तुमुल खंडकाव्य का सारांश || Tumul Khandkavya class 10th UP Board

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तुमुल खंडकाव्य का सारांश || Tumul Khandkavya class 10th UP Board

तुमुल खंडकाव्य का सारांश || Tumul Khandkavya class 10th UP Board 

तुमुल खंडकाव्य -

तुमुल खंडकाव्य से संबंधित जितने भी प्रश्न बोर्ड परीक्षा में पूछे जाते हैं। सभी प्रश्नों को यहां पर आसान भाषा में लिखा गया है। जैसे सारांश, सभी सर्गों की कथावस्तु (प्रथम से लेकर अंतिम तक), यज्ञ विध्वंस और मेघनाथ वध का सारांश, नायक लक्ष्मण का चरित्र चित्रण एवं चारित्रिक विशेषताएं, प्रति नायक मेघनाथ का चरित्र चित्रण एवं चरित्र की विशेषताएं, खंडकाव्य में कौन सा पात्र आपको सबसे अधिक प्रिय है।उसकी चारित्रिक विशेषताएं इत्यादि प्रश्नों के उत्तर।

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प्रश्न. 'तुमुल' खंडकाव्य का कथानक (कथावस्तु या सारांश) संक्षेप में लिखिए।

अथवा

'तुमुल' खंडकाव्य के प्रथम सर्ग का सारांश लिखिए।

अथवा

'तुमुल' खंडकाव्य के किसी एक सर्ग की कथावस्तु लिखिए।

अथवा

'तुमुल' खंडकाव्य के द्वितीय सर्ग की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।

अथवा

'तुमुल' खंडकाव्य के आधार पर 'मेघनाद-प्रतिज्ञा' नामक षष्ठ सर्ग का सारांश लिखिए।

अथवा

'तुमुल' खंडकाव्य के मेघनाद-प्रतिज्ञा सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।

अथवा

'तुमुल' खंडकाव्य 'लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध तथा लक्ष्मण की मूर्छा' नामक नवम सर्ग की कथा संक्षेप में लिखिए।

अथवा

'तुमुल' खंडकाव्य के आधार पर लक्ष्मण और मेघनाद के युद्ध का वर्णन कीजिए।

अथवा

'तुमुल' खंडकाव्य के आधार पर 'युद्धासन्न सौमित्रि' खंड की कथा संक्षेप में लिखिए।

अथवा

'तुमुल' खंडकाव्य के 'मेघनाद-अभियान' सर्ग का सारांश लिखिए।

अथवा

'तुमुल' खंडकाव्य के आधार पर 'विभीषण की मंत्रणा' खंड का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।

अथवा

'तुमुल' खंडकाव्य की जिस घटना ने आपको प्रभावित किया हो उसका वर्णन कीजिए।

अथवा 

'तुमुल' खंडकाव्य के 'राम-विलाप और सौमित्री का उपचार' सर्ग की द्वाद्धश सर्ग की कथा लिखिए।


उत्तर – श्री श्यामनारायण पांडेय द्वारा रचित 'तुमुल' खंडकाव्य का कथानक पौराणिक आख्यान के आधार पर लिखा गया है। इसमें लक्ष्मण-मेघनाद के युद्ध का वर्णन है, जिसे 15 सर्गों में विभक्त किया गया है। कथानक का सर्गानुसार संक्षेप निम्नलिखित है –


प्रथम सर्ग (ईश-स्तवन) –


प्रथम सर्ग में कवि ने मंगलाचरण के रूप में ईश्वर की स्तुति की है, जिसमें निराकार, निर्गुण और सर्वशक्तिमान ईश्वर की सर्वव्यापकता पर प्रकाश डाला गया है।


