श्रवण कुमार खंडकाव्य का सारांश || Shravan Kumar khandkavya ka Saransh

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श्रवण कुमार खंडकाव्य का सारांश || Shravan Kumar khandkavya ka Saransh

श्रवण कुमार खंडकाव्य का सारांश || Shravan Kumar khandkavya ka Saransh

श्रवण कुमार खंडकाव्य जितने भी प्रश्न आपको बोर्ड परीक्षा में पूछे जाते हैं। सभी प्रश्नों को इस आर्टिकल में लिखा गया है बहुत ही सरल भाषा में श्रवण कुमार खंडकाव्य से संबंधित सभी प्रश्न लिखे गए हैं। जैसे - सारांश (कथावस्तु), अयोध्या सर्ग, श्रवण कुमार का चरित्र चित्रण इत्यादि प्रश्न।

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प्रश्न 1. 'श्रवण कुमार' खंडकाव्य का सारांश , कथावस्तु , प्रथम सर्ग (अयोध्या सर्ग), 'आखेट' सर्ग (तृतीय सर्ग) की कथावस्तु लिखिए।

अथवा

'श्रवण कुमार' खंडकाव्य के द्वितीय सर्ग (आश्रम सर्ग) की कथावस्तु संक्षेप में , दशरथ' खंड (पंचम सर्ग) की कथा का सार लिखिए।

अथवा

'श्रवण कुमार' खंडकाव्य में वर्णित कारूणिक प्रसंगों का वर्णन , खंडकाव्य के 'संदेश' (छठे) सर्ग की कथावस्तु , 'श्रवण' सर्ग , मार्मिक अंश की कथा का उल्लेख कीजिए।

अथवा

'श्रवण कुमार' खंडकाव्य केकी कथा अपने शब्दों में लिखिए।

अथवा

'श्रवण कुमार' खंडकाव्य के अभिशाप सर्ग (सप्तम सर्ग) की कथावस्तु की विवेचना कीजिए।


उत्तर - 'श्रवण कुमार' खंडकाव्य के अयोध्या, आश्रम, आखेट, श्रवण, दशरथ, संदेश, अभिशाप, निर्वाण तथा उपसंहार नौ सर्ग हैं। इसके कथानक का संक्षिप्त रूप यहां प्रस्तुत किया जा रहा है–


अयोध्या सर्ग –


वाणी-गणेश वन्दनोपरान्त साकेत, सरयू तथा इक्ष्वाकुवंश कीर्ति के साथ पृथु, त्रिशंकु,ध्रुव, सगर तथा दिलीप आदि सूर्यवंश के यशस्वी सम्राटों का वर्णन है। राजा दशरथ 'समान श्रम समान वेतन' के सिद्धांत का पालन करते थे। प्रजा व्यसनों से दूर थी। शस्त्रागार आयुध संपन्न थे। एक बार महाराज दशरथ वन में शिकार खेलने के लिए गए।

आश्रम सर्ग –

पवित्र सरयू तीर के निकट एक आश्रम था जहां एक ऋषि दंपत्ति एवं उनका पुत्र श्रवण कुमार रहता था। दंपत्ति ज्ञानचक्षु थे। श्रवण उनकी आंखों का तारा था। दशरथ आश्रम शांति को देख धन्य हो गए। आश्रम उदात्त भावों से ओत-प्रोत था। यहीं श्रवण का पालन-पोषण हुआ था। वह माता-पिता के लिए पूजा एवं भोजन सामग्री जुटाता था। वह माता-पिता की सेवा देवता मानकर करता था।

आखेट सर्ग –

रात्रि को राजा दशरथ ने आखेट का आदेश दिया। रथ संचालक आदेश पाते ही अति प्रातः दशरथ को धनुष बाण के साथ रथ पर बैठा कर आश्रम के निकट ले आता है। प्रातः श्रवण सरयू तट पर पानी लेने पहुंचा। घड़े को पानी में डुबोते ही भप्-भप् की ध्वनि पर राजा ने शब्दभेदी बाण चला दिया। दशरथ ने किसी पशु के होने का अनुमान लगाया था लेकिन बाण श्रवण की छाती में लगा। श्रवण गिर पड़ा। उसकी कराह सुन महाराज विस्मय, चिंता एवं शोक में डूब गए।

