त्यागपथी खंडकाव्य का सारांश || Tyag Panchi khandkavya ka Saransh
त्यागपथी खंडकाव्य -
प्रश्न - त्यागपथी खंडकाव्य की कथानक (कथावस्तु) सारांश संक्षेप में अपनी भाषा में लिखिए।
अथवा
त्यागपथी खंडकाव्य के प्रथम तीन सर्गों की कथा संक्षेप में लिखिए।
अथवा
त्यागपथी खंडकाव्य के द्वितीय सर्ग की कथा का सारांश लिखिए।
अथवा
त्यागपथी खंडकाव्य के तृतीय सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा
त्यागपथी खंडकाव्य के चतुर्थ सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा
त्यागपथी के अंतिम सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा
त्यागपथी खंडकाव्य के द्वितीय (तृतीय) सर्ग का सारांश लिखिए।
अथवा
त्यागपथी खंडकाव्य के पंचम सर्ग की कथा अपनी भाषा में लिखिए।
उत्तर - त्यागपथी श्री रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' द्वारा रचित श्रेष्ठ खंडकाव्य है। इस काव्य की कथा ऐतिहासिक है जो 5 वर्गों में विभाजित है। कथा इस प्रकार है –
प्रथम सर्ग की कथा –
हर्षवर्धन वन में आखेट के लिए जाते हैं। उन्हें वन में ही समाचार मिलता है कि उनके पिता महाराज प्रभाकर वर्धन को तेज ज्वर प्रदाह है। राजकुमार तुरंत वापस घर जाते हैं और पिता का बहुत उपचार करते हैं किंतु पिता स्वस्थ्य नहीं हो पाते हैं। उस समय हर्षवर्धन के बड़े भाई राज्यवर्धन उत्तरापथ में हूणों से युद्ध में लगे हुए थे। हर्षवर्धन ने दूत के द्वारा राज्यवर्धन के पास पिता की बीमारी का समाचार पहुंचाया। हर्षवर्धन की माता पति की बिगड़ती दशा को देखकर आत्मदाह के लिए तैयार हो जाती हैं। हर्षवर्धन माता को बहुत समझाता है किंतु वे नहीं मानती हैं और पति की मृत्यु से पूर्व ही आत्मदाह कर लेती हैं। कुछ समय पश्चात महाराज प्रभाकर वर्धन भी स्वर्ग सिधार जाते हैं। पिता का अंतिम संस्कार का हर्षवर्धन महल में लौट कर आते हैं। उन्हें इस बात की चिंता है कि पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर उनके भाई राज्यवर्धन तथा बहन राज्यश्री की क्या दशा होगी?
द्वितीय सर्ग की कथा –
उधर राज्यवर्धन हूणों को हराकर सकुशल सेना सहित अपने नगर में वापस आते हैं। वे माता पिता की मृत्यु का समाचार सुनकर शोकाकुल हो उठते हैं और वैराग्य लेने का निश्चय कर लेते हैं। किंतु उन्हें उसी समय समाचार मिलता है कि मालवराज ने उनकी बहन राज्यश्री के पति गृहवर्मन का वध कर दिया है और राज्यश्री को कारागार में डाल दिया है। समाचार पाते ही राज्यवर्धन वैराग्य की बात भूलकर मालवराज का वध कर अपनी बहन की रक्षा के लिए चल देते हैं। मार्ग में गौड़ नरेश से उनका युद्ध होता है। गौड़ नरेश को राज्यवर्धन पराजित कर देते हैं किंतु गौड़ नरेश छल करके राज्यवर्धन का वध करा देते हैं। हर्षवर्धन को भाई की मृत्यु का समाचार मिलता है। वे एक विशाल सेना लेकर मालवराज पर आक्रमण हेतु चल देते