तुर्रम खान का जीवन परिचय ||Turram Khan ka Jivan Parichay
क्या आप जानते हैं कि तुर्रम खान कौन था? (Turram Khan kaun tha) तुर्रम खान की कहानी क्या है? तुर्रम खान को लेकर कई स्लोगन बोले जाते हैं जैसे कि "ज्यादा तुर्रम खां मत बनो" और "खुद को तुर्रम खां समझते हो?"। इस तरह के कई डायलॉग आपने भी सुने होंगे, Turram Khan का असली नाम तुर्रेबाज खान था। तुर्रम खां 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के एक वीर स्वतंत्रता सेनानी थे। बैरकपुर में स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे द्वारा शुरू की गई क्रांति आग की तरह पूरे भारत में फैल गई और इसी स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा थे तुर्रम खान।
वास्तव में तुर्रेबाज खान वह शख्स थे, जिन्होंने देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के मानचित्र पर हैदराबाद का नाम दर्ज कराया। मेरठ की कहानी तो हम सभी जानते हैं लेकिन हैदराबाद में भी 1857 के विद्रोह की अपनी कहानी है। इस लड़ाई का नेतृत्व किया था तुर्रेबाज खान ने। उन्हें ही तुर्रम खां के नाम से जाना जाता है।
तुर्रम खान की कहानी और संक्षिप्त परिचय (Turram Khan History in Hindi)
तुर्रम खां (Turram Khan) एक स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 1857 ईसवी में संपूर्ण भारत में रात में स्वतंत्रता के बिगल को आग देने का काम किया, यही वजह रही कि तुर्रम खान को आज भी एक हीरो के रूप में पेश किया जाता है। भारत का इतिहास उठाकर देखा जाए तो उसमें तुर्रम खान का नाम स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है।
1857 के आंदोलन में तुर्रम खान (Turram Khan) ने हैदराबाद का नेतृत्व किया था। इन्होंने हैदराबाद के निजाम और अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह किया था। तुर्रम खान का जन्म हैदराबाद के बेगम बाजार में हुआ था। बचपन से ही इनमें राष्ट्र के प्रति अथाह प्रेम था, इसका परिणाम यह हुआ कि सन 1857 की पहली क्रांति में इन्होंने सत्तारूढ़ निजाम ब्रिटिश शासन के विरोध के बाद भी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया।
तुर्रम खान का जन्म बचपन से ही उतार-चढ़ाव वाला रहा है। तुर्रम खान को दक्कन के इतिहास में वीर और साहसी व्यक्तित्व के लिए याद किया जाता है। हैदराबाद की लोक कथाओं में आज भी तुर्रम खान का नाम एक हीरो के रूप में लिया जाता है।
तुर्रम खान का अर्थ होता है – हीरो। तुर्रम खान का मतलब अलग-अलग हो सकता है जैसे कि शक्तिशाली, बलशाली, योद्धा, नायक महत्वपूर्ण यह इस बात पर निर्भर करता है कि इस शब्द का उपयोग किस जगह पर किया जा रहा है।
तुर्रेबाज खान दक्कन के इतिहास में एक वीरता पूर्ण व्यक्ति था, जो अपने साहस और साहस के लिए जाना जाता था। हैदराबाद लोक कथाओं में एक झुकाव है, एक सकारात्मक नाम "तुर्रम खान"
के रूप में जाना जाता है। वह एक क्रांतिकारी व्यक्ति स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था। उन्होंने ब्रिटिश निवास पर हमला किया, जो अब हैदराबाद में कोटी में महिला कॉलेज रखती है, ताकि वह अपने साथियों को मुक्त कर सके, जिन्हें अंग्रेजों द्वारा निष्पक्ष परीक्षण के बिना धोखाधड़ी के आरोप में हिरासत में लिया गया था। जेल में 1 साल बाद, वह भाग गया, और बाद में टेलीगोन में तोप्रान के पास एक जंगल में गिरफ्तार कर लिया गया। कूपन अली बेग, तोप्रान के तालुकदार उनकी गिरफ्तारी के लिए जिम्मेदार थे। तुर्रेबाज खान को कैद में रखा गया था, फिर गोली मारकर हत्या की गई थी, और फिर उनके शरीर को और लोगों में विद्रोह को रोकने के लिए शहर के केंद्र में लटका दिया गया था।
