मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य का सारांश || Mewad Mukut Khandkavya ka Saransh
प्रश्न 1. 'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य का सारांश , कथावस्तु (कथासार) संक्षेप में लिखिए।
अथवा
'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य के षष्ठ सर्ग की कथा अपने शब्दों में लिखिए।
अथवा
'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य की घटनाओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य के प्रथम और द्वितीय सर्ग की कथा लिखिए।
अथवा
'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य के प्रथम सर्ग (अरावली) का सारांश (कथा) संक्षेप में लिखिए।
अथवा
'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य के लक्ष्मी सर्ग (द्वितीय सर्ग) की कथा संक्षेप में लिखिए।
अथवा
मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य के द्वितीय सर्ग का सारांश (कथानक) लिखिए।
अथवा
'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य के तृतीय सर्ग (प्रताप सर्ग) की कथा संक्षेप में लिखिए।
अथवा
'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य के दौलत सर्ग (चतुर्थ सर्ग) की कथावस्तु लिखिए।
अथवा
'मेवाड़-मुकुट' के चिंता सर्ग (पंचम सर्ग) में दिए रानी लक्ष्मी के मनोभावों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य के आधार पर 'चिंता' (पंचम) सर्ग का सारांश (कथावस्तु या कथानक) लिखिए।
अथवा
'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य के आधार पर राणा प्रताप और भामाशाह के मध्य हुए वार्तालाप का वर्णन कीजिए।
अथवा
'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य के आधार पर उसके छठे सर्ग का कथानक संक्षेप में लिखिए।
अथवा
'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य के सातवे सर्ग भामाशाह का सारांश लिखिए।
अथवा
'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य के आधार पर किसी प्रमुख घटना का उल्लेख कीजिए जिसने आपको प्रभावित किया हो।
उत्तर - गंगा रत्न पांडे द्वारा रचित 'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य में महाराणा प्रताप के त्याग, शौर्य, साहस एवं बलिदान पूर्ण जीवन के एक मार्मिक कालखंड का चित्रण है। स्वतंत्रता-प्रेमी प्रताप दिल्लीश्वर अकबर से युद्ध में पराजित होकर अरावली के जंगल में भटकते फिरते हैं। यहीं से काव्य का प्रारंभ होता है। प्रस्तुत काव्य की कथावस्तु सात सर्गों में विभाजित है।
अरावली सर्ग –
अरावली सर्ग की रचना पूर्व-पीठिका के रूप में की गई है। हल्दीघाटी के मैदान में बड़ी वीरता से युद्ध करने के बाद भी महाराणा प्रताप की सेना पराजित हो जाती है। उस युद्ध के बाद महाराणा प्रताप साधनहीन होकर अरावली के जंगलों में भटकते हैं।
अरावली एक पर्वत श्रंखला है, जो राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी अंचल में गौरव से सिर उठाए खड़ी है। महाराणा प्रताप शत्रु की कन्या 'दौलत' को अपनी शरण में रख उससे पुत्रीवत् व्यवहार करता है। उनकी पत्नी लक्ष्मी अपने पुत्र को गोद में लिए वनवासिनी सीता के समान एक वृक्ष के नीचे बैठी है। अरावली स्वयं स्वतंत्रता के उपासक इस प्रताप की रक्षा में सन्नद्ध है।
द्वितीय सर्ग –