हैं। उन्हें मार्ग में समाचार मिलता है कि राज्यश्री कारागार से निकलकर विंध्यांचल के वन की ओर निकल गई है। हर्षवर्धन भी युद्ध की बात छोड़कर बहन को खोजने के लिए वन की ओर चल पड़ते हैं। वन में वे दिवाकरमित्र के आश्रम में पहुंचते हैं। वहां उन्हें समाचार मिलता है कि राज्यश्री आत्मदाह करने की वाली है। तत्पश्चात वे दिवाकरमित्र और राज्यश्री को साथ लेकर कन्नौज की ओर चल देते हैं।
तृतीय सर्ग की कथा –
हर्षवर्धन अपनी विशाल सेना के साथ कन्नौज पर आक्रमण कर देते हैं और अपनी बहन के राज्य पर अनीतिपूर्वक अधिकार जमाने वाले मालवराज से बदला चुकाना चाहते हैं किंतु मालवराज भागकर अपने प्राण बचा लेता है। राज्यवर्धन की हत्या करने वाला गौड़ नरेश शशांक भी गौड़ देश की ओर भाग जाता है। हर्षवर्धन की विजय होती है। सभी लोग हर्षवर्धन से प्रार्थना करते हैं कि वह कन्नौज की गद्दी पर बैठें, परंतु हर्ष अपनी बहन का राज्य लेने को तैयार नहीं होते। वे अपनी बहन से अनुरोध करते हैं कि वह सिंहासन पर बैठे किंतु राज्यश्री भी सिंहासन पर बैठने से मना कर देती है। अंत में हर्षवर्धन कन्नौज के संरक्षक बन जाते हैं और वह राज्यश्री के नाम पर ही शासन चलाते हैं।
इसके पश्चात हर्षवर्धन दिग्विजय करते हैं। 6 वर्ष की कालावधि में वे कश्मीर, पंचनंद, सारस्वत, मिथिला, उत्कल, गौड़, नेपाल, बल्लभी, सोरठ सभी राज्यों को जीतकर एक विशाल सुसंगठित राज्य की स्थापना करते हैं। वे कन्नौज को अपनी राजधानी बनाते हैं और अनेक वर्षों तक धर्म का राज्य करते हैं।
चतुर्थ सर्ग की कथा –
राज्यश्री एक विशाल राज्य की शासिका है, वह फिर भी दुःखी है। उसके मन में वैराग्य की भावना जागृत हो जाती है, जिसके कारण वह सब सांसारिक सुखों को त्यागकर भिक्षुणी बनना चाहती है। वह हर्षवर्धन के पास जाती है और सन्यास ग्रहण करने की आज्ञा मांगती है। हर्षवर्धन राज्यश्री को समझाते हैं – तुम तो मन से संन्यासिनी ही हो, फिर भी यदि गेरूआ वस्त्र पहनना ही चाहती हो तो पहन लो। अपने वचन के अनुसार तुम्हारे साथ ही मैं भी सन्यास ग्रहण कर लूंगा। उसी समय दिवाकरमित्र वहां आ जाते हैं। वे हर्ष और राज्यश्री दोनों को समझाते हैं कि तुम दोनों भाई-बहन मन से तो सन्यासी ही हो किंतु शरीर से सन्यासी बनने और गृहत्याग की तुम्हें आवश्यकता नहीं है। देश की रक्षा और सेवा करना इस समय संन्यास ग्रहण करने की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण है। दिवाकर मित्र के उपदेश से दोनों सन्यास का विचार छोड़ देते हैं और देश सेवा में लग जाते हैं।
पंचम सर्ग की कथा –
