तुलसीदास का जीवन परिचय || Tulsidas ka Jivan Parichay

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तुलसीदास का जीवन परिचय || Tulsidas ka Jivan Parichay

तुलसीदास का जीवन परिचय || Tulsidas ka Jivan Parichay

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गोस्वामी तुलसीदास जी का जीवन परिचय


संक्षिप्त परिचय


        नाम

गोस्वामी तुलसीदास

      जन्म

1532 ई०

    जन्म स्थान

राजापुर गांव

        मृत्यु

1623 ई०

  मृत्यु का स्थान

काशी

  माता का नाम

हुलसी देवी

  पिता का नाम

आत्माराम दुबे

  बचपन का नाम

रामबोला

  पत्नी का नाम

रत्नावली

  गुरु का नाम

नरहरिदास

      शिक्षा

संत बाबा नरहरिदास ने भक्तों की शिक्षा वेद- वेदांग, दर्शन, इतिहास, पुराण आदि की शिक्षा दी।

      भक्ति

राम भक्ति

प्रसिद्ध महाकाव्य

'रामचरितमानस'

    उपलब्धि

लोकमानस कवि

साहित्य में योगदान

हिंदी साहित्य में कविता की सर्वतोन्मुखी उन्नति


एक नजर में - 


जन्म - सन 1532 ई०

मृत्यु - सन 1623 ई०


जीवन परिचय - गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म 1532 ई० में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के राजापुर गांव में हुआ था। इनके पिता पंडित आत्माराम दुबे तथा माता हुलसी देवी थीं।


व्यक्तित्व - यह भक्ति काल के विख्यात कवि थे। प्रभु श्री राम के दीवाने थे। वे एक हिंदू कवि, संत, संशोधक और जगद्गुरु रामानंदाचार्य के कुल के रामानंदी संप्रदाय के दर्शन शास्त्री और भगवान श्री राम के भक्त थे।


रचनाएं - रामचरितमानस, रामलीला नहछु, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, दोहावली, कवितावली, विनय पत्रिका, कृष्ण गीतावली, गीतावली आदि।


भाषा शैली - अवधी, ब्रज और संस्कृत भाषा में लेखन कार्य किया।


साहित्य में स्थान - हिंदी भारतीय और वैश्विक साहित्य के एक महान कवि कहे जाते हैं। इनके कार्यों का प्रभाव हमें कला, संस्कृति और भारतीय समाज में दिखाई देता है।


जीवन परिचय -


लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास भारत के ही नहीं, संपूर्ण मानवता तथा संसार के कवि हैं। उनके जन्म से संबंधित प्रमाणिक सामग्री अभी तक प्राप्त नहीं हो सकी है। इनका जन्म 1532 ई० स्वीकार किया गया है। तुलसीदास जी के जन्म और जन्म स्थान के संबंध को लेकर सभी विद्वानों में पर्याप्त मतभेद हैं। इनके जन्म के संबंध में एक दोहा प्रचलित है।


''पंद्रह सौ चौवन बिसै, कालिंदी के तीर।

श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी धर्र्यो सरीर।।


तुलसीदास का जन्म बांदा जिले के 'राजापुर' गांव में माना जाता है। कुछ विद्वान इनका जन्म स्थान एटा जिले के सोरो नामक स्थान को मानते हैं। तुलसीदास जी सरयूपारीण ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे एवं माता का नाम हुलसी था। कहा जाता है कि अभुक्त मूल नक्षत्र में जन्म होने के कारण इनके माता-पिता ने इन्हें बाल्यकाल में ही त्याग दिया था। इनका बचपन अनेक कष्टों के बीच व्यतीत हुआ।


इनका पालन-पोषण प्रसिद्ध संत नरहरी दास ने किया और इन्हें ज्ञान एवं भक्ति की शिक्षा प्रदान की। इनका विवाह पंडित दीनबंधु पाठक की पुत्री रत्नावली से हुआ था। इन्हें अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम था और उनके सौंदर्य रूप के प्रति वे अत्यंत आसक्त थे। एक बार इनकी पत्नी बिना बताए मायके चली गई तब ये भी अर्ध रात्रि में आंधी तूफान का सामना करते हुए उनके पीछे-पीछे ससुराल जा पहुंचे। इस पर इनकी पत्नी ने उनकी भर्त्सना करते हुए कहा-


