जय सुभाष खंडकाव्य का सारांश|| Jay Subhash Khandkavya ka Saransh

top heddar

जय सुभाष खंडकाव्य का सारांश|| Jay Subhash Khandkavya ka Saransh

जय सुभाष खंडकाव्य का सारांश|| Jay Subhash Khandkavya ka Saransh 

 जय सुभाष खंडकाव्य  

Jay Subhash ka Charitra chitran,Jay Subhash Khand Kavya,Jay Subhash khandkavya ka Saransh,Jay Subhash ka Saransh,Jay Subhash Khand Kavya ke,जय सुभाष,जय सुभाष खंडकाव्य,जय सुभाष खंडकाव्य का सारांश,जय सुभाष खंडकाव्य कथावस्तु,सुभाष चंद्र बोस का चरित्र चित्रण,जय सुभाष खंडकाव्य के आधार पर नेताजी का चरित्र चित्रण,जय सुभाष खंडकाव्य,UP Board class 10th result Subhash Khandkavya

प्रश्न 1. 'जय सुभाष' खंडकाव्य के आधार पर सुभाष चंद्र बोस के प्रारंभिक जीवन (विद्यार्थी जीवन व बाल जीवन) पर प्रकाश डालिए।

अथवा

'जय सुभाष' खंडकाव्य के प्रथम सर्ग, द्वितीय सर्ग का सारांश लिखिए।

अथवा

'जय सुभाष' खंडकाव्य के आधार पर भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में सुभाष के योगदान का वर्णन कीजिए।

अथवा

'जय सुभाष' खंडकाव्य के षष्ठ सर्ग, सप्तम सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए।

अथवा

'जय सुभाष' खंडकाव्य के किसी एक सर्ग की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए

अथवा

'जय सुभाष' खंडकाव्य के तृतीय सर्ग, चतुर्थ सर्ग, पांचवें सर्ग का सारांश (कथानक, कथावस्तु, कथासार) लिखिए।

अथवा

'जय सुभाष' खंडकाव्य की प्रमुख घटना का उल्लेख कीजिए।

अथवा

'सुभाष चंद्र बोस ने देश के लिए अपने सुखों का त्याग किया तथा देश की आजादी के लिए संघर्ष करते रहे हैं।' इसे अलग-अलग उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिए।

उत्तर - जय सुभाष खंडकाव्य नेताजी सुभाष चंद्र बोस के व्यक्तित्व और आदर्श गुणों का परिचय प्रदान करने वाली एक सुंदर रचना है। इस काव्य का संपूर्ण कथानक 7 सर्गों में विभक्त है। इसका सर्गवार सारांश इस प्रकार है–

प्रथम सर्ग –

प्रथम सर्ग में सुभाष के प्रारंभिक जीवन से लेकर स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित होने तक का वर्णन है। सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 ईसवी को कटक (ओडिशा) में हुआ था। इनके पिता का नाम 'जानकीनाथ बोस' और माता का नाम 'प्रभावती देवी' था।

बड़े होने पर सुभाष ने अपनी तीव्र बुद्धि का परिचय दिया। इन्होंने अपने परिश्रम एवं लगन से शैक्षिक परीक्षाओं में उत्तम अंक प्राप्त किए। प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढ़ते समय ऑटेन नामक अंग्रेज प्रोफेसर द्वारा, भारतीयों की निंदा सुनकर इन्होंने उसके गाल पर एक तमाचा मारकर स्वाभिमान, देशभक्ति एवं साहस का अद्भुत उदाहरण दिया। इन्होंने बी.ए. की परीक्षा तथा विदेश जाकर आई.सी.एस. की परीक्षा उत्तीर्ण की। महात्मा गांधी और देशबंधु चितरंजन दास से प्रभावित होकर सरकार द्वारा प्रदत्त आई.सी.एस. के उच्च पद को त्याग दिया और स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित हो गए।

द्वितीय सर्ग –

खंडकाव्य के द्वितीय सर्ग में सुभाष के भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग लेने का वर्णन है। सन् 1921 ईस्वी में महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन व्यापक रूप से चल रहा था। उन्हीं दिनों देशबंधु जी ने एक नेशनल कॉलेज की स्थापना की, जिसका प्रधानाचार्य उन्होंने सुभाष को नियुक्त कर दिया। सुभाष ने छात्रों में देश प्रेम और स्वतंत्रता की भावना जागृत की और राष्ट्र-भक्त स्वयंसेवकों की एक सेना तैयार की। ये पंडित मोतीलाल नेहरू द्वारा स्थापित 'स्वराज्य पार्टी' के प्रबल समर्थक थे। इन्होंने दल के कई प्रतिनिधियों को काउंसिल में प्रवेश कराया। इन्होंने कोलकाता महापालिका का खूब विकास किया। सरकार ने इन्हें अकारण ही अलीपुर जेल में डाल दिया। इनका अधिकांश जीवन कारागार में ही व्यतीत हुआ।

