आन का मान नाटक का सारांश || Aan ka Mana natak ka Saran

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आन का मान नाटक का सारांश || Aan ka Mana natak ka Saran

आन का मान नाटक का सारांश || Aan ka Mana natak ka Saran

'आन का मान' नाटक से संबंधित जितने भी प्रश्न यूपी बोर्ड में पूछे जाते हैं सभी प्रश्नों के उत्तर आपको यहीं पर मिलेंगे जैसे कि कथावस्तु (सारांश), प्रथम अंक, द्वितीय अंक एवं तृतीय अंक की व्याख्या अपने शब्दों में,नाटक के आधार पर औरंगजेब का चरित्र-चित्रण और 'आन का मान' नाटक के आधार पर सफीयतुन्निसा (नायिका) का चरित्र चित्रण, 'आन का मान' में अजीतसिंह का चरित्रांकन,आन का मान' नाटक के आधार पर प्रमुख पात्र दुर्गादास का चरित्र चित्रण इत्यादि

आन का मान नाटक का सारांश || Aan ka Mana natak ka Saran

प्रश्न - 'आन का मान' नाटक की कथावस्तु (सारांश) पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।

अथवा

आन का मान नाटक का कथानक/कथासार लिखिए।


उत्तर - 'आन का मान' नामक नाटक का आरंभ रेगिस्तान के रेतीले मैदान में होता है जहां औरंगजेब के चतुर्थ पुत्र अकबर द्वितीय का पुत्र बुलंद अख्तर और पुत्री सफीयतुन्निसा आपस में मुगल सम्राटों द्वारा किए गए कार्यों की चर्चा करते हैं। दुर्गादास वहां आता है और बताता है कि मानवता का नाता सबसे ऊंचा है किंतु औरंगजेब ने इसको नहीं समझा। उसने सदैव तलवार के बल पर शासन करने का प्रयत्न किया।


बुलंद अख्तर औरंगजेब की नीति का विरोध करता है। पता चलता है कि अकबर द्वितीय अपने पिता औरंगजेब की नीतियों के विरोध के कारण उससे अलग हो गया है और उसकी मित्रता दुर्गादास राठौर से हो गई है। दुर्गादास ने अकबर द्वितीय को सम्राट घोषित कर दिया था किंतु उसका यह सपना अधूरा रह गया। राजपूतों ने उसकी सहायता बंद कर दी। परिणाम स्वरूप उसे ईरान जाना पड़ा।

बुलंद अख्तर और सफीयतुन्निसा युवा हो जाते हैं। उधर जोधपुर का शिशु शासक अजीतसिंह भी युवा होकर राज्य का शासन भार संभालने लगता है। राजकुमार अजीतसिंह सफीयतुन्निसा के प्रति आकर्षित होता है और उससे प्रेम करने लगता है। 


सफीयतुन्निसा हिंदू युवक और मुसलमान युवती का विवाह असंभव समझकर इस प्रेम संबंध को काटना चाहती है। उधर दुर्गादास सफीयतुन्निसा के प्रति अजीत सिंह का प्रेम विवाह देखकर उससे रूष्ट हो जाता है। वह उसे राजपूती आन और मान का ध्यान दिलाता है–

"मान रखना राजपूत की आन होती है और इस आन का मान रखना उसके जीवन का व्रत होता है।"

अजीत सिंह अपनी गलती स्वीकार करता है और उसके लिए दुर्गादास से क्षमा याचना कर लेता है। दुर्गादास उसे क्षमा कर देता है और गले लगाकर कहता है–

"राजपूती गौरव की उज्जवल चादर पर दाग न लगने दो बेटा।"

अचानक नगाड़े की आवाज सुनाई पड़ती है। उसी समय ईश्वरदास औरंगजेब की ओर से संधि का प्रस्ताव लेकर आता है। उधर मुगल सूबेदार सुजाअत खां सादे वेश में प्रवेश करता है। अजीत सिंह उस पर प्रहार करता है किंतु दुर्गादास उसे बचा लेता है। वह कहता है– "महाराज! राजपूत निशस्त्र व्यक्ति पर प्रहार नहीं करता।"