द्वितीय सर्ग (दशरथ पुत्रों का जन्म एवं बाल्यकाल) –


द्वितीय सर्ग में कवि ने राजा दशरथ के चार पुत्रों के जन्म एवं बाल्यकाल का वर्णन किया है। राजा दशरथ के राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न चार पुत्र उत्पन्न हुए। इन भाइयों में परस्पर प्रगाढ़ प्रेम था। इनके बचपन की लीलाएं राजमहल की शोभा को द्विगुणित कर देती हैं। राम एवं लक्ष्मण का जन्म राक्षसों के विनाश एवं साधु-संतों को अभयदान देने के लिए ही हुआ था। राजा दशरथ नीतिज्ञ, सुख शांति में विश्वास रखने वाले तथा सच्चरित्र थे।


तृतीय सर्ग (मेघनाद) –


तृतीय सर्ग में रावण के पराक्रमी पुत्र मेघनाद के व्यक्तित्व का वर्णन किया गया है। वह अत्यंत संयमी, धीर, पराक्रमी, उदार और शीलवान था। युद्ध में उसके सामने टिकने का किसी में साहस ना था।


चतुर्थ सर्ग (मकराक्ष-वध) –


चतुर्थ सर्ग में 'मकराक्ष के वध' की कथा और रावण द्वारा मेघनाद की शौर्य-गाथा वर्णित है। राम से संग्राम में मकराक्ष मारा गया था। इससे रावण बहुत भयभीत और चिंतित हुआ। उसी समय उसे महाबली मेघनाद का स्मरण आता है; क्योंकि मेघनाद भी उसके समान ही पराक्रमी और वीर था।


पंचम सर्ग (रावण का आदेश) –


पंचम सर्ग में रावण मेघनाद को बुलाकर मकराक्ष की मृत्यु का बदला लेने का आदेश देता है तथा मेघनाद के अतुल शौर्य का वर्णन करता है। उसके तेज से सारा सदन प्रकाशित हो रहा है। रावण बड़ी कठिनता से मेघनाद के सम्मुख अपनी व्यथा प्रकट करता हुआ कहता है कि हे पुत्र! राम से बदला न लेने में हमारी कायरता है। इसलिए मेरा आदेश है कि तुम युद्ध में लक्ष्मण को मृत्यु की गोद में सुला दो और राम को अपना बल दिखा दो तथा वानर-सेना को बाणों से बींध दो।


षष्ठ सर्ग (मेघनाद-प्रतिज्ञा) –


षष्ठ सर्ग में मेघनाद सिंहनाद करता हुआ युद्ध में विजयी होने की प्रतिज्ञा करता है। मेघनाद के गर्जन से पूरा स्वर्ण-महल हिल उठता है। वह अपने पिता को आश्वस्त करता हुआ कहता है कि हे पिता! मेरे होते हुए आप किसी प्रकार का शोक न करें। मैं अधिक न कहकर केवल इतना कहता हूं कि मैं आपके कष्ट को दूर ना कर सकूं तो मैं कभी धनुष को हाथ भी नहीं लगाऊंगा। यदि मैं युद्ध में विजयी न हुआ तो कभी जीवन में युद्ध का नाम ना लूंगा।


सप्तम सर्ग (मेघनाद का अभियान) –

सप्तम सर्ग में मेघनाद के युद्ध के लिए प्रस्थान करने का वर्णन है। रावण के सम्मुख प्रतिज्ञा करके मेघनाद जब युद्धक्षेत्र की ओर चलने लगा तो देवलोक के सभी देवता भय से कांपने लगे। मेघनाद ने युद्ध का रथ सजवाया तो पवन भयभीत हो गया, पर्वत कांपने लगा, पृथ्वी शोकाकुल हो गई और सूर्य त्रस्त हो गया। युद्ध हेतु प्रस्थान करने से पूर्व मेघनाद ने यज्ञ किया और उसके बाद रथ पर बैठकर शत्रुओं से लोहा लेने चल पड़ा और रणभूमि में पहुंचकर सिंह की तरह गर्जना की।


अष्टम सर्ग (युद्धासन्न सौमित्र) –


अष्टम सर्ग में युद्ध के लिए प्रस्तुत लक्ष्मण का चित्रण है। मेघनाद की रण-गर्जना सुनकर शत्रु सेना भी भयंकर नाद करने लगी। राम की आज्ञा लेकर लक्ष्मण भी युद्ध के लिए तैयार होने लगे। युद्धातुर लक्ष्मण को देखकर हनुमान आदि वीर भी युद्ध हेतु तत्पर हो गए। लक्ष्मण ने क्षण भर में ही मेघनाद के सम्मुख मोर्चा ले लिया। शत्रु को सम्मुख देखकर मेघनाद युद्ध करने की ठानता है।


