मातृभूमि के लिए खंडकाव्य का सारांश || Matrabhoomi ke liye khandkavya ka Saransh
मातृभूमि के लिए -
प्रश्न 1. 'मातृभूमि के लिए' खंडकाव्य की कथावस्तु (कथानक या सारांश) संक्षेप में लिखिए।
अथवा
'मातृभूमि के लिए' खंडकाव्य के आधार पर 'संकल्प' (प्रथम) सर्ग का सारांश लिखिए।
अथवा
'मातृभूमि के लिए' खंडकाव्य के आधार पर तृतीय सर्ग (बलिदान सर्ग) का सारांश लिखिए।
अथवा
'मातृभूमि के लिए' खंडकाव्य के द्वितीय सर्ग का सारांश लिखिए।
अथवा
''चंद्रशेखर आजाद का जीवन विराट संघर्ष और राष्ट्रप्रेम के उदात्त पक्ष का प्रतीक था।'' इस कथन पर प्रकाश डालिए।
अथवा
'मातृभूमि के लिए' खंडकाव्य का कथासार लिखिए।
अथवा
'मातृभूमि के लिए' खंडकाव्य के आधार पर द्वितीय सर्ग (संघर्ष सर्ग) का सारांश (कथावस्तु या कथानक) लिखिए।
अथवा
'मातृभूमि के लिए' खंडकाव्य के आधार पर तृतीय सर्ग (बलिदान सर्ग) का सारांश लिखिए।
उत्तर - डॉ जयशंकर त्रिपाठी द्वारा रचित 'मातृभूमि के लिए' खंडकाव्य 3 सर्गों में विभक्त है – 1. संकल्प 2. संघर्ष तथा 3. बलिदान।
प्रथम सर्ग –
प्रथम सर्ग में चंद्रशेखर आजाद के काशी में छात्र जीवन का प्रसंग है। चंद्रशेखर आजाद का जन्म मध्य प्रदेश के भांवरा ग्राम में हुआ था। बड़े होने पर वे काशी नगरी में संस्कृत पढ़ने गए। उस समय भारत में ब्रिटिश शासन का दमन चक्र चल रहा था। भारतीय जनता के दमन के लिए रोलेट एक्ट बनाया गया था। इस राष्ट्र-विरोधी एक्ट का विरोध करने के लिए अमृतसर में सन् 1919 ईस्वी में जलियांवाला बाग में एक विशाल सभा आयोजित की गई थी। उसी समय जनरल डायर ने वहां पहुंचकर गोलियों की बौछार करके निरीह जनता को भून डाला।
अंग्रेजों की उक्त दमन की घटना को पढ़कर किशोर चंद्रशेखर का मुख क्रोध से तमतमा उठा और आंखें करुणा से भर आयीं। उसने भारत माता को यातना से मुक्ति दिलाने का निश्चय किया।
उसी समय महात्मा गांधी ने अंग्रेजों का असहयोग करने के लिए आहान किया। उनकी एक पुकार पर देशभक्त छात्रों ने विद्यालय तथा राष्ट्र भक्तों ने नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्रता-संग्राम में कूद पड़े। चंद्रशेखर को देशद्रोह के अभियोग में बंदी बना लिया गया था। मजिस्ट्रेट के द्वारा परिचय पूछने पर उन्होंने अपना नाम 'आजाद', पिता का नाम 'स्वाधीन' तथा घर 'जेलखाना' बताया। चंद्रशेखर का साहस ऐसा था कि उसने जनता में असीम साहस का संचार किया।
तभी से उस बालक को 'आजाद' कहकर सम्मानित किया जाने लगा।
द्वितीय सर्ग –
द्वितीय सर्ग में चंद्रशेखर आजाद के संघर्ष का वर्णन किया गया है। देश में असहयोग आंदोलन के मंद पड़ते ही चंद्रशेखर का झुकाव शस्त्र क्रांति की ओर हो गया। उन्हें स्वतंत्रता-संग्राम के लिए बमों और पिस्तौलों का निर्माण कराने के लिए धन की आवश्यकता हुई। इन्होंने सरदार भगत सिंह, अशफाक उल्ला खान, रामप्रसाद बिस्मिल, मन्मथनाथ गुप्त, शचीन्द्रनाथ बख्शी आदि के साथ मिलकर 9 अगस्त, 1925 ईस्वी को काकोरी स्टेशन के पास रेलगाड़ी से सरकारी खजाने को लूटने में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। इस कांड में पकड़े जाने पर कुछ क्रांतिकारियों को फांसी और कुछ को जेल की सजा हुई, परंतु चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह सरकार की नजर से बच निकले।