श्रवण सर्ग –

बाणविद्ध श्रवण ने मार्मिक विलाप किया। दशरथ ने मुनिकुमार को बाणहत देखा। वे किंकर्तव्यविमूढ़ हो गए। श्रवण ने पूछा इस समय आप वन में कैसे आए और वह भी आश्रम के निकट? राजा दशरथ निरूत्तर थे। उनका मौनभाव अपराध की स्वीकृति दे रहा था। वे आत्मग्लानि से अभिभूत थे। दशरथ की व्यथा देख श्रवण ने ही उन्हें सांत्वना दी। उसने कहा आप ब्रह्महत्या के पाप का विचार ना करें। मेरे पिता वैश्य एवं माता शूद्रा हैं। संस्कार प्रभाव से हमारा जीवन पवित्र है। इतना कहकर श्रवण संज्ञा शून्य हो गया। उसके हृदय से रक्त की धार बह रही थी। असह्य वेदना को हृदय में समेटकर राजा दशरथ आश्रम की ओर चल पड़े। उन्होंने श्रवण का शव वहीं छोड़ दिया।

दशरथ सर्ग –

वे अवसाद मग्न, नतमुख आगे बढ़ रहे थे। वे श्रवण की उदारता एवं क्षमाशीलता को नहीं भूल पा रहे थे। शब्दभेदी के सिर पर कलंक का टीका लग चुका था। वे विचारमग्न, पश्चाताप करते हुए आश्रम में चले जा रहे थे। ऋषि दंपति अगाध करुणा के भंडार होंगे लेकिन मेरे इस अपराध को क्षमा नहीं कर पाएंगे, ऐसा भी सोच रहे थे।

संदेश सर्ग –

पंखहीन पक्षी तुल्य श्रवण के माता-पिता को राजा ने देखा। उनके मुखमंडल की झुर्रियां वृद्धत्व का संकेत कर रहीं थीं। दशरथ के पैरों की आहट सुनकर ऋषि दंपत्ति उसे श्रवण समझकर प्रसन्न हुए। वे विलंब से आने का कारण पूछते हैं। वे तृषित कंठ की प्यास बुझाना चाहते हैं। वे कहते हैं – ''कहां थे पुत्र? मेरी लकुटीवाहन, मेरी आंख। दीन कृपण की मौन चिरैया, भीगे हुए विहग की पांख।।" दशरथ मौन हैं। वे 'जल पीजिए' कहते हैं तो ऋषि दंपत्ति श्रवण का स्वर ना पाकर उनसे परिचय पूछते हैं तभी दशरथ शिकार की मर्मान्तक कथा सुना देते हैं।

अभिशाप सर्ग –

पुत्र शोक से व्यथित दंपत्ति एक शब्द भी नहीं निकाल पाते हैं ‌ अश्रुधार बहाते हुए वे दोनों दशरथ के साथ सरयू तट पर आते हैं। मृत पुत्र का स्पर्श करते हुए बिलख-बिलख कर रोते हैं। अचेत हो जाते हैं फिर श्रवण को संबोधित करते हुए कहते हैं कि मैंने क्या अपराध किया है जो बोलते नहीं। तुम्हारे बिना हमें तीर्थयात्रा कौन कराएगा? वे दशरथ से कहने लगे कि जानबूझकर यदि तुम बाण चलाते तो रघुकुल ही विनष्ट हो जाता, अब अनजाने अपराध हेतु मैं तुम्हें शाप देता हूं कि –

"पुत्रशोक में कलप रहा किस प्रकार मैं अजनंदन।

सुत वियोग में प्राण तजोगे, ऐसी बातें कर क्रन्दन।।''