नवम सर्ग (लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध तथा लक्ष्मण की मूर्छा) –


नवम सर्ग में लक्ष्मण मेघनाद युद्ध और लक्ष्मण के मूर्छित होने का वर्णन है। मेघनाद ने नम्र भाव से लक्ष्मण से कहा कि तुम्हारी अवस्था देखकर मैं तुमसे युद्ध करना नहीं चाहता, फिर भी आज मैं विवश हूं; क्योंकि मैं अपने पिता से यह प्रतिज्ञा करके आया हूं कि युद्ध में समस्त शत्रुओं का संहार करूंगा; अतः युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। यह सुनकर लक्ष्मण क्रुद्ध हो गए। उनके क्रोधयुक्त वचनों को सुनकर मेघनाद हंस पड़ा। मेघनाद के हंसने पर मानो लक्ष्मण के क्रोध की अग्नि में घी पड़ गया। दोनों ओर से भयंकर युद्ध होने लगा। लक्ष्मण के भीषण प्रहारों से मेघनाद की सेना के छक्के छूट गए। इसके बाद मेघनाद ने भीषण युद्ध किया और लक्ष्मण के द्वारा छोड़े गए सभी बाणों को नष्ट कर दिया। दोनों वीर सिंह के समान लड़ रहे थे। लक्ष्मण को कुछ शिथिल देखकर मेघनाद ने उन पर 'शक्ति-बाण' का प्रयोग कर दिया, जिससे लक्ष्मण मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े।


दशम सर्ग (हनुमान द्वारा उपदेश) –

दशम सर्ग में हनुमान द्वारा दुःखी वानरों को समझाने का वर्णन है। लक्ष्मण के शक्ति-बाण लगने और उनके मूर्छित होने से देवताओं में खलबली मच गई। वानर सेना अत्यधिक व्याकुल हो विलाप करने लगी। हनुमान ने बानरों को समझाया कि लक्ष्मण अचेत हुए हैं। वीरों का विलाप करना उचित नहीं होता। हनुमान के उपदेश का सभी पर प्रभाव पड़ा और वे शोकरहित हो गए। दूसरी ओर कुटी में बैठे हुए श्रीराम का मन कुछ उदास था। उसी समय कुछ अपशगुन होने लगे, जिससे राम चिन्तित हो गए।


एकादश सर्ग (उन्मन राम) –


एकादश सर्ग में राम की व्याकुलता का चित्रण है। कुटिया में बैठे श्रीराम विचार कर रहे हैं कि आज व्यर्थ ही मन में व्यथा क्यों जन्म ले रही है। उसी समय अंगद-हनुमान-सुग्रीव आदि मूर्छित लक्ष्मण को लेकर वहां आते हैं। लक्ष्मण को देखते ही राम पछाड़ खाकर गिर पड़ते हैं।


द्वादश सर्ग (राम-विलाप और सौमित्र का उपचार) –


द्वादश सर्ग में राम के विलाप और लक्ष्मण के उपचार का वर्णन है। लक्ष्मण की दशा को देखकर राम विलाप करने लगे। उन्होंने कहा–हे लक्ष्मण! मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकता।

राम की दुःखी दशा देखकर जामवंत जी ने बताया कि लंका में सुषेण नाम के कुशल वैद्य हैं, आप उन्हें सादर बुला लें। हनुमान क्षणभर में ही सुषेण वैद्य को लेकर आते हैं। सुषेण वैद्य कहते हैं कि संजीवनी बूटी के बिना लक्ष्मण की चिकित्सा नहीं हो सकती। हनुमान वायु के वेग से संजीवनी बूटी लाने के लिए चल पड़ते हैं और बूटी की पहचान ना होने से हनुमान पूरे पर्वत को ही उठा लाते हैं। वैद्य के उपचार से लक्ष्मण पुनः सचेत होकर मुस्कुराते हुए उठ जाते हैं।