सन् 1928 ईस्वी में साइमन कमीशन भारत में हो रहे स्वाधीनता के झगड़ों की जांच के लिए आया। इस कमीशन के सारे सदस्य अंग्रेज थे। जहां भी यह कमीशन गया, वहीं उसका बहिष्कार और अपमान करके रोष प्रकट किया गया। पंजाब केसरी लाला लाजपत राय पर पुलिस अफसर स्कॉट ने लाठियों का घातक प्रहार किया, जिससे कुछ ही दिनों के बाद उनका देहांत हो गया।
चंद्रशेखर आजाद ने भगत सिंह और राजगुरु से मिलकर लाला लाजपत राय के हत्यारे पुलिस ऑफिसर स्कॉट को मारने की योजना बनाई। स्कॉट के स्थान पर साण्डर्स मारा गया। इस घटना से ब्रिटिश हुकूमत पर मानो बिजली गिर पड़ी। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली में बम गिरा दिया और 'भारत माता की जय' का नारा लगाते हुए अपने आपको गिरफ्तार कराया। सरकार ने पंजाब की घटना का जुर्म भी क्रांतिकारियों के मत्थे मढ़ कर 3 क्रांतिकारियों को फांसी की सजा दे दी। अब संगठन का सारा भार 'आजाद' के कंधों पर आ गया। वे शासन से अन्याय का बदला लेने की सोचने लगे।
तृतीय सर्ग –
तृतीय सर्ग में आजाद के जीवन के अंतिम समय की क्रियाशीलता और बाधाओं का वर्णन किया गया है। 'आजाद' जब बहुत थक जाते थे, तब वे प्रकृति के बीच जाकर विश्राम करते थे। मध्य प्रदेश की सातार नदी के तट पर हनुमान जी का मंदिर और पर्वत की गुफा उनका ऐसा ही विश्राम-स्थल था।
1 दिन आजाद फूलबाग की सभा में सशस्त्र क्रांति के विरुद्ध एक नेता का भाषण सुन रहे थे। वहीं पर खड़े गणेश शंकर विद्यार्थी ने उनके उत्तेजित मन को शांत किया और कहा – ''देख आजाद! नेता की अनजानी बातों को मत सुनना। उन्हें इस बात का भय था कि आजाद कहीं इस सभा को भंग ना कर दें।''
फरवरी, सन् 1931 ईस्वी को प्रयाग के अल्फ्रेड पार्क में बैठकर वे कुछ मित्रों से बातें कर रहे थे। उसी समय वहां पुलिस की गाड़ी आकर रुकी और पुलिस ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। आजाद ने अपनी पिस्तौल में गोलियां भरी और पुलिस से मोर्चा लिया। पहली ही गोली में उन्होंने एक अफसर का जबड़ा उड़ा दिया। नॉट बाबर नाम के अंग्रेज एस०पी० की कलाई उड़ा दी। वह निरंतर पुलिस पर गोलियां बरसाते रहे, परंतु जब उस एकाकी वीर के पास अकेली गोली बची, तो उसे उसने अपनी कनपटी पर मारकर वीरगति प्राप्त कर ली।
आजाद ने जिस जामुन के पेड़ की ओट लेकर संघर्ष किया था, वह पेड़ भारतीय जनता का पूजा-स्थल बन गया।
प्रश्न 2. 'मातृभूमि के लिए' खंडकाव्य के नायक चंद्रशेखर आजाद का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा
'मातृभूमि के लिए' खंडकाव्य के आधार पर आजाद के वीरोचित गुणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
'मातृभूमि के लिए' खंडकाव्य के मुख्य पात्र की चरित्रगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
'मातृभूमि के लिए' खंडकाव्य के किसी एक पात्र का चरित्र चित्रण कीजिए।
अथव
''चंद्रशेखर आजाद उत्कृष्ट देशप्रेमी थे।'' इस कथन की पुष्टि 'मातृभूमि के लिए' खंडकाव्य के आधार पर कीजिए।
उत्तर - डॉक्टर जयशंकर त्रिपाठी द्वारा रचित 'मातृभूमि के लिए' नामक खंडकाव्य राष्ट्रीय भावना के साक्षात् अवतार एक तरुण देशभक्त अमर बलिदानी चंद्रशेखर आजाद की जीवन गाथा प्रस्तुत की है। वही प्रस्तुत काव्य के नायक है उनके चरित्र की विशेषताएं इस प्रकार हैं –
देशभक्त –
चंद्रशेखर आजाद का चरित्र एक महान देशभक्त का चरित्र था। उनका सारा जीवन भारत माता की स्वाधीनता के लिए संघर्षों में बीता। छात्र जीवन में जलियांवाला बाग के नश्वर हत्याकांड को पढ़कर उनका हृदय तिलमिला उठा वह उसी समय प्रतिज्ञा करते हैं -