दूसरे अंक का आरंभ भीमा नदी के तट पर ब्रह्मपुरी से आरंभ होता है। औरंगजेब ब्रह्मपुरी का नाम इस्लामपुरी रख देता है। सम्राट औरंगजेब की पुत्री मेहरून्निसा गीत गाती है। उसी समय उसकी दूसरी पुत्री जीनतुन्निसा आ जाती है। मेहरून्निसा अपने पिता द्वारा किए गए अत्याचारों की निंदा करती है और कहती है कि वह हिंदू और मुसलमान दोनों के बीच के अंतर को बढ़ाना चाहता है। वह उनकी कार्रवाई को मुगल साम्राज्य की नींव को हिलाने वाली मानती है। जीनतुन्निसा अपने पिता की निंदा नहीं करती है। वह पिता की सेवा करना चाहती है। वह कहती है कि पिता का स्वभाव कठोर और क्रोधी इसलिए है कि उन्हें किसी बेटे का प्यार नहीं मिला। उनके हृदय को यही पीड़ा सताती है कि आज ऐसा कोई नहीं है जिससे वह अपने मन की बात कर सकें।


उसी समय औरंगजेब आता है। वह कहता है कि उसने उन दोनों की बातें सुन ली हैं। मेहरून्निसा द्वारा गिनाए गए अपने अत्याचारों को अपनी भूल मानकर वह पश्चाताप करता है। वह अपने बेटे, विशेषकर अकबर के प्रति अपनी क्रूरता के लिए दुखी होता है।

सफीयतुन्निसा एवं बुलंदशहर के प्रति वह अपना असीम स्नेह प्रदर्शित करता है।


औरंगजेब अपनी वसीयत में अपने पुत्रों को जनता से उदार व्यवहार के लिए तथा अपनी मृत्यु के बाद अपने लिए सादगी से संस्कार करने को कहता है। मेहरून्निसा औरंगजेब पर व्यंग करती है कि वह यह भी लिखाये कि उसके पुत्र भी उसी के समान क्रूर कार्य करें।

वसीयत पूरी होने से पहले ईश्वरदास दुर्गादास को बंदी के रूप में औरंगजेब के सामने प्रस्तुत करता है। औरंगजेब वार्तालाप के बीच उसे मारने की धमकी देता है परंतु ईश्वरदास अपने वचन की रक्षा के लिए औरंगजेब का विरोध करता है। ईश्वरदास दुर्गादास की रक्षा के लिए तलवार अपने हाथ में ले लेता है। औरंगजेब सफीयतुन्निसा तथा बुलंद अख्तर को वापस देने के विषय पर दुर्गादास से सौदेबाजी करता है किंतु दुर्गादास इसे स्वीकार नहीं करता है।


तीसरे अंक की कथा सफीयतुन्निसा के गाने से आरंभ होती है। उसी समय अजीत सिंह भी वहां आ जाता है। वह सफीयत को अपनी जीवनसंगिनी बनाना चाहता है किंतु सफीयतुन्निसा अपने को विधवा बताकर अजीत सिंह के प्रस्ताव को अस्वीकार कर देती है। उसे यह संबंध उचित नहीं जंचता। अजीत सिंह सफीयत के सामने अनेक प्रमाण रखता है और उसे समझाता है कि भारत के कई सम्राटों विधर्मी युवतियों से विवाह किए हैं परंतु सफीयत के हृदय पर उसकी बातों का प्रभाव नहीं पड़ता। वह उसे लोकहित के लिए आत्महित का बलिदान करने की सलाह देती है–

"महाराज! प्रेम केवल भोग की ही मांग नहीं करता, वह त्याग और बलिदान भी चाहता है।"


अजीत सिंह प्रेम के उद्धेग में बहकर धैर्य खोने लगता है। सफीयत उसे धैर्य बंधाती है। वह वहां से जाना चाहती है, किंतु अजीत उसे रोककर अपने पास बैठा लेता है। उसी समय बुलंद अख्तर भी वहां आ जाता है। सफीयत उसे देखकर बहुत संकुचित होती है। वह बुलंद अख्तर को अजीत सिंह के प्रेम-प्रवाह और विवाह की बात बताती है।

बुलंद अख्तर इस विवाह का विरोध करता है। इसके पश्चात तीनों में विवाह के विषय में तर्क-वितर्क होता है। कुछ देर बाद बुलंद अख्तर चला जाता है और दुर्गादास वहां आ जाता है। वह उनकी बातें सुनकर समझ जाता है कि औरंगजेब की शंका निर्मूल नहीं है। वह अजीत सिंह को समझाने का प्रयत्न करता है कि वह इस मार्ग पर न चले किंतु अजीत सिंह उसकी बातों को नहीं मानता, वह सफीयतुन्निसा को बलपूर्वक अपने साथ चलने के लिए कहता है।