"लाज ना आई आपको दौरे आयेहु साथ"


पत्नी की इस फटकार ने तुलसीदास जी को सांसारिक मोह माया से विरक्त कर दिया और उनके हृदय में श्री राम के प्रति भक्ति भाव जागृत हो उठा। तुलसीदास जी ने अनेक तीर्थों का भ्रमण किया और ये राम के अनन्य भक्त बन गए। इनकी भक्ति दास्य-भाव की थी। 1574 ई० में इन्होंने अपने सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य 'रामचरितमानस' की रचना की तथा मानव जीवन के सभी उच्चादर्शों का समावेश करके इन्होंने राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया। 1623 ई० में काशी में इनका निधन हो गया। तुलसीदास को हम हिंदू कवि और संत के रूप में जानते हैं उन्होंने भारत के सबसे बड़े महाकाव्य

रामचरितमानस और हनुमान चालीसा की रचना की है।


साहित्यिक परिचय -


तुलसीदास जी महान लोकनायक और श्री राम के महान भक्त थे। इनके द्वारा रचित 'रामचरितमानस' संपूर्ण विश्व साहित्य के अद्भुत ग्रंथों में से एक है। यह एक अद्वितीय ग्रंथ है, जिसमें भाषा, उद्देश्य, कथावस्तु, संवाद एवं चरित्र चित्रण का बड़ा ही मोहक चित्रण किया गया है। इस ग्रंथ के माध्यम से इन्होंने जिन आदर्शों का भावपूर्ण चित्र अंकित किया है, वे युग-युग तक मानव समाज का पथ-प्रशस्त करते रहेंगे।


इनके इस ग्रंथ में श्रीराम के चरित्र का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है। मानव जीवन के सभी उच्च आदर्शों का समावेश करके इन्होंने श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया है। तुलसीदास जी ने सगुण-निर्गुण, ज्ञान भक्ति, शैव-वैष्णव और विभिन्न मतों एवं संप्रदायों में समन्वय के उद्देश्य से अत्यंत प्रभावपूर्ण भावों की अभिव्यक्ति की।


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इनकी प्रमुख रचनाएं -


1. रामचरितमानस
2. गीतावली
3. दोहावली
4. कवितावली
5. विनय पत्रिका
6. पार्वती मंगल
7. कृष्ण गीतावली

कृतियां (रचनाएं) -


महाकवि तुलसीदास जी ने 12 ग्रंथों की रचना की। इनके द्वारा रचित महाकाव्य 'रामचरितमानस' संपूर्ण विश्व के अद्भुत ग्रंथों में से एक है। इनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं-


1. रामलला नहक्षू - गोस्वामी तुलसीदास ने लोकगीत की 'सोहर' शैली में इस ग्रंथ की रचना की थी। यह इनकी प्रारंभिक रचना है।


2. वैराग्य संदीपनी - इसके तीन भाग हैं, पहले भाग में 6 छंदों में 'मंगलाचरण' है तथा दूसरे भाग में 'संत-महिमा वर्णन' एवं तीसरे भाग में 'शांति भाव वर्णन' है।


3. रामाज्ञा प्रश्न - यह ग्रंथ 7 सर्गो में विभाजित है, जिसमें शुभ-अशुभ शकुनों का वर्णन है। इसमें राम कथा का वर्णन किया गया है।


4. जानकी मंगलइसमें कवि ने श्री राम और जानकी के मंगलमय विवाह उत्सव का मधुर वर्णन किया गया है।


5. रामचरितमानस - इस विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के संपूर्ण जीवन के चरित्र का वर्णन किया गया है।


6. पार्वती मंगल - यह मंगल काव्य है, इसमें पूर्वी अवधि में 'शिव पार्वती के विवाह' का वर्णन किया गया है। गेय पद होने के कारण इसमें संगीतात्मकता का गुण भी विद्दमान है।


7. गीतावली - इसमें 230 पद संकलित है, जिसमें श्री राम के चरित्र का वर्णन किया गया है। कथानक के आधार पर ये पद सात कांडों में विभाजित है।