द्वितीय सर्ग का नामकरण महाराणा प्रताप की पत्नी लक्ष्मी के नाम पर हुआ है। इस सर्ग में उसी का चरित्र अंकित हुआ है। रानी लक्ष्मी ने वैभव के दिन देखे हैं और अब उसे निर्धनता का जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है। लेकिन सच्ची भारतीय पत्नी और वीर क्षत्राणी के रूप में उसे अपने कष्टों की चिंता नहीं है। वह कंद-मूल-फल खाकर व पृथ्वी पर सोकर धैर्यपूर्वक अपने दिन गुजार देती है। उसके हृदय में उथल-पुथल मची हुई है। अपने बच्चे की दयनीय दशा देखकर वह कभी-कभी धीरज खो बैठती है। वह सोचती है कि राणा ने स्वतंत्रता नहीं बेची, इसलिए दुख मिल रहा है। वह उत्साहित होकर कह उठती है – ''हमको नहीं डुबा पाएगा यह कष्टों का सागर।''
तभी राणा कुटी के बाहर आकर रानी के जागते रहने का कारण पूछते हैं। रानी की मनोदशा समझकर राणा प्रताप सजल नेत्र हो जाते हैं।
तृतीय सर्ग –
तृतीय सर्ग का नामकरण काव्य के नाम पर हुआ है। इसमें प्रताप के अंतर्द्वंद का चित्रण है। राणा प्रताप के सामने मेवाड़ की मुक्ति की विकराल समस्या है। वे अपने भाई शक्तिसिंह के विश्वासघात से आहत हैं और उसके अकबर से मिल जाने का उन्हें दुःख भी है। यह सोचकर भी उनका उत्साह कम नहीं होता। वे जानते हैं कि जब उसकी आत्मा धिक्कारेगी, तो वह अवश्य ही लौटकर वापस आएगा। वे मन-ही-मन प्रतिज्ञा करते हैं कि मेवाड़ को स्वतंत्र कराने के लिए अपने प्राण तक दे देंगे। वे चेतक की स्वामीभक्ति तथा शत्रु-पक्ष की कन्या दौलत के विषय में भी विचार करते हैं तथा अनायास 'दौलत' से मिलने के लिए चल देते हैं।
चतुर्थ सर्ग –
चतुर्थ सर्ग का नामकरण बालिका दौलत के नाम पर हुआ है। दौलत अकबर के मामा की बेटी है। वह पर्णकुटी के पीछे एक वृक्ष की छाया में बैठी अपने विगत जीवन के बारे में विचार करती हुई कहती है कि – ''उस भोग-विलास भरे जीवन में कटुता ही थी, प्रीति नहीं।'' अकबर के साम्राज्यवाद की लिप्सा उसके कोमल हृदय में घृणा के बीज बो देती है, किंतु राणा प्रताप के प्रति उसके विचार पिता जैसी श्रद्धा से युक्त हैं।
राणा के भाई शक्ति सिंह पर 'दौलत' का मन आकृष्ट है, किंतु वह राणा के सम्मुख अपनी कहानी कहकर उनके दुख को और नहीं बढ़ाना चाहती। वह शक्तिसिंह और प्रताप की तुलना करती हुई कहती है कि ''ये सूर्य हैं, वह दीपक है।'' दौलत को उसी समय वृक्षों के पीछे से किसी की पदचाप सुनाई पड़ती है। यहीं पर इस सर्ग का समापन हो जाता है।
पंचम सर्ग –
पंचम सर्ग का शीर्षक 'चिंता' है। दौलत के पास पहुंचकर राणा उसके एकांत चिंतन का कारण पूछते हैं। दौलत अपने को परम सुखी और निश्चिंत बताती हुई स्वयं राणा के रात-दिन चिंतित रहने को ही अपनी चिंता का कारण बताती है। इसी प्रसंग में राणा प्रताप कहते हैं कि वे रानी लक्ष्मी की आंखों में आंसू देखकर कुछ विचलित है। अतः दौलत राणा के साथ लक्ष्मी के पास जाकर उसके मन की पीड़ा को जानने और यथाशक्ति उसे दूर करने के लिए तत्पर हो जाती है।
अपने पुत्र को गोद में लिटाए हुए रानी लक्ष्मी सोच रही है कि उसके कारण ही राणा अपने देश को त्यागकर जंगल में भटक रहे हैं। उसी समय दौलत का मीठा स्वर उसके कानों में गूंज उठता है। रानी और दौलत के वार्तालाप के इसी अवसर पर महाराणा प्रताप रानी को सूचना देते हैं कि मेवाड़ भूमि की मुक्ति के लिए, वे मेवाड़ से दूर सिंधु प्रदेश में जाकर सैन्य-संग्रह करेंगे। राणा के इस निश्चय को सुनकर लक्ष्मी में चेतना दौड़ पड़ती है। वह भी मेवाड़ की स्वाधीनता हेतु अपना सर्वस्व न्यौछावर करने के लिए तत्पर हो जाती है।