उस समय दुर्गादास सफीयत के सम्मान की रक्षा के लिए तत्पर हो जाता है। उधर मेवाड़ से मुकंददास अजीत सिंह का टीका लेकर उसी समय उपस्थित होता है। अजीत सिंह समझता है कि यह कोई दुर्गादास का ही षणयंत्र है; अतः वह मुकंददास को अपमानित करता है।

दुर्गादास सफीयत को विदा करने के लिए पालकी मंगवाता है। वह सफीयतुन्निसा को पालकी में बैठाकर कहारों को चलने का आदेश देता है। अजीत सिंह दुर्गादास के इस कार्य पर क्रुद्ध होता है और पालकी को रोकने की चेष्टा करते हुए कहता है–"दुर्गादास जी! मारवाड़ में आप रहेंगे या मैं रहूंगा।" दुर्गादास पालकी को बढ़ने का आदेश देते हुए कहता है–"आप ही रहेंगे महाराज! दुर्गादास तो सेवक मात्र है। उसने चाकरी निभा दी।'' इतना कहकर वह जन्मभूमि को प्रणाम करता है। इसी बिंदु पर नाटक की कथा समाप्त हो जाती है।


प्रश्न - 'आन का मान' नाटक के प्रथम अंक की कथा अपने शब्दों में लिखिए।


उत्तर - 'आन का मान' नामक नाटक का आरंभ रेगिस्तान के रेतीले मैदान में होता है जहां औरंगजेब के चतुर्थ पुत्र अकबर द्वितीय का पुत्र बुलंद अख्तर और पुत्री सफीयतुन्निसा आपस में मुगल सम्राटों द्वारा किए गए कार्यों की चर्चा करते हैं। दुर्गादास वहां आता है और बताता है कि मानवता का नाता सबसे ऊंचा है किंतु औरंगजेब ने इसको नहीं समझा। उसने सदैव तलवार के बल पर शासन करने का प्रयत्न किया।

बुलंद अख्तर औरंगजेब की नीति का विरोध करता है। पता चलता है कि अकबर द्वितीय अपने पिता औरंगजेब की नीतियों के विरोध के कारण उससे अलग हो गया है और उसकी मित्रता दुर्गादास राठौर से हो गई है। दुर्गादास ने अकबर द्वितीय को सम्राट घोषित कर दिया था किंतु उसका यह सपना अधूरा रह गया। राजपूतों ने उसकी सहायता बंद कर दी। परिणाम स्वरूप उसे ईरान जाना पड़ा।

बुलंद अख्तर और सफीयतुन्निसा युवा हो जाते हैं। उधर जोधपुर का शिशु शासक अजीतसिंह भी युवा होकर राज्य का शासन भार संभालने लगता है। राजकुमार अजीतसिंह सफीयतुन्निसा के प्रति आकर्षित होता है और उससे प्रेम करने लगता है। 


सफीयतुन्निसा हिंदू युवक और मुसलमान युवती का विवाह असंभव समझकर इस प्रेम संबंध को काटना चाहती है। उधर दुर्गादास सफीयतुन्निसा के प्रति अजीत सिंह का प्रेम विवाह देखकर उससे रूष्ट हो जाता है। वह उसे राजपूती आन और मान का ध्यान दिलाता है–

"मान रखना राजपूत की आन होती है और इस आन का मान रखना उसके जीवन का व्रत होता है।"

अजीत सिंह अपनी गलती स्वीकार करता है और उसके लिए दुर्गादास से क्षमा याचना कर लेता है। दुर्गादास उसे क्षमा कर देता है और गले लगाकर कहता है–

"राजपूती गौरव की उज्जवल चादर पर दाग न लगने दो बेटा।"

अचानक नगाड़े की आवाज सुनाई पड़ती है। उसी समय ईश्वरदास औरंगजेब की ओर से संधि का प्रस्ताव लेकर आता है। उधर मुगल सूबेदार सुजाअत खां सादे वेश में प्रवेश करता है। अजीत सिंह उस पर प्रहार करता है किंतु दुर्गादास उसे बचा लेता है। वह कहता है– "महाराज! राजपूत निशस्त्र व्यक्ति पर प्रहार नहीं करता।"


प्रश्न - 'आन का मान' नाटक के द्वितीय अंक की कथा का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।