तृतीय सर्ग –

खंडकाव्य के तीसरे सर्ग की कथा सन् 1928 से आरंभ होती है। सन् 1928 ईस्वी में कोलकाता के कांग्रेस के 46वें अधिवेशन में पंडित मोतीलाल नेहरू को अध्यक्ष बनाया गया। इसी समय लोगों को सुभाष की संगठन-कुशलता का परिचय मिला। इसके बाद सुभाष को कोलकाता नगर का मेयर निर्वाचित किया गया। इन्होंने पुनः सभाओं में ओजस्वी भाषण दिए, जिनको सुनकर इन्हें सिवनी, भुवाली, अलीपुर और मांडले जेल में भेजकर यातनाएं दी गईं, जिससे इनका स्वास्थ्य बिगड़ गया। इन्हें स्वास्थ्य लाभ के लिए पश्चिमी देशों में भेजा गया। इन्होंने वहां 'द इंडियन स्ट्रगल' नामक पुस्तक लिखी। भारत लौटने पर अगले वर्ष हीरापुर के कांग्रेस अधिवेशन में इन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर सम्मानित किया गया।

चतुर्थ सर्ग –

चतुर्थ सर्ग में हीरापुर अधिवेशन से लेकर 'फॉरवर्ड ब्लॉक' की स्थापना तक का वर्णन है। ताप्ती नदी के तट पर विट्ठल नगर में कांग्रेस का 51वां अधिवेशन हुआ। इन्हें अधिवेशन का अध्यक्ष बनाकर सम्मानित किया गया। इससे आजादी का आंदोलन और अधिक तीव्र हो उठा।

इसके बाद त्रिपुरा में कांग्रेस का अगला अधिवेशन हुआ। इसमें कांग्रेस अध्यक्ष के चयन में दो नेताओं में मतभेद हो गया। उस समय कांग्रेस को विघटन से बचाने के लिए सुभाष ने कांग्रेस से त्यागपत्र देकर 'फॉरवर्ड ब्लॉक' (अग्रगामी दल) की स्थापना की। अब सुभाष सबकी श्रद्धा और आशा के केंद्र बनकर सबके प्रिय 'नेताजी' बन गए थे।

पंचम सर्ग –

पंचम सर्ग में सुभाष के छद्मवेश में घर से भाग जाने की कथा का वर्णन है। सुभाष जब घर में नजरबंद थे, तब सरकार ने इनकी समस्त गतिविधियों पर कड़ा प्रतिबंध लगा रखा था। 15 जनवरी, 1941 ईस्वी को जाड़े की अर्धरात्रि में दाढ़ी बढ़ाए हुए, ये एक मौलवी के वेश में पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर निकल गए और फ्रंटियर मेल से पेशावर पहुंच गए और वहां से बर्लिन। बर्लिन में इन्होंने 'आजाद हिंद फौज' की स्थापना की। दूर रहकर स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करना कठिन जानकर ये पनडुब्बी द्वारा टोक्यो पहुंचे। जापानियों ने इन्हें पूरा सहयोग दिया। सहगल, शाहनवाज, ढिल्लन और लक्ष्मीबाई ने वीरता से इस सेना का नेतृत्व किया। सुभाष ने 'दिल्ली चलो' का नारा हर दिशा में गुंजित कर दिया। 'आजाद हिंद फौज'  का हर सैनिक स्वतंत्रता-संग्राम में जाने को उत्सुक था।

षष्ठ सर्ग –

षष्ठ सर्ग में आजाद हिंद फौज के भारत पर आक्रमण तथा प्राप्त विजय का वर्णन है। सुभाष ने 'आजाद हिंद फौज' के वीरों को 'दिल्ली चलो' और 'जय हिंद' के नारे दिए। इन्होंने "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।'' कहकर युवकों का आह्नान किया। आजाद हिंद सेना ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए और उनके शिविरों पर चढ़ाई करके कई मोर्चों पर उनको अविस्मरणीय करारी हार दी।

सप्तम सर्ग –

सप्तम सर्ग में द्वितीय विश्व युद्ध में जर्मनी तथा जापान की पराजय की चर्चा की गई है। संसार में सुख-दुख और जय-पराजय का चक्र चलता रहता है। अंग्रेजों का पलड़ा धीरे-धीरे भारी होने लगा। आजाद हिंद फौज की जय के बाद पराजय होने लगी। अगस्त, 1945 ईस्वी में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी नगरों पर अमेरिका द्वारा अणुबम गिरा दिया गया। जापान ने मानवता की रक्षा के लिए जनहित में आत्मसमर्पण कर दिया। 18 अगस्त, 1945 ईस्वी को ताइहोक में इनका विमान आग लगने से दुर्घटनाग्रस्त हो गया और सुभाष भी नहीं बच सके। जब तक सूरज, चन्द्र और तारे रहेंगे, भारत के घर-घर में सुभाष अपने यश के रूप में अमर रहेंगे। उनकी यशोगाथा नव युवकों को त्याग, देश प्रेम और बलिदान की प्रेरणा देती रहेगी।

