाशित होते थे। जिनमें उस समय के लेखकों, कवियों तथा उनकी कृतियों की कटु आलोचना होती थी। इस प्रकार उन्होंने एक ओर तो आलोचना की नींव डाली तथा दूसरी ओर कवियों और लेखकों को व्याकरण सम्मत शुद्ध हिंदी लिखने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने नवीन छंदों की ओर कवियों का ध्यान दिलाया तथा लेखकों को लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। इस प्रकार द्विवेदी जी ने हिंदी साहित्य का सर्वांगीण विकास तथा भाषा का संस्कार किया। वह एक भावुक कवि, कुशल लेखक, योग्य संपादक, महान् आचार्य तथा श्रेष्ठ समाज सुधारक सबकुछ थे। अपनी बहुमुखी प्रतिभा के बल पर इन्होंने हिंदी भाषा और साहित्य का सर्वोत्तम मुखी विकास किया। उन्हीं के प्रयत्नों से हिंदी में जीवनी, यात्रा वृतांत, कहानी, उपन्यास, समालोचना, व्याकरण कोष, अर्थशास्त्र, पुरातत्व विज्ञान, समाजशास्त्र, दर्शन तथा धर्म आदि विविध विषयों का समावेश हुआ। इनकी विलक्षण योग्यता कार्यकुशलता और साहित्य सेवाओं से प्रसन्न होकर इनको नागरी प्रचारिणी सभा से आचार्य की पदवी से तथा हिंदी साहित्य सम्मेलन ने 'विद्यावाचस्पति' की पदवी विभूषित किया था।

माता पिता - 

हिंदी गद्य साहित्य के युग - विधायक महावीर प्रसाद द्विवेदी के पिता का नाम श्री राम सहाय द्विवेदी था। इनके पिता पंडित राम सहाय द्विवेदी ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में साधारण सिपाही थे तथा इनकी माता जी के नाम के संबंध में कोई साक्ष्य प्रमाण प्राप्त नहीं है।

द्विवेदी जी का पूर्व नाम क्या था - 

कहा जाता है कि इनके पिता राम सहाय द्विवेदी को महावीर का इष्ट था। इसलिए इन्होंने पुत्र का नाम महावीर सहाय रखा। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव की पाठशाला में हुई पाठशाला के प्रधानाध्यापक ने भूल बस इनका नाम महावीर प्रसाद लिख दिया था। यह बोल हिंदी साहित्य में स्थाई बन गई।

आलोचना ग्रंथ - 

• नाट्यशास्त्र 

• विचार-विमर्श 

• साहित्य संदर्भ

• कालिदास एवं उनकी कविता 

• कालिदास की निरंकुशता 

• नैषधचरित चरित्र चर्चा 

• हिंदी नवरत्न 

• रसज्ञ रंजन 

• साहित्य सीकर


अनुदित - 


• विचार रत्नावली 

• कुमासंभव 

• गंगा लहरी 

• विनय विनोद 

• रघुवंश 

• हिंदी महाभारत 

• किरातार्जुनीय मेघदूत 

• बेकन विचारमाला 

• शिक्षा 

• स्वाधीनता 


संपादन - सरस्वती मासिक पत्रिका।


अन्य रचनाएं - 


• हिंदी भाषा की उत्पत्ति 

• अतीत स्मृति 

• जल चिकित्सा 

• वक्तृत्व कला 

• संपत्तिशास्त्र 

• अद्भुत आलाप

• वाग्विलास

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्य - 

महावीर प्रसाद द्विवेदी,महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय,आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी,आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय,महावीर प्रसाद द्विवेदी की रचनाएँ,महावीर प्रसाद द्विवेदी निबंध,महावीर प्रसाद द्विवेदी की रचनाएं,mahavir prasad dwivedi biography in hindi,mahavir prasad dwivedi,acharya mahavir prasad dwivedi biography in hindi,mahavir prasad dwivedi in hindi,mahavir prasad dwivedi ki rachnaye,acharya mahavir prasad dwivedi ki rachnaye

प्रारंभ में द्विवेदी जी ने रेलवे के तार विभाग में नौकरी की रेलवे में विभिन्न पदों पर कार्य करने के बाद झांसी में डिस्ट्रिक्ट ट्रैफिक सुपारिण्टेण्डेण्ट के कार्यालय में मुख्य लिपिक हो गए। 5 वर्ष बाद उत्तराधिकारी से खिन्न होकर इन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का साहित्यिक जीवन में प्रवेश सन 1903 ईस्वी में सरस्वती पत्रिका के संपादक के रूप में हुआ था।

सन 1903 ईस्वी में रेलवे की नौकरी छोड़कर पूरी तरह साहित्य सेवा में जुट गए। सरस्वती पत्रिका के संपादक का पदभार संभालने के बाद इन्होंने अपनी अद्वितीय प्रतिभा से हिंदी साहित्य को आलोकित किया। उसे निखारा और उसकी अभूतपूर्व श्रीवृद्धि की तथा हिंदी भाषा की सेवा के लिए अपना शेष जीवन अर्पित कर दिया। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का सबसे महत्वपूर्ण कार्य का हिंदी भाषा का संस्कार और परिष्ठकार। इन्होंने आरंभिक युग की स्वच्छतन्छता को नियंत्रित किया। दिवेदी जी ने हिंदी भाषा को व्याकरण सम्मत बनाने उसके रूप को निखारने संवारने, उसके शब्द भंडार को बढ़ाने और उसको सशत्क् समर्थ एवं परिमार्जित बनाने का महान कार्य किया।

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी को प्राप्त उपाधि एवं सम्मान - 

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी को साहित्य सेवाओं से प्रभावित होकर इनको सन 1931 ईस्वी काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने आचार्य की उपाधि से तथा हिंदी साहित्य सम्मेलन में साहित्य वाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किया। द्विवेदी जी को अनेक अन्य उपाधि से विभूषित किया गया था।

निष्कर्ष - 

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने बीसवीं शताब्दी के प्रथम 210 के साहित्य को अनुशासित और निर्देशित किया वैसा ना उससे पहले ना ही उसके बाद कोई व्यक्ति कर सकता है। वे सच्चे अर्थों में एक युग निर्माता थे और यही कार्य इन्होंने सरस्वती के माध्यम से किया जो कि एक पत्रिका है। इस पत्रिका का पहला अंक 1980 में प्रकाशित हुआ था।

विभिन्न परीक्षाओं में पूछे गए प्रश्न - 

Q.1 महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का जन्म कब हुआ था?

महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का जन्म सन 15 मई 1864 ईसवी में हुआ था। रायबरेली जिले के दौलतपुर ग्राम में हुआ था।

Q.2 आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की मृत्यु कब हुई? 

सन् 1938 ईस्वी में हिंदी के यशस्वी साहित्यकार आचार्य द्विवेदी जी का निधन हो गया।

Q.3 महावीर प्रसाद द्विवेदी और उनका युग किसकी रचना है?

द्विवेदी युग और महावीर प्रसाद द्विवेदी की रचना धर्मिता तथा प्रमुख स्वच्छंदतावादी कवियों के बारे में अच्छे से परिचित हो गए होंगे।

Q.4 महावीर की प्रमुख रचना क्या थी ?

महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रमुख रचनाएं निम्न है - मेघदूत, विचार रत्नावली, गंगा लहरी, हिंदी महाभारत, रघुवंश, शिक्षा, स्वाधीनता, विनय विनोद, निबंध - सरस्वती पत्रिका में तथा अन्य अनेक पत्रिकाओं में प्रकाशित बेकन विचार माला आदि।

Q.5 द्विवेदी युग के लेखक कौन है?

द्विवेदी युग में राष्ट्रीय काव्यधारा के अंतर्गत प्रमुख कवि मैथिलीशरण गुप्त, नाथूराम शर्मा 'शंकर', गया प्रसाद शुक्ल, स्नेही राम नरेश त्रिपाठी तथा राय देवी प्रसाद पूर्ण आदि हैं इन कवियों की रचनाओं में राष्ट्रीयता स्वदेश प्रेम तथा भारत के अतीत गौरव का ज्ञान मिलता है।

Q.6 द्विवेदी युग के जनक कौन है?

द्विवेदी युग के जनक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी है।

Q.7 आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक परिचय बताइए।

भारतेंदु जी के पश्चात द्विवेदी जी दूसरे प्रवर्तक साहित्यकार के रूप में विख्यात हुए। 'सरस्वती' के संपादक के रूप में इन्होंने हिंदी साहित्य की अमूल्य सेवा की। तत्कालीन साहित्य, भाषा और शैली में इन्हें जो त्रुटियां और दुर्बलताएं दिखाई दीं, 'सरस्वती' के माध्यम से उन्हें दूर करने का अथक प्रयास किया। इन्होंने प्रतिभा संपन्न नए लेखकों को प्रेरित किया और उनके साहित्य में सुधार किए। उनके द्वारा संपादित 'सरस्वती' पत्रिका वास्तव में इस युग की साहित्यिक चेतना का प्रतीक बन गई थी। द्विवेदी जी ने अनेक निबंधों की रचना भी की। इनके निबंधों में आलोचनात्मक निबंधों की संख्या सर्वाधिक है। ऐसे निबंधों में उनकी निर्भीकता और तथ्यात्मकता स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है।

FAQ'S -

प्रश्न 1. महावीर प्रसाद द्विवेदी ने क्या लिखा? 

महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रमुख रचनाएं निम्न है - मेघदूत, विचार रत्नावली, गंगा लहरी, हिंदी महाभारत, रघुवंश, शिक्षा, स्वाधीनता, विनय विनोद ।

प्रश्न 2. महावीर प्रसाद द्विवेदी का दूसरा नाम क्या था? 

महावीर प्रसाद द्विवेदी का दूसरा नाम रामसहाय त्रिवेदी था। 

प्रश्न 3. महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रसिद्ध कविता कौन सी है? 

महावीर प्रसाद द्विवेदी के अत्याधिक प्रसिद्ध कविताएं आर्यभूमि और भारतवर्ष है।

प्रश्न 4. महावीर प्रसाद द्विवेदी का मुख्य योगदान क्या रहा? 

हिंदी साहित्य की अविश्वसनीय सेवा और अपने युग की साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना को दिशा और दृष्टि प्रदान की।

प्रश्न 5. महावीर प्रसाद द्विवेदी और उनका युग किसकी रचना है? 

द्विवेदी युग और महावीर प्रसाद द्विवेदी की रचना धार्मिकता तथा प्रमुख स्वच्छंदतावादी कवियों के बारे में ज्ञात कराती थी। 

इसे भी पढ़ें - 👉👉


भारतेंदु हरिश्चंद्र की जीवनी


• तुलसीदास का जीवन परिचय


• कबीर दास का जीवन परिचय


• सूरदास का जीवन परिचय


आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की जीवनी


सरदार पूर्ण सिंह का जीवन परिचय


यह Blog एक सामान्य जानकारी के लिए है इसका उद्देश्य सामान्य जानकारी प्राप्त कराना है। इसका किसी भी वेबसाइट या Blog से कोई संबंध नहीं है यदि संबंध पाया गया तो यह एक संयोग समझा जाएगा.


Post a Comment

Previous Post Next Post

left

ADD1