केदारनाथ अग्रवाल जी का जीवन परिचय || Kedarnath Agrawal biography in Hindi

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केदारनाथ अग्रवाल जी का जीवन परिचय || Kedarnath Agrawal biography in Hindi

केदारनाथ अग्रवाल जी का जीवन परिचय || Kedarnath Agrawal biography in Hindi

केदारनाथ अग्रवाल 

(जीवन काल : सन् 1911-2000 ई०)


केदारनाथ अग्रवाल जी का जीवन परिचय यहां पर सबसे सरल भाषा में लिखा गया है। यह जीवन परिचय कक्षा 9वीं से लेकर कक्षा 12वीं तक के छात्र के लिए महत्वपूर्ण है। इसमें केदारनाथ अग्रवाल जी के सभी पहलुओं के विषय में चर्चा की गई है, तो इसे कोई भी व्यक्ति आसानी से पढ़ सकता है।


Table of Contents :-


जीवन परिचय

कवि परिचय : एक दृष्टि में

केदारनाथ अग्रवाल की शुरुआती शिक्षा

साहित्यिक परिचय

कविता में रुचि

काव्य यात्रा का आरंभ

कृतियां

भाषा-शैली

सम्मान

केदारनाथ जी का निधन

हिंदी-साहित्य में स्थान

केदारनाथ अग्रवाल जी के दोहे


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जीवन परिचय :-


हिंदी की प्रगतिवादी काव्यधारा के अग्रणी कवि केदारनाथ अग्रवाल का जन्म 1 अप्रैल, 1911 ई० को ग्राम कमासिन जिला बांदा (उ०प्र०) में हुआ था। 


कवि परिचय : एक दृष्टि में :-


नाम

केदारनाथ अग्रवाल

जन्म

1 अप्रैल, 1911 ई ०

जन्म-स्थान

कमासिन, जिला बांदा (उ०प्र०)

शिक्षा

स्नातक, एल-एल०बी०

लेखन-विधा

काव्य, निबंध, उपन्यास, यात्रा-वृतांत, पत्र साहित्य

भाषा-शैली

भाषा - आम बोलचाल की सरल और साधारण भाषा 

शैली - मुक्तक

प्रमुख रचनाएं

युग की गंगा, पंख और पतवार, पुष्पदीप आदि (काव्य)

निधन

22 जून, 2000 ई०

साहित्य में स्थान

प्रगतिवादी युग के कवियों में श्रेष्ठ स्थान


केदारनाथ अग्रवाल की शुरुआती शिक्षा :-


केदारनाथ बाबू की शुरुआती शिक्षा अपने गांव कमासिन में ही हुई। कक्षा तीन पढ़ने के बाद रायबरेली पढ़ने के लिए भेजे गए, जहां उनके बाबा के भाई गया बाबा रहते थे। छठी कक्षा तक रायबरेली में शिक्षा पाकर, सातवीं-आठवीं की शिक्षा प्राप्त करने के लिए कटनी एवं जबलपुर भेजे गए, वह सातवीं में पढ़ ही रहे थे कि नैनी (इलाहाबाद) में एक धनी परिवार की लड़की पार्वती देवी से विवाह हो गया, जिसे उन्होंने पत्नी के रूप में नहीं प्रेमिका के रूप में लिया गया, ब्याह में युवती लाने/प्रेम ब्याह कर संघ में लाया। विवाह के बाद उनकी शिक्षा इलाहाबाद में हुई।

इन्होंने स्नातक इलाहाबाद विश्वविद्यालय से तथा एल-एल०बी० डी०ए०वी० कॉलेज कानपुर से किया था। हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा उन्हें साहित्य वाचस्पति की मानद उपाधि तथा बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी द्वारा डी०लिट्० की उपाधि प्रदान की गई।