8. विनय पत्रिका - इसका विषय भगवान श्रीराम को कलयुग के विरुद्ध प्रार्थना पत्र देना है। इसमें तुलसी भक्त और दार्शनिक कवि के रूप में प्रतीत होते हैं। इसमें तुलसीदास की भक्ति-भावना की पराकाष्ठा देखने को मिलती है।


9. गीतावली - इसमें 61 पदों में कवि ने बृजभाषा में श्रीकृष्ण के मनोहारी रूप का वर्णन किया है।


10. बरवै-रामायण - यह तुलसीदास की स्फुट रचना है, जिसमें श्री राम कथा संक्षेप में वर्णित है। बरवै छंदों में वर्णित इस लघु काव्य में अवधि भाषा का प्रयोग किया गया है।


11. दोहावली - इस संग्रह ग्रंथ में कवि की सूक्ति शैली के दर्शन होते हैं। इसमें दोहा शैली में नीति, भक्ति और राम महिमा का वर्णन है।


12. कवितावली - इस कृति में कवित्व और सवैया शैली में राम कथा का वर्णन किया गया है। यह ब्रज भाषा में रचित श्रेष्ठ मुक्तक काव्य है।


भाषा शैली -


तुलसीदास जी ने अवधि तथा बृज दोनों भाषाओं में अपनी काव्यगत रचनाएं लिखीं। रामचरितमानस अवधि भाषा में है, जबकि कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका आदि रचनाओं में ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है। रामचरितमानस में प्रबंध शैली, विनय पत्रिका में मुक्तक शैली और दोहावली में साखी शैली का प्रयोग किया गया है। भाव-पक्ष तथा कला-पक्ष दोनों ही दृष्टियों से तुलसीदास का काव्य अद्वितीय है। तुलसीदास जी ने अपने काव्य में तत्कालीन सभी काव्य-शैलियों का प्रयोग किया है। दोहा, चौपाई, कवित्व, सवैया, पद आदि काव्य शैलियों में कवि ने काव्य रचना की है। सभी अलंकारों का प्रयोग करके तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं का अत्यंत प्रभावोत्पादक बना दिया है।


हिंदी साहित्य में स्थान -


गोस्वामी तुलसीदास हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं, इन्हें समाज का पथ प्रदर्शक कवि कहा जाता है। इसके द्वारा हिंदी कविता की सर्वतोमुखी उन्नति हुई। मानव प्रकृति के जितने रूपों का सजीव वर्णन तुलसीदास जी ने किया है, उतना अन्य किसी कवग ने नहीं किया। तुलसीदास जी को मानव जीवन का सफल पारखी कहा जा सकता है। वास्तव में, तुलसीदास जी हिंदी के अमर कवि हैं, जो युगों-युगों तक हमारे बीच जीवित रहेंगे।


तुलसीदास जी का भाव पक्ष -


तुलसीदास जी राम भक्ति शाखा के प्रमुख कवि थे। तुलसीदास का दृष्टिकोण अत्यंत व्यापक एवं समन्यवादी था। कविवर तुलसीदास तत्कालीन समाज में भक्त कवि के साथ-साथ समाज सुधारक भी माने गए हैं। इसके लिए उन्होंने काव्यशास्त्र को माध्यम बनाकर हिंदी साहित्य को श्रेष्ठ रचनाएं प्रदान की।


तुलसीदास का कला पक्ष -


आपकी भाषा संस्कृतनिष्ठ है। भाषा में अवधि एवं ब्रज भाषा के शब्दों के साथ-साथ कहीं-कहीं अरबी, फारसी, बंगाली, पंजाबी भाषा की लोकोक्तियों का प्रयोग भी मिलता है मुख्य रूप से अवधि का प्रयोग हुआ है। इनसे जीवन को जीने की कला सीखी जा सकती है।