छठे सर्ग –
छठे सर्ग का शीर्षक 'पृथ्वीराज' सर्ग है। क्षितिज में अरुणाभा फैल जाने पर राणा सभी को यात्रा के लिए तैयार कर देते हैं। उसी समय एक अनुचर अकबर के दरबारी कवि पृथ्वीराज का पत्र लाकर राणा को देता है। वे पत्र पढ़कर पृथ्वीराज से मिलने जाते हैं। पृथ्वीराज अपने और अपने जैसे अन्य राजपूत नरेशों के स्वार्थपूर्ण व्यवहार पर दुःख प्रकट करते हुए कहते हैं कि उन्होंने अपनी राजपूती मर्यादा को भूलकर अकबर का साथ दिया था। अब हम अकबर से प्रतिशोध लेकर मेवाड़ को पुनः प्राप्त करेंगे। पृथ्वीराज यह भी बताता है कि भामाशाह सेना का प्रबंध करने के लिए साधन प्रस्तुत करेंगे।
सप्तम सर्ग –
सप्तम सर्ग का शीर्षक 'भामाशाह' के नाम पर है। राणा प्रताप एकांत में बैठकर बदली हुई परिस्थिति पर विचार करते हैं। उसी समय भामाशाह पृथ्वीराज के साथ आकर जय-जयकार करते हुए नतमस्तक हो जाते हैं। भामाशाह अपने पूर्वजों द्वारा संचित अपार-निधि राणा के चरणों में अर्पित करना चाहते हैं, परंतु राणा प्रताप दी हुई वस्तु को वापस लेना मर्यादा के अनुकूल नहीं मानते।
प्रताप का यह वचन सुनकर भामाशाह कहता है कि क्या यह प्रत्येक नागरिक का पावन कर्तव्य नहीं है कि वह देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दे?
भामाशाह के इस विनयपूर्ण अकाट्य तर्क को राणा प्रताप अस्वीकार नहीं कर पाते और भामाशाह को गले से लगा लेते हैं। यहीं 'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य की समाप्ति हो जाती है।
प्रश्न 2. 'मेवाड़-मुकुट' के आधार पर महाराणा प्रताप का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा
मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य के प्रमुख पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा
'मेवाड़-मुकुट' का नायक कौन है? उसके चरित्र की विशेषताएं बताइए।
उत्तर - महाराणा प्रताप 'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य के नायक हैं। कवि ने इस काव्य में भारतीय इतिहास के विख्यात महापुरुष महाराणा प्रताप के त्याग, संघर्ष, देशभक्ति, उदारता और बलिदान का चित्रण किया है। महाराणा प्रताप के चरित्र की विशेषताएं निम्न प्रकार हैं –
स्वतंत्रता-प्रेमी –
स्वतंत्रता का प्रेम प्रताप के रोम-रोम में व्याप्त है। भारत के सभी शासक अकबर की अधीनता स्वीकार कर लेते हैं, परंतु वह ''जब तक सांस है स्वतंत्र रहूंगा, दास नहीं हो सकता'' करते हुए पराधीनता स्वीकार नहीं करते और पराजित होकर भी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए युक्ति सोचते रहते हैं –
मैं मातृभूमि को अपनी पुनः स्वतंत्र करूंगा। या स्वतंत्रता की बेदी पर लड़ता हुआ मरूंगा।।
देशभक्त –
प्रताप में देशप्रेम कूट-कूटकर भरा हुआ है। वे मेवाड़ की मुक्ति के लिए अरावली की घाटियों में भटकते हुए भी अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होते। अपना सर्वस्व गंवाकर भी वे अपनी मातृभूमि मेवाड़ की रक्षा के लिए कृतसंकल्प हैं। वे देश-सेवा का आमरण व्रत लिए हुए हैं –
मैं स्वदेश के हित जीवित हूं, उसके लिए मरूंगा।।
उदार ह्रदय –