उत्तर - दूसरे अंक का आरंभ भीमा नदी के तट पर ब्रह्मपुरी से आरंभ होता है। औरंगजेब ब्रह्मपुरी का नाम इस्लामपुरी रख देता है। सम्राट औरंगजेब की पुत्री मेहरून्निसा गीत गाती है। उसी समय उसकी दूसरी पुत्री जीनतुन्निसा आ जाती है। मेहरून्निसा अपने पिता द्वारा किए गए अत्याचारों की निंदा करती है और कहती है कि वह हिंदू और मुसलमान दोनों के बीच के अंतर को बढ़ाना चाहता है। वह उनकी कार्रवाई को मुगल साम्राज्य की नींव को हिलाने वाली मानती है। जीनतुन्निसा अपने पिता की निंदा नहीं करती है। वह पिता की सेवा करना चाहती है। वह कहती है कि पिता का स्वभाव कठोर और क्रोधी इसलिए है कि उन्हें किसी बेटे का प्यार नहीं मिला। उनके हृदय को यही पीड़ा सताती है कि आज ऐसा कोई नहीं है जिससे वह अपने मन की बात कर सकें।

उसी समय औरंगजेब आता है। वह कहता है कि उसने उन दोनों की बातें सुन ली हैं। मेहरून्निसा द्वारा गिनाए गए अपने अत्याचारों को अपनी भूल मानकर वह पश्चाताप करता है। वह अपने बेटे, विशेषकर अकबर के प्रति अपनी क्रूरता के लिए दुखी होता है।

सफीयतुन्निसा एवं बुलंदशहर के प्रति वह अपना असीम स्नेह प्रदर्शित करता है।


औरंगजेब अपनी वसीयत में अपने पुत्रों को जनता से उदार व्यवहार के लिए तथा अपनी मृत्यु के बाद अपने लिए सादगी से संस्कार करने को कहता है। मेहरून्निसा औरंगजेब पर व्यंग करती है कि वह यह भी लिखाये कि उसके पुत्र भी उसी के समान क्रूर कार्य करें।

वसीयत पूरी होने से पहले ईश्वरदास दुर्गादास को बंदी के रूप में औरंगजेब के सामने प्रस्तुत करता है। औरंगजेब वार्तालाप के बीच उसे मारने की धमकी देता है परंतु ईश्वरदास अपने वचन की रक्षा के लिए औरंगजेब का विरोध करता है। ईश्वरदास दुर्गादास की रक्षा के लिए तलवार अपने हाथ में ले लेता है। औरंगजेब सफीयतुन्निसा तथा बुलंद अख्तर को वापस देने के विषय पर दुर्गादास से सौदेबाजी करता है किंतु दुर्गादास इसे स्वीकार नहीं करता है।


प्रश्न - 'आन का मान' नाटक के तृतीय अंक की कथा का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।


उत्तर - तीसरे अंक की कथा सफीयतुन्निसा के गाने से आरंभ होती है। उसी समय अजीत सिंह भी वहां आ जाता है। वह सफीयत को अपनी जीवनसंगिनी बनाना चाहता है किंतु सफीयतुन्निसा अपने को विधवा बताकर अजीत सिंह के प्रस्ताव को अस्वीकार कर देती है। उसे यह संबंध उचित नहीं जंचता। अजीत सिंह सफीयत के सामने अनेक प्रमाण रखता है और उसे समझाता है कि भारत के कई सम्राटों विधर्मी युवतियों से विवाह किए हैं परंतु सफीयत के हृदय पर उसकी बातों का प्रभाव नहीं पड़ता। वह उसे लोकहित के लिए आत्महित का बलिदान करने की सलाह देती है–

"महाराज! प्रेम केवल भोग की ही मांग नहीं करता, वह त्याग और बलिदान भी चाहता है।"

अजीत सिंह प्रेम के उद्धेग में बहकर धैर्य खोने लगता है। सफीयत उसे धैर्य बंधाती है। वह वहां से जाना चाहती है, किंतु अजीत उसे रोककर अपने पास बैठा लेता है। उसी समय बुलंद अख्तर भी वहां आ जाता है। सफीयत उसे देखकर बहुत संकुचित होती है। वह बुलंद अख्तर को अजीत सिंह के प्रेम-प्रवाह और विवाह की बात बताती है।


