कुहासा और किरण नाटक का सारांश || kuhasa aur Kiran natak

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कुहासा और किरण नाटक का सारांश || kuhasa aur Kiran natak

कुहासा और किरण नाटक का सारांश || kuhasa aur Kiran natak

'कुहासा और किरण' नाटक से संबंधित जितने भी प्रश्न आपके बोर्ड परीक्षा में पूछे जाते हैं। सभी प्रश्नों को यहां पर सरल भाषा में लिखे हैं। आपको एक बार पढ़ने मात्र से यह याद हो जाएंगे। जैसे कि सारांश, कथावस्तु, प्रथम अंक का चित्रण, द्वितीय अंक तृतीय अंक, उद्देश्य, नाटक के नायक का चित्रण, नायिका का चित्रण इत्यादि।

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'कुहासा और किरण'


प्रश्न - 'कुहासा और किरण' नाटक की कथावस्तु (सारांश) की समीक्षा कीजिए।


अथवा


'कुहासा और किरण' नाटक की संवाद योजना को लेखक ने किस प्रकार संवारा है स्पष्ट कीजिए।


उत्तर - 'कुहासा और किरण' विष्णु प्रभाकर का एक समस्या-प्रधान नाटक है। नाटकीय तत्वों की दृष्टि से इस नाटक की निम्नलिखित विशेषताएं दर्शनीय हैं–


कथावस्तु –


प्रस्तुत नाटक की कथा का प्रारंभ कृष्ण चैतन्य के निवास-स्थान पर अमूल्य और उनकी सेक्रेटरी सुनंदा की बातचीत से होता है। नाटक में साधु के वेश में चोरी करने वाले वर्गों का भंडाफोड़ किया गया है। इस कथानक में एक साहित्यिक सत्य है। यह आवश्यक नहीं है कि घटना इसी प्रकार घटी हो जिस प्रकार नाटक में दिखाई गई है, पर साहित्य में वही सत्य नहीं होता जो कुछ हुआ हो, बल्कि वह भी सत्य होता है जो कुछ हो सकता है। इस नाटक के कथानक में सामाजिक जीवन की समस्याओं और प्रवृत्तियों के साथ ऐतिहासिक घटनाओं को संजोया गया है। उसमें आधुनिक सामाजिक जीवन की स्पष्ट झांकी है। कथावस्तु में नाट्यकला के अनुरूप स्वाभाविकता, रोचकता, यथार्थता और सुसम्बद्धता सभी गुणों का समावेश है। देश में कपटवेश में समाज को धोखा देने वाले और भृष्ट करने वाले लोग भी हैं और वे लोग भी हैं जो देश के प्रति निष्ठा रखने वाले, समाज-सेवा करने वाले तथा जागृति पैदा करने वाले हैं। यही इस नाटक की कथा की पृष्ठभूमि है।


पात्र तथा चरित्र चित्रण –


प्रस्तुत नाटक में कुल 11 पात्र हैं जो समाज के विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें अमूल्य, कृष्ण चैतन्य, गायत्री, उमेशचंद्र अग्रवाल, विपिन बिहारी तथा सुनंदा प्रमुख पात्र हैं। प्रभा, आम आदमी, मालती, पुलिस स्पेक्टर तथा टमटा गौण पात्र हैं। सिपाही और दर्शक अप्रत्यक्ष पात्र हैं। सभी पात्र अपने-अपने वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनमें अपनी निजी विशेषताएं हैं। नाटक के कथा संगठन, उद्देश्य तथा संदेश की दृष्टि से अमूल्य को प्रधान पात्र नायक कहा जा सकता है। सभी पात्रों के चरित्र-चित्रण में लेखक ने बड़ी सावधानी और मनोवैज्ञानिकता से काम लिया है।