प्रश्न 2. 'जय सुभाष' खंडकाव्य के आधार पर उसके नायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस का चरित्र-चित्रण कीजिए।

अथवा

'जय सुभाष' खंडकाव्य के प्रमुख पात्र की चारित्रिक विशेषताएं लिखिए।

अथवा

'जय सुभाष' खंडकाव्य के जिस पात्र ने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया हो उसका चरित्र चित्रण कीजिए।

जय सुभाष खंडकाव्य,जय सुभाष खंडकाव्य का सारांश,जय सुभाष खंडकाव्य आधार पर नेताजी का चरित्र,सुभाष चंद्र बोस का चरित्र चित्रण जय सुभाष खंडकाव्य,जय सुभाष खंडकाव्य,जय सुभाष खंडकाव्य की कथावस्तु,जय समाज के द्वितीय सर्ग का सारांश,Jay Subhash Khand ka,Jaiswal khandkavya ka Saransh,Jay Subhash Khand Kavya ka Saransh,UP Board class 10th Jay Subhash khandkavya

उत्तर - श्री विनोद चंद्र पांडे 'विनोद' द्वारा रचित 'जय सुभाष' नामक खंडकाव्य स्वतंत्रता-संग्राम के महान सेनानी सुभाष चंद्र बोस के त्याग, देशभक्ति एवं बलिदान पूर्ण जीवन की गाथा प्रस्तुत करता है।

ये महान वीर, साहसी, निर्भय, देश-प्रेमी और अमर बलिदानी थे। इनके चारित्रिक गुण निम्नलिखित हैं –

कुशाग्र बुद्धि एवं प्रखर प्रतिभाशाली –

सुभाष बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और प्रतिभाशाली थे। इन्होंने मैट्रिक और इंटर की परीक्षा प्रथम स्थान प्राप्त करके उत्तीर्ण की। विलायत जाकर इन्होंने आई.सी.एस. की परीक्षा उत्तीर्ण की। कोलकाता अधिवेशन में इनकी प्रबंध-कुशलता, आजाद हिंद फौज और फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना एवं पुलिस की आंखों में धूल झोंक कर कड़ी निगरानी से निकल भागना उनकी प्रतिभा को ही सूचित करते हैं।

समाजसेवी, अनुपम त्यागी एवं कष्ट सहिष्णु –

सुभाष मानवमात्र के सेवक थे। उन्होंने बंगाल में बाढ़ आने पर बाढ़-पीड़ितों की अपूर्व सहायता की। जाजपुर में महामारी के फैलने पर उन्होंने रोगियों की सेवा की। देश की स्वतंत्रता के लिए आह्वान होने पर इन्होंने आई.सी.एस. जैसे उच्च पद को छोड़कर महान त्याग का परिचय दिया। उनकी मानव सेवा के विषय में पांडे जी ने लिखा है –

दुःखी जनों का कष्ट कभी वह, नहीं देख सकते थे।

दोस्त की सेवा करने में, वह ना कभी थकते थे।।

स्वाभिमानी, साहसी और निर्भीक –

सुभाष में स्वाभिमान और निर्भीकता की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। वे किसी भी तरह अपने देश का अपमान नहीं सह सकते थे। छात्रावस्था में प्रोफेसर ऑटेन द्वारा भारतीयों की निंदा सुनकर उन्होंने ऑटेन के तमाचा जड़कर अपने स्वाभिमान का परिचय दिया।

इसे भी पढ़ें - सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय

महान देशभक्त और स्वतंत्रता-प्रेमी –

सुभाष देश की स्वाधीनता के अद्वितीय अराधक थे। उन्होंने गांधीजी और देशबंधु के आह्वान पर राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए अपनी समस्त जवानी अर्पित कर दी थी –

की सुभाष ने राष्ट्र-प्रेम हित अर्पित मस्त जवानी।

मुक्ति युद्ध के बने शीघ्र ही वे महान् सेनानी।।

उनके हृदय में आजादी की ज्वाला निरंतर जलती रही। अनेक बार जेल यातनाएं सहने पर भी इन्होंने देश-सेवा का व्रत नहीं छोड़ा। इन्होंने अनेक बार अपने प्राणों को खतरे में डाला, युद्ध किए और अंत में बलिदान हो गए।