श्रवण की मां ने कहा कि पिता होकर ऐसा शाप क्यूं दिया? इस अभिशाप से दशरथ कांप रहे थे।

निर्वाण सर्ग –

इस सर्ग में ऋषि दंपत्ति का आत्मबोध वर्णित है। वे पुत्र की मृत्यु दैवाधीन मानकर शोक-वेग से अपने प्राण त्याग देते हैं। माता-पिता से जलांजलि पाकर स्वर्ग जाते हुए श्रवण ने आश्वासन दिया कि हे तात ! आपकी सेवा से ही मुझे स्वर्ग प्राप्त हुआ है। मैं आवागमन से मुक्त हो गया हूं।

उपसंहार सर्ग –

राजा दशरथ अनेक भांति से शोकग्रस्त होकर सारथी के साथ अयोध्या लौटे आते हैं तथा लोकनिंदा के कारण वे घटना को छिपा लेते हैं। अपनी आंतरिक वेदना किसी से नहीं कहते हैं। वे अपने हृदय में लंबे समय तक अवसादमयी वेदना और लज्जा के भार से दबे रहते हैं। समय चक्र के परिवर्तन से दशरथ पुत्र राम का वनवास हुआ और वे अपने पुत्र के वियोग में बिलख-बिलखकर मृत्यु को प्राप्त हुए। उन्होंने अपने देह-त्याग से पूर्व अपनी इस अंतव्यथा भरी श्रवण के मृत्यु की कहानी को अपनी प्राणप्रिया रानी कौशल्या को सुनाया। यह कथा आज भी जनमानस का करूण कंठहार बनी हुई है।

प्रश्न 2. 'श्रवण कुमार' खंडकाव्य के कथानक की समीक्षा कीजिए।

उत्तर - 'श्रवण कुमार' खंडकाव्य शिवबालक शुक्ल की उत्तम कृति है। इसकी संपूर्ण कथावस्तु को 9 खंडों में विभाजित किया गया है। (1) अयोध्या, (2) आश्रम,  (3) आखेट, (4) श्रवण, (5) दशरथ,  (6) संदेश, (7)  अभिशाप, (8) निर्वाण, (9) उपसंहार।

आधुनिक युगबोध –

मंगलाचरण के बाद प्रथम खंड में नगरी का प्रभावपूर्ण वर्णन किया गया है। प्रस्तुत काव्य में आजकल की समाजवादी विचारधारा के स्पष्ट दर्शन होते हैं। अयोध्या में वस्तुओं की दुर्लभता और कालाबाजारी नहीं थी तथा सबको 'समान कार्य के लिए समान वेतन' का सिद्धांत प्रचलित था। बिना भेदभाव के सबको योग्यता के अनुसार पद दिए जाते थे।

भारतीय आदर्श गृहस्थ –

'आश्रम' शीर्षक खंड में भारतीय अध्यात्मिक भावनाओं का सजीव चित्रण किया गया है। श्रवण के माता-पिता गृहस्थी हैं तथापि वे आश्रम में मनियों जैसा जीवन बिताते हैं। इस प्रकार के गृहस्थ भी मुनियों की श्रेणी में आ सकता है।

भाग्यवाद –

भारतीय जीवन में भाग्यवाद का महत्वपूर्ण समावेश रहा है। प्रस्तुत काव्य के 'आखेट' नामक सर्ग में ऐसी कल्पनाओं को स्थान दिया गया है। राजा दशरथ स्वप्न में एक मृगशावक का शिकार करते हैं। स्वप्न सिद्धांत के अनुसार यह अशुभ सूचना है। श्रवण कुमार पानी लेने चलता है तो उसका बायां नेत्र फड़कता है। जो भावी अनिष्ट की शंका उत्पन्न कर देता है। भाग्य की महत्ता के कारण श्रवण कुमार ने निरपराध होते हुए भी दशरथ के बाण का लक्ष्य बनता है और दशरथ ने निरपराध होते हुए भी पाप का भाजन बनते हैं। भाग्य की प्रबलता का चित्रण कर कवि दशरथ और श्रवण दोनों के प्रति सहानुभूति जगाने में पर्याप्त सफल हुआ है।