तुलसीदास का बचपन -


जन्म लेने के बाद प्रायः सभी शिशु रोया ही करते हैं। लेकिन जन्म लेने के बाद तुलसीदास ने जो पहला शब्द बोला वह राम था। आता उनका घर का नाम ही रामबोला पड़ गया। मां तो जन्म देने के बाद दूसरे ही दिन चल बसी। बाप ने किसी और अनिष्ट से बचने के लिए बालक को चुनिया मां की एक दासी को सौंप दिया। और स्वयं विरक्त हो गए जब रामबोला 5 वर्ष का हुआ तो चुनिया भी नहीं रही। वो गली-गली भटकता हुआ अनाजों की तरह जीवन जीने को विवश हो गया। इस तरह तुलसी का बचपन बड़े कष्टों में बीता।


अभावग्रस्त बचपन -


माता-पिता दोनों चल बसे और इन्हें भीख मांग कर अपना पेट पालना पड़ा। इसी बीच इनका परिचय राम भक्त साधुओं से हुआ और इन्हें ज्ञानार्जन का अनुपम अवसर मिल गया। तुलसी भ्रमण करते रहे और इस प्रकार समाज की तत्कालीन स्थिति से इनका सीधा संपर्क हुआ। इसी दीर्घकालीन अनुभव और अध्ययन का परिणाम तुलसी की अमूल्य कृतियां हैं, जो उस समय के भारतीय समाज के लिए उन्नायक सिद्ध हुई। आज भी जीवन को मर्यादित करने के लिए उतने ही उपयोगी हैं। तुलसी द्वारा रचित ग्रंथों की संख्या 39 बताई जाती है। इसमें रामचरितमानस, विनय पत्रिका, दोहावली, कवितावली, जानकी मंगल, हनुमान चालीसा, बरवै रामायण आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय है।


तुलसीदास का विवाह -


रामशैल पर रहनेवाले नरहरि बाबा ने इस रामबोला के नाम से बहुत चर्चित हो चुके इस बालक को ढूंढना और विधिवत उसका नाम तुलसीराम रखा। तदुपरान्त वे उसे अयोध्या, उत्तर प्रदेश ले गए। वहां राम मंत्र की दीक्षा दी और अयोध्या में ही रहकर उसे विद्या अध्ययन कराया। बालक रामबोला की वृद्धि बड़ी प्रखर थी। वह एक ही बार में गुरु मुख से जो सुन लेता उसे वह याद हो जाता। 29 वर्ष की आयु में राजापुर में थोड़ी ही दूर यमुना के उस पार स्थित एक गांव की अति सुंदरी भारद्वाज गोत्र की कन्या रत्नावली के साथ उनका विवाह हुआ। तुलसीदास जी वा रत्नावली दोनों का बहुत सुंदर जोड़ा था। दोनों विद्वान थे। दोनों का सरल जीवन चल रहा था। परंतु विवाह के कुछ समय बाद रत्नावली अपने भाई के साथ मायके चली गई तब उनका वियोग तुलसी जी के लिए असहनीय हो गया था। एक दिन रात को वे अपने को रोक नहीं पाए और और अंधेरी रात में तेज बरसात में ही एक लाश को लकड़ी का लट्ठा समझकर उफनती यमुना नदी तैरकर पार कर गए। और रत्नावली के गांव पहुंच गए वहां रत्नावली के मायके के घर के पास पेड़ पर लटके सांप को रस्सी समझकर ऊपर चल गए और उसके कमरे में पहुंच गए।


इस पर इतना बलि ने उन्हें बहुत धिक्कार है और भाव भरे मार्मिक लहजे में अपने द्वारा रचित दोहा सुनाया - 


अस्थि चर्म में देय यह , ता सो ऐसी प्रीति

नेकु जो होती राम से, तो काहे भव - भीत ? "


अर्थात् मेरे इस हाड़-मास के शरीर के प्रति जितनी आसक्तिक है उसकी आधी भी अगर प्रभु से होती तो तुम्हारा जीवन संवर गया होता। यह सुनकर तुलसीदास सन्न रह गए। उसके हृदय में यह बात गहरे तक उतर गई। और उसके ज्ञान नेत्र खुल गए उनको अपनी मूर्खता का एहसास हो गया वे एक क्षण भी रुके बिना वहां से चल दिए। और उनका हृदय परिवर्तन हो गया इन्हीं शब्दों की शक्ति पाकर सुनती दास को महान गोस्वामी तुलसीदास बना दीया।


