राजमुकुट नाटक का सारांश || Rajmukut Natak ka Saransh

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राजमुकुट नाटक का सारांश || Rajmukut Natak ka Saransh

राजमुकुट नाटक का सारांश || Rajmukut Natak ka Saransh

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प्रश्न - 'राजमुकुट' नाटक का सारांश लिखिए।

उत्तर - राजमुकुट नाटक का सारांश इस प्रकार है।

राजमुकुट' नाटक के प्रथम अंक की कथा मेवाड़ के राणा जगमल के महल से आरंभ होती है। राणा जगमल अत्यंत विलासी और भोग-विलास में लीन राजा है। उसे अपनी कुल की मर्यादा तथा प्रतिष्ठा का तनिक भी ध्यान नहीं है। सुरा-सुंदरी ही मानो उसका जीवन लक्ष्य है। भोग-विलास और व्यक्तिगत आनंद में किसी भी प्रकार की बाधा राजा को सहन नहीं है। वह क्रूर शासक बन गया है। प्रजा का शोषण होता है। अपने चाटुकारों और स्वार्थी दरबारियों के कहने पर वह निरपराध विधवा प्रजापति की हत्या करा देता है।

प्रजापति की इस नृशंस हत्या से प्रजा में क्रोध की ज्वाला भड़क उठती है। लोग प्रजापति के शव को लेकर राष्ट्र नायक चंद्रावत के घर पहुंच जाते हैं। चंद्रावत उस दृश्य को देखकर तथा प्रजापति की हत्या का समाचार सुनकर क्षुब्ध उठते हैं। इसी समय एक और घटना घटित होती है। राजा जगमल के क्रूर सैनिकों द्वारा निर्ममता पूर्वक सताई जाती हुई एक भिखारिणी की रक्षा कुंवर शक्ति सिंह करता है। शक्ति सिंह जगमल के वास्तविक रूप से पूर्णतया परिचित है। वह जगमल के कार्यों से बहुत खिन्न है। चंद्रावत शक्ति सिंह को कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

एक दिन जगमल अपनी राजसभा में बैठा था। गाना-बजाना चल रहा था। उसी समय चंद्रावत वहां आए। उन्होंने जगमल को उसके नीच कर्मों के लिए बुरा-भला कहा और कहा कि वह अपने कुकर्मों के लिए प्रजा से क्षमा याचना करे। उन्होंने जगमल से आग्रह किया कि वह मेवाड़ का मुकुट उचित पात्र को सौंप दें। जगमाल ने चंद्रावत की बात स्वीकार की और अपनी तलवार तथा राजमुकुट उन्हें सौंप दिया। उसने चंद्रावती से योग्य उत्तराधिकारी चुनने के लिए कहा। चंद्रावत ने प्रताप को उत्तराधिकारी बनाया और उसे राजमुकुट और तलवार शौप दी। सुरा-सुंदरी के स्थान पर शौर्य और त्याग की भावना की प्रतिष्ठा हुई। प्रजा में खुशी की लहर दौड़ गई।


प्रताप ने मेवाड़ के राजा के रूप में प्रजा के साथ पुत्रवत् व्यवहार किया। उन्होंने मेवाड़ के खोए हुए सम्मान को पुनः प्राप्त करने के लिए प्रजा को उत्साहित किया। उन्होंने अपनी प्रजा में वीरता का संचार करने के लिए 'अहेरिया' नामक उत्सव आरंभ किया। इस उत्सव में प्रत्येक क्षत्रिय के लिए एक जंगली पशु का वध करना अनिवार्य था। इसी आखेट में एक जंगली सूअर के आखेट के विषय में प्रताप और शक्ति सिंह में विवाद हो गया और वे एक दूसरे पर झपट पड़े।


राजपुरोहित ने उस दृश्य को देखा‌। उन्होंने दोनों भाइयों में बीच-बचाव करने का प्रयत्न किया, परंतु दोनों नहीं माने। राजकुल में अमंगल की संभावना से राजपुरोहित आकुल हो उठते हैं। वे अपनी कटार निकालते हैं और उसे अपने ही छाती में भोंककर प्राण त्याग देते हैं। प्रताप ने शक्ति सिंह को देश से निर्वासित कर दिया। शक्ति सिंह अकबर की सेना में सम्मिलित हो जाता है।