आत्म-संस्कार –

भारतीय जीवन में आत्म संस्कार पर सदैव जोर दिया गया है। प्रस्तुत काव्य में 'दशरथ' शीर्षक खंड में दशरथ के माध्यम से इस भावना को पुष्ट किया गया है।

अतिथि-सत्कार –

भारतीय जीवन में अतिथि को देवता के समान माना जाता है। गृहस्थ जीवन में यदि कोई अतिथि आ जाए तो यह सौभाग्य की बात मानी जाती है और अदिति की देवता की भांति ही पूजा तथा सत्कार किया जाता है। प्रस्तुत काव्य में 'संदेश' शीर्षक खंड में इसी भावना को चित्रित किया गया है।

परलोक में विश्वास –

मनुष्य का अधिकार केवल कर्म पर है, फल दैवाधीन है। प्रस्तुत काव्य के 'निर्माण' शीर्षक सर्ग में श्रवण कुमार के माता पिता श्रवण की मृत्यु को दैवाधीन मानते हैं।

लोकनिंदा का भय –

मानव जीवन में सामाजिक सम्मान की सर्वथा अभिलाषणीय है। प्रस्तुत काम के 'उपसंहार' सर्ग में दशरथ श्रवण वध तथा शाप की घटना को लेकर लोकावाद के भय से ही किसी को नहीं बताते। सारथी भी राजकुमार के लोकावाद के भय से ही इस घटना को कहीं प्रकट नहीं करता है।

इस प्रकार 'श्रवण कुमार' काव्य में भारतीय जीवन की आधिभौतिक रूपरेखा के साथ आध्यात्मिक मान्यताओं तथा धारणाओं का भी सजीव अंकन किया गया है।

प्रश्न 3. 'श्रवण कुमार' खंडकाव्य के नायक (प्रमुख पात्र) श्रवण कुमार का चरित्र चित्रण कीजिए।

                        अथवा

'श्रवण कुमार' खंडकाव्य के आधार पर श्रवण की मात्र-पित्रभक्ति का विवेचन कीजिए।


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उत्तर - 'श्रवण कुमार' खंडकाव्य में श्रवण कुमार मुख्य पात्र हैं। उसका चरित्र एक आदर्श बालक का चरित्र है। श्रवण के चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं –

शांत गंभीर स्वभाव –

श्रवण कुमार के माता पिता तपस्वी हैं। आश्रम के शांत और पवित्र वातावरण में उनका पालन-पोषण हुआ; अतः माता-पिता के संस्कारों और आश्रम के वातावरण का उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा।

आत्मज्ञानी –

श्रवण कुमार अभी बालक हैं किंतु माता पिता के संस्कारों के कारण उनको आत्मज्ञान हो चुका है। वह मृत्यु की अनिवार्यता को समझता है।

पितृभक्त –

श्रवण के चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता उसकी पितृभक्त है। पित्रभक्ति का ऐसा आदर्श की जिससे युग युगांतर तक भारतीय बालक प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं, अन्यत्र मिलना कठिन है। वह प्रातः काल उठते ही श्रद्धा भक्तिपूर्वक माता-पिता को प्रणाम करता है और उनकी सेवा में जुट जाता है।

तपस्वी एवं ओजस्वी –

श्रवण कुमार संयमी और तेजस्वी है इसलिए मरते समय भी उसके शरीर से ऐसा तेज दिखाई पड़ता है। जिससे उसकी त्याग-तपस्या आदि गुण स्पष्ट हो जाते हैं।