तुलसीदास के गुरु -


गोस्वामी जी श्री संप्रदाय के आचार्य रामानंद की शिष्य परंपरा में थे। इन्होंने समय को देखते हुए लोक भाषा में रामायण लिखा। इसमें ब्याज से वर्णाश्रमधर्म, अवतारवाद, साकार उपासना, सगुणवाद, गो ब्राह्मण रक्षा, देवादि विविध योनियों का यथोचित सम्मान एवं प्राचीन संस्कृति और वेद मार्ग का मंडल और साथ ही उस समय के विधर्मी अत्याचारों और सामाजिक दोषों की एक पंथवाद आलोचना की गई है। गोस्वामी जी पंत व संप्रदाय चलाने की विरोधी थे। उन्होंने ब्याज से भ्रातप्रेम, स्वराज्य के सिद्धांत, रामराज्य का आदर्श, अत्याचारों से बचने और शत्रु पर विजय होने के उपाय सभी राजनीतिक बातें खुले शब्दों में उसे कड़ी जासूसी के जमाने में भी बतलायीं। परंतु उन्हें राज्याज्श्रय प्राप्त ना था। रामचरितमानस का राजनीतिक उद्देश्य तय नहीं हो पाया।


तुलसीदास का निधन -


पत्नी की इस फटकार ने तुलसीदास जी को सांसारिक मोह माया से विरक्त कर दिया और उनके हृदय में श्री राम के प्रति भक्ति भाव जागृत हो उठा। तुलसीदास जी ने अनेक तीर्थों का भ्रमण किया और ये राम के अनन्य भक्त बन गए। इनकी भक्ति दास्य-भाव की थी। 1574 ई० में इन्होंने अपने सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य 'रामचरितमानस' की रचना की तथा मानव जीवन के सभी उच्चादर्शों का समावेश करके इन्होंने राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया। 1623 ई० में काशी में इनका निधन हो गया।


तुलसीदास की जीवनी (छोटे शब्दों में) - 

गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म सन् 1532 ई० (भाद्रपद, शुक्ल पक्ष, एकादशी, सं० 1589 वि०) में बांदा जिले के राजापुर ग्राम में हुआ था। कुछ विद्वान इनका जन्म एटा जिले के 'सोरो' ग्राम में मांनते हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने राजापुर का ही समर्थन किया है। तुलसी सरयूपारीण ब्राह्मण थे। इनके पिता आत्माराम दुबे और माता तुलसी ने अभुक्त मूल नक्षत्र में उत्पन्न होने के कारण इन्हें त्याग दिया था। इनका बचपन अनेकानेक आपदाओं के बीच व्यतीत हुआ। सौभाग्य से इनको बाबा नरहरिदास जैसे गुरु का ज्ञान मिल गया। इन्ही की कृपा से इनको शास्त्रों के अध्ययन अनुशीलन का अवसर मिला। स्वामी जी के साथ ही यह काशी आए थे, जहां परम विद्वान महात्मा शेष सनातन जी ने इन्हें वेद वेदांग, दर्शन, इतिहास, पुराण आदि में निष्णात कर दिया।


तुलसी का विवाह दीनबंधु पाठक की सुंदर और विदुषी कन्या रत्नावली से हुआ था। इन्हें अपनी रूपवती पत्नी से अत्यधिक प्रेम था। एक बार पत्नी द्वारा बिना कहे मायके चले जाने पर आज रात्रि में आंधी-तूफान का सामना करते हुए यह अपनी ससुराल जा पहुंचे। इस पर पत्नी ने इनकी निंदा की - 


अस्थि चर्म मय दह मम, तामें ऐसी प्रीति ।

तैसी जो श्री राम महँ होति ना तौ भवभीती ॥


यह बात तुलसीदास जी को ऐसी लगी कि वे विरक्त हो गए और काशी आ गए। यहां से अयोध्या गए। इसके बाद यह तीर्थ यात्रा करने निकले और जगन्नाथपुरी, रामेश्वरम, द्वारका होते हुए बद्रिकाश्रम और कैलाश मानसरोवर तक गए। अंत में चित्रकूट आकर बहुत दिनों तक रहे और यहीं पर इन्होंने श्रीरामचरितमानस का प्रणयन किया। अपने अधिकांश रचनाएं इन्होंने चित्रकूट, काशी और अयोध्या में ही लिखें।