मानसिंह अकबर का सेनापति था। वह राणा प्रताप के चरित्र से बहुत प्रभावित था। मानसिंह की बुआ जोधाबाई अकबर की महारानी थी। इस कारण राणा प्रताप मानसिंह को पतित और धर्मभ्रष्ट समझते हैं। 1 दिन मानसिंह राणा प्रताप से मिलने जाता है, किंतु राणा प्रताप उससे भेंट नहीं करते। उन्होंने अपने पुत्र अमर सिंह को मानसिंह के स्वागत के लिए नियुक्त कर दिया था। इससे मानसिंह ने स्वयं को अपमानित अनुभव किया। वह अपने अपमान का बदला चुकाने की बात कह कर चला गया।


दिल्ली सम्राट अकबर की अधीनता सभी राजपूतों ने स्वीकार कर ली किंतु प्रताप अब भी अकबर के सामने सिर झुकाने को तैयार ना था। अकबर मेंवाड़ पर विजय का अवसर देख रहा था। प्रताप से मानसिंह की नाराजगी को उसने उचित अवसर समझा। उसने सलीम, मानसिंह और शक्ति सिंह के नेतृत्व में एक विशाल सेना मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए भेजी। राणा प्रताप भी युद्ध के लिए राजपूतों की सेना लेकर मैदान में आ गए। हल्दीघाटी के मैदान में दोनों सेनाएं भिड़ गईं। भयंकर युद्ध हुआ। राणा प्रताप ने अद्भुत वीरता दिखाई। शत्रु सेना को काटते हुए वे शत्रु सेना के बीच में पहुंच गए, जहां मानसिंह हाथी पर सवार होकर युद्ध कर रहा था। वहां वे मुगल सेना के व्यूह में फंस गए।


राणा प्रताप को शत्रुओं से घिरा देखकर चंद्रावत राणा के पास पहुंचे। उन्होंने राणा प्रताप के सिर से मुकुट उतारकर अपने सिर पर रख लिया। शत्रु सेना चंद्रावत को ही राणा प्रताप समझकर उस पर टूट पड़ी। उन्होंने युद्ध भूमि में ही अपने प्राणों का बलिदान करके राणा की रक्षा की। राणा शत्रुओं के बीच से निकलकर भागने में सफल हो गए। राणा का घोड़ा सरपट दौड़ा जा रहा था। दो मुगल सैनिकों ने उन्हें देख लिया। उन्होंने राणा का पीछा किया। शक्ति सिंह ने देखा कि मुगल सैनिक राणा के पीछे दौड़ रहे हैं तो उसके हृदय में भाई का प्रेम उमड़ पड़ा। उसने मुगल सैनिकों के पीछे घोड़ा दौड़ा दिया और उन दोनों सैनिकों को मार गिराया। शक्ति सिंह दौड़कर प्रताप के चरणों में गिर गया। प्रताप ने शक्तिसिंह को उठाकर गले लगा लिया। उसी समय राणा के प्रिय घोड़े चेतक ने प्राण त्याग दिए। चेतक की मृत्यु से राणा को अपार दुःख हुआ।


हल्दीघाटी के युद्ध में राजपूतों की सेना को बहुत क्षति पहुंची फिर भी राणा ने अकबर से हार नहीं मानी। राणा प्रताप की देशभक्ति, त्याग तथा शौर्य को देखकर अकबर भी मुग्ध हो गया। वह अब राणा प्रताप से मिलकर संधि करना चाहता था। उस समय शक्ति सिंह साधु का भेष बनाकर देश का भ्रमण कर रहा था। वह देश की जनता में देश प्रेम तथा एकता की भावना जगाने में लगा हुआ था। शक्ति सिंह को पता चला कि अकबर राणा प्रताप से भेंट करने को इच्छुक है। अकबर के मानवीय गुणों को शक्ति सिंह पहचानता था, इसलिए उसने अकबर और प्रताप की भेंट को अच्छा ही माना। उसकी मान्यता थी कि अकबर इस भेंट में कोई छल-प्रपंच नहीं करेगा, बल्कि अकबर और प्रताप की भेंट से देश में शांति व एकता का स्वर ऊंचा होगा।