संवाद अथवा कथोपकथन –


'कुहासा और किरण' नाटक के संवाद अत्यंत स्वाभाविक, सजीव तथा वातावरणानुकूल हैं। कथोपकथन संक्षिप्त और मनोवैज्ञानिक हैं, जो पात्रों की मानसिक स्थिति तथा भावों के उतार-चढ़ाव को स्पष्ट करने में समर्थ हैं। कृष्ण चैतन्य और बिपिन बिहारी के स्वगत कथन भी महत्वपूर्ण तथा मार्मिक हैं। यह कथन उनके हृदय के अंतर्द्वंदों को तो स्पष्ट करते ही हैं, मानसिक दुर्बलताओं, अपराधी भावनाओं और त्रुटियों का भी संकेत करते हैं।


देशकाल तथा वातावरण –


प्रस्तुत नाटक में देशकाल तथा वातावरण के संकलन का पूर्ण रूप से निर्वाह किया गया है। नाटक की कथावस्तु वर्तमान युग से संबंधित है। उसके अनुरूप सभी घटनाओं और पात्रों में वर्तमान युग की प्रवृतियां, परंपराएं तथा युग के अनुरूप विशेषताएं पाई जाती हैं। नाटक की सभी घटनाएं और पात्र ऐसे हैं, जो प्रतिदिन समाज में हमारे सामने आते हैं। स्थान और काल के अनुरूप वातावरण जुटाने में लेखक को पूर्ण सफलता मिली है।


भाषा शैली –


भाषा-शैली ही वह तत्व है जिसके द्वारा नाटककार कथावस्तु को प्रस्तुत करता है तथा पात्रों को स्वर देता है। प्रस्तुत नाटक की भाषा स्वाभाविक, पात्रानुकुल तथा विषय के अनुरूप है। बोलचाल की सरल साधारण भाषा नाटक के प्रभाव को बढ़ाती है तथा पात्रों और घटनाओं में स्वाभाविकता उत्पन्न करती है। कृष्ण चैतन्य के इस कथन में भाषा का सरल, स्वाभाविक तथा भावबोधन में समर्थ रूप देखिए–

"दार्शनिकों ने जीवन को दो भागों में बांटा है। पहले भाग का उद्देश्य है– प्रकृति की सेवा अर्थात् परिवार का पालन पोषण करना। दूसरे भाग का अर्थ है– संस्कृति की सेवा अर्थात् जीवन के उच्च आदर्शों का अनुशीलन। प्रकृति की मूल प्रेरणा है- अपने प्रभाव को बनाए रखना अर्थात् संतान वृद्धि और संस्कृति की प्रेरणा है-जीवन के तत्व रूप आदर्शों की चरितार्थता।"

जहां-तहां प्रतीकात्मक शैली और सुंदर उक्तियों का भी प्रयोग हुआ है, जिससे नाटकीय सुंदरता और अधिक बढ़ गई है। व्यंग तथा मुहावरों के प्रयोग से भाषा में प्रभाव और चुटीलापन आ गया है।


प्रश्न - 'कुहासा और किरण' नाटक के प्रथम अंक की कथा अपने शब्दों में लिखिए।


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उत्तर - 'कुहासा और किरण' नाटक की कथा का आरंभ कृष्ण चैतन्य के निवास-स्थान पर अमूल्य और सेक्रेटरी सुनंदा की बातचीत से होता है। कृष्ण चैतन्य की षष्टि-पूर्ति का अवसर है। उमेशचंद्र अग्रवाल, बिपिन बिहारी तथा प्रभा आदि नेता जी कृष्ण चैतन्य को बधाई देने आते हैं। कृष्ण चैतन्य अमूल्य को शंका की दृष्टि से देखते हैं। उनके विचार से वह किसी भी समय संकट का कारण हो सकता है; अतः वे अमूल्य को बिपिन बिहारी के यहां हिंदी साप्ताहिक का संपादक नियुक्त करते हैं। कृष्ण चैतन्य हर समय राष्ट्रीय सेवा में संलग्न दिखाई देता है और राष्ट्र के प्रति सेवाओं के बदले ₹250 मासिक की पेंशन पाता है। प्रभा नारी अधिकार की आधुनिक समस्या पर आधारित उपन्यास की कथा सुनाना चाहती है। जिसे कृष्ण चैतन्य छपवाने का आश्वासन दे रखा है। आम आदमी भी बधाई देने आते हैं। उसी समय आकर मालती 1942 के आंदोलन की मुल्तान की एक घटना सुनाती है। उसे सुनकर कृष्ण चैतन्य घबरा जाते हैं। प्रभाकर मुखबिरों और दल-बदलूओं को संकेत करती है। प्रभा और मालती में संघर्ष हो जाता है। कृष्ण चैतन्य अपनी पुरानी कहानी प्रकट हो जाने के भय से व्याकुल हो जाते हैं। उनकी पत्नी गायत्री देवी पति के व्यवहार और हरा व्यवहार से विरक्त होकर मायके चली जाती है। कृष्ण चैतन्य के हृदय में अपनी बदनामी के अंतद्वंद होता है।