काशी के अस्सी घाट पर सन् 1623 ईस्वी में इनकी पार्थिव लीला का संवरण हुआ। इनकी मृत्यु के संबंध में निम्नलिखित दोहा प्रसिद्ध है - 


संवत सोलह सौ असी, असी गंग के तीर ।

श्रावण शुक्ला सप्तमी , तुलसी तज्यो शरीर । ।


कृतियां ( रचनाएं ) -  तुलसीदास जी द्वारा रचित 12 ग्रंथ प्रमाणित माने जाते हैं, श्रीरामचरितमानस प्रमुख हैं यह निम्नलिखित हैं - 


• श्रीरामचरितमानस

• विनय पत्रिका

• कवितावली

• गीतावली

• कृष्ण गीतावली

• बरवै रामायण

• रामलला नहछू

• वैराग्य संदीपनी 

• जानकी-मंगल

• पार्वती-मंगल 

• दोहावली 

• रामाज्ञा प्रश्न


दोहा चौपाई पद्धति - रामचरितमानस में प्रयुक्त।

कवित्त सवैया पद्धति - कवितावली में प्रयुक्त।

दोहा पद्धति - दोहावली में प्रयुक्त।

गेयपद शैली - विनय पत्रिका और गीतावली में प्रयुक्त।

स्रोत शैली - रामचरितमानस और विनय पत्रिका में प्रयुक्त।

लोकगीत शैली - रामलला नहछू और पार्वती मंगल में प्रयुक्त।


तुलसीदास जी की शैली की एक विशेषता है-बिंब ग्रहण। भावों में आवेग के चित्रण में तुलसीदास जी ने इसी बिंबग्रहण शैली या शब्द-चित्र निर्माण शैली को अपनाया है।


तुलसीदास जी ने अनेक अलंकारों का प्रयोग अपने काव्य में किया है। तुलसीदास के काव्य में अनुप्रास अलंकार पर्याप्त परिमाण में प्रयुक्त हुआ है। रूपक और उत्प्रेक्षा तुलसी को प्रिय हैं, उपमा पर इनका विशेष अनुराग है। संदेह, दृष्टांत, उल्लेख, अर्थान्तरन्यास, अपहुति, विभावना, विशेषोक्ति प्रतीप, व्यतिरेक,रूपकातिशयोक्ति, श्लेष, भ्रांतिमान,अप्रस्तुत, प्रशंसा आदि के सुंदर प्रयोग तुलसीदास जी के काव्य में मिलते हैं। तुलसीदास जी ने चौपाई, दोहा, सोरठा, कवित्त,सवैया, बरवै, छप्पय आदि अनेक छंदों का प्रयोग किया है।


साहित्य में स्थान -


गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। इनके द्वारा हिंदी कविता की सर्वोतमुखी उन्नति हुई। इन्होंने अपने काल के समाज की विसंगतियों पर प्रकाश डालते हुए उनके निराकरण के उपाय सुझाए। साथ ही अनेक मतों और विचारधाराओं में समन्वय स्थापित कर के समाज में पुनर्जागरण का मंत्र फूंका। इसलिए इन्हें समाज का पथ प्रदर्शक कवि कहा जाता है


FAQ'S -


1. तुलसीदास की प्रमुख रचनाएं क्या थी?