प्रताप का ह्रदय अत्यधिक उदार है। वे शत्रु की कन्या दौलत को भी पुत्रीवत् पालते हैं। शक्तिसिंह के अकबर से मिल जाने को वे उसकी मूर्खता मानते हैं और उसे क्षमा कर देते हैं। उनके निम्नलिखित शब्दों से भाई के प्रति सहृदयता झलकती है –
मेरा ही है मुझसे दूर कहां जाएगा।
त्यागशील –
राणा प्रताप में क्षत्रियोचित त्याग-भावना विद्यमान है, इसलिए वे भामाशाह के द्वारा सैन्य संगठन के लिए दिए जाने वाले अपरिमित धन को भी स्वीकार करना उचित नहीं मानते।
दृढ़-प्रतिज्ञ –
राणा प्रताप दृढ़ प्रतिज्ञ हैं। वह अपने संकल्प को बार-बार दोहराते हैं। वे प्रतिज्ञा करते हैं कि जब तक शरीर में श्वास है, मेवाड़ की भूमि को स्वतंत्र करके रहूंगा –
जब तक तन में प्राण, लड़ेगा, पलभर चैन न लेगा।
सूर्य चंद्र टल जाए, किंतु व्रत उसका नहीं टलेगा।।
निर्भीक, साहसी और धैर्यवान –
महाराणा निर्भीक, साहसी और धैर्यवान हैं। वे दु:खमय जीवन व्यतीत करते हैं, फिर भी शत्रु के सामने नहीं झुकते। वे कंद-मूल-फल खाकर और भूमि पर सोकर भी धैर्य नहीं छोड़ते। स्वयं अरावली पर्वत उनकी धीरता के विषय में कहता है –
वह मति-धीर वीर, विपदा से किंचित् नहीं डरेगा।
फिर मेरे अतीत गौरव का, जीर्णोद्धार करेगा।।
स्वाभिमानी –
महाराणा प्रताप की नस-नस में स्वाभिमान समाया हुआ है। उन्हें अपनी जाति, कुल और देश पर अभिमान है। वे जाति और देश पर मर मिटना भी चाहते हैं। स्वाभिमान के कारण वह मेवाड़ की मुक्ति के लिए जीवन भर संघर्ष करते रहे, परंतु अकबर के सामने सिर नहीं झुकाया।
इस प्रकार महाराणा प्रताप स्वतंत्रता-प्रेमी, देशभक्त, उदार हृदय, त्यागी, दृढ़ प्रतिज्ञ, निर्भीक और स्वाभिमानी लौह पुरुष हैं। इसलिए वे भारतीय इतिहास में सदैव वंदनीय रहेंगे। इस खंडकाव्य के माध्यम से कवि गंगारत्न पांडे युवकों को जो संदेश देना चाहते हैं, उनमें वे पूर्णरूपेण सफल रहे हैं।
प्रश्न 3. 'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य के आधार पर भामाशाह का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा
'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य के आधार पर 'भामाशाह' की चारित्रिक विशेषताएं लिखिए।
अथवा
'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य के किसी एक पात्र का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर - भामाशाह 'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य के प्रमुख पात्र हैं। वे मेवाड़-केसरी महाराणा प्रताप की ऐसे समय में सहायता करते हैं, जब वे बिल्कुल असहाय और निराश हो चुके थे। उनका चरित्र त्याग का आदर्श चरित्र है; अतः कवि ने उनके नाम पर एक प्रथक् सर्ग की रचना करके उन्हें गौरव प्रदान किया है। उनके चरित्र में मुख्य रूप से निम्नलिखित विशेषताएं दृष्टिगत होती हैं–
देश-प्रेमी –
भामाशाह को अपनी मातृभूमि मेवाड़ से अटल अनुराग है। स्वदेश-प्रेम की भावना से प्रेरित होकर ही वे महाराणा प्रताप को सैन्य-संगठन के लिए अपनी अतुल संपत्ति समर्पित कर देते हैं। वे कहते हैं –
यदि स्वदेश के मुक्ति यज्ञ में, यह आहुति दे पाऊं।
पितरों सहित देव निश्चय ही, मैं कृतार्थ हो जाऊं।।
महान त्यागी –
भामाशाह का त्याग अनुपम और आदर्श है। अपने पिता-पितामहों के द्वारा संचित लक्ष-लक्ष मुद्राओं को राणा के चरणों में समर्पित करते हुए वे अपने को धन्य समझते हैं –
पिता-पितामहों के द्वारा यह निधि वर्षों की संचित है। साधन-संग्रह हेतु देव के चरणों में अर्पित है।।