प्रश्न - 'कुहासा और किरण' नाटक के द्वितीय अंक की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।


उत्तर - दूसरे अंक की घटना विपिन बिहारी के कमरे से शुरू होती है। विपिन बिहारी अमूल्य को समझाता है कि वह और बातों को छोड़कर अपने काम तक सीमित रहे। अमूल्य विपिन बिहारी को सूचना देता है कि मुल्तान षड्यंत्र केस के स्वतंत्रता संग्राम के पांच सेनानियों में एक उसके पिता थे और उन्हीं में से एक कृष्णदेव था जो बाद में मुखबिर हो गया था। उस दल के नेता थे मालती के पति चंद्रशेखर। सुनंदा विपिन बिहारी से कृष्णदेव (जो अब कृष्ण चैतन्य था) यह कहानी पत्रों में प्रकाशित करने को कहती है, परंतु बिपिन बिहारी असमर्थता प्रकट करता है। प्रभा भी आकर मुखौटे लगाए भ्रष्टाचारियों के मुखौटे हटाकर उन्हें बेनकाब करने को कहती हैं, परंतु बिपिन बिहारी कुछ भी करने को तैयार नहीं है। अमूल्य सब का रहस्य खोल देता है। उमेशचंद्र कागज की ब्लैक में पकड़ा जाता है। प्रभा और सुनंदा कृष्ण चैतन्य की इस व्यवहार पर  क्रोध करती हैं। उमेशचंद्र उसी समय अमूल्य की आत्महत्या के प्रयत्न की सूचना देता है। सुनंदा गायत्री को समाचार देती है कि अमूल्य चोरी के इल्जाम में पकड़ा गया है। बिपिन बिहारी अपने मित्रों से सहन की हुई यातनाओं का संकेत करता है और मुक्ति चाहता है लेकिन कृष्ण चैतन्य साहस से प्रतिवाद करता है। प्रभा गायत्री की कार की ट्रक से टकराने की सूचना देते हैं और तीनों चल देते हैं।


प्रश्न - 'कुहासा और किरण' नाटक के तृतीय अंक (अंतिम अंक) की कथा संक्षेप में अपने शब्दों में लिखिए।


उत्तर - तीसरे अंक का कथानक कृष्ण चैतन्य के निवासी शुरू होता है। कृष्ण चैतन्य गायत्री के चित्र के सामने अपना अपराध स्वीकार करता है। सुनंदा बताती है कि गायत्री भी अपने को अपराधी मानती थी। कृष्ण चैतन्य भी गायत्री देवी द्वारा मृत्यु से पूर्व लिखे गए पत्र की चर्चा करता है। पत्र से अनुभव होता है कि गायत्री ने आत्महत्या की है। उसी समय सीआईडी सुपरीटेंडेंट कृष्ण मोहन का आगमन होता है। प्रभा अमूल्य को निर्दोष बताती है। विपिन बिहारी अपने पत्रों को स्वामित्व परिवर्तन की बात बताता है। कृष्ण चैतन्य कागज की चोरी का सारा हाल खोल देता है क्योंकि अमूल्य जान गया था कि कृष्ण चैतन्य ही मुल्तान षड्यंत्र केस का मुखबिर कृष्ण देव है। वह बिपिन बिहारी और उमेश चंद के अत्याचार और चोर बाजारी का भी रहस्य खोल देता है। टमटा साहब को अपने साथ चलने को कहते हैं।