इस जन्म भूमि के लिए प्राण, मैं अपने अर्पित कर दूंगा।
आजाद ना होगी जब तक यह, मैं कर्म अकल्पित कर दूंगा ।।
वीर और साहसी –
चंद्रशेखर ने 15 वर्ष की आयु में 16 बेंतों की मार खाते हुए। प्रत्येक प्रहाऐ के साथ 'भारतमाता की जय' बोल कर अपने अपूर्व देशभक्ति साहस और वीरता का परिचय दिया था। अल्फ्रेड पार्क में पुलिस से घिरकर 1 घंटे तक अकेले उसका सामना करते रहना तथा काकोरी स्टेशन के निकट सरकारी खजाने को लूटना भी उनका साहसिक कार्य था।
प्रभावशाली व्यक्तित्व –
आजाद का व्यक्तित्व बड़ा प्रभावशाली था। वह अपने ओजस्वी भाषणों से नवयुवकों को प्रभावित कर लेते थे। नवयुवक उन्हें अपना पथ प्रदर्शक मानते थे -
आजाद चंद्रशेखर ऐसा, जिस पर हरेक । नवयुवक निछावर होकर होता विस्तृत-सा ।।
अद्भुत संगठनकर्ता –
चंद्रशेखर ने देश के समस्त क्रांतिकारियों को भारत को स्वतंत्र कराने के लिए एक मंच पर संगठित करने का अद्भुत कार्य किया -
संगठन शक्ति का, पैसे का, वे करते थे। व्यक्तित्व खींचता था चुंबक सा अमृत-सा ।।
प्रकृति प्रेमी –
आजाद प्रकृति प्रेमी थे। जब संघर्षों से थक जाते थे। विश्राम करने के लिए प्रकृति की गोद में चले जाते थे। वहीं वह अपने भावी कार्यक्रम की योजना भी बनाते थे
सातार नदी के तट पर, जननी की मुक्ति सोचता है।शासन की महाशक्ति से वह, लड़ने की युक्ति सोचता।।
महान क्रांतिकारी –
चंद्रशेखर महान क्रांतिकारी और देशभक्त थे। अंग्रेज़ों के दमन चक्र के विरोध में असहयोग आंदोलन को शिथिल पड़ता देख उन्होंने सशस्त्र क्रांति व आलंबन किया और भगतसिंह जैसे अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर क्रांति की ज्वाला सर्वत्र भड़का दी।
संयुक्त प्रांत पूर्वी भारत के क्रांति दूत,
आजाद क्रांति की आग जलाये जाते थे।
उनका संपूर्ण जीवन क्रांति और संघर्षों में बीता उनके आह्वान पर देश के नवयुवक प्राण न्योछावर करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। उन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अनेक क्रांतिकारी योजनाएं बनायीं।
अपराजेय सेनानी –
आजाद अपराजेय, निर्भीक स्वतंत्रता सेनानी थे। वह कुशल संगठनकर्ता करता और सेनानायक थे। वे क्रांतिकारी योजनाओं को बड़ी चतुराई से क्रियान्वित किया करते थे। वह 'हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी' के कमांडर-इन-चीफ थे। उन्होंने बाल्यावस्था में ही यह सिद्ध कर दिया था कि बड़ा कष्ट सहकर भी वे कभी नहीं झुकेंगे।
अमर शहीद –
बचपन से ही स्वतंत्रता की आग को हृदय में बसाए हुए चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेज सरकार को भयभीत कर दिया था 27 फरवरी 1931 ईस्वी को प्रयाग के अल्फ्रेड पार्क में उन्होंने अकेले ही अंग्रेज पुलिस से मुकाबला किया और एक सिपाही का जबड़ा तथा अंग्रेज एस०पी० नाँट बाबर की कलाई को गोली से उड़ा दिया। उन्हें जीवित नहीं पकड़ा जा सका था, अपने रिवाल्वर की अंतिम गोली से उन्होंने अपनी यह लीला समाप्त कर ली। कवि ने उस हृदयस्पर्शी दृश्य का वर्णन इस प्रकार किया है -
गिर पड़ा वीर पर हिम्मत थी, आने की पास नहीं उसकी।
कहते थे जीवित होगा यह, क्या जाने गोली कब खनकी ।।
वास्तव में चंद्रशेखर आजाद की जीवन गाथा 'देशभक्ति और बलिदान की गौरव-गाथा' है। वह महान देशभक्त, वीर साहसी, महान क्रांतिकारी, अपराजेय सेनानी और स्वतंत्रता प्रेमी थे। उनका चरित्र भारतीय युवकों को राष्ट्रभक्ति और बलिदान की प्रेरणा देता रहेगा।