बुलंद अख्तर इस विवाह का विरोध करता है। इसके पश्चात तीनों में विवाह के विषय में तर्क-वितर्क होता है। कुछ देर बाद बुलंद अख्तर चला जाता है और दुर्गादास वहां आ जाता है। वह उनकी बातें सुनकर समझ जाता है कि औरंगजेब की शंका निर्मूल नहीं है। वह अजीत सिंह को समझाने का प्रयत्न करता है कि वह इस मार्ग पर न चले किंतु अजीत सिंह उसकी बातों को नहीं मानता, वह सफीयतुन्निसा को बलपूर्वक अपने साथ चलने के लिए कहता है।

उस समय दुर्गादास सफीयत के सम्मान की रक्षा के लिए तत्पर हो जाता है। उधर मेवाड़ से मुकंददास अजीत सिंह का टीका लेकर उसी समय उपस्थित होता है। अजीत सिंह समझता है कि यह कोई दुर्गादास का ही षणयंत्र है; अतः वह मुकंददास को अपमानित करता है।


दुर्गादास सफीयत को विदा करने के लिए पालकी मंगवाता है। वह सफीयतुन्निसा को पालकी में बैठाकर कहारों को चलने का आदेश देता है। अजीत सिंह दुर्गादास के इस कार्य पर क्रुद्ध होता है और पालकी को रोकने की चेष्टा करते हुए कहता है–"दुर्गादास जी! मारवाड़ में आप रहेंगे या मैं रहूंगा।" दुर्गादास पालकी को बढ़ने का आदेश देते हुए कहता है–"आप ही रहेंगे महाराज! दुर्गादास तो सेवक मात्र है। उसने चाकरी निभा दी।'' इतना कहकर वह जन्मभूमि को प्रणाम करता है। इसी बिंदु पर नाटक की कथा समाप्त हो जाती है।


प्रश्न - 'आन का मान' नाटक के आधार पर प्रमुख पात्र दुर्गादास का चरित्र चित्रण कीजिए।

अथवा

''दुर्गादास का चरित्र 'आन का मान' नाटक का प्राणतत्व है।''इस कथन की विवेचना कीजिए।

अथवा

'आन का मान' नाटक के नायक (प्रमुख पात्र) की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

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उत्तर - दुर्गादास 'आन का मान' नाटक का प्रमुख पात्र है। वही नाटक का नायक है। वह मारवाड़ के महाराजा अजीत सिंह का सेनापति है। उसके चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं–


स्वामीभक्त –


दुर्गादास स्वामीभक्त सेवक है। वह स्वर्गीय महाराज जसवंत सिंह के उत्तराधिकारी अजीत सिंह के राज्य की, जब तक वह बड़ा हो, रक्षा करता है। उसे सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के लिए वह खून की होली खेलने को तैयार रहता है। अपने प्राणों को संकट में डालकर भी वह राजकुमार की रक्षा करता है। बुलंद अख्तर उसकी स्वामिभक्ति, वीरता, साहस और दृढ़ता की प्रशंसा करता है।


कुशल राजनीतिज्ञ –


दुर्गादास एक कुशल राजनीतिज्ञ भी है। सूझ-बूझ के बल पर ही वह मुट्ठीभर सैनिकों की सहायता से बालक अजीत सिंह को विशाल मुगल सेना के घेरे से बचाकर सुरक्षित मेवाड़ पहुंचा देता है। वह असंगठित राजपूत शक्ति को संगठित करता है और अपनी राजनैतिक सूझ-बूझ के द्वारा अजीत सिंह के राज्य की रक्षा करता है।


निर्भय और नि:शंक –


दुर्गादास एक निर्भय और नि:शंक वीर सेनापति के रूप में प्रस्तुत होता है। वह निर्भय होकर अकेला और निहत्था सम्राट औरंगजेब के सामने उपस्थित होता है। वह नि:शंक होकर औरंगजेब की प्रत्येक अनुचित बात का विरोध करता है।


सच्चा मित्र –


दुर्गादास एक सच्चा मित्र है। औरंगजेब का पुत्र अकबर द्वितीय उसका मित्र है। वह मित्रता का सच्चाई के साथ पालन करता है। अकबर के सभी साथी उसका साथ छोड़ देते हैं परंतु दुर्गादास एक सच्चे मित्र की भांति उसका साथ देता है। अकबर को औरंगजेब के क्रूर हाथों से बचाने के लिए वह उसे ईरान भेज देता है और उसके पुत्र बुलंद अख्तर तथा पुत्री सफीयतुन्निसा का अपने संरक्षण में पालन-पोषण करता है।