राणा प्रताप इस समय अरावली पर्वत के वनों में भटक रहे थे।


अचानक एक दिन उनके पास एक सन्यासी आया। राणा के पास कुछ था ही नहीं जिससे वे अतिथि का उचित स्वागत-सत्कार करते। यथोचित सत्कार न कर पाने से वे खिन्न थे। वे सोच रहे थे कि किस प्रकार अतिथि को भोजन कराया जाए। उसी समय उनकी पुत्री चंपा घास के बीजों की बनी हुई रोटी अतिथि के लिए लेकर आई। कहीं से कोई वनबिलाव आया और अचानक चंपा के हाथ से रोटी छीनकर चंपत हो गया। चंपा गिर पड़ी। उसका सिर पत्थर से टकराया। गहरी चोट आई, परिणाम स्वरूप उसकी मृत्यु हो गई। सन्यासी वेशधारी अकबर संधि के विषय में राणा के विचार जानना चाहता है। राणा प्रताप संधि करने को तैयार नहीं होते हैं, क्योंकि वह अकबर को विदेशी आक्रामक मानते हैं। तब अकबर कहता है–"आप उस अकबर से तो संधि कर सकते हैं जो भारत माता को अपनी मां समझता है, जो आपकी भांति उसकी जय बोलता है।"


राणा प्रताप संधि नहीं करते, वे स्वतंत्रता के लिए जीवनभर संघर्ष करते रहते हैं।

राणा प्रताप मृत्यु की शैय्या पर पड़े हैं। रह-रहकर उन्हें अपने देश का ध्यान आता है। देश के स्वतंत्रता संग्राम को आगे चलाया जाएगा या नहीं, इसी चिंता में उनके प्राण नहीं निकलते। अंत में उनका पुत्र, बंधु-बांधव और संबंधी वचन देते हैं कि उनकी मृत्यु के पश्चात भी वे मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहेंगे, तब भारत माता की जय बोलते हुए राणा प्रताप शांति से प्राण त्याग देते हैं।

प्रश्न - 'राजमुकुट' नाटक का कथानक (कथावस्तु) अपने शब्दों में संक्षेप में लिखिए।

अथवा

'राजमुकुट' नाटक के प्रथम,द्वितीय,तृतीय एवं चतुर्थ अंक की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए।


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उत्तर - राजमुकुट नाटक के कथानक की कथावस्तु संक्षेप में इस प्रकार है।


प्रथम अंक की कथा –


'राजमुकुट' नाटक के प्रथम अंक की कथा मेवाड़ के राणा जगमल के महल से आरंभ होती है। राणा जगमल अत्यंत विलासी और भोग-विलास में लीन राजा है। उसे अपनी कुल की मर्यादा तथा प्रतिष्ठा का तनिक भी ध्यान नहीं है। सुरा-सुंदरी ही मानो उसका जीवन लक्ष्य है। भोग-विलास और व्यक्तिगत आनंद में किसी भी प्रकार की बाधा राजा को सहन नहीं है। वह क्रूर शासक बन गया है। प्रजा का शोषण होता है। अपने चाटुकारों और स्वार्थी दरबारियों के कहने पर वह निरपराध विधवा प्रजापति की हत्या करा देता है।

प्रजापति की इस नृशंस हत्या से प्रजा में क्रोध की ज्वाला भड़क उठती है। लोग प्रजापति के शव को लेकर राष्ट्र नायक चंद्रावत के घर पहुंच जाते हैं। चंद्रावत उस दृश्य को देखकर तथा प्रजापति की हत्या का समाचार सुनकर क्षुब्ध उठते हैं। इसी समय एक और घटना घटित होती है। राजा जगमल के क्रूर सैनिकों द्वारा निर्ममता पूर्वक सताई जाती हुई एक भिखारिणी की रक्षा कुंवर शक्ति सिंह करता है। शक्ति सिंह जगमल के वास्तविक रूप से पूर्णतया परिचित है। वह जगमल के कार्यों से बहुत खिन्न है। चंद्रावत शक्ति सिंह को कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।