उत्तर - रचनाएं - महाकवि तुलसीदास जी ने 12 ग्रंथों की रचना की। इनके द्वारा रचित महाकाव्य 'रामचरितमानस' संपूर्ण विश्व के अद्भुत ग्रंथों में से एक है। इनकी प्रमुख रचनाएं निम्नलिखित हैं-


1. रामलला नहक्षू - गोस्वामी तुलसीदास ने लोकगीत की 'सोहर' शैली में इस ग्रंथ की रचना की थी। यह इनकी प्रारंभिक रचना है।


2. वैराग्य संदीपनी - इसके तीन भाग हैं, पहले भाग में 6 छंदों में 'मंगलाचरण' है तथा दूसरे भाग में 'संत-महिमा वर्णन' एवं तीसरे भाग में 'शांति भाव वर्णन' है।


3. रामाज्ञा प्रश्न - यह ग्रंथ 7 सर्गो में विभाजित है, जिसमें शुभ-अशुभ शकुनों का वर्णन है। इसमें राम कथा का वर्णन किया गया है।


4. जानकी मंगल -  इसमें कवि ने श्री राम और जानकी के मंगलमय विवाह उत्सव का मधुर वर्णन किया गया है।


5. रामचरितमानस - इस विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के संपूर्ण जीवन के चरित्र का वर्णन किया गया है।


6. पार्वती मंगल - यह मंगल काव्य है, इसमें पूर्वी अवधि में 'शिव पार्वती के विवाह' का वर्णन किया गया है। गेय पद होने के कारण इसमें संगीतात्मकता का गुण भी विद्दमान है।


7. गीतावली - इसमें 230 पद संकलित है, जिसमें श्री राम के चरित्र का वर्णन किया गया है। कथानक के आधार पर ये पद सात कांडों में विभाजित है।


8. विनय पत्रिका - इसका विषय भगवान श्रीराम को कलयुग के विरुद्ध प्रार्थना पत्र देना है। इसमें तुलसी भक्त और दार्शनिक कवि के रूप में प्रतीत होते हैं। इसमें तुलसीदास की भक्ति-भावना की पराकाष्ठा देखने को मिलती है।


9.गीतावली - इसमें 61 पदों में कवि ने बृजभाषा में श्रीकृष्ण के मनोहारी रूप का वर्णन किया है।


10. बरवै-रामायण - यह तुलसीदास की स्फुट रचना है, जिसमें श्री राम कथा संक्षेप में वर्णित है। बरवै छंदों में वर्णित इस लघु काव्य में अवधि भाषा का प्रयोग किया गया है।


11. दोहावली - इस संग्रह ग्रंथ में कवि की सूक्ति शैली के दर्शन होते हैं। इसमें दोहा शैली में नीति, भक्ति और राम महिमा का वर्णन है।


12. कवितावली - इस कृति में कवित्व और सवैया शैली में राम कथा का वर्णन किया गया है। यह ब्रज भाषा में रचित श्रेष्ठ मुक्तक काव्य है।


2. तुलसीदास का पूरा नाम क्या था?


उत्तर - तुलसीदास का पूरा नाम गोस्वामी तुलसीदास जी था।


3. तुलसीदास का जन्म कब हुआ था?


उत्तर - लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास भारत के ही नहीं, संपूर्ण मानवता तथा संसार के कवि हैं। उनके जन्म से संबंधित प्रमाणिक सामग्री अभी तक प्राप्त नहीं हो सकी है। इनका जन्म 1532 ई० स्वीकार किया गया है। तुलसीदास जी के जन्म और जन्म स्थान के संबंध को लेकर सभी विद्वानों में पर्याप्त मतभेद हैं।


4. तुलसीदास के माता पिता का क्या नाम था?


उत्तर - तुलसीदास जी के माता का नाम हुलसी देवी था तथा पिता का नाम आत्माराम दुबे था।


5. तुलसीदास का जन्म कहां हुआ था?


उत्तर - तुलसीदास का जन्म बांदा जिले के 'राजापुर' गांव में माना जाता है। कुछ विद्वान इनका जन्म स्थान एटा जिले के सोरो नामक स्थान को मानते हैं। तुलसीदास जी सरयूपारीण ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे एवं माता का नाम हुलसी था। कहा जाता है कि अभुक्त मूल नक्षत्र में जन्म होने के कारण इनके माता-पिता ने इन्हें बाल्यकाल में ही त्याग दिया था। इनका बचपन अनेक कष्टों के बीच व्यतीत हुआ।


6. तुलसीदास जी को गोस्वामी क्यों कहा जाता है?


