आलोकवृत्त खंडकाव्य का सारांश || Alokvritt Khand Kavya ka Saransh

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आलोकवृत्त खंडकाव्य का सारांश || Alokvritt Khand Kavya ka Saransh

आलोकवृत्त खंडकाव्य का सारांश || Alokvritt Khand Kavya ka Saransh

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प्रश्न - आलोकवृत्त की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।

अथवा

आलोकवृत्त खंड काव्य की प्रमुख कथागत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।


उत्तर - 'आलोकवृत्त' गुलाब खंडेलवाल की उत्तम कृती है। इस काव्य में भारत के स्वतंत्रता संग्राम की मार्मिक कथा का वर्णन है। इसके कथानक में निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं –


ऐतिहासिकता –


आलोकवृत्त की कथावस्तु ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित है। कवि ने कल्पना का पुट देकर कथा को सरस तथा ह्रदयस्पर्शी बना दिया है। खंडकाव्य की कथा बापू के जन्म से आरंभ होती है और देश की स्वतंत्रता-प्राप्ति पर समाप्त होती है।


कथा संगठन –


प्रस्तुत काव्य की कथावस्तु अत्यंत संगठित तथा प्रभावपूर्ण है। कवि ने कथानक को 8 सर्गों में विभाजित किया है। गांधी जी के महान जीवन को एक लघु काव्य के रूप में प्रस्तुत करके इस काव्य में कवि ने अपने रचना-कौशल को दर्शाया है। सारांश रूप में कहा जा सकता है कि 'आलोकवृत्त' काव्य की कथा सर्वथा सुगठित है। सभी घटनाएं परस्पर सम्बद्ध हैं।


कौतूहलवर्धक –


इस काव्य की कथा अति कौतूहलपूर्ण है। कथानक का आरंभ बड़ी रोचकता के साथ होता है। काव्य को पढ़ते हुए पाठक की उत्सुकता बढ़ती जाती है और वह जानना चाहती है कि इससे आगे क्या हुआ। कथा का अंत भी बड़ा मार्मिक और प्रभावपूर्ण है।


विचारों की प्रधानता –


यद्यपि 'आलोकवृत्त' घटना प्रधान काव्य है तथापि उसमें गहन विचारों का समन्वय है। कथानक घटना-प्रधान होते हुए भी यह एक चिंतनशील तथा विचारात्मक खंडकाव्य है।


सोद्देश्यता –


'आलोकवृत्त' एक उद्देश्यपूर्ण रचना है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ओजपूर्ण इतिहास को अभिव्यक्त करना, महात्मा गांधी के जीवन चरित्र को प्रस्तुत करना तथा हिंसा पर अहिंसा की ओर अन्याय पर न्याय की विजय दिखाना ही काव्य में कवि का उद्देश रहा है।


अन्य विशेषताएं –


यह काव्य बड़ा सरल और रमणीय है। कथानक में कोई उलझन नहीं है। यह अत्यंत सरस रचना है।


प्रश्न - 'आलोकवृत्त' खंड काव्य की कथा संक्षेप में लिखिए।

अथवा

'आलोकवृत्त' खंडकाव्य का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।

अथवा

'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के प्रथम एवं द्वितीय सर्ग की कथा पर प्रकाश डालिए।

अथवा

'आलोकवृत्त' के आधार पर द्वितीय सर्ग की कथावस्तु का निरूपण कीजिए।

अथवा

'आलोकवृत्त' के तृतीय सर्ग की कथा लिखिए।

अथवा

'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के तृतीय सर्ग की कथा पर प्रकाश डालिए।

अथवा

'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के चतुर्थ सर्ग की कथा पर प्रकाश डालिए।

अथवा

'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के पंचम सर्ग की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।

अथवा

नमक सत्याग्रह का वर्णन 'आलोकवृत्त' के किस सर्ग में है? उस सर्ग का कथासार प्रस्तुत कीजिए।

अथवा

'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के आधार पर नमक सत्याग्रह का वर्णन कीजिए।