एक दिन जगमल अपनी राजसभा में बैठा था। गाना-बजाना चल रहा था। उसी समय चंद्रावत वहां आए। उन्होंने जगमल को उसके नीच कर्मों के लिए बुरा-भला कहा और कहा कि वह अपने कुकर्मों के लिए प्रजा से क्षमा याचना करे। उन्होंने जगमल से आग्रह किया कि वह मेवाड़ का मुकुट उचित पात्र को सौंप दें। जगमाल ने चंद्रावत की बात स्वीकार की और अपनी तलवार तथा राजमुकुट उन्हें सौंप दिया। उसने चंद्रावती से योग्य उत्तराधिकारी चुनने के लिए कहा। चंद्रावत ने प्रताप को उत्तराधिकारी बनाया और उसे राजमुकुट और तलवार शौप दी। सुरा-सुंदरी के स्थान पर शौर्य और त्याग की भावना की प्रतिष्ठा हुई। प्रजा में खुशी की लहर दौड़ गई।


द्वितीय अंक की कथा –


प्रताप ने मेवाड़ के राजा के रूप में प्रजा के साथ पुत्रवत् व्यवहार किया। उन्होंने मेवाड़ के खोए हुए सम्मान को पुनः प्राप्त करने के लिए प्रजा को उत्साहित किया। उन्होंने अपनी प्रजा में वीरता का संचार करने के लिए 'अहेरिया' नामक उत्सव आरंभ किया। इस उत्सव में प्रत्येक क्षत्रिय के लिए एक जंगली पशु का वध करना अनिवार्य था। इसी आखेट में एक जंगली सूअर के आखेट के विषय में प्रताप और शक्ति सिंह में विवाद हो गया और वे एक दूसरे पर झपट पड़े।


राजपुरोहित ने उस दृश्य को देखा‌। उन्होंने दोनों भाइयों में बीच-बचाव करने का प्रयत्न किया, परंतु दोनों नहीं माने। राजकुल में अमंगल की संभावना से राजपुरोहित आकुल हो उठते हैं। वे अपनी कटार निकालते हैं और उसे अपने ही छाती में भोंककर प्राण त्याग देते हैं। प्रताप ने शक्ति सिंह को देश से निर्वासित कर दिया। शक्ति सिंह अकबर की सेना में सम्मिलित हो जाता है।


तृतीय अंक की कथा –


मानसिंह अकबर का सेनापति था। वह राणा प्रताप के चरित्र से बहुत प्रभावित था। मानसिंह की बुआ जोधाबाई अकबर की महारानी थी। इस कारण राणा प्रताप मानसिंह को पतित और धर्मभ्रष्ट समझते हैं। 1 दिन मानसिंह राणा प्रताप से मिलने जाता है, किंतु राणा प्रताप उससे भेंट नहीं करते। उन्होंने अपने पुत्र अमर सिंह को मानसिंह के स्वागत के लिए नियुक्त कर दिया था। इससे मानसिंह ने स्वयं को अपमानित अनुभव किया। वह अपने अपमान का बदला चुकाने की बात कह कर चला गया।


दिल्ली सम्राट अकबर की अधीनता सभी राजपूतों ने स्वीकार कर ली किंतु प्रताप अब भी अकबर के सामने सिर झुकाने को तैयार ना था। अकबर मेंवाड़ पर विजय का अवसर देख रहा था। प्रताप से मानसिंह की नाराजगी को उसने उचित अवसर समझा। उसने सलीम, मानसिंह और शक्ति सिंह के नेतृत्व में एक विशाल सेना मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए भेजी। राणा प्रताप भी युद्ध के लिए राजपूतों की सेना लेकर मैदान में आ गए। हल्दीघाटी के मैदान में दोनों सेनाएं भिड़ गईं। भयंकर युद्ध हुआ। राणा प्रताप ने अद्भुत वीरता दिखाई। शत्रु सेना को काटते हुए वे शत्रु सेना के बीच में पहुंच गए, जहां मानसिंह हाथी पर सवार होकर युद्ध कर रहा था। वहां वे मुगल सेना के व्यूह में फंस गए।