जनता के प्रिय नेता –

सुभाष सच्चे अर्थों में जनता के प्रिय नेता थे। अपने महान गुणों एवं अनुपम देशभक्ति के कारण वे करोड़ों जनों के श्रद्धापात्र बन गए थे।

वह थे कोटि-कोटि हृदयों के एक महान विजेता।

मातृभूमि के रत्न अलौकिक जन-जन के प्रिय नेता।।

उनकी लोकप्रियता का प्रमाण यह है कि उन्होंने हीरापुर अधिवेशन में गांधी जी द्वारा समर्थित पट्टाभि सीतारमैया को चुनाव में पराजित कर दिया था। हीरापुरा अधिवेशन में इनका 51 बैलों से जुड़े रथ में 51 स्वागत द्वार बनाकर स्वागत किया गया था।

ओजस्वी वक्ता –

सुभाषचंद्र बोस की वाणी बड़ी ओजपूर्ण थी। वे अपने ओजस्वी भाषणों द्वारा जनता में देशप्रेम, बलिदान और त्याग का मंत्र फूंक देते थे। ''तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।'' की पुकार पर सहस्त्रों देशभक्त उनकी सेना में तन-मन-धन से सम्मिलित हो गये –

लगी गूंजने बंगभूमि में, उनकी प्रेरक वाणी।

मंत्रमुग्ध होते थे सुनकर उसको सारे प्राणी।।

महान सेनानी एवं योद्धा –

सुभाष महान सेनानी और अद्भुत योद्धा थे। 'आजाद हिंद फौज' का संगठन और कुशल नेतृत्व करके उन्होंने एक श्रेष्ठ सेनापति होने की क्षमता सिद्ध कर दी। अंग्रेजों की विशाल सेना के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करके उन्हें कई स्थानों पर पराजित किया। उन्होंने अनेक स्थानों पर भारतीय तिरंगा फहराकर अपने को महान विजेता सिद्ध कर दिया।

इनके अतिरिक्त नेताजी में अनेक आदर्श गुण थे, जिनके आधार पर उनके महान व्यक्तित्व और महान चरित्र का परिचय मिलता है। उनकी आदर्श जीवन से भारत के नवयुवकों को मानव-सेवा और त्याग की प्रेरणा मिलती रहेगी।

FAQ'S

1. जय सुभाष के लेखक का नाम क्या है?

उत्तर - जय सुभाष खंडकाव्य के लेखक कवि विनोद चंद्र पांडे जी हैं। इन्होंने सुभाष चंद्र बोस के चरित्र को अपना प्रतिपाद्य विषय बनाया है। ‌‌‌

2. सुभाष चंद्र बोस ने कौन सी किताब लिखी है?

उत्तर - सुभाष चंद्र बोस ने एक भारतीय यात्री, द इंडियन स्ट्रगल आदि प्रतिष्ठित किताबें लिखी हैं।

3. सुभाष चंद्र बोस का दूसरा नाम क्या था?

उत्तर - सुभाष चंद्र बोस को नेताजी के संबोधन द्वारा बुलाया जाता था। सुभाष चंद्र बोस का नाम नेताजी जब रखा गया तब उन्होंने जर्मनी में भारतीय स्वतंत्रता संगठन और आजाद हिंद रेडियो की स्थापना की।

4. नेताजी से जुड़े दो नारे कौन से हैं?

उत्तर - नेता जी ने दो प्रसिद्ध नारे दिए थे प्रथम तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा, इंकलाब जिंदाबाद।

5. नेताजी सुभाष चंद्र बोस कितनी बार जेल गए थे?

उत्तर - आजादी की लड़ाई में उन्हें 11 बार जेल भेजा गया था और माना जाता है कि ताइपे से एक हवाई जहाज दुर्घटना में संदिग्ध परिस्थितियों में मारे गए थे।

इसे भी पढ़ें - 👉👉

ज्योति जवाहर खंडकाव्य का सारांश

कर्मवीर भरत खंडकाव्य का सारांश

मातृभूमि के लिए खंडकाव्य का सारांश

• मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य का सारांश

• जय सुभाष खंडकाव्य का सारांश

• अग्रपूजा खंडकाव्य का सारांश

• कर्ण खण्डकाव्य का सारांश

• तुमुल खंडकाव्य का सारांश

• ज्योति जवाहर खंडकाव्य का सारांश

यह Blog एक सामान्य जानकारी के लिए है इसका उद्देश्य सामान्य जानकारी प्राप्त कराना है। इसका किसी भी वेबसाइट या Blog से कोई संबंध नहीं है यदि संबंध पाया गया तो यह एक संयोग समझा जाएगा।

Post a Comment

Previous Post Next Post

left

ADD1