अथवा

'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के सप्तम सर्ग का कथानक अपनी भाषा में लिखिए।

अथवा

'आलोकवृत्त' के सप्तम एवं अष्टम (अंतिम) सर्ग का कथासार लिखिए।

अथवा

'आलोकवृत्त' खंडकाव्य में स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास की झांकी के दर्शन होते हैं। स्पष्ट कीजिए।


उत्तर - 'आलोकवृत्त' खंड काव्य की कथा गांधी जी के जन्म से लेकर स्वतंत्रता-प्राप्ति तक की ऐतिहासिक कथा है। इस कथा को 8 सर्गों में विभाजित किया गया है। कथा इस प्रकार है –


प्रथम सर्ग की कथा –


कवि भारत के स्वर्णिम अतीत का वर्णन कर तत्कालीन भारत की दशा का वर्णन करता है। इसमें नई मानवता का जयघोष किया है और गुलाम भारत के जागरण की आवाज ऊंची की है। देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था। स्वतंत्रता की प्रथम क्रांति के ठीक 12 वर्ष पश्चात गुजरात प्रदेश में पोरबंदर नामक स्थान पर महात्मा गांधी का जन्म हुआ। गांधी जी के जन्म के साथ ही प्रथम सर्ग समाप्त हो जाता है।


द्वितीय सर्ग (गांधीजी का प्रारंभिक जीवन) की कथा –


द्वितीय सर्ग में गांधीजी के प्रारंभिक जीवन की कथा है। बचपन में गांधीजी में अनेक कुसंगतियां और दुर्बलताएं थीं। कुसंगति के कारण उन्होंने मांस खाया तथा चोरी और झूठ बोलने जैसी बुराइयां भी उन्होंने कीं। परंतु उन्होंने अपनी बुराइयों को समझा, आत्मग्लानि की आग में जले और पश्चाताप किया। उन्होंने अपने पिता के सामने अपनी गलतियों पर लज्जा का अनुभव किया और उनसे क्षमा याचना की।


इसके पश्चात गांधीजी ने कभी उन गलतियों को नहीं दोहराया। वे एक सत्यवादी विद्यार्थी बन गए। उनका हृदय-परिवर्तन हो गया। बहुत थोड़ी उम्र में कस्तूरबा के साथ उनका विवाह हो गया। उनके पिता का स्वर्गवास हो गया। उसके पश्चात गांधीजी वकालत पढ़ने के लिए एक लैंड गए और वहां से बैरिस्टर बनकर लौटे, तब तक उनकी माता का भी स्वर्गवास हो चुका था। इससे उन्हें बहुत दु:ख होता है। एक दिन स्वप्न में उनकी स्वर्गवासिनी मां उन्हें प्रेरणा देती हैं कि वे भारत माता के कलंक को दूर करें।


तृतीय सर्ग की कथा –


तीसरे सर्ग में गांधी जी के अफ्रीका प्रवास का वर्णन है। एक मुकदमे के संबंध में वे अफ्रीका गए। अफ्रीका में 1 दिन वे रेलगाड़ी के प्रथम श्रेणी के डिब्बे में यात्रा कर रहे थे, उसी डिब्बे में कुछ अंग्रेज भी यात्रा कर रहे थे। अंग्रेजों ने गांधी जी का अपमान किया और उन्हें काला समझकर प्रथम श्रेणी के डिब्बे से उतार दिया। सारी रात उन्हें स्टेशन पर आसमान की छत के नीचे काटनी पड़ी। गांधीजी ने अफ्रीका में प्रवासी भारतीयों की दुर्दशा देखी। गोरे शासक उन पर बहुत अत्याचार करते थे। रंगभेद की इस नीति और भारतीयों पर होने वाले अत्याचारों को देखकर गांधी जी को बहुत दुःख हुआ। उनका ह्रदय क्षुब्ध हो उठा। उन्होंने भारतीयों के उद्धार का निश्चय किया। जनता में आत्मबल जगाकर अहिंसा से हिंसा को मिटाने का संकल्प लिया‌ –