कर्तव्यपरायण –


दुर्गादास दृढ़ता से अपने कर्तव्य का पालन करता है। वह कर्तव्य की बलिवेदी पर अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देता है। अजीत जब बच्चा था, दुर्गादास उसके राज्य की रक्षा करता है। अजीत जवान हो जाता है और वह सफीयतुन्निसा के प्रेमपाश में फंस जाता है, तब दुर्गादास सफीयत को उसके बाबा औरंगजेब के पास भिजवाकर दोनों वंशों को विनाश से बचाकर अपने कर्तव्य का पालन करता है। इस कर्तव्य पालन के लिए उसे देश से निर्वासन का दंड भोगना पड़ता है।


राष्ट्रीयता –


दुर्गादास के हृदय में राष्ट्रीय भावना कूट-कूटकर भरी है। वह भारत को न केवल मुसलमानों का देश मानता है, न हिंदुओं का, वह हिंदू और मुसलमानों के बीच की खाई को पाटकर नए समाज का निर्माण करना चाहता है।

वास्तव में 'आन का मान' नाटक में दुर्गादास एक स्वामीभक्ति, निर्भय, सच्चा मित्र तथा कर्तव्यपरायण राजदूत के रूप में चित्रित हुआ है।


प्रश्न - 'आन का मान' नाटक के आधार पर सफीयतुन्निसा (नायिका) का चरित्र चित्रण कीजिए।


उत्तर - सफीयतुन्निसा औरंगजेब के पुत्र अकबर (द्वितीय) की बेटी है। औरंगजेब ने राजपूतों एवं अकबर (द्वितीय) के मध्य संदेह के बीज बोने में सफलता प्राप्त कर ली। परिणामत: अकबर (द्वितीय) अपनी बेटी सफीयतुन्निसा और पुत्र बुलंद अख्तर को दुर्गादास का संरक्षण प्रदान कर स्वयं ईरान चला गया। सफीयतुन्निसा को दुर्गादास ने एक धरोहर के रूप में अपने पास रखा। उसके चरित्र का चित्रण हम निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर कर सकते हैं–


एक गुणवती शालीन युवती –


सफीयतुन्निसा सुंदर, सुशील तथा गुणवती युवती थी। वह एक ओर दुर्गादास के स्नेह एवं वात्सल्य भावों का आधार है तो दूसरी ओर वह अपने सौंदर्य से अतीत को प्रेममुग्ध बनाने में सक्षम है। उसका व्यवहार अति मधुर है। वह अपने मृदुल एवं आकर्षक व्यवहार से सभी को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। उसका व्यवहार, उसकी शालीनता, सौम्यता एवं विनम्रता से अति निखर गया है।


विवेकशीला –


सफीयतुन्निसा एक सामान्य युवती नहीं है, जो आंख बंदकर प्रेम मार्ग पर अग्रसर हो। वह अजीत के प्रति गहन प्रेम रखती है लेकिन उससे विवाह कर वह अपने भविष्य को अंधकारमय नहीं बनाना चाहती। सफीयतुन्निसा पुनः पुनः अजीत को उसके कर्तव्य मार्ग की ओर प्रेरित करती है, उसे कर्तव्य पथ पर चलने हेतु याद दिलाती रहती है। वह उसे अपने प्रेम में आबद्ध कर मात्र अपना नहीं बनाना चाहती है, वह तो उसे मारवाड़ का तथा हिंदुस्तान का ही बनाना चाहती है। अजीत उसके प्रेम में पागल है लेकिन वह अपने प्रेम को विवेक की कसौटी पर कसती है तथा नियंत्रित ही रहती है।


स्वरलहरी का जादू –


वह स्वरलहरी के जादू की स्वामिनी है। वह मधुर व्यवहारशीला होने के साथ-साथ मधुरभाषिणी भी है। इसी मंजू भाषण एवं कंठ के जादू के कारण अजीत उसके निकट आने को बाध्य हो जाता है। संगीत के प्रभाव को अपने मधुर स्वर से समर्थन देता है। अजीत सफीयत के संगीत की प्रशंसा करते हुए कहता है कि–

"विषधर काले नागों को वह नचाता है, भोला-भाला हिरन उस पर मोहित हो अपने प्राण गवां देता है।" अजीत भी उसके संगीत के जादू से आकृष्ट हो उस पर प्राण न्यौछावर करने हेतु प्रस्तुत हो जाता है। उसमें मधुर व्यवहार एवं मधुर स्वर का संगम है।