अंग्रेजो के खिलाफ —
1857 के विद्रोह के संदर्भ में, दिल्ली, मेरठ, लखनऊ, झांसी और मैसूर में गतिविधियां अच्छी तरह से प्रलेखित हैं, लेकिन हैदराबाद में गतिविधियां शायद इस तथ्य के कारण नहीं है कि निजाम अंग्रेजों के सहयोगी थे। तुर्रेबाज खान के साथ, एक संक्षिप्त अवधि आई जब हैदराबाद विद्रोह में शामिल हो गए। तुर्रेबाज खान ब्रिटिश निवास पर हमला करने के लिए 6000 लोगों को संगठित किया।
असंगत हैदराबाद के 'हीरो की कहानी' को बताते हुए तो तुर्रेबाज खान और उपेक्षित, लेकिन महत्वपूर्ण, दक्षिणी भारतीय परिप्रेक्ष्य स्वतंत्रता के पहले युद्ध के हर मिनट विवरण। डॉ. देव देयरी सुब्रमण्यम रेड्डी, प्रोफ़ेसर और विभाग प्रमुख (सेवानिवृत्त)। तिरुपति में एसवी विश्वविद्यालय में '1857 की विद्रोह' में लिखा है: एक आंदोलन जिसमें 15 अगस्त, 1947 का भारत को परिभाषित किया था।
1857 की क्रांति और तुर्रम खान (1857 ki Kranti Mein Turram Khan)
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि तुर्रम खां एक देश प्रेमी और स्वतंत्रता सेनानी थे। बैरकपुर में मंगल पांडे ने स्वतंत्रता संग्राम की एक चिंगारी सुलगा दी, इसकी आग धीरे-धीरे पूरे भारत में फैल गई। यह उस समय की बात है जब जमादार चीदा खान (हैदराबाद में अंग्रेजों का नेतृत्वकर्ता) ने सिपाहियों के साथ दिल्ली की तरफ कूच करने से मना कर दिया। जब यह बात निजाम के मंत्री तक पहुंची तो उसने धोखे से चीदा खान को गिरफ्तार कर लिया और जेल में डाल दिया।
जब इस बात की जानकारी तुर्रम खां को हुई तो वह तत्काल इन्हें अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए कमर कस ली। जिस रेजीडेंसी हाउस में चीदा खान को कैद किया गया था, उस पर 500 स्वतंत्रता सेनानियों के साथ तुर्रम खान ने 17 जुलाई 1857 के दिन रात्रि के समय हमला कर दिया।
रात्रि के समय हमले का मकसद यह था कि इस हमले की अंग्रेजों को तनिक भी भनक नहीं पड़ेगी और आसानी के साथ तुर्रम खान, चीदा खान को अंग्रेजों की गिरफ्त से छुड़ा ले आएंगे। पूरी प्लानिंग के साथ जब तुर्रम खान रेजीडेंसी हाउस पहुंचे तो वहां पर अंग्रेज पहले ही अलर्ट थे, क्योंकि निजाम के वजीर सालारजंग ने नमक हरामि करते हुए अंग्रेजों को इस हमले की पूर्व सूचना दे दी।
500 स्वतंत्रता सेनानियों के साथ तुर्रम खान जब वहां पर पहुंचे तो उनका स्वागत तोप और गोलों से हुआ, जबकि दूसरी तरफ तुर्रम खान और साथियों के पास सिर्फ तलवारे थीं। रात्रि के समय एक भीषण युद्ध हुआ दोनों तरफ से बराबरी का मुकाबला था। अंग्रेजों द्वारा आधुनिक हथियारों का उपयोग करने के बावजूद रात भर तुर्रम खान को नहीं पकड़ पाए।
जब पकड़े गए तुर्रम खां -
वहां से बच निकल कर तुर्रम खान तुपरन के जंगलों में जाकर छिप गए और अंग्रेजों ने उन पर ₹5000 का इनाम रख दिया, जिसके कारण बहुत से लालची गद्दार उनकी खबर के फिराक में लग गए और ऐसे ही एक गद्दार ने उनकी सूचना अंग्रेजों तक पहुंचा दी जिसके कारण वो पकड़े गए और हैदराबाद कोर्ट में तुर्रम खां पर मुकदमा चला। उनसे अपने बाकी साथियों का पता बताने के लिए कहा गया, इसके लिए उन्हें बहुत टॉर्चर किया गया, मगर उन्होंने बताने से इनकार कर दिया। ऐसे में तुर्रम खां को काला-पानी की सजा दी गई। उन्हें जीवन भर सड़ने के लिए अंडमान भेजने की तैयारी शुरू हुई।