"पशुबल के सम्मुख आत्मा की, शक्ति जगानी होगी।

मुझे अहिंसा से हिंसा की, आग बुझानी होगी।।''


गांधीजी ने अफ्रीका में भारतीयों के उद्धार के लिए अहिंसापूर्ण आंदोलन छेड़ दिया। उनके इस अहिंसापूर्ण आंदोलन को 'सत्याग्रह' नाम दिया गया। अनेक कष्ट झेलकर लोगों में चेतना पैदा कर उन्होंने अफ्रीकावासी भारतीयों के कष्टों को दूर किया।


चतुर्थ सर्ग की कथा –


अफ्रीका निवासी भारतीयों के कष्टों को हल्का कर गांधीजी स्वदेश लौटते हैं। अपने देश की दुर्दशा को देखकर गांधी जी का हृदय रो पड़ता है। उन्होंने देश को स्वतंत्र कराने का संकल्प लिया। संपूर्ण देश में भ्रमण किया और लोगों में स्वतंत्रता के लिए जागरण करना आरंभ कर दिया। गांधीजी ने साबरमती के किनारे एक आश्रम की स्थापना की। अनेक लोग उनके अनुयायी हो गये। डॉ राजेंद्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, विनोबा भावे, राजगोपालाचारी, सरोजिनी नायडू, दीनबंधु एण्ड्रज, मदन मोहन मालवीय, सुभाषचंद्र बोस आदि प्रमुख अनुयायी थे।

अंग्रेजों के अत्याचार बढ़ते जा रहे थे। बिहार में नील की खेती पर रोक लगा दी गई थी गांधी जी ने 'चंपारन' में आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन में उन्हें सफलता मिली। एक अंग्रेज ने अपनी पत्नी के द्वारा गांधी जी को विष देने का प्रयास किया किंतु गांधी जी के दर्शन कर वह अंग्रेज महिला ऐसी प्रभावित हुई कि उसे विष देने का साहस ही नहीं हुआ। अंग्रेज पति-पत्नी का हृदय परिवर्तित हो गया। इसके बाद खेड़ा सत्याग्रह का वर्णन हुआ है‌ जिसमें सरदार वल्लभभाई पटेल की विशेष भूमिका दिखाई गई है।


पंचम सर्ग की कथा –


भारत के असंख्य जन गांधीजी के आंदोलन में सम्मिलित हो जाते हैं। स्वतंत्रता का आंदोलन क्रमशः तेज फिर तेज से और तेज होता जाता है। अंग्रेज दमन की नीति अपनाते हैं। भारतीयों पर अत्याचार बढ़ते जाते हैं। गांधी जी के नेतृत्व में स्वतंत्रता-प्रेमियों का समूह नागपुर पहुंचता है। कांग्रेस का अधिवेशन नागपुर में होता है। अधिवेशन में गांधी जी का ओजस्वी भाषण होता है। उनके भाषण से लोगों में नई चेतना जाग उठती है। अंग्रेज 'फूट डालो और शासन करो' की नीति अपनाते हैं। परिणाम स्वरूप जहां-तहां हिंदू मुसलमानों के बीच दंगे होते हैं। गांधी जी को बंदी बना लिया जाता है। सत्याग्रह का कार्यक्रम स्थगित कर दिया जाता है। जेल से छूटने के बाद गांधी जी ने अपना सारा समय हिंदू-मुस्लिम एकता, शराबबंदी, हरिजनों उत्थान और खादी प्रचार आदि के रचनात्मक कार्यों में लगाया। हिंदू मुस्लिम एकता के लिए उन्होंने 21 दिनों के उपवास का संकल्प किया। इसके पश्चात लाहौर में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ जिसमें कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पास किया।