विचारशीला –


सफीयतुन्निसा अपनी आयु की तुलना में अधिक विचारशीला नारी है। वह वैचारिक मंथनोपरांत ही राजनीतिक एवं सामाजिक विषयों पर विचारपूर्ण निष्कर्ष निकालती है। वह राजनीतिक निर्मलता एवं कुटिलता की आलोचक है– "बादशाहत का लालच मनुष्य को राक्षस बना देता है।'' इस आलोचनात्मक सूक्ति में उसने 'लालच बुरी बला है' को द्योतित कर दिया है। हिंदुस्तान में व्याप्त अराजकता एवं द्वेष के विषय में वह इस प्रकार विचार प्रकट करती है–

"हिंदुस्तान में जो कुछ हो रहा है, उसमें कहीं बहुत बड़ी भूल है।''

इस प्रकार हम देखते हैं कि उसमें अपनी आयु की अपेक्षा अधिक अनुभव है एवं विचारणा शक्ति है।


भारतीय संस्कृति का प्रभाव –


सफीयतुन्निसा के मूल संस्कार इस्लामी हैं परंतु वह भारतीय संस्कृति एवं उसके महान आदर्शों से सुप्रभावित है। वह राजपूती परंपराओं की प्रशंसक है। भारतीय वीरों के प्रति उसके हृदय में श्रद्धा है। उसमें धार्मिक सहिष्णु के मंजुल भाव भरे हैं। उसका स्वभाव एवं संस्कार भारतीय संस्कृति से परिपुष्ट हैं।

इस प्रकार हम देखते हैं कि सफीयतुन्निसा का चरित्र अनेक गुणों का गुलदस्ता है।


प्रश्न - 'आन का मान' नाटक के आधार पर औरंगजेब का चरित्र-चित्रण कीजिए।


उत्तर - 'आन का मान' नाटक का औरंगजेब दिल्ली का सम्राट और नायक दुर्गादास का प्रतिद्वंदी पात्र है। औरंगजेब 70 वर्ष की आयु का वृद्ध है। अब उसे अनुभव होता है कि वह जीवनभर अंधकार में ही भटकता रहा है। औरंगजेब के चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं–


क्रूरता –


औरंगजेब स्वभाव से क्रूर है। अपनी शक्ति के मद में चूर होकर वह उचित-अनुचित का ध्यान नहीं करता। वह अपने पिता शाहजहां, पुत्र कामबख्श तथा पुत्री जैबुन्निसा को बंदी बनाकर उन्हें जेल में डाल देता है। वह अपनी पुत्री मेहरून्निसा के ससुर की हत्या कर देता है। मेहरून्निसा के शब्दों में उसका क्रूर रूप देखिए–

"उनकी आंखें सिंह की भांति चमकती हैं, खाने को दौड़ती हैं, उनके हाथ में तलवार होती है।"

औरंगजेब स्वयं अपनी क्रूरता को स्वीकार करते हुए कहता है– ''मैंने शाही कोष के धन से केवल रक्त की होली खेली है तथा ग्रामों एवं नगरों को श्मशानों में परिवर्तित कर दिया है।"


धार्मिक जीवन –


औरंगजेब कठोर शासक होते हुए भी सादगी का जीवन बिताता है। वह बड़ा धार्मिक व्यक्ति है। वह शाही खजाने के धन का उपयोग अपने व्यक्तित्व जीवन के लिए नहीं करता। टोपियां सिलकर तथा कुरान शरीफ की नकल करके वह कुछ पैसा कमाता है और उसी से अपने व्यक्तित्व भोजन वस्त्र का व्यय चलाता है। राजकोष के धन को वह जनता की अमानत मानता है। अपनी वसीयत में वह लिखता है कि टोपियों की कीमत से हुई आय में से बचे हुए चार रुपए दो आने हैं, उसे असहाय प्राणी के कफन खरीदने के लिए तथा कुरान शरीफ की नकल से प्राप्त ₹305 फकीरों को बांटने में खर्च किए जाएंगे।