राणा प्रताप को शत्रुओं से घिरा देखकर चंद्रावत राणा के पास पहुंचे। उन्होंने राणा प्रताप के सिर से मुकुट उतारकर अपने सिर पर रख लिया। शत्रु सेना चंद्रावत को ही राणा प्रताप समझकर उस पर टूट पड़ी। उन्होंने युद्ध भूमि में ही अपने प्राणों का बलिदान करके राणा की रक्षा की। राणा शत्रुओं के बीच से निकलकर भागने में सफल हो गए। राणा का घोड़ा सरपट दौड़ा जा रहा था। दो मुगल सैनिकों ने उन्हें देख लिया। उन्होंने राणा का पीछा किया। शक्ति सिंह ने देखा कि मुगल सैनिक राणा के पीछे दौड़ रहे हैं तो उसके हृदय में भाई का प्रेम उमड़ पड़ा। उसने मुगल सैनिकों के पीछे घोड़ा दौड़ा दिया और उन दोनों सैनिकों को मार गिराया। शक्ति सिंह दौड़कर प्रताप के चरणों में गिर गया। प्रताप ने शक्तिसिंह को उठाकर गले लगा लिया। उसी समय राणा के प्रिय घोड़े चेतक ने प्राण त्याग दिए। चेतक की मृत्यु से राणा को अपार दुःख हुआ।


चतुर्थ अंक की कथा –


हल्दीघाटी के युद्ध में राजपूतों की सेना को बहुत क्षति पहुंची फिर भी राणा ने अकबर से हार नहीं मानी। राणा प्रताप की देशभक्ति, त्याग तथा शौर्य को देखकर अकबर भी मुग्ध हो गया। वह अब राणा प्रताप से मिलकर संधि करना चाहता था। उस समय शक्ति सिंह साधु का भेष बनाकर देश का भ्रमण कर रहा था। वह देश की जनता में देश प्रेम तथा एकता की भावना जगाने में लगा हुआ था। शक्ति सिंह को पता चला कि अकबर राणा प्रताप से भेंट करने को इच्छुक है। अकबर के मानवीय गुणों को शक्ति सिंह पहचानता था, इसलिए उसने अकबर और प्रताप की भेंट को अच्छा ही माना। उसकी मान्यता थी कि अकबर इस भेंट में कोई छल-प्रपंच नहीं करेगा, बल्कि अकबर और प्रताप की भेंट से देश में शांति व एकता का स्वर ऊंचा होगा।

राणा प्रताप इस समय अरावली पर्वत के वनों में भटक रहे थे।


अचानक एक दिन उनके पास एक सन्यासी आया। राणा के पास कुछ था ही नहीं जिससे वे अतिथि का उचित स्वागत-सत्कार करते। यथोचित सत्कार न कर पाने से वे खिन्न थे। वे सोच रहे थे कि किस प्रकार अतिथि को भोजन कराया जाए। उसी समय उनकी पुत्री चंपा घास के बीजों की बनी हुई रोटी अतिथि के लिए लेकर आई। कहीं से कोई वनबिलाव आया और अचानक चंपा के हाथ से रोटी छीनकर चंपत हो गया। चंपा गिर पड़ी। उसका सिर पत्थर से टकराया। गहरी चोट आई, परिणाम स्वरूप उसकी मृत्यु हो गई। सन्यासी वेशधारी अकबर संधि के विषय में राणा के विचार जानना चाहता है। राणा प्रताप संधि करने को तैयार नहीं होते हैं, क्योंकि वह अकबर को विदेशी आक्रामक मानते हैं। तब अकबर कहता है–"आप उस अकबर से तो संधि कर सकते हैं जो भारत माता को अपनी मां समझता है, जो आपकी भांति उसकी जय बोलता है।"