षष्ठ सर्ग की कथा (नमक सत्याग्रह) –


छठे सर्ग में स्वतंत्रता संग्राम की प्रसिद्ध घटना 'नमक आंदोलन' का वर्णन किया गया है। अंग्रेजी सरकार समुद्र के पानी से नमक बनाने पर रोक लगा देती है। इससे अनेक लोगों की रोजी-रोटी समाप्त हो जाती है। गांधी जी के नेतृत्व में विशाल जनसमूह डांडी नामक स्थान पर जाता है। वे नमक कानून को तोड़ते हैं। इस आंदोलन में शामिल हजारों लोगों को जेलों में डाल दिया गया। इसके पश्चात लंदन में गोलमेज कांफ्रेंस बुलाई गई। इसमें गांधीजी को भी बुलाया गया। सन् 1937 ईस्वी में प्रांतीय स्वराज्य की स्थापना हुई। इसके साथ ही छठा सर्ग समाप्त हो जाता है।


सप्तम सर्ग की कथा –


सन् 1939 ईस्वी में द्वितीय विश्वयुद्ध आरंभ हो जाता है। अंग्रेजी सरकार चाहती है कि भारतीय भी इस युद्ध में सहयोग करें, किंतु वह भारतीयों को अधिकार नहीं देना चाहती। सन् 1942 ईस्वी में भयंकर जनक्रांति हो जाती है। गांधीजी पूर्ण स्वराज्य का संकल्प लेते हैं। वे प्रतिज्ञा करते हैं कि या तो पूर्ण स्वतंत्रता लाऊंगा अथवा अपने प्राण त्याग दूंगा। गांधी जी ने 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' का नारा दिया। बाबू के इस नारे ने क्रांति की ज्वाला सुलगा दी। देश के करोड़ों देशभक्त स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। यह जनक्रांति सारे देश में आग की तरह फैल गई। इस क्रांति का बड़ा हृदयग्राही, ओजस्वी और प्रभावपूर्ण वर्णन किया गया है। इसके बाद गांधी जी की पत्नी कस्तूरबा का स्वर्गवास हो जाता है।


अष्टम सर्ग की कथा (भारतीय स्वतंत्रता) –


अष्टम सर्ग का आरंभ भारतीय स्वतंत्रता के साथ होता है। सारे देश में हर्ष-उल्लास के साथ स्वतंत्रता का उत्सव मनाया जाता है किंतु इसके साथ ही साथ देशभर में हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिक दंगे भड़क उठते हैं। गांधीजी को इससे अपार कष्ट होता है। वे देशवासियों को समाप्ति देने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं –


''प्रभु इस देश को सत्पथ दिखाओ, लगी जो आग भारत में बुझाओ।''


इस कल्याण-कामना के साथ आलोकवृत्त खंडकाव्य की समाप्ति हो जाती है।


प्रश्न - 'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के नायक गांधी जी का चरित्र चित्रण कीजिए।

अथवा

'आलोकवृत्त' खंडकाव्य के प्रमुख पात्र गांधीजी के चरित्र (व्यक्तित्व) की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

अथवा

"जुड़ता जब संबंध हृदय का, भेद-भाव मिट जाता है।

देश जाति रंगों से गहरा, मानवता का नाता है।।"

प्रस्तुत कथन के आलोक में महात्मा गांधी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए।

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उत्तर - आलोकवृत्त खंडकाव्य के नायक महात्मा गांधी एक धीरोदात्त नायक हैं।


आरंभिक जीवन में मानवीय दुर्बलताएं –


गांधीजी आरंभिक जीवन में एक सामान्य बालक थे। वे पढ़ने-लिखने में तीव्र बुद्धि नहीं थे। अनेक मानवोचित दुर्बलताएं जैसे मांस खाना, चोरी करना आदि उनमें विद्यमान थी। बचपन में इन्हें धूम्रपान और असत्य भाषण का दोष भी था।

किंतु कुछ समय बाद उन्हें अपनी भूलों पर आत्मग्लानि हुई। उन्होंने एक दिन अपने पिता के चरणो में बैठकर अपनी भूलों का चिट्टा उनके सामने रखा। आसुओं के जल से आत्मशुद्धि करके पिता का आशीर्वाद पाया और इन अवगुणों से सदा के लिए किनारा कर लिया।