मालती अपनी पेंशन की बात कहती है। कृष्ण चैतन्य अपना सबकुछ मालती को सौंप कर अपनी पत्नी के चित्र को प्रणाम कर चला जाता है। आम आदमी कृष्ण चैतन्य के कृष्ण मंदिर में जाने की सूचना देता है। विपिन और उमेश चंद्र का सोशल बॉयकॉट कर दिया जाता है। अमूल्य छूट जाता है अमूल और प्रभा भ्रष्टाचारियों के मुखौटे हटाकर उन्हें बेनकाब करने का निश्चय करते हैं। आम आदमी बिपिन बिहारी और उमेश चंद के गिरफ्तार होने की सूचना देता है। 'बलिदान' कभी व्यर्थ नहीं जाता अमूल्य के इस कथन के साथ ही नाटक समाप्त हो जाता है।


प्रश्न - 'कुहासा और किरण' नाटक के कथासार (सारांश/कथानक) संक्षेप में लिखिए।


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उत्तर - 'कुहासा और किरण' नाटक की कथा का आरंभ कृष्ण चैतन्य के निवास-स्थान पर अमूल्य और सेक्रेटरी सुनंदा की बातचीत से होता है। कृष्ण चैतन्य की षष्टि-पूर्ति का अवसर है। उमेशचंद्र अग्रवाल, बिपिन बिहारी तथा प्रभा आदि नेता जी कृष्ण चैतन्य को बधाई देने आते हैं। कृष्ण चैतन्य अमूल्य को शंका की दृष्टि से देखते हैं। उनके विचार से वह किसी भी समय संकट का कारण हो सकता है; अतः वे अमूल्य को बिपिन बिहारी के यहां हिंदी साप्ताहिक का संपादक नियुक्त करते हैं। कृष्ण चैतन्य हर समय राष्ट्रीय सेवा में संलग्न दिखाई देता है और राष्ट्र के प्रति सेवाओं के बदले ₹250 मासिक की पेंशन पाता है। प्रभा नारी अधिकार की आधुनिक समस्या पर आधारित उपन्यास की कथा सुनाना चाहती है। जिसे कृष्ण चैतन्य छपवाने का आश्वासन दे रखा है। आम आदमी भी बधाई देने आते हैं। उसी समय आकर मालती 1942 के आंदोलन की मुल्तान की एक घटना सुनाती है। उसे सुनकर कृष्ण चैतन्य घबरा जाते हैं। प्रभाकर मुखबिरों और दल-बदलूओं को संकेत करती है। प्रभा और मालती में संघर्ष हो जाता है। कृष्ण चैतन्य अपनी पुरानी कहानी प्रकट हो जाने के भय से व्याकुल हो जाते हैं। उनकी पत्नी गायत्री देवी पति के व्यवहार और हरा व्यवहार से विरक्त होकर मायके चली जाती है। कृष्ण चैतन्य के हृदय में अपनी बदनामी के अंतद्वंद होता है।