हालांकि अंग्रेजों उन्हें अंडमान भेज पाते, इसके पहले ही 18 जनवरी 1859 को तुर्रम खां अंग्रेजों की गिरफ्त से फरार हो गए। एक बार फिर तुर्रम खां तुपरन के जंगलों में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए अपने सिपाहियों और दोस्तों को इकट्ठा करने लगे लेकिन मिर्जा कुर्बान बग नामक एक तालुकदार ने इनाम के लालच में धोखे से तुर्रम खान को मार दिया, लेकिन तुर्रम खान भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में अमर बन गए।
तुर्रम खान को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में याद किया जाता है जो अपने से कई गुना ज्यादा ताकतवर अंग्रेजों से किसी भी हाल में हार मानने को तैयार नहीं थे, इसी कारण जब भी कोई अंग्रेजो के खिलाफ जाने की जुर्रत करता तो अंग्रेज उसे कहते "ज्यादा तुर्रम खां मत बनो" या "खुद को बड़ा तुर्रम खां समझते हो?" या "बड़ा तुर्रम खां बन रहा है" इस तरह एक मुहावरा बन गया जिसे आज खूब प्रयोग किया जाता है। इसलिए अब अगर आपको कोई बोले "ज्यादा तुर्रम खां मत बनो" तो समझे कि वह आपको एक नायक कह रहा है।
एक गुमनाम सहित तुर्रम खान -
1857 की क्रांति और जंग के बारे में दिल्ली, मेरठ, झांसी, लखनऊ और मैसूर के बारे में बताया और पढ़ाया जाता है लेकिन हैदराबाद और शहीद तुर्रेबाज खां के बारे में बहुत ही कम या ना के बराबर बताया जाता है। देशभक्त तुर्रम खान ने अपनी बहादुरी से हैदराबाद में भी इस जंग की चिंगारी को हवा दी और अपना योगदान अपनी जान देकर दिया, और उन्हीं की वजह से हैदराबाद के लोग स्वतंत्रता के लड़ाई के प्रति जागरूक हुए और इस लड़ाई ने दक्कन में भी आग पकड़ी।
तुर्रम खां ऐसे जांबाज सेनानी थे, जिन्होंने कभी अंग्रेजों के आगे अपने घुटने नहीं टेके। जान दे दी मगर देश से गद्दारी नहीं की और मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। हैदराबाद के बेगम बाजार जो कि उनकी जन्मस्थली थी वहां उनके नाम पर एक सड़क का नाम रखा गया है।
तुर्रम खान की मृत्यु कैसे हुई? (Turram Khan ki mrutyu kaise Hui)
एक वीर स्वतंत्रता सेनानी के लिए अपने देश की आन-बान और शान की रक्षा के लिए शहीद होना बड़े ही गर्व की बात होती है। रात्रि में अंग्रेजी सेना पर हमले के बाद तुर्रम खान वहां से बच निकले, लेकिन दूसरे ही दिन अंग्रेजों ने तुर्रम खान के ऊपर ₹5000 का इनाम रखा। तुर्रम खान तूपरण के जंगलों में जाकर छुप गए लेकिन तालुकदार मिर्जा कुर्बान अली बेग ने गद्दारी कर दी और तुर्रम खान के बारे में संपूर्ण गुप्त सूचना को अंग्रेजों तक पहुंचा दी।
गुप्त सूचना का फायदा उठाकर अंग्रेजी सेना वहां पर पहुंच गई और तुर्रम खां को मौत के घाट उतार दिया। इस तरह एक वीर और पूरी तरह से राष्ट्र को समर्पित तुर्रम खान शहीद हो गए। तुर्रम खान को गोली मारकर मौत के घाट उतारा गया था। तुर्रम खान की मृत्यु के पश्चात उनके शरीर को शहर के मध्य में लटका दिया गया ताकि इन्हें देख कर कोई भी व्यक्ति विद्रोह के बारे में सोच भी न सके।
हैदराबाद के निजाम शुरू से ही अंग्रेजों के सहयोगी रहे, इसी वजह से प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में हैदराबाद का जिक्र नहीं के बराबर होता है। जबकि इतिहास में झांसी, मैसूर, लखनऊ, दिल्ली और मेरठ के बारे में विस्तृत रूप में पढ़ाया जाता है।
लेकिन राष्ट्रभक्त तुर्रम खान के समय एक छोटी अवधि में हैदराबाद में भी 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अपना नाम दर्ज करवाया और तुर्रम खान की वजह से ही हैदराबाद में भी स्वतंत्रता के प्रति लोग जागरूक हुए। तुर्रम खान (Turram Khan) को "हैदराबाद के हीरो" के नाम से भी जाना जाता है।
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