त्रयोदश सर्ग (विभीषण की मंत्रणा) –

त्रयोदश सर्ग में विभीषण द्वारा राम को दिए गए परामर्श का वर्णन है। वह आकर राम को सूचना देता है कि मेघनाद निकुंभिला पर्वत पर यज्ञ कर रहा है। यदि यज्ञ पूर्ण हो गया तो वह युद्ध में अजेय हो जाएगा। इसलिए लक्ष्मण को यज्ञ करते हुए मेघनाद पर तुरंत आक्रमण कर देना चाहिए। राम के चरण छूकर लक्ष्मण ने मेघनाद का वध करने की प्रतिज्ञा की और ससैन्य युद्ध के लिए प्रस्थान किया।


चतुर्दश सर्ग (यज्ञ-विध्वंस और मेघनाद-वध) –


चतुर्दश सर्ग में यज्ञ-विध्वंस और मेघनाद के वध का वर्णन है। लक्ष्मण ने ससैन्य यज्ञ-स्थल पर पहुंचकर मेघनाद पर बाण-वर्षा कर दी। लक्ष्मण के तीव्र बाण प्रहार से मेघनाद का रुधिर यज्ञ-भूमि में बहने लगा। उसके शरीर से इतना रक्त बहा कि यज्ञ की अग्नि भी बुझती प्रतीत हुई। लक्ष्मण को बाणों की वर्षा करता देखकर मेघनाद कहने लगा कि इस प्रकार छल-कपट से युद्ध करना वीरता का लक्षण नहीं है। मुझसे सम्मुख युद्ध में एक बार पराजित होने पर तुमने जो यह घृणित कार्य किया है, वह सर्वथा निंदनीय है। मेघनाद की यह धिक्कार सुनकर एक बार प्रत्यंचा पर आया हुआ लक्ष्मण का बाण रुक गया और सिर झुक गया, परंतु विभीषण के उकसाने पर लक्ष्मण के तीक्ष्ण प्रहार से मेघनाद यज्ञ-भूमि में मारा गया।


पंचदश सर्ग (राम की वंदना) –


पंचदश सर्ग में राम की वंदना की गई है। मेघनाद के शव को यज्ञ भूमि में ही छोड़कर वानर सेना राम की ओर चली। युद्ध में लक्ष्मण की विजय का समाचार विभीषण ने राम को दिया।

लक्ष्मण अपनी प्रशंसा सुनकर राम की वंदना करते हुए कहते हैं कि हे राम! जिस पर आपकी कृपा हो जाती है वह तो जग-विजेता हो ही जाता है।

इस प्रकार खंडकाव्य की कथा 15 सर्गों में विभक्त होकर समाप्त होती है।


प्रश्न - 'तुमुल' खंडकाव्य के 'यज्ञ-विध्वंस और मेघनाद वध' नामक चतुर्दश सर्ग का सारांश लिखिए।


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उत्तर - इस सर्ग में यज्ञ-विध्वंस और मेघनाद के वध का वर्णन है। लक्ष्मण ने ससैन्य यज्ञ-स्थल पर पहुंचकर मेघनाद पर बाण-वर्षा कर दी। लक्ष्मण के तीव्र बाण प्रहार से मेघनाद का रुधिर यज्ञ-भूमि में बहने लगा। उसके शरीर से इतना रक्त बहा कि यज्ञ की अग्नि भी बुझती प्रतीत हुई। रीछ और बानरों के हाथों से वहां उपस्थित सभी यज्ञकर्ता मारे गए। केवल मेघनाद नाम का वह वीर अपने स्थान पर दृढ़ आहुतियां डालता रहा। अन्य यज्ञकर्ताओं का संहार करके वानर सेना यज्ञ-विध्वंस करने लगी। लक्ष्मण को बाणों की वर्षा करता देखकर मेघनाद कहने लगा कि इस प्रकार छल-कपट से युद्ध करना वीरता का लक्षण नहीं है। मुझसे सम्मुख युद्ध में एक बार पराजित होने पर तुमने जो यह घृणित कार्य किया है, वह सर्वथा निंदनीय है। जब तुम्हें मेरे बल का पता लग गया तब यह युद्ध अधर्म से जीतने की राय क्या विभीषण ने दी है? यह कहता हुआ मेघनाद लक्ष्मण की वीरता को धिक्कारने लगा –