भामाशाह का त्याग प्रताप को कर्तव्य-पथ की ओर प्रेरित करता है। महाराणा प्रताप स्वयं कहते हैं –
''जिस मेवाड़ भूमि पर भामाशाह जैसे त्यागी, बलिदानी पुरुषों ने जन्म लिया, वह भला किस तरह परतंत्र रह सकती है।।''
राजवंश में निष्ठा –
भामाशाह की राजवंश में निष्ठा है। वे राणा प्रताप से कहते हैं कि हमने सारी संपदा राजवंश से ही प्राप्त की है – राजवंश के ही प्रसाद से श्रीसंपन्न बने हम। वे अपने को राज्य का सेवक और सारी संपदा को राज्य की ही मानते हुए इस संपदा का उपयोग राज्य की रक्षा के लिए किये जाने को उचित ठहराते हैं।
तर्कशील –
भामाशाह उकृष्ट तार्किक व्यक्ति हैं। उनमें बुद्धि और तर्क का मणिकांचन योग है। प्रताप द्वारा धन अस्वीकार करने पर वे स्पष्ट तर्क देते हुए कहते हैं –''देश हित में त्याग और बलिदान का अधिकार केवल राजवंश को ही नहीं है, वरन् यह प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दे।'' यहां जो कुछ जिस किसी के पास है, वह स्वदेश का है –
उसके ऋण से उऋण करे जो, वह धन देव कहां हैं।
तन-मन-धन जीवन सब उसका, अपना कुछ न यहां है।।
विनयशील –
भामाशाह अत्यंत विनम्र हैं। वे अपने पूर्वजों के द्वारा संचित निधि को बड़ी विनय भाव से राणा के चरणों में अर्पित करते हुए कहते हैं –
वह अधिकार देव सबका है, यह कर्तव्य सभी का।
सबको आज चुकाना है, ऋण मेवाड़ी माटी का।।
भामाशाह राणा प्रताप को 'देव' और अपने को उनका 'सेवक' बताते हुए उस संपदा को स्वीकार करने के लिए विनय पूर्वक याचना करते हैं।
उत्साही एवं प्रेरक –
भामाशाह एक उत्साही व्यक्ति हैं। प्रथम मिलन में ही राणा प्रताप का उत्साह बढ़ाते हैं तथा उनको मेवाड़ की रक्षा हेतु प्रेरित करते हैं। भामाशाह के प्रेरणात्मक शब्द ही राणा प्रताप के निराश मन में आशा का संचार करते हैं –
अविजित हैं, विजयी भी होंगे, देव शीघ्र नि:संशय।
मातृभूमि होगी स्वतंत्र फिर, हम होंगे फिर निर्भय।।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि भामाशाह का देशप्रेम और त्याग अनुपम है। वह तर्कशील, विनयशील और राजवंश में निष्ठा रखने वाले धनी पुरुष हैं। भामाशाह जैसा त्याग का आदर्श विश्व इतिहास में दुर्लभ है।
प्रश्न 4. 'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य के आधार पर दौलत का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर - दौलत अकबर के मामा की लड़की है, जो राज-प्रासादों के वैभव को त्यागकर वन में महाराणा प्रताप के साथ रहने लगती है। महाराणा प्रताप भी उसे अपनी पुत्री की तरह ही स्नेह करते हैं। दौलत को पाकर राणा प्रताप यह भूल जाते हैं कि उनके कोई पुत्री नहीं है।
दौलत के चरित्र का कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है, वह काल्पनिक पात्र है। इसका वर्णन स्वर्गीय श्री द्विजेंद्रलाल राय के नाटक 'राणा प्रताप सिंह' में मिला है। कवि ने प्रस्तुत काव्य में उसे वहीं से ग्रहण किया है। उसके चरित्र में हमें निम्नलिखित विशेषताएं दृष्टिगोचर होती हैं –
दरबारी जीवन से घृणा –
दौलत अकबर के दरबारी जीवन से घृणा करती है। उसका कहना है कि आगरा में वैभव है, ऐश्वर्य है, रंगरेलियां हैं किंतु वहां छल-कपट है, दम्भ और द्धेष है। यथार्थ में वहां का वातावरण बड़ा ही दूषित है। वहां सह्रदयता का अभाव है और आपस में स्नेह नहीं है। इसलिए वह उस जीवन को त्याग देती है और राणा की कुटिया में आकर शांति प्राप्त करती है।