आत्मग्लानि –


औरंगजेब अपनी काली करतूतों पर बहुत पछताता है। अपने परिवार के प्रति की गई कठोरता के लिए वह स्वयं पश्चाताप करता है। अपने पिता के प्रति किए गए व्यवहार को वह अपनी भारी भूल मानता है। वह गोलकुंडा में अकाल के दिनों में 70 कोस तक लगे मुर्दों के ढेर को स्मरण कर कांप उठता है। अपने राज्य में सुख शांति के अभाव के लिए वह स्वयं को दोषी मानता है।


स्नेहिल पिता –


औरंगजेब जवानी में अपने पिता और संतान, दोनों के ही प्रति क्रूरता का व्यवहार करता है किंतु बुढ़ापे में आकर उसके हृदय में वात्सल्य का संचार होता है। वह अपने पुत्र अकबर द्वितीय, जो ईरान चला गया है, को हृदय से लगाने के लिए बेचैन हो जाता है। अन्य स्वजनों से मिलने के लिए भी वह व्याकुल होता है और उनके ना मिलने पर वह अपनी पौत्री सफीयत तथा पौत्र बुलंद अख्तर को ही पाने के लिए बेचैन हो जाता है और दुर्गादास से विनम्र प्रार्थना करता है कि वह उसकी वृद्धावस्था और बेबसी पर दया करके उन्हें किसी प्रकार लौटा दे। उसका कथन है–

''हमारे अंदर जो प्यार करने वाला दिल खोया हुआ था, वह जाग पड़ा है। वे हमारे बेटे के बच्चे हैं, मां-बाप के प्यार के बिना अपने को अनाथ अनुभव करते होंगे। हमारा भी ह्रदय उनके लिए व्याकुल है, दुर्गादास!"

सारांश यह है कि जो औरंगजेब पहले क्रूर तथा निर्दयी बादशाह था, वही बुढ़ापे में एक स्नेहमय पिता बन गया था। क्रूर होते हुए भी वह बड़ा धार्मिक व्यक्ति था। बादशाह होते हुए भी उसका जीवन सादा था। औरंगजेब के चरित्र को समझने के लिए उसका निम्नलिखित कथन ध्यान देने योग्य है–

"अब हम बूढ़े हो गए और सच्चे दिल से युद्धों से विरक्त हो चुके हैं। इसलिए शांति चाहते हैं ताकि जीवन के शेष समय में साम्राज्य में सुव्यवस्था स्थापित कर सकें। हमारे ह्रदय में जो प्यार करने वाला दिल सोया हुआ था, वह जाग पड़ा है।


प्रश्न - 'आन का मान' में अजीतसिंह का चरित्रांकन कीजिए।


उत्तर - हरिकृष्ण प्रेमी द्वारा विरचित 'आन का मान' नाटक में पुरुष पात्रों में अजीत सिंह का मुख्य स्थान है। वह मारवाड़ के महाराणा जसवंत सिंह का पुत्र और उनका उत्तराधिकारी है। दुर्गादास राठौड़ उसका संरक्षक है। उसके व्यक्तित्व एवं चरित्र की निम्नलिखित कतिपय विशेषताएं हैं–


सुंदर नवयुवक –


राजकुमार अजीत सिंह एक सुंदर नवयुवक है। इसीलिए औरंगजेब के निर्वासित पुत्र अकबर की सुंदर पुत्री नवयुवती सफीयतुन्निसा उस पर मोहित हो जाती है। वह उसे पाना चाहती है किंतु जाति, धर्म तथा खानदान की कठोर बाधा के कारण वह विवश हो जाती है।


अदूरदर्शी युवक –


अजीत सिंह दूरदर्शिता के गुण से रहित है। दुर्गादास के द्वारा सचेत किए जाने पर भी वह सफीयतुन्निसा की ओर से अपने मन को हटा नहीं पाता है। वह इसके दुष्परिणामों का अनुमान करने में असमर्थ है।


अजितेंद्रिय –


वह अपनी इंद्रियों को वशीभूत करने में असमर्थ रहता है। सफीयतुन्निसा तो परिस्थितियों पर दृष्टिपात करती हुई अपने आप पर काबू कर लेती है किंतु अजीत सिंह अपने आप पर नियंत्रण नहीं कर पाता है और अपने पिता तुल्य संरक्षक एवं स्वामीभक्त दुर्गादास पर भी प्रहार करने के लिए उद्यत हो जाता है।


निष्कर्ष – 


इस प्रकार अजीत सिंह शूरवीर क्षत्रिय राजकुमार होते हुए भी अपनी यौन संबंधी कमजोरियों के कारण प्रशंसा का पात्र नहीं बन पाता है।


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