जीते मुझे, पर आपकी इस जीत में ही हार है।

रघुवंश की रणनीति पर, धिक्कार सौ-सौ बार है।।

इस कार्य से रघुवंश में जो, कालिमा है लग रही।

उसको न घन भी धो सकेगा, भार नत होगी मही।।


मेघनाद की यह धिक्कार सुनकर एक बार प्रत्यंचा पर आया हुआ लक्ष्मण का बाण रुक गया और फिर झुक गया, परंतु विभीषण के उकसाने पर लक्ष्मण के तीक्ष्ण प्रहार से मेघनाद यज्ञ-भूमि में मारा गया। देवता लक्ष्मण की कीर्ति का जयगान करने लगे।


प्रश्न - 'तुमुल' खंडकाव्य के नायक लक्ष्मण का चरित्र-चित्रण कीजिए।

अथवा

'तुमुल' खंडकाव्य के नायक की चारित्रिक विशेषताएं लिखिए।


उत्तर - वीर रस के प्रसिद्ध कवि श्री श्यामनारायण पांडेय द्वारा रचित 'तुमुल' खंडकाव्य का नायक लक्ष्मण को माना जा सकता है। प्रस्तुत काव्य में लक्ष्मण और मेघनाद के युद्ध का वर्णन है। कवि ने लक्ष्मण के तेजस्वी चरित्र को अपने काव्य का केंद्र बिंदु बनाया है। लक्ष्मण के चरित्र की विशेषताएं निम्न प्रकार हैं –


नायक –


लक्ष्मण तुमुल खंडकाव्य के नायक हैं। वे मेघनाद के ललकारने पर युद्ध करते हैं। वे राम के छोटे भाई एवं रघुकुल के प्रदीप हैं। उनमें नायकोचित वीरता, धीरता और उदारता है।


अद्धितीय सौंदर्यशाली – 


लक्ष्मण दशरथ के पुत्र और राम के छोटे भाई हैं। उनके व्यक्तित्व में तेजस्विता, सहज कोमलता एवं स्वभाव में नम्रता है। उनके अधरों पर सहज मुस्कान खेलती है। मेघनाद भी उन्हें 'लावण्ययुक्त ब्रह्मचारी' कहकर संबोधित करता है –


लावण्यधारी ब्रह्मचारी, आप बुद्धि निधान हैं।

संसार में अत्यंत वीर, पराक्रमी महान् हैं।।


अतुल शक्तिसंपन्न –


लक्ष्मण अत्यंत विनयशील वीर हैं। वे शत्रु के ललकारने पर युद्ध करने से पीछे नहीं हटते। वे केवल शक्तिसंपन्न ही नहीं थे, वरन् वीरों के प्रशंसक भी थे। उन्होंने कई बार मेघनाद के सौंदर्य, शौर्य एवं तेज की प्रशंसा की है। उन्होंने संकल्प करके जिससे भी युद्ध किया, उसे युद्ध में परास्त ही किया।


रण ठानकर जिससे भिड़े, उससे विजय पायी सदा।

संग्राम में अपनी ध्वजा, सानंद फहरायी सदा।।


जब मेघनाद उनकी बातें सुनकर हंस पड़ता है, तब उनकी क्रोधाग्नि में मानो घी पड़ जाता है। युद्ध में उनके कलाकारी रूप को देखिए –


आकाश को अपने निशित नाराच से भरने लगे।

उस काल देवों के सहित देवेंद्र भी डरने लगे।।


विनम्र और शीलवान –


बाल्यकाल से ही लक्ष्मण दयालु एवं उदार हैं। वे अपने शत्रु मेघनाद के सौंदर्य और ओज को देखकर मुग्ध होकर दयार्द्र हो जाते हैं –