वन्य जीवन के प्रति अनुराग –
दौलत राजकुमारी है किंतु उसे वन-जीवन से अपार अनुराग है। वह प्रकृति में अनुपम सौंदर्य के दर्शन करती है और वन के जीवन में सुख शांति का अनुभव करती है।
महाराणा के प्रति श्रद्धा –
दौलत के हृदय में महाराणा के प्रति असीम श्रद्धा और आदर-भाव है। वह देखती है कि उसके पिता महाराणा से शत्रुता रखते हैं फिर भी महाराणा के हृदय में उसके प्रति महान् स्नेह-भाव है। वे पहले उसे खिलाते हैं, फिर स्वयं भोजन करते हैं। उसमें और अमर में कोई भेद नहीं करते तथा इस बात को कभी मन में नहीं आने देते हैं कि वह एक यवन और शत्रु-सुता है।
अकबर से घृणा –
दौलत को इस बात का दुःख है कि ऐसे महान् व्यक्ति को भी अकबर इतना कष्ट दे रहा है। राणा का एकमात्र अपराध यह है कि उन्होंने महाबली की दासता स्वीकार नहीं की। अतः वह अकबर से घृणा करती है।
रानी लक्ष्मी के प्रति श्रद्धा –
दौलत को रानी लक्ष्मी के लिए भी उतनी ही श्रद्धा है, जितनी महाराणा प्रताप के लिए। वह उनकी प्रकृति से भली-भांति परिचित है और मुक्त-कंठ से उनकी प्रशंसा करती है।
त्याग और सेवा भावना –
दौलत चाहती है वह महाराणा प्रताप की कुछ सेवा कर सके –
केवल एक पुकार यही, उठती है अंतरतम से।
राणा की अनुगता बनूं, जीवन संवार लूं क्रम से।।
शक्ति सिंह के लिए प्रेम –
दौलत के वन में आने का वास्तविक कारण यह है कि वह शक्तिसिंह से प्रेम करती है। वह शक्तिसिंह के गुणों पर नहीं अपितु उसके रूप पर मुग्ध है। वह जानती है कि शक्तिसिंह क्षुद्र-हृदय और कायर है, फिर भी वह उसके रूप को निहारना चाहती है।
संक्षेप में दौलत एक नवयुवती है, उसमें नवयुवती के सदृश सुलभ कामनाएं हैं। शक्तिसिंह पर मुग्ध होकर वह अकबर का दरबार छोड़ देती है और वन में आकर रहने लगती है, किंतु यहां आकर वह वन-जीवन की भक्त हो जाती है और राणा की सेवा में ही अपने जीवन को सफल मानने लगती है।
प्रश्न 5. 'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य के आधार पर लक्ष्मी का 'चरित्र-चित्रण' कीजिए।
'मेवाड़-मुकुट' खंडकाव्य के आधार पर किसी नारी पात्र की चारित्रिक विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर - लक्ष्मी महाराणा प्रताप की सच्चे अर्थों में अर्धांगिनी है। वह भी महाराणा प्रताप के साथ वन-वन भटक रही है और उनके समान ही कष्ट सह रही है। प्रस्तुत खंडकाव्य में उनके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएं प्रकट होती हैं –
मानसिक संघर्ष –
लक्ष्मी इतने कष्ट झेलती है कि मानसिक संघर्ष के कारण उन्हें अनेक प्रकार की शंकाएं होने लगती हैं। वे सोचती हैं कि कर्म-योग की बातें करना कोरा आदर्श है। वास्तव में भोग ही सच्चा जीवन-दर्शन है। संसार में दयावान तथा सद्विचार वाले व्यक्ति दुःख भोगते हैं और कुमार्ग पर चलने वाले सफलता प्राप्त करते हैं।
महाराणा प्रताप के लिए अपार श्रद्धा –
लक्ष्मी के हृदय में महाराणा के लिए अपार श्रद्धा है। वे कहती हैं कि उनका एकमात्र अपराध यह है कि उन्होंने कभी अत्याचार के आगे सिर नहीं झुकाया, अपने धर्म और स्वाभिमान को नहीं बेचा और दासता का जीवन स्वीकार नहीं किया। इसके कारण ही उन्हें इतने कष्ट झेलने पड़ रहे हैं किंतु उनकी आत्मा महान है और उन्हें संतोष प्राप्त होता है। वास्तव में लक्ष्मी को यही खेद है कि निर्दोष होते हुए भी महाराणा इतना कष्ट भोग रहे हैं।