प्रश्न 3. 'मातृभूमि के लिए' खंडकाव्य के मार्मिक दृश्यों का अंकन कीजिए।
अथवा
'मातृभूमि के लिए' खंडकाव्य के आधार पर चंद्रशेखर आजाद के त्याग और बलिदान का वर्णन कीजिए।
अथवा
'मातृभूमि के लिए' खंडकाव्य की किसी एक प्रमुख घटना का वर्णन कीजिए।
अथवा
'मातृभूमि के लिए' खंडकाव्य की कौन सी घटना आपको सर्वाधिक प्रभावित करती है संक्षेप में लिखिए।
अथवा
चंद्रशेखर आजाद के जीवन की दो वीरता पूर्ण घटनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर - तृतीय सर्ग में 'आजाद' के जीवन के अंतिम समय की क्रियाशीलता और बाधाओं का वर्णन किया गया है। आजाद जब बहुत थक जाते थे तब वे प्रकृति के बीच जाकर विश्राम करते थे। मध्य प्रदेश की सातार नदी के तट पर हनुमान जी का मंदिर और पर्वत की गुफा उनका ऐसा ही विश्राम स्थल था। वे फागुन के सुहावने दिनों में उषाकाल के समय संघर्ष से थककर अपने मित्र रूद्र के साथ बैठकर भावी संघर्ष की योजना बना रहे थे। मित्रों को याद करके बदला लेने के लिए बार-बार उनका चेहरा तमतमा उठता था। उन्होंने अपने मित्र से कहा – ''अंग्रेजों ने भारत माता के पुत्रों के खून से उसका आंचल रंग दिया है।'' इस कृत्य के लिए मैं अंग्रेजों को छोड़ नहीं सकता। आर्मी के संगठन को मजबूत करके क्रांति का बिगुल बजाते हुए मुझे अपना दायित्व पूरा करना ही होगा।
1 दिन आजाद फूल बाग की सभा में सशस्त्र क्रांति के विरुद्ध एक नेता का भाषण सुन रहे थे। वहीं पर खड़े गणेश शंकर विद्यार्थी ने उनके उत्तेजित मन को शांत किया और कहा – ''देख आजाद! नेता की अंजानी बातों का मत सुनना। उन्हें इस बात का भय था कि आजाद कहीं इस सभा को भंग ना कर दे।'' उनका यह विचार भ्रम-मात्र ही था; क्योंकि आजाद स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए शासन से अपने आपको सुरक्षित रखना चाहते थे। उन्होंने बताया कि वे प्रयाग जाकर जवाहरलाल नेहरू, पुरुषोत्तम दास आदि मित्रों से मिलकर भावी योजना बनाना चाहते थे और उसके बाद उनका अहमदाबाद जाने का विचार था।
फरवरी, सन् 1931 ईस्वी को प्रयाग के अल्फ्रेड पार्क में बैठकर वे कुछ मित्रों से बातें कर रहे थे। उसी समय वहां पुलिस की गाड़ी आकर रुकी और पुलिस ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। आजाद ने क्षण भर में अपने मित्रों को विदा करके अपनी पिस्तौल में गोलियां भरी और पुलिस से मोर्चा लिया। पहली ही गोली में उन्होंने एक अफसर का जबड़ा उड़ा दिया। नॉट बाबर नाम के एक अंग्रेज एस०पी० ने वृक्ष की ओट से गोलियां दागनी शुरू कर दीं। 'आजाद' अकेले ही उससे मोर्चा ले रहे थे। उन्होंने 1 घंटे तक डटकर विशाल पुलिस दल का मुकाबला किया और एक गोली से एस०पी० की कलाई उड़ा दी। वह निरंतर पुलिस पर गोलियां बरसाते रहे, परंतु जब उस एकाकी वीर के पास अकेली गोली बची, तो उसे उसने अपनी कनपटी पर मारकर वीरगति प्राप्त कर ली। नॉट बाबर को उनके मरने पर संदेह था, इसलिए उसने आजाद के तलवे में गोली मारकर अपना संदेश दूर किया। आजाद के विस्मयकारी बलिदान से सारा देश स्तब्ध रह गया।
आजाद ने जिस जामुन के पेड़ की ओट लेकर संघर्ष किया था, वह पेड़ भारतीय जनता का पूजा स्थल बन गया। अंग्रेज सरकार ने आतंकित होकर उसको भी समूल कटवा दिया।
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