केदारनाथ अग्रवाल की साहित्य उपलब्धियों का सम्मान करते हुए इन्हें समय-समय पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत किया गया। इन पुरस्कारों में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कारउ०प्र० हिंदी संस्थान लखनऊ का विशिष्ट सम्मान,साहित्य अकादमी सम्मान,मध्य प्रदेश साहित्य परिषदभोपाल का तुलसी सम्मान तथा मध्य प्रदेश साहित्य परिषद भोपाल का मैथिलीशरण गुप्त सम्मान प्रमुख है। इनका निधन 22 जून, 2000 ई० को हुआ।


साहित्यिक परिचय :-


जनवादी चेतना के सजग प्रहरी केदारनाथ जी की कविता की प्रमुख चिंता मनुष्य और जीवन है। इनकी कविताएं व्यापक जीवन-संदर्भों के साथ ही मनुष्य की सौंदर्य चेतना से जुड़ती है। इसके साथ ही वे प्रतिवादी हिंदी-कविता में स्वकीया-प्रेम के विरल कवि हैं। वे धरती और धूप के कवि तो हैं ही; लोक-जीवन, प्रकृति और मानव की संघर्ष-चेतना इनके काव्य में अधिक दिखाई देती है।


केदारनाथ जी ने विभिन्न विधाओं में साहित्य रचना की, इनमें निबंध, उपन्यास, यात्रा वृतांत, पत्र साहित्य के अतिरिक्त प्रमुख रूप से कविताएं सम्मिलित हैं। उनके कुल 24 काव्य संग्रह, 1 अनुवाद, 3 निबंध संग्रह, 2 यात्रा वृतांत तथा 1 पत्र साहित्य की रचनाएं हैं। रचना संग्रहों का विस्तार सन् 1947 ई० से लेकर सन् 1996 ई० तक है।


कविता में रुचि :-


बचपन में ग्रामीण परिवार में रहते हुए केदारनाथ जी के मन में सबके साथ मिलजुल कर रहने के संस्कार पड़े थे और प्रकृति के प्रति अनन्य प्रेम व लगाव भी उत्पन्न हुआ था। बचपन से ही कविता लिखने में रुचि उत्पन्न हुई थी, कारण उनके पिताजी की कवि कर्म में रुचि, वहीं से केदारनाथ जी को काव्य सृजन की प्रेरणा मिली थी। बचपन में घर परिवार से मिले संस्कारों ने उन्हें गरीब और पीड़ित वर्ग के लोगों के संघर्षपूर्ण जीवन से वाकिफ होने का अवसर दिया था। कालांतर में कानूनी शिक्षा हासिल करते समय उन्हें इस वर्ग के उद्धार के उपाय तब सूजने लगे जब वे मार्क्सवाद के परिणाम स्वरूप उत्पन्न प्रगतिशील विचारधारा से परिचित होने का मौका मिला। यह उनके जीवन का आत्ममंथन का दौर था, जिसने आगे चलकर उन्हें एक समर्पित वकील व अनूठे कवि बनने में योग दिया।


काव्य यात्रा का आरंभ :-


केदारनाथ जी के काव्य यात्रा का आरंभ लगभग 1930 से माना जा सकता है। केदारनाथ अग्रवाल जी को प्रगतिशील कवियों की श्रेणी में बड़ी ख्याति मिली है। कविता के अलावा गद्य लेखन में भी उन्होंने रुचि दर्शायी थी, मगर काव्य-सर्जक के रूप में ही वे सु्ख्यात है। इनकी प्रकाशित ढाई दर्जन कृतियों में कविताओं का संकलन, तीन निबंध संग्रह, एक उपन्यास, एक यात्रा वृतांत, एक साक्षात्कार संकलन और एक पत्र संकलन भी शामिल है।


कृतियां :-


इनका प्रथम काव्य-संग्रह युग की गंगासन् 1947 ईस्वी में प्रकाशित हुआ। इनकी प्रमुख काव्य कृतियों में युग की गंगा, नींद के बादल, लोक और आलोक, फूल नहीं रंग बोलते हैं, पंख और पतवार, हे मेरी तुम, मार प्यार की थापें, अपूर्वा, बोले बोल अबोल, अनहारी हरियाली, खुली आंखें खुले डैने तथा पुष्पदीप आदि हैं।