राणा प्रताप संधि नहीं करते, वे स्वतंत्रता के लिए जीवनभर संघर्ष करते रहते हैं।

राणा प्रताप मृत्यु की शैय्या पर पड़े हैं। रह-रहकर उन्हें अपने देश का ध्यान आता है। देश के स्वतंत्रता संग्राम को आगे चलाया जाएगा या नहीं, इसी चिंता में उनके प्राण नहीं निकलते। अंत में उनका पुत्र, बंधु-बांधव और संबंधी वचन देते हैं कि उनकी मृत्यु के पश्चात भी वे मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करते रहेंगे, तब भारत माता की जय बोलते हुए राणा प्रताप शांति से प्राण त्याग देते हैं।


इस प्रकार यह स्पष्ट है कि 'राजमुकुट' नाटक ऐतिहासिक कथानक पर आधारित है।


प्रश्न - 'राजमुकुट' नाटक के आधार पर महाराणा प्रताप सिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए।

अथवा

'राजमुकुट' नाटक के नायक (प्रमुख पात्र) का चरित्र-चित्रण कीजिए।


उत्तर - राजमुकुट नाटक का प्रमुख पात्र राणा प्रताप है। वही इस नाटक का नायक है। राणा प्रताप के मानवीय गुण पाठक के मन को ‌ आकर्षित कर लेते हैं।


आदर्श पुरुष –


महाराणा प्रताप धीरोदात्त नायक है। वह श्रेष्ठ कुलोत्पन्न वीर, साहसी तथा संयमी आदर्श पुरुष है।


प्रजा की आशाओं का आधार –


महाराणा प्रताप मेवाड़ की प्रजा की आशाओं का केंद्र हैं। प्रजा राणा को इसी आशा के साथ मुकुट पहनाती है कि वे उसकी तथा देश की रक्षा करेगा। वह प्रजा की आशाओं के अनुरूप है और प्रत्येक दशा में प्रजा का शुभचिंतक है। प्रजा उससे आशा रखती है –

''वह देश में छाई हुई दासतख की निशा पर सचमुच सूर्य बनकर हंसेगा, आलोकपुंज बनकर ज्योतित होगा। उसका प्रताप अजेय है; उसका पौरुष गेय है।"


देशभक्त –


महाराणा प्रताप अनन्य देशभक्त है। वह भारत की अखंडता का पोषक है। वह केवल चित्तौड़ ही नहीं, संपूर्ण भारत की परतंत्रता के लिए दुःखी हैं। उसकी चिंता है–

''सारा देश विदेशियों के अत्याचारों से विकंपित हो चुका है। देश के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक असंतोष राग अलाप रहा है।"

मेवाड़ की प्रजा द्वारा राजमुकुट पहनाए जाने पर महाराणा देश की रक्षा की प्रतिज्ञा करता है। उसकी यह प्रतिज्ञा उसकी देशभक्ति को सूचित करती है–

"मेरा जयनाद! मुझे महाराणा बनाकर मेरा जयनाद ना बोलो मेरे साथियों! जय बोलो भारत की, मेवाड़ की। मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि प्राणों में सांस रहते हुए प्रजा प्रभु की दी हुई इस भेंट को मलिन ना करूंगा, जब तक सारे भारत को दासता से मुक्त ना कर लूंगा, सुख की की नींद ना सोऊंगा।


स्वतंत्रता प्रेमी –


महाराणा प्रताप परतंत्र जीवन को अभिशाप मानता है। वह जीवन भर स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करता है। उसे वन-वन भटकना, भूखे-नंगे रहना, अपने बच्चों को भूखे बिलखते देखना सब कुछ स्वीकार है किंतु परतंत्रता का जीवन स्वीकार नहीं है। मरते दम तक भी उसे यही चिंता रहती है कि उसके उत्तराधिकारी स्वतंत्रता के संघर्ष को जारी रखेंगे या नहीं।