कर्मवादी –

श्रवण कुमार भाग्यवाद में विश्वास रखता है। भाग्यवादी होते हुए भी में विश्वास रखता है कि मनुष्य का छोटा-बड़ापन अथवा ऊंच-नीच होना उसके कर्मों पर आधारित होना चाहिए। वर्णों और जातियों की व्यवस्था जन्म के आधार पर न होकर कर्म के आधार पर होनी चाहिए।

क्षमाशील –

श्रवण के चरित्र की एक अन्य विशेषता उसका क्षमाशील प्रभाव है। अपना बड़े से बड़ा अपकार करने वाले व्यक्ति को भी वह क्षमा कर देता है। दशरथ द्वारा घायल किए जाने पर भी वह दशरथ को क्षमा कर देता है और इसे विधि की विडंबना मानता है।

संतोषी –

श्रवण मुनियों के समान यथालाभ संतुष्ट रहता है। उसकी आवश्यकताएं सीमित हैं। वह तिन्नी के चावलों से निर्वाह कर लेता है। वल्कल वस्त्र पाकर उसे सुंदर वस्त्रों की आवश्यकता नहीं।

अहिंसक –

अहिंसा भाव भी श्रवण के चरित्र की एक विशेषता है। वह विचारों से गांधीवादी दिखाई पड़ता है। वह किसी को भी पीड़ा नहीं पहुंचाना चाहता।

सारांश यह है कि श्रवण का चरित्र एक आदर्श बालक का चरित्र है। माता-पिता के संस्कारों के प्रभाव से ही श्रवण कुमार भी शांत, गंभीर आत्मज्ञानी और क्षमाशील तपस्वी है। श्रवण अनन्य पितृभक्त, संतोषी और निष्काम कर्मयोगी है। श्रवण से हमें शिक्षा लेनी चाहिए।

प्रश्न 4. 'श्रवण कुमार' खंडकाव्य के महाराज दशरथ का चरित्र-चित्रण कीजिए।

अथवा

श्रवण कुमार खंडकाव्य में निरूपित दशरथ के मानसिक अंतर्द्वंद की विवेचना कीजिए।

उत्तर - 'श्रवण कुमार' खंडकाव्य के दशरथ के चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं–

कुलाभिमानी –

दशरथ का जन्म उस श्रेष्ठ सूर्यवंश में हुआ जिसमें प्रथु, सगर, हरिश्चंद्र और रघु जैसे अनेक प्रतापी तथा चक्रवर्ती राजा हुए थे इसलिए उसे अपने कुल पर अभिमान है। अपनी वंश-परंपरा के अनुसार वह शिकार भी साधारण जंतु का ना कर हाथी अथवा सिंह का ही करना चाहता है–

''क्षत्रिय हूं मम शिरा जाल में, रघुवंशी है रक्त प्रवाह।

हस्तिपोत अथवा मृगेंद्र के पाने की है उत्कट चाह।।''

मृगयाशील –

मृगयाशील होना भी दशरथ के चरित्र की एक विशेषता है। राजकुमारों को मृगयाशील होना स्वाभाविक है। वर्षा ऋतु का मस्ती का वातावरण, दशरथ जैसा वीर धनुर्धर फिर क्यों न मृगया की उमंग में भर जाए? मृगया दशरथ के मनोरंजन का साधन है।

करुणाशील –

दशरथ के चरित्र में करुणा अत्यधिक मात्रा में पाई जाती है। आखिर वह रघुवंशी हैं। दूसरों के दुःख को देखकर उसका ह्रदय द्रवित हो उठता है और श्रवण के आर्तनाद को सुनकर उसका ह्रदय आकुल हो उठता है। धनुष-बाण हाथ से छूट जाता है–

"सुनकर आर्त निनाद श्रवण का, द्रवित हुआ दशरथ मानस।

ढीले अंग हुए धनु छूटा, गिरे बाण भू पर बरबस।।''

तेजस्वी –

दशरथ एक तेजस्वी राजकुमार हैं। जब वह श्रवण के पास पहुंचता है तो श्रवण उसके रूप से प्रभावित होता है। श्रवण उससे निवेदन करता है–