हर्षवर्धन एक आदर्श सम्राट के रूप में शासन करते हैं। उनके राज्य में सब ओर सुख और शांति की वर्षा होती है तथा विद्वानों की पूजा होती है। उनके राज्य में सभी लोग सदाचारी, धर्मपालक तथा सुरुचि संपन्न हैं। महाराज हर्षवर्धन सदा जनकल्याण की बात सोचते हैं। शास्त्र चिंतन ही उनका व्यसन है। अपने भाई के इस प्रकार के धर्मानुशासन को देखकर राज्यश्री भी प्रसन्न रहती है। उनका संपूर्ण राज्य एकता के सूत्र में बंधा है। एक बार हर्षवर्धन तीर्थराज प्रयाग जाते हैं और वहां वे अपना संपूर्ण राजकोष दान कर देते हैं, यहां तक कि वे अपने शरीर के वस्त्र भी दान कर देते हैं और तब अपनी बहन से मांगकर वस्त्र पहनते हैं। इसके पश्चात वे हर 5 में वर्षा इसी प्रकार प्रयाग जाते और राजकोष में जितना धन होता, सारा दान कर देते हैं। इस दान को वे प्रजा-ऋण से मुक्ति का उपाय कहते हैं। वे अपने जीवन में 6 बार इस प्रकार के सर्वस्व दान का आयोजन करते हैं। वे कर्तव्यपरायण, त्यागी, परोपकारी तथा परमवीर एवं प्रजा के शुभचिंतक थे।
प्रश्न - 'त्यागपथी' खंडकाव्य की कथावस्तु की समीक्षा कीजिए।
उत्तर - 'त्यागपथी' खंडकाव्य एक सफल खंडकाव्य है, महाकाव्य नहीं। इस काव्य की कथावस्तु में खंडकाव्य की निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं -
इतिहास एवं कल्पना का समन्वय –
यह कथावस्तु इतिहास से ली गई है। हर्षवर्धन, राज्यवर्धन, राज्यश्री, प्रभाकरवर्धन, यशोमती, शशांक तथा मालवराज आदि सभी पात्र ऐतिहासिक हैं। हर्षवर्धन के माता-पिता तथा भाई की मृत्यु, बहनोई का पतन, राज्यश्री की खोज, कन्नौज विजय, कन्नौज का राज्य चलना, हर्षवर्धन की दिग्विजय, कन्नौज को राजधानी बनाना, हर पांचवे वर्ष प्रयाग जाना और सर्वस्व दान करना आदि सभी घटनाएं पूर्णतः ऐतिहासिक हैं।
यह सब होते हुए भी कथावस्तु के संगठन में रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' ने कथा को मार्मिक तथा सरस बनाने के लिए कल्पना का पर्याप्त प्रयोग किया है। यशोमती का चिता प्रवेश, हर्षवर्धन की व्यथा, राजश्री को खोजते समय हर्षवर्धन का दिवाकरमित्र के आश्रम में पहुंचना, भिक्षुक द्वारा राज्यश्री के आत्मदाह करने की सूचना पाना आदि घटनाएं इतिहास सम्मत नहीं है। ये सब बाणभट्ट द्वारा रचित 'हर्षचरित' पर आधारित है जो कवि की कल्पना-शक्ति की उपज है।
'त्यागपथी' खंडकाव्य के कवि ने कथानक को मार्मिकता प्रदान करने के लिए स्वयं कल्पना का सुंदर पुट दिया है। हर्षवर्धन की माता-पिता तथा भाई-बहन के प्रति प्रेम भावना की अभिव्यक्ति तथा दिवाकरमित्र, राज्यश्री और हर्षवर्धन के चरित्र में भी कल्पना का पर्याप्त प्रयोग किया गया है।
इतिहास और कल्पना के सुंदर समन्वय के कारण ही इस खंडकाव्य की कथावस्तु सरस, आकर्षक तथा प्रभावशाली बन गई है।
श्रेष्ठ कथा संगठन –
कथा का आरंभ अत्यंत रोचक एवं प्रभावपूर्ण है। हर्षवर्धन अभी युवा भी नहीं हो पाए थे कि उन पर आपत्तियों के पहाड़ टूट पड़ते हैं। माता-पिता और भाई की मृत्यु से उनका हृदय व्यथित हो उठता है। धीरे-धीरे कथा में विकास होने लगता है। हर्षवर्धन सेना लेकर कन्नौज की ओर प्रस्थान करते हैं। वे अपनी बहन को खोजकर उन्हें आत्मदाह करने से रोकते हैं, तत्पश्चात कन्नौज को शत्रु से मुक्त कराकर राज्यश्री के नाम पर कन्नौज का शासन संभाल कर हर्षवर्धन कन्नौज और थानेश्वर, दोनों के अधिपति बन जाते हैं।