देशप्रेम – 


'आलोकवृत्त' के गांधीजी के चरित्र की सर्वप्रमुख विशेषता उनका देश प्रेम है। वे देश को विदेशी शासन से मुक्त कराने का संकल्प लेते हैं। वे अनेक बार जेल की यातना सहते हैं और देश को स्वतंत्र करा कर ही दम लेते हैं।


सत्य और अहिंसा के उपासक –


गांधीजी सत्य और अहिंसा के पुजारी हैं। सत्य हरिश्चंद्र नाटक को पढ़कर उन्होंने हरिश्चंद्र के समान सत्य का अनुयायी बनने का निश्चय किया था। हिंसा और असत्य से उन्हें घृणा थी। वे शारीरिक बल से अधिक महत्व आत्मिक बल को देते थे और अहिंसामय आत्मबल से पशुबल पर विजय प्राप्त करना चाहते थे।


महान उज्ज्वल चरित्र –


गांधी जी का व्यक्तित्व महान और उज्जवल था। उनका शरीर दुर्बल था किंतु उसमें महान आत्मा निवास करती थी। अपने विशिष्ट गुणों के कारण ही उन्हें महामानव का पद प्राप्त हुआ था। वे मनुष्य होते हुए भी देवतुल्य थे। दुर्बल शरीर होते हुए भी वे अजेय थे।


ईश्वर में विश्वास –


गांधी जी को ईश्वर की सत्ता पर अटूट विश्वास था। वे प्रत्येक कार्य को परमेश्वर का कार्य समझते थे, और उसे ईश्वर को साक्षी मानकर करते थे। इसलिए वे मात्र पवित्र साधनों का प्रयोग ही उचित समझते थे।


भेदभाव से दूर –


गांधीजी ऊंच-नीच, छोटा-बड़ा, जाति-पाति के भेद को नहीं मानते थे। वे सबके लिए समानता के सिद्धांत के अनुयायी थे। उन्होंने जीवन भर, जाती-पाति और रंगभेद का विरोध किया। इस भेदभाव से उन्हें बहुत दुख होता था।


''जुड़ता जब संबंध हृदय का, भेदभाव मिट जाता है।

देश जाति रंगों से गहरा, मानवता का नाता है।।''


इस प्रकार आलोकवृत्त के गांधीजी श्रेष्ठ, उच्चकुलीन, धीरोदात्त नायक हैं।  उनमें श्रेष्ठ मानव के सभी गुण विद्यमान हैं।इस खंडकाव्य में गांधी जी के प्रेरणाप्रद विचारों को काव्य की वाणी दी गई है।


People Also Asked -


1. आलोक वृत्त क्या है?


उत्तर - आलोकवृत्त खंडकाव्य का कथानक महात्मा गांधी के जीवन वृत्त पर आधारित है। इसमें महात्मा गांधी की सदाचार एवं मानवता के गुणों से प्रकाशित व्यक्तित्व को चित्रित किया गया है।


2. खंडकाव्य कैसे लिखें?


उत्तर - वस्तुतः खंडकाव्य एक ऐसा पद्यबद्ध कहां पर है जिसके कथानक में एकात्मक अन्विति होः कथा में एकांगिता हो।


3. आलोक वृत्त खंड काव्य के लेखक कौन हैं?


उत्तर - आलोक वृत्त खंड काव्य की रचना कविवर गुलाब खंडेलवाल द्वारा की गई है।


4. आलोक वृत्त शब्द का अर्थ क्या है?


उत्तर - आलोक वृत्त का अर्थ होता है जीवन वृत्त आधार पर उन्होंने सत्य प्रेम अहिंसा आदि मानवीय भावनाओं का प्रकाश फैलाया है।


5. आलोक वृत्त खंड काव्य nityastudypoint.com के मुताबिक सारांश क्या है?


उत्तर - 'आलोकवृत्त' गुलाब खंडेलवाल की उत्तम कृती है। इस काव्य में भारत के स्वतंत्रता संग्राम की मार्मिक कथा का वर्णन है।


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