परदु:ख कातरता –
लक्ष्मी स्वयं कष्ट सह सकती है, पर दूसरों के कष्ट उनसे नहीं देखे जाते। वे कहती हैं कि यदि वे अकेली होती तो उन्हें भूखे रहने की कोई चिंता न थी किंतु उनसे अमर, दौलत और राणा जी का भूखे रहना नहीं देखा जाता।
उदारहृदया –
लक्ष्मी का ह्रदय विशाल और संकीर्ण सांप्रदायिक विचारों से परे है। अकबर कीमा मेरी बहन दौलत उनके साथ आकर रहने लगती है। वे उसको उतना ही स्नेह करती हैं, जितना अपने पुत्र अमर को। वे यह नहीं सोचती है कि बालिका एक यवन पुत्री है और शत्रु की बहन है। यही कारण है कि दौलत भी लक्ष्मी को सच्चे हृदय से अपनी मां मानती है और उनका उसी प्रकार सम्मान करती है।
स्वतंत्रता-प्रेमी –
पर्याप्त मानसिक संघर्ष झेलते हुए भी अंत में उनकी स्वतंत्रता की भावना की विजय होती है। वह कहती हैं कि वे कष्ट सहती रहेंगी। कष्ट उन्हें विचलित नहीं कर पाएंगे। वे कभी अत्याचारों के आगे शीश नहीं झुकाएंगी।
दृढ़ता एवं वीरता –
वे वीरांगना हैं। जब महाराणा प्रताप कहते हैं कि उन्होंने मेवाड़ छोड़ने का निश्चय कर लिया है, तो उनका मन पुनः उत्साह से भर जाता है। वे राणा से कहती हैं कि वे उनकी चिंता न करें। वे क्षत्राणी हैं और वे जौहर करना जानती हैं।
निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि रानी लक्ष्मी उदारहृदया, साहसी एवं सहनशील हैं। वे एक आदर्श पत्नी तथा स्नेही मां हैं। संकटों के झंझावात कभी-कभी उन्हें विचलित कर देते हैं, किंतु अंत में उनकी दृढ़ता और उनके स्वतंत्रता-प्रेम की ही विजय होती है। वे कष्टों के समक्ष नतमस्तक होने से इनकार कर देती हैं।
FAQ'S (Frequently Asked Questions) -
1. मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य नायक कौन है?
उत्तर - महाराणा प्रताप मेवाड़ मुकुट खंडकाव्य के नायक हैं।कवि ने इस काव्य में भारतीय इतिहास के विख्यात महापुरुष महाराणा प्रताप के त्याग, संघर्ष, देशभक्ति, उदारता और बलिदान का चित्रण किया है।
2. मेवाड़ मुकुट कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर - मेवाड़ मुकुट में कुल 6 सर्गें के हैं। जिसमें प्रथम द्वितीय में अरावती और लक्ष्मी के विषय में बताया गया है और तृतीय चतुर्थ में प्रताप और दौलत के विषय में पंचम और पृष्ठ सर्ग में चिंता और पृथ्वीराज के विषय में बताया गया है।
3. महाराणा प्रताप की कितनी पत्नियां थी?
उत्तर - महाराणा प्रताप की 14 पत्नियां 17 बेटे और 5 बेटियां थी।
4. महाराणा प्रताप का जन्म कब हुआ था और मृत्यु कब हुई थी?
उत्तर - महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को और मृत्यु 19 जनवरी 1957 को उदयपुर मेवाड़ में हुआ था। यह सिसोदिया राजवंश में जन्मे थे। यह एक महान राजा थे। इनका नाम इतिहास में वीरता और त्याग, पराक्रम और कठोर प्रतिज्ञा के लिए अमर है।
5. महाराणा प्रताप से कौन डरता था?
उत्तर - महाराणा प्रताप से अकबर थर-थर कांपता का पता था। भारत के इतिहास में महाराणा प्रताप एकमात्र ऐसे योद्धा रहे जिन्होंने कभी किसी मुगल बादशाह के आगे हार नहीं मानी है।
6. महाराणा प्रताप ने कितनी बार शादी की थी?
उत्तर - महाराणा प्रताप ने कुल 11 शादियां की थी कहा जाता है कि इन्होंने यह सभी शादियां राजनैतिक कारणों से की थी।
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