उत्तर - गोस्वामी का मतलब है इंद्रियों का स्वामी अर्थात जिसने इंद्रियों को वश में कर लिया हो, यानी जीतेंद्रिय। तुलसीदास जी पत्नी के ठिकाने पर सांसारिक मोहमाया से विरक्त होकर सन्यासी हो गए। अर्थात् जीतेंद्रिय या गोस्वामी हो गए। इसे परिपेक्ष्य में तुलसीदास जी को गोस्वामी की उपाधि से विभूषित किया जाने लगा।


7. तुलसीदास जी का जन्म कौन से गांव में हुआ था?


उत्तर - तुलसीदास का जन्म उत्तर प्रदेश के कासगंज में सोरों शूकर क्षेत्र में हुआ था।


8. तुलसीदास की मृत्यु तिथि क्या थी?


उत्तर - इनकी मृत्यु तिथि 1623 ईस्वी वाराणसी में हुई थी।


9. तुलसीदास जी की पत्नी का क्या नाम था?


उत्तर - उनकी धर्मपत्नी का नाम हुलसी था।


10. तुलसीदास कौन थे?


उत्तर - जिसे गोस्वामी तुलसीदास के नाम से जाना जाता है वही एक रामानंदी वैश्य हिंदू संत और कवि थे जो देवता राम की भक्ति के लिए प्रसिद्ध थे।


11. तुलसीदास ने रामायण कहां पूरा किया था?


उत्तर - उन्होंने संस्कृत और अवधि में कई लोकप्रिय रचनाएं लिखी लेकिन उन्हें महाकाव्य रामचरितमानस के लेखक के रूप में जाना जाता है। जो स्थानीय अवधि में राम के जीवन पर आधारित संस्कृत रामायण का पुनर लेखन है। तुलसीदास ने अपना अधिकांश जीवन वाराणसी और अयोध्या शहर में बिताया इसलिए उन्होंने रामायण वाराणसी और अयोध्या में लिख


12. तुलसी के राम क्या है?


उत्तर - तुलसी के राम राजा के पुत्र हैं, जो श्रेष्ठ मानव हैं। शील, सौंदर्य और शक्ति से संपन्न राम तुलसी के आराध्य हैं जो मर्यादा पुरुषोत्तम राम हैं। तुलसी ने अपने महाकाव्य में राम के विभिन्न रूप जैसे कि आदर्श मानव, आदर्श राजा, आदर्श पति, आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श वीर, आदर्श पिता को चित्रिण किया है।


13. तुलसीदास का जन्म कब हुआ था?


उत्तर - तुलसीदास का जन्म 13 अगस्त 1532 ईस्वी को हुआ था।


14. तुलसीदास जी की मृत्यु कब हुई थी?


उत्तर - तुलसीदास जी की मृत्यु सन 1623 ईसवी में हुई थी पर फिर भी तुलसीदास जी के दोहे और उनकी रचनाएं आज भी हम सभी के बीच जीवित है।


15. तुलसीदास जी के माता-पिता का क्या नाम था?


उत्तर - तुलसीदास जी के पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी देवी था।


16. तुलसीदास कितने वर्ष तक जीवित रहे?


उत्तर - इनमें से कई का विचार था कि इनका जन्म विक्रम संवत के अनुसार वर्ष 1554 में हुआ था लेकिन कुछ का मानना है कि तुलसीदास का जन्म वर्ष 1532 ईस्वी में हुआ था। उन्होंने 126 साल तक अपना जीवन बिताया।


17. तुलसीदास की भाषा क्या है?


उत्तर - तुलसीदास ने अवधी एवं ब्रजभाषा दोनों में काव्य रचना की। रामचरितमानस अवधि में लिखा विनय पत्रिका, दोहावली, कवितावली आदि में ब्रज भाषा का प्रयोग किया।


18. तुलसीदास की भक्ति कौन सी है?


उत्तर - तुलसीदास की भक्ति दास्य भाव यानी सेवक भाव से प्रेरित रही है। उन्होंने अपनी अधिकतर रचनाओं में स्वयं को अपने आराध्य का सेवक दास माना है। उनके आराध्य प्रभु श्रीराम रहे हैं। वह प्रभु श्री राम का दास बनकर स्वयं को प्रस्तुत करते हैं।


19. तुलसीदास का बचपन कैसे बीता?


उत