हर्षवर्धन की दिग्विजय तथा प्रयाग में जाकर सर्वस्व दान करना ऐसी घटनाएं है जहां हर्षवर्धन का चरित्र चमक उठता है। यही कथावस्तु के चरम उत्कर्ष का बिंदु है। यहां पहुंचकर हर्षवर्धन की लोक कल्याण की भावना चरम सीमा पर पहुंच जाती है। हर्षवर्धन के उत्तम शासन का वर्णन कथा का उतार है। श्री हर्ष की मृत्यु तथा उनके महान चरित्र से प्रेरणा लेने की कामना के साथ इस काव्य के कथानक का प्रभावपूर्ण अंत हो जाता है। इस प्रकार इस काव्य की कथावस्तु सुसंगठित तथा मार्मिक है।
कौतूहलपूर्ण कथा –
'त्यागपथी' खंडकाव्य की कथावस्तु उत्सुकता तथा कौतूहल पूर्ण है। काव्य को पढ़ते हुए पाठक के हृदय में उत्सुकता बढ़ती जाती है। वह जानना चाहता है कि इससे आगे क्या होगा। प्रत्येक घटना के परिणाम से उसका कौतूहल बढ़ता जाता है।
सारांश यह है कि 'त्यागपथी' खंडकाव्य की कथावस्तु ऐतिहासिक होते हुए भी कल्पना से समन्वित है। यह अत्यंत मार्मिक, सुसंगठित तथा कौतूहलवर्धक है।
प्रश्न - 'त्यागपथी' काव्य के आधार पर हर्षवर्धन की चारित्रिक विशेषताएं बताइए।
अथवा
'त्यागपथी' खंडकाव्य का नायक कौन है? उस का चरित्र चित्रण कीजिए।
अथवा
'त्यागपथी' खंडकाव्य के आधार पर इस कथन की पुष्टि कीजिए कि हर्षवर्धन का चरित्र देश प्रेम का प्रखरतम उदाहरण है।
उत्तर - 'त्यागपथी' खंडकाव्य के नायक है थानेश्वर के महाराजा हर्षवर्धन। वे प्रभाकरवर्धन के कनिष्ठ पुत्र हैं। हर्षवर्धन के चरित्र में निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं –
आदर्श पुत्र –
हर्षवर्धन एक आदर्श पुत्र के रूप में सामने आते हैं। वे अपने पिता के रोगी होने का समाचार पाते ही आखेट छोड़कर तत्काल घर आते हैं और उनका उपचार करते हैं। माता के आत्मदाह की बात सुनकर वे विह्वल हो जाते हैं।
आदर्श भाई –
हर्षवर्धन आदर्श पुत्र होने के साथ-साथ आदर्श भाई भी हैं। अपने भाई से उन्हें असीम प्रेम है। वह अपने बड़े भाई राज्यवर्धन का उसी प्रकार अनुगमन करते हैं जैसे लक्ष्मण राम का अनुगमन करते थे। अपनी छोटी बहन राजेश्री से हर्षवर्धन को प्रगाढ़ प्रेम है। बहन को अग्निदाह करते देख वे व्याकुल हो जाते हैं और आग की परवाह ना करके उसे अग्निदाह से बचा लेते हैं।
महान योद्धा –
हर्षवर्धन एक महान योद्धा थे। शत्रु उनके सामने ठहर नहीं पाता था। कन्नौज पर आक्रमण करके उन्होंने शशांक का वध किया। मालवराज ने भागकर प्राण बचाए। उनके शासन में कोई विद्रोही सिर न उठा पाता था – "उठा पाया न सिर कोई प्रवंचक।"
साम्राज्य के संस्थापक –
त्यागपथी हर्षवर्धन ने थानेश्वर और कन्नौज के शासन को स्थिर करने के पश्चात दिग्विजय की और उत्तर भारत के कई राज्यों को जीतकर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की और अनेक वर्षों तक धर्म पूर्वक शासन किया।