निरभिमानी –


राणा प्रताप महान देशभक्त एवं मेवाड़ का महाराणा है, किंतु उसे अभिमान बिल्कुल नहीं होता। महान होकर भी वह स्वयं को महान नहीं समझता है।


मर्यादा तथा धर्म का रक्षक –


महाराणा प्रताप सच्चा क्षत्रिय है। वह अपनी मर्यादा और धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण तक दे सकता है। वह भारतीय संस्कृति का पोषक है। सन्यासी के रूप में अकबर उसके पास आता है, तो वह उचित स्वागत-सत्कार करता है।

धर्म के प्रति राणा के मन में गहरी निष्ठा है। पुरोहित का बलिदान देखकर वह कहता है–

''देशभक्त पुरोहित तुम धन्य हो, तुमने अनुरूप ही अपना बलिदान किया है। ज्ञान और चेतना से दूर हम अधर्मों को तुमने प्रकाश दिखाया है।"


वीर योद्धा –


महाराणा प्रताप एक पराक्रमी योद्धा है। हल्दीघाटी के युद्ध में वह अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन करता है। वह अपने सैनिकों से कहता है–

"चलो युद्ध का राग गाते हुए हम सब हल्दीघाटी की युद्ध भूमि में चलें और रक्तदान से चंडी माता को प्रसन्न करके उनसे विजय का शुभ आशीर्वाद लें।''

संक्षेप में महाराणा प्रताप का चरित्र एक आदर्श देशभक्त तथा महान वीर का चित्र है। वह अनेक गुणों की खान है। वह एक महान देशभक्त, त्यागी, साहसी और उदार पुरुष है।


प्रश्न - 'राजमुकुट' नाटक के आधार पर शक्ति सिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए।


उत्तर - 'व्यथित हृदय' विरचित 'राजमुकुट' नाटक में शक्ति सिंह की चारित्रिक विशेषताएं अधोलिखित हैं–


भ्रातृ प्रेमी –


शक्ति सिंह महाराणा प्रताप का छोटा भाई है। अपने भाई से उसे अगाध प्रेम है। राणा प्रताप एवं शक्ति सिंह की भेंट समरांगण में होती है जहां राणा के घोड़े चेतक की मृत्यु हो जाती है। वे वहां बैठे हैं तभी दो यवन आते हैं और शक्ति सिंह उन्हें मौत के घाट उतार देता है तथा अपना घोड़ा महाराणा को देते हुए कहता है कि– "युग-युग जीवित रहो मेरे भैया, मेरे पूज्य भैया।''


अत्याचार विरोधी –


नाटककार ने शक्ति सिंह को अत्याचार विरोधी के रूप में चित्रित किया है।


स्वाभिमानी –


शक्ति सिंह स्वाभिमानी है, वीर है तथा वह किसी के समक्ष झुकने का नाम नहीं लेता। वह किसी की धमकी सहन नहीं कर सकता है।


एकता का उद्घोषक –


शक्ति सिंह को राष्ट्रीय एकता की भावना के पोषक के रूप में चित्रित किया गया है। वह विभिन्न धर्मों एवं संप्रदायों में एकता का पोषक है। उसमें सांप्रदायिक सद्भाव भरे हुए हैं। उसे पूरा विश्वास है कि अकबर का ह्रदय परिवर्तित होगा। वह कहता है कि – ''अकबर का हृदय परिवर्तन होगा, वह विमुग्ध होकर भारत की गरिमा के गीत गाएगा।''

इस प्रकार हम देखते हैं कि 'राजमुकुट' में चरित्रांकिंत शक्ति सिंह भ्रातृप्रेमी, वीर, साहसी, स्वाभिमानी, क्रांतिकारी, अत्याचार विरोधी, दूरदर्शी, देशभक्त, एकता का पोषक एवं सांप्रदायिक सद्भाव का पोषक है।