दूसरे अंक की घटना विपिन बिहारी के कमरे से शुरू होती है। विपिन बिहारी अमूल्य को समझाता है कि वह और बातों को छोड़कर अपने काम तक सीमित रहे। अमूल्य विपिन बिहारी को सूचना देता है कि मुल्तान षड्यंत्र केस के स्वतंत्रता संग्राम के पांच सेनानियों में एक उसके पिता थे और उन्हीं में से एक कृष्णदेव था जो बाद में मुखबिर हो गया था। उस दल के नेता थे मालती के पति चंद्रशेखर। सुनंदा विपिन बिहारी से कृष्णदेव (जो अब कृष्ण चैतन्य था) यह कहानी पत्रों में प्रकाशित करने को कहती है, परंतु बिपिन बिहारी असमर्थता प्रकट करता है। प्रभा भी आकर मुखौटे लगाए भ्रष्टाचारियों के मुखौटे हटाकर उन्हें बेनकाब करने को कहती हैं, परंतु बिपिन बिहारी कुछ भी करने को तैयार नहीं है। अमूल्य सब का रहस्य खोल देता है। उमेशचंद्र कागज की ब्लैक में पकड़ा जाता है। प्रभा और सुनंदा कृष्ण चैतन्य की इस व्यवहार पर  क्रोध करती हैं। उमेशचंद्र उसी समय अमूल्य की आत्महत्या के प्रयत्न की सूचना देता है। सुनंदा गायत्री को समाचार देती है कि अमूल्य चोरी के इल्जाम में पकड़ा गया है। बिपिन बिहारी अपने मित्रों से सहन की हुई यातनाओं का संकेत करता है और मुक्ति चाहता है लेकिन कृष्ण चैतन्य साहस से प्रतिवाद करता है। प्रभा गायत्री की कार की ट्रक से टकराने की सूचना देते हैं और तीनों चल देते हैं।


तीसरे अंक का कथानक कृष्ण चैतन्य के निवासी शुरू होता है। कृष्ण चैतन्य गायत्री के चित्र के सामने अपना अपराध स्वीकार करता है। सुनंदा बताती है कि गायत्री भी अपने को अपराधी मानती थी। कृष्ण चैतन्य भी गायत्री देवी द्वारा मृत्यु से पूर्व लिखे गए पत्र की चर्चा करता है। पत्र से अनुभव होता है कि गायत्री ने आत्महत्या की है। उसी समय सीआईडी सुपरीटेंडेंट कृष्ण मोहन का आगमन होता है। प्रभा अमूल्य को निर्दोष बताती है। विपिन बिहारी अपने पत्रों को स्वामित्व परिवर्तन की बात बताता है। कृष्ण चैतन्य कागज की चोरी का सारा हाल खोल देता है क्योंकि अमूल्य जान गया था कि कृष्ण चैतन्य ही मुल्तान षड्यंत्र केस का मुखबिर कृष्ण देव है। वह बिपिन बिहारी और उमेश चंद के अत्याचार और चोर बाजारी का भी रहस्य खोल देता है। टमटा साहब को अपने साथ चलने को कहते हैं।


मालती अपनी पेंशन की बात कहती है। कृष्ण चैतन्य अपना सबकुछ मालती को सौंप कर अपनी पत्नी के चित्र को प्रणाम कर चला जाता है। आम आदमी कृष्ण चैतन्य के कृष्ण मंदिर में जाने की सूचना देता है। विपिन और उमेश चंद्र का सोशल बॉयकॉट कर दिया जाता है। अमूल्य छूट जाता है अमूल और प्रभा भ्रष्टाचारियों के मुखौटे हटाकर उन्हें बेनकाब करने का निश्चय करते हैं। आम आदमी बिपिन बिहारी और उमेश चंद के गिरफ्तार होने की सूचना देता है। 'बलिदान' कभी व्यर्थ नहीं जाता अमूल्य के इस कथन के साथ ही नाटक समाप्त हो जाता है।


प्रश्न - 'कुहासा और किरण' नाटक के उद्देश्य पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।

अथवा

'कुहासा और किरण' नाटक में समाज के सभी प्रमुख वर्गों के पात्रों का चरित्रांकन किया गया है, स्पष्ट कीजिए।


उत्तर - उद्देश्य - प्रस्तुत नाटक का उद्देश्य आनंद की प्राप्ति के अतिरिक्त सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं का उद्घाटन करना है। हमारे देश में कुछ ऐसे मुखोटेधारी नेता, व्यापारी तथा संपादक आदि। विभिन्न प्रकार के लोग हैं जो दिखाने के लिए तो राष्ट्रभक्ति, समाज सेवा और जनकल्याण का स्वांग भरते हैं पर वास्तव में यह राष्ट्र विरोधी और गद्दार हैं प्रवाह के शब्दों में नाटक का उद्देश्य निम्नवत है - 