प्रजावत्सल –
महाराज हर्षवर्धन एक योग्य शासक थे। वे अपनी प्रजा से पुत्रवत् प्रेम करते हैं। प्रजा की भलाई में ही वे अपना सारा समय लगाते हैं। अपनी प्रजा के लिए ही उन्होंने अपना तन-मन-धन सब कुछ अर्पित कर दिया था।
योग्य शासक –
हर्षवर्धन एक सुयोग्य शासक हैं। वे विशाल राज्य की व्यवस्था करते हैं। कहीं कोई विद्रोही सिर नहीं उठाता। उनका शासन धर्म का शासन है।
महान दानी –
'त्यागपथीज् का हर्षवर्धन आत्मसंयमी तथा महान दानी है। पिता की मृत्यु के पश्चात वे अपने बड़े भाई का अधिकार ग्रहण नहीं करना चाहते। वे राजकोष को प्रजा की समाप्ति मानते हैं और उसे हर पांचवें वर्ष प्रयाग में जाकर प्रजा के लिए ही दान कर देते हैं। अपने पहनने तक के वस्त्र भी वे दान कर देते हैं और अपनी बहन से मांग कर वस्त्र पहनते हैं।
संक्षेप में कह सकते हैं कि हर्षवर्धन का चरित्र एक आदर्श सम्राट का चरित्र है। वे महान योद्धा, प्रजावत्सल राजा, महान दानी तथा उदार पुरुष के रूप में चित्रित हुए हैं।
प्रश्न - 'त्यागपथी' खंडकाव्य के आधार पर इसके नारी पात्र राज्यश्री का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर - राज्यश्री 'त्यागपथी' का दूसरा पात्र है जो पाठकों को सर्वाधिक प्रभावित करता है। वह सम्राट हर्षवर्धन की छोटी बहन और कन्नौज की महारानी है। भाई द्वारा आत्मदाह से बचा लेने पर वह अपना सारा जीवन जनसेवा के लिए समर्पित कर देती है।
देशप्रेमिका –
'त्यागपथी' काव्य की राज्यश्री का ह्रदय देशप्रेम और लोककल्याण की भावना से परिपूर्ण है। वह विधवा हो जाती है। पति वियोग के दुःख को सहन नहीं कर पाने के कारण वह आत्मदाह करने को तत्पर है। तब अपने भाई के समझाने पर वह केवल इसलिए जीवित रहती है क्योंकि उसका जीवन प्रजा की भलाई और जनकल्याण के लिए है।
त्यागमयी नारी –
राज्यश्री नारी होते हुए भी त्याग की साक्षात् मूर्ति है। हर्षवर्धन कन्नौज राज्य को शत्रु से मुक्त करके अपनी बहन राजश्री को सिंहासन पर बैठाना चाहता है परंतु राज्यश्री इसे बंधन समझती है। अपने जीवन को भी जनहित में समर्पित करने वाली, मन से सन्यासिनी राज्यश्री राज्य को स्वीकार नहीं करती है।
करुणा की मूर्ति –
त्यागपथी काव्य की राज्यश्री करुणा की साक्षात् मूर्ति है। वज्रपात सदृश्य अनेक दुःखों को झेलकर उसका हृदय करुणा से भर गया था। शोक की अग्नि में निरंतर तपकर उसका ह्रदय द्रवित हो गया था और वह आंसू बनकर बह जाना चाहता था। वास्तव में राज्यश्री की करूणा ही उसे राष्ट्र और दीन दुखियों की सेविका बना देती है।
संक्षेप में राज्यश्री का चरित्र देशप्रेम से परिपूर्ण, त्याग और तपस्या की मूर्ति, करुणामयी आदर्श भारतीय नारी का चरित्र है। उसका पतिव्रता धर्म और कर्तव्यनिष्ठा अनुकरणीय हैं।
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