प्रश्न - 'राजमुकुट' के अकबर का चरित्र-चित्रण कीजिए।


उत्तर - 'राजमुकुट' के अकबर इतिहास के अकबर से काफी भिन्न पाए जाते हैं। ये दिल्ली के सम्राट हैं। भारत के अधिकांश राज्य इनके अधीन हो गए हैं। केवल मेवाड़ का राज्य ही उनकी अधीनता को स्वीकार नहीं करता जिसके लिए अकबर हर प्रकार की नीति अपनाता है। उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएं हैं–


कुशल राजनीतिज्ञ –


अकबर राजनीति में कुशल है। विदेशी होते हुए भी उसने भारतीय जनता में घुसपैठ करने में पूर्ण सफलता प्राप्त की है। उसने हिंदू स्त्रियों से वैवाहिक संबंध स्थापित किए। मानसिंह की बुआ जोधाबाई उसकी पटरानी है जिससे राजा मानसिंह का पूर्ण समर्थन उसे प्राप्त है। वह शक्ति सिंह को भी मौका पाकर अपनी और कर लेता है। इस प्रकार से अधिकांश राजपूत राजा उसके पक्ष में हो जाते हैं। उसके पास विशाल सेना है और बहुत बड़ा तोपखाना है। वह सब प्रकार से समर्थ, सबल एवं कुशल सम्राट है।


धार्मिक सहिष्णुता –


अकबर में धार्मिक कट्टरता नहीं है। वह धर्म के मामले में अत्यंत सहिष्णु है और हिंदुओं के प्रति उदार है। उसे हिंदू मुसलमानों में एकता स्थापित करने के लिए 'दीन ए इलाही' नाम का धर्म चलाया और हिंदू मुसलमानों में समभाव प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया। उसने हिंदुओं के ऊपर लगे हुए जजिया कर को हटा दिया ताकि हिंदूओं के प्रति पैदा हुए भेदभाव को मिटाया जा सके।


भारत प्रेम –


अकबर की सबसे बड़ी बात उसका भारत भूमि से हार्दिक प्रेम है। यही इस नाटक में सबसे विशेष एवं विलक्षण बात बताई गई है। वह जब महाराणा प्रताप से संधि करने की इच्छा से साधुवेश में उसके पास जाता है तो वह प्रताप के अतिथि-प्रेम तथा देशभक्ति पर अत्यंत मुग्ध होता है और उससे प्रभावित होकर उसके स्वाधीनता प्रेम की सराहना करता है।

उसका यह कथन भी उसकी धर्म निरपेक्षता एवं राष्ट्रभक्ति को अभिव्यक्त करता है–

''महाराणा! मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि आपके देश की स्वतंत्रता का अपहरण नहीं करूंगा। मैं इस देश का नागरिक, इस देश की संतति ही बनकर रहूंगा। आज से महाराणा, भारत मां मेरी मां है और इस देश के निवासी मेरे भाई हैं। हम सब भाई-भाई हैं। राणा, हम सब एक हैं।''


People Also Asked -


1. राजमुकुट कौन सी विधा की रचना है?


उत्तर - राजमुकुट नाटक नाटक कार श्री व्यथित हृदय का एक ऐतिहासिक नाटक है इस नाटक में महाराणा प्रताप की वीरता बलिदान और त्याग की कथा अंकित है।


2. राजमुकुट नाटक के आधार पर मुगल सम्राट अकबर का चरित्र चित्रण कीजिए?


उत्तर - अकबर राजनीति में कुशल है। विदेशी होते हुए भी उसने भारतीय जनता में घुसपैठ करने में पूर्ण सफलता प्राप्त की है। उसने हिंदू स्त्रियों से वैवाहिक संबंध स्थापित किए। मानसिंह की बुआ जोधाबाई उसकी पटरानी है जिससे राजा मानसिंह का पूर्ण समर्थन उसे प्राप्त है। वह शक्ति सिंह को भी मौका पाकर अपनी और कर लेता है। इस प्रकार से अधिकांश राजपूत राजा उसके पक्ष में हो जाते हैं। उसके पास विशाल सेना है और बहुत बड़ा तोपखाना है। वह सब प्रकार से समर्थ, सबल एवं कुशल सम्राट है।


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