"मैं मुखौटे लगाये मुखबिरों को, भ्रष्टाचारियों को देश में फैले छद्‌म को बेनकाब करूंगी।


सुनंदा भी इसी उद्देश्य को स्पष्ट करती हुई कहती है -

"मैं पुकार पुकार कर कहूंगी कि आप सब भ्रष्ट हैं, नीच है ,देशद्रोही है, आज नहीं तो कल आपको समाज के सामने जवाब देना होगा, गायत्री मां के बलिदान के पीछे जो उदात्त भावना है, वह जनता तक पहुंचने ही चाहिए"।


वास्तव में विभिन्न पात्रों के मुख से यह नाटककार की ही भावनाएं व्यक्त हुई हैं। देश में फैले हुए भ्रष्टाचार का सही चित्र जनता के सामने रखकर उससे बचने का सही आदर्श सामने रखना तथा समाज को देश प्रेम और राष्ट्रीय चेतना का संदेश देना ही इस नाटक का मुख्य उद्देश्य है, इस प्रकार लेखक ने भारत की आत्मा की पीड़ा का चित्रण करते हुए समस्याएं तथा उनके समाधान प्रस्तुत किए हैं तथा जिसकी सिद्धि में नाटककार को पर्याप्त सफलता मिली है।


प्रश्न - 'कुहासा और किरण' नाटक का नायक कौन है? उसकी चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

                          अथवा

कुहासा और किरण नाटक के मुख्य पात्र अमूल्य का चरित्र-चित्रण कीजिए।


उत्तर - 'कुहासा और किरण नाटक में अमूल्य ही सबसे प्रमुख पुरुष पात्र है। उसी की करुण कहानी नाटक का मूल आधार है; अतः उसी को इस नाटक का नायक मानना उचित है।


कर्तव्यपरायण -


अमूल एक कर्तव्यपरायण कर्मठ व्यक्ति के रूप में सामने आता है। वह कृष्ण चैतन्य का सेक्रेटरी है। षष्टि पूर्ति के उत्सव पर सारा कार्यभार उसे सौंपा जाता है। अपने कर्तव्य का अच्छे से पालन करता है।


सत्यवादी -


सत्यवादी का अमूल्य के चरित्र की महती विशेषता है। वह एक भ्रष्टाचारी नेता का सेक्रेटरी है किंतु भ्रष्टाचारी के साथ देते हुए भी वह सच्चाई के मार्ग पर चलता है। षष्टि पूर्ति के उत्सव पर सुनंदा के साथ बातचीत में ही उसकी सच्चाई का आभास होने लगता है।


दूरदर्शी - 


अमूल्य दूरदर्शी है। वह प्रत्येक बात के दूर तक के परिणाम को सोचता है। कृष्ण चैतन्य और विपिन बिहारी के भ्रष्टाचार और चोर बाजारी को जानकर भावी परिणाम का अनुमान कर लेता है।


चरित्रवान -


अमूल्य के चरित की सबसे बड़ी विशेषता उसका उज्ज्वल चरित्र है। वह भारत की उस पीढ़ी का प्रतिनिधि है। जिसका जन्म भारत की स्वतंत्रता के साथ या बाद में हुआ तथा जिसके पिता ने अपने जीवन को देश के लिए बलिदान कर दिया था।


देश प्रेमी -


देश प्रेम अमूल्य की नस नस में समाया हुआ है। वह एक स्वतंत्र सेनानी का पुत्र है और पिता के संस्कार उसके खून में समाए हुए हैं। उसकी देश प्रेम की भावना उसके निम्नलिखित कथन से स्पष्ट होती है -

"हमारे लिए देश सबसे ऊपर है। देश की स्वतंत्रता हमने प्राणों की बलि देकर पाई थी, उसे अब कलंकित ना होने देंगे।"


बुद्धिमान -


अमूल्य बुद्धिमान युवक है। उसकी बुद्धिमत्ता को देखकर कृष्ण चैतन्य जैसे नेता भी उससे डरते हैं। कृष्ण चैतन्य अमूल्य को धमकाकर बाहर निकाल देता है, पर उसके मन का भय उसकी वाणी में इस प्रकार प्रकट होता है - 