''रूपवान् है तेज आपका, अंग-अंग से फूट रहा।

परिचय दें उर उत्सुकता है, सचमुच धीरज छूट रहा।।''

न्यायप्रिय –

न्यायप्रियता भी दशरथ के चरित्र की महती विशेषता है। उसके विचार से यदि अपना व्यक्ति भी अपराध करता है तो उसे उचित दंड मिलना चाहिए। यदि स्वयं से अपराध हो जाए तो उसका दंड भोगने को तैयार रहना चाहिए–

''अपराध अपना भी हो पर दंडनीय है करो विचार।

बनो मित्र मार्तंड फेंक दो, मुझ पर दह्यमान अंगार।।''

निष्कर्ष –

संक्षेप में दशरथ का चरित्र एक श्रेष्ठ राजकुमार का चरित्र है। उसके चरित्र में कुलाभिमान, मृगयाशीलता, शब्दभेध कुशलता आदि क्षत्रियोचित्त गुण पाए जाते हैं और उनके साथ ही करुणाशीलता, तेजस्विता, न्यायप्रियता आदि सद्गुणों का विकास हुआ है जो मानव मात्र के उत्कर्ष के हेतु होते हैं। दशरथ का चरित्र अति स्वभाविक, मानवीय और विश्वसनीय है।

FAQ'S -

1. श्रवण कुमार का चरित्र चित्रण कैसे लिखें?

उत्तर - श्रवण कुमार एक ऐसा पात्र है। जिसका चरित्र चित्रण करना बहुत ही आसान है। श्रवण कुमार का स्वभाव बहुत ही सरल है। उसके मन में किसी के प्रति ईष्या, क्रोध एवं बैर नहीं है। वह अपने मातृभूमि से अत्यधिक प्रेम करता है और भारतीय संस्कृति का सच्चा प्रेमी भी है। आप अपनी भाषा में इनका चरित्र चित्रण भी कर सकते हैं।

2. श्रवण कुमार खंडकाव्य के लेखक कौन है?

उत्तर - श्रवण कुमार खंडकाव्य के लेखक डॉक्टर शिवबालक शुक्ला जी हैं। इन्होंने इस खंडकाव्य क बहुत ही मनोनीत तरह से वर्णन किया है। जो कोई भी इस खंडकाव्य को पढ़ता है। उसके अंदर सदैव आगे की कहानी जानने की जिज्ञासा बनी रहती है।

3. श्रवण की कहानी से आपको क्या नैतिक मिलता है?

उत्तर - श्रवण कुमार की कहानी बहुत ही मार्मिक है। इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने बड़ों का सम्मान करना चाहिए और आखरी सांस तक अपने माता-पिता की देखभाल करनी चाहिए।

4. श्रवण कुमार को मारने वाले राजा का क्या नाम था?

उत्तर - जब श्रवण कुमार अपने माता पिता की प्यास बुझाने के लिए तालाब के पास पानी लेने गए तो राम भगवान के पिताजी अर्थात् राजा दशरथ समझे कि कोई हिरण आया है और उन्होंने श्रवण कुमार के ऊपर बाण चला दिया जिनसे उनकी वहीं पर मृत्यु हो गई।

5. श्रवण कुमार की पत्नी का क्या नाम है?

उत्तर - श्रवण कुमार की पत्नी का नाम रानी देवी है।

6. श्रवण कुमार क्यों प्रसिद्ध थे?

उत्तर - पुरानी कथाओं में अगर कोई भी सबसे पहले माता-पिता भी सेवा के बारे में बताएगा तो श्रवण कुमार का नाम जरूर लिया जाएगा। श्रवण कुमार के माता पिता अंधे थे। श्रवण कुमार में अपनी पूरी जिंदगी माता-पिता के ऊपर निछावर कर दी। उनकी सेवा में लगा दी।

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