आके, आंखों से तुझे देख के तो, इच्छा होती युद्ध की ही नहीं है।

कैसे तेरे साथ में मैं लडूंगा, कैसे बाणों से तुझे मैं हतूंगा।।


लक्ष्मण के ह्रदय में कोमलता है। राम के प्रति उनकी अनन्य भक्ति है।


शत्रुओं को परास्त करने वाले –


लक्ष्मण अपने पराक्रम से, अपने बाहुबल से और अपने युद्ध-कौशल से शत्रु पर विजय प्राप्त करते हैं। यद्यपि वे यज्ञ-भूमि में मेघनाद का वध करते हैं, परंतु मेघनाद को मारने की शक्ति भी उन्हीं में थी। राम कहते हैं –


मैं जानता था तुम्हीं मार सकते हो मेघनाद को।


इस प्रकार कहा जा सकता है कि लक्ष्मण परम शीलवान, विनम्र, पराक्रमी, अतुल शक्तिसंपन्न एवं अजेय योद्धा थे। वे 'तुमुल' खंडकाव्य के नायक एवं मानवमात्र के लिए आदर्श थे।


प्रश्न - 'तुमुल' खंडकाव्य के आधार पर प्रतिनायक मेघनाद का चरित्र-चित्रण कीजिए।

अथवा

'तुमुल' खंडकाव्य में कौन-सा पात्र आपको सबसे अधिक प्रिय है? उसकी चारित्रिक विशेषताएं संक्षेप में लिखिए।

अथवा

'तुमुल' खंडकाव्य के आधार पर मेघनाद की चरित्रगत विशेषताएं लिखिए।


उत्तर - श्री श्यामनारायण पांडेय द्वारा विरचित 'तुमुल' नामक खंडकाव्य में मेघनाद प्रमुख पात्र है। उसका लक्ष्मण के समान ही प्रभावशाली व्यक्तित्व है। वह भी लक्ष्मण के समान शक्ति, शील और सौंदर्य का आगार है। वह अपने चरित्र द्वारा पाठकों को अपनी ओर आकृष्ट किए रहता है। उसके चरित्र की विशेषताएं इस प्रकार हैं –


सौंदर्यवान एवं प्रभावशाली –


मेघनाद मेघ के समान वर्ण वाला सुंदर एवं शक्तिसंपन्न राक्षस था। वह रावण का पुत्र था। उसके सौंदर्य का वर्णन करते हुए कवि कहता है –

महारथी प्रसिद्ध था, गुणी विवेक-बद्ध था।

सुदेश था सुकेश था, नितांत रम्य वेष था।।


नीलगगन में चंद्रमा की कांति के समान उसका आभामय मुकुट था। उसकी उन्नत ललाट, पुष्ट वक्षस्थल और प्रलम्ब भुजाएं उसके व्यक्तित्व को बढ़ाने वाली थीं।


पितृ-आज्ञापालक –


मकराक्ष का वध हो जाने पर रावण अत्यंत शोकाकुल हो उठा था। उसने मेघनाद को बुलाकर उसे मकराक्ष की मृत्यु का बदला राम-लक्ष्मण से लेने का आदेश दिया। मेघनाद पिता के आदेश को सुनते ही विजय की प्रतिज्ञा करता हुआ युद्ध के लिए प्रस्थान करता है।


अतुल पराक्रमी –


रावण को अपने पुत्र मेघनाद के पराक्रम पर गर्व है। वह कहता है –


हे तात! तेरी शक्तियों का अंत है मिलता नहीं।

घमसान में भी पुत्र तेरा, बाल तक हिलता नहीं।।


जिस समय वह युद्ध के लिए प्रस्थान करता है, पवन और पर्वत में कंपन, पृथ्वी में शोक एवं सूर्य में त्रास व्याप्त हो जाता है। युद्ध से पूर्व मेघनाद के यज्ञ करने पर देवताओं के मन में भी राम-लक्ष्मण की विजय के प्रति शंका हो जाती है।