"अमूल तेज बुद्धि का युवक है । मुझे डर है, यह उससे कुछ अधिक ही जानता है इतना मुझे दिखाई देता है मुझे इस पर दृष्टि रखनी होगी।…"


साहसी तथा निर्भीक युवक -


अमूल्य के चरित्र में साहस और निर्भीकता विशेष रूप से पाई जाती है। अपने को भ्रष्टाचारियों के बीच में गिरा हुआ देखकर वह उनके संपर्क से बचने के लिए नौकरी छोड़ने का निश्चय कर लेता है, और यह परवाह नहीं करता की जीविका कैसे चलेगी।


'कुहासा और किरण' नाटक में अमूल्य सबसे अधिक प्रभावशाली कर्तव्यपरायण, सत्यवादी, चरित्रवान, दूरदर्शी, बुद्धिमान, देशभक्त और साहसी से युवक है। वास्तव में यह एक आदर्श चरित्र है।


प्रश्न - 'कुहासा और किरण' नाटक की सुनंदा का चरित्र-चित्रण कीजिए।

अथवा

'कुहासा और किरण' नाटक के प्रमुख नारी पात्र (नायिका) का चरित्र-चित्रण कीजिए।


उत्तर - 'कुहासा और किरण' नाटक की सुनंदा के चरित्र में निम्न विशेषताएं पाई जाती हैं–


साहसी एवं निर्भीक –


साहस और निर्भीकता सुनंदा के चरित्र की एक बड़ी विशेषता है। आधुनिक युग की शिक्षित सचेत नारी में इस प्रकार की निर्भीकता और भी स्वाभाविकता उत्पन्न कर देती है।


चतुर और विनोदप्रिय –


सुनंदा बड़ी चतुर, विनोदप्रिय और हंसमुख है। वह कृष्ण चैतन्य की निजी सचिव रही है। सचिव के रूप में उसका कार्य सर्वथा प्रशंसनीय रहा, परंतु अपनी चतुरता और तेज बुद्धि के बल पर वह कृष्ण चैतन्य के भ्रष्टाचार और देशद्रोह से परिचित हो जाती है। उसमें कवियों जैसी प्रतिभा है। नाटक के आरंभ में ही अमूल्य से बातचीत करते हुए उसके व्यंग इतने तीखे और चुभते हुए हैं कि पाठक के हृदय में कृष्ण चैतन्य का मुखौटाधारी रूप प्रकट होने लगता है।


दूरदर्शी –

सुनंदा बहुत समझदार और दूरदर्शी महिला है। वह हर कार्य के दूरगामी परिणाम का पहले ही अनुमान कर लेती है। अमूल्य के पकड़े जाने पर वह पहले ही अनुमान कर लेती है कि कृष्ण चैतन्य ने षड्यंत्र करके अमूल्य को फंसाया है और वह यह भी जान लेती है कि उसने आत्महत्या करने का प्रयत्न स्वयं नहीं किया बल्कि उसे ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया है।

देशभक्त –

सुनंदा में देश-प्रेम की भावना बहुत गहरी है। वह समाज के पाखंडियों का रहस्य खोलने में अमूल्य का पूरा साथ देती है। समाज के भ्रष्टाचार और मुखौटाधारियों के मुखौटों को हटाने में वह निरंतर प्रयत्नशील रहती है।

इन सबके अतिरिक्त सुनंदा में नारी सुलभ दया, करूणा, स्नेह आदि गुण भी विद्यमान हैं। वह एक आदर्श नारी के रूप में चित्रित हुई है।

प्रश्न - 'कुहासा और किरण' नाटक के कृष्ण चैतन्य पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।

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उत्तर - कृष्ण चैतन्य के चरित्र में निम्न विशेषताएं पाई जाती हैं–

कृतिमता तथा आडंबर –

कृष्ण चैतन्य का जीवन कृतिमता और आडंबर से परिपूर्ण है‌। वह मुलतान केस के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से मुखबिर बनकर गद्दारी करता है किंतु देश और समाज की सेवा का ऐसा ढोंग रचता है कि शासन और जनता दोनों की आंखों में धूल झोंकता है।                      