भाषा :-


यद्यपि अग्रवाल जी ने अपनी कविताओं में आम बोलचाल की सरल और साधारण भाषा का प्रयोग किया है तथापि इनकी भावाभिव्यक्ति अत्यंत प्रभावपूर्ण है। वे अपने रचनात्मक विस्तार में जगह-जगह प्रगतिवाद के प्रचलित मुहावरों का निषेध करते हुए नए ढंग की प्रगतिशीलता गढ़ते हैं जिसकी आस्था मनुष्य और जीवन में है। जनता के श्रम, सौंदर्य एवं जीवन की विविधता का वर्णन करने वाले केदारनाथ जी हिंदी की प्रगतिवादी कविता का अलग ही चेहरा थे। 


शैली :-


शैली के रूप में इन्होंने मुक्तक शैली को ही प्राथमिकता दी है। इन्होंने नवीन प्रतीक, बिंबो द्वारा मुक्त छंद और गीत छंदों का प्रयोग बड़ी सफलता के साथ किया है।


सम्मान :-


केदारनाथ जी को कई सम्मान व पुरस्कार से भी विभूषित किया गया -


• सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार 

• तुलसी पुरस्कार 

• मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार 

• हिंदी संस्थान पुरस्कार 

• साहित्य अकादमी पुरस्कार


केदारनाथ जी का निधन :-


आधुनिक काल के हिंदी कवियों में श्री केदारनाथ अग्रवाल जी एक ऐसे कवि थे, जिन्होंने अपनी कविताओं में मानवीय प्रेम, प्रकृति प्रेम के साथ-साथ सामाजिक परिवेश का भी चित्रण किया है। सूरज, नदी, पहाड़, नीम, आम के पेड़, हवा इन सबको उन्होंने अपनी कविता लिखने का विषय बनाया। केदारनाथ जी सरल, सहज एवं भावपूर्ण एवं व्यवहारिक व्यक्ति थे। इनका निधन 22 मई सन् 2000 ई० को हो गया था। आज भी वे अपनी रचनाओं के माध्यम से हम सबके बीच अमर हैं।


हिंदी साहित्य में स्थान :-


प्रगतिवादी, काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि केदारनाथ अग्रवाल आधुनिक कविता के श्रेष्ठ कवि हैं। इनके काव्य में प्रकृति और मानव की संघर्ष पूर्ण दशा का वर्णन किया गया है। सहज, सरल तथा सरस ढंग से तीखी बात कहने वाले केदारनाथ अग्रवाल का हिंदी साहित्य में विशिष्ट स्थान है।


केदारनाथ अग्रवाल जी के दोहे (पद) :-


                     अच्छा होता 


अच्छा होता 

            अगर आदमी 

                     आदमी के लिए 

परार्थी —

             पक्का —

और नियति का सच्चा होता 

           न स्वार्थ का चहबच्चा —

                     न दगैल-दागी —

न चरित्र का कच्चा होता।

अच्छा होता 

           अगर आदमी 

                     आदमी के लिए 

दिलदार —

           दिलेर —

और हृदय की थाती होता,

           न ईमान का घाती —

                      ठगैत ठाकुर

न मौत का बराती होता।


                     सितार-संगीत की रात 


आग के ओठ बोलते हैं 

          सितार के बोल, 

                    खुलती चली जाती हैं

                               शहद की पंखुरियां,

चूंमतीं अंगुलियों के नृत्य पर,

       राग-पर-राग करते हैं किलोल

                  रात के खुले वृक्ष पर 

        चंद्रमा के साथ, 

शताब्दियां झांकती हैं 

                      अनंत की खिड़कियों से 

        संगीत के समारोह में कौमार्य बरसता है,

हर्ष का हंस दूध पर तैरता है, 

            जिस पर सवार भूमि की सरस्वती 

काव्य लोक में विचरण करती है।


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