यज्ञनिष्ठ –


मेघनाद की यज्ञ में महती निष्ठा है। वह शत्रु पक्ष पर विजय प्राप्त करने के लिए देवताओं को प्रसन्न करना अत्यंत आवश्यक मानता है; अतः वह रावण का आदेश पाकर युद्ध में प्रस्थान करने से पूर्व यज्ञ करता है तथा लक्ष्मण के मूर्छित होने के बाद युद्ध में अजेय होने के लिए भी यज्ञानुष्ठान करता है।


आत्मविश्वासी –


यज्ञ करते समय जब लक्ष्मण उसे तीक्ष्ण बाणों के प्रहार से घायल करता है, तब भी वह यज्ञ से उठता नहीं है। वह रघुकुल के वंशजों की इस युद्ध-नीति की कटु आलोचना करता है। वह अधर्म युद्ध और लक्ष्मण की इस कुत्सित वीरता से घृणा करता है। मरणावस्था में पड़ा हुआ वह लक्ष्मण की वीरता को धिक्कारता हुआ कहता है –

जीते मुझे पर आपकी इस जीत में ही हार है।

रघुवंश की रणनीति पर धिक्कार सौ-सौ बार है।।


विवेकशील –


युद्ध में लक्ष्मण की विनम्र वाणी से वह अत्यंत प्रभावित होता है। वह विनम्रता से लक्ष्मण से युद्ध का दान मांगता है।


मैं मांगता हूं भीम रण का, दान मुझको दीजिए।

चैतन्य होकर तुमुल संगर, आप मुझसे कीजिए।।


यज्ञ करते समय लक्ष्मण द्वारा घायल कर दिए जाने पर वह तुरंत आक्रमण के रहस्य को जान जाता है और स्वविवेक से इसके लिए विभीषण को ही दोषी ठहराता है।


इस प्रकार मेघनाद अत्यंत सौंदर्यशाली, प्रतिभावान, पिता का आज्ञापालक, अतुल पराक्रमी, यज्ञनिष्ठ, आत्मविश्वासी और विवेकशील है। वह लक्ष्मण के वीर-चरित्र की असलियत उतारता हुआ तीक्ष्ण व्यंग्य करता है और लक्ष्मण स्वयं भी अपने कार्य पर लज्जित हो शीश झुका लेते हैं। यही कारण है कि लक्ष्मण की विजय की अपेक्षा मेघनाद की पराजय अधिक प्रभावी हो गई है। कवि की लेखनी भी यहां प्रतिनायक की श्रेष्ठता स्थापित हो जाने के कारण किंचित् मौन हो रही है –


म्रियमाण मरता है, बहाना ढूंढ लेता काल है।

पाठक न कुछ सोचें, यही घननाद का भी हाल है।।


FAQ'S —


1. तुमुल खंडकाव्य के लेखक कौन है?


उत्तर - तुमुल खंडकाव्य के लेखक कवि श्याम नारायण पांडे जी हैं। कथानक पौराणिक आख्यान के आधार पर लिखा गया है। इसमें लक्ष्मण-मेघनाद के युद्ध का वर्णन है।

2. तुमुल खंड क्या है?

उत्तर - इस सर्ग में विभीषण द्वारा राम को दिए गए परामर्श का वर्णन है। राम लक्ष्मण के निकट सभी वानव और रीछ बैठे हैं। तभी विभीषण आकर राम को सूचना देता है कि मेघनाथ निकुम्भिला पर्वत पर यज्ञ कर रहा।

3. तुमुल खंडकाव्य कितने सर्ग हैं?

उत्तर - तुमुल खंडकाव्य का में 15 सर्ग हैं।

4. खंडकाव्य कौन-कौन से हैं?

उत्तर - सुमित्रानंदन पंत - ग्रंथि 

रामनरेश त्रिपाठी - स्वप्न 

मैथिलीशरण गुप्त - पंचवटी, आनंद, वन वैभव 

अनूप शर्मा - सुनाल

सियारामशरण गुप्त - आत्मोत्सर्ग 

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला - तुलसीदास शिवदास गुप्त- कीचक वध 

श्यामलाल पाठक - कंस वध

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