दूरदर्शी –

कृष्ण चैतन्य एक दूरदर्शी पात्र है। उसका असली नाम कृष्णदेव था किंतु मुलतान केस में मुखबिर होकर इस नाम से वह समाज में बदनाम हो जाता है इसीलिए उसने अपना नाम कृष्ण चैतन्य बदल लिया था। वह सुनंदा को अलग बुलाकर कहता है–

"अमूल्य को मैं अपने पास नहीं रखना चाहता। न जाने क्यों मुझे शंका होती है? मेरा मन कहता है कि वह किसी भी समय संकट का कारण हो सकता है। तुम इस पर दृष्टि रखना।"

कूटनीतिज्ञ –

कृष्ण चैतन्य प्रतिभा संपन्न एवं कूटनीतिज्ञ पात्र है। यह ठीक है कि वह अपनी प्रतिभा का दुरुपयोग करता है जिसके कारण उसका चरित्र घृणित हो जाता है, परंतु यदि उसकी प्रतिभा का सदुपयोग होता तो वह एक श्रेष्ठ पुरुष बन सकता था।

देशद्रोही –

कृष्ण चैतन्य का चरित्र एक देशद्रोही का चरित्र है। वह सन् 1942 के मुलतान केस के पांच अभियुक्तों में से एक है और उस समय मुखबिर बनकर भारी गद्दारी करता है।

निष्कर्ष –

सारांश यह है कि कृष्ण चैतन्य का चरित्र देश और समाज की सेवा के बनावटी ठेकेदार बनकर कृतिम नामधारी उन तथाकथित नेताओं के चरित्र का रहस्योद्घाटन करता है जो समाज पर कलंक हैं। वह एक कृत्रिम, आडंबरी, दूरदर्शी, कूटनीतिज्ञ और भ्रष्टाचारी नेता है। उसका चरित्र अत्यंत स्वाभाविक, मानवीय तथा विश्वसनीय है।

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कुहासा और किरण क्या है?

उत्तर - कुहासा के रूप में कृष्ण चैतन्य, विपिन बिहारी, उमेश चंद जैसे पात्र हैं जो किरण के रूप में अमूल्य, सुनंदा आदि पात्र। ये भ्रष्टाचार और पाखंड के कुहासे से अपने आचरण की किरण से दूर करते हैं। इसलिए लेखक ने इस नाटक का नाम 'कुहासा और किरण' रखा है जो पूर्णरूपेण सार्थक भी हैं।

कुहासा और किरण के लेखक कौन हैं?

उत्तर - प्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु प्रभाकर द्वारा रचित 'कुहासा और किरण' नाटक में स्वाधीनता वा स्वाधीन भारत के सामाजिक और राजनीतिक जीवन से संबंधित समस्याओं को प्रस्तुत किया गया है।

कुहासा का शीर्षक कहानी के लेखक कौन है?

उत्तर - अमरकांत की मुख्य रचनाएं हैं -  जिंदगी और जोंक, देश के लोग, मौत का नगर, मित्र मिलन, कुहासा (कहानी अमरकांत सन 1925-2014)

कुहासा का मतलब क्या होता है?

उत्तर - हवा में मिले हुए या वातावरण में मौजूद जलवाष्प के अत्यंत सूक्ष्म कण जो बादल की तरह अदृश्यताया धुंधलापन पैदा करते हैं। धुंध।

किरण क्या है?

उत्तर - किसी समांगी माध्यम में प्रकाश एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक जिस रास्ते से होकर गुजरता है। उस रास्ते को प्रकाश की किरण कहते हैं। प्रकाश की किरणें हमेशा सीधी लाइनों में गुजरती हैं, यानी कि यह कह सकते हैं कि दो बिंदुओं के बीच में जो प्रकाश की लाइन होती है वह पूरी तरह सीधी होती है और ऐसे ही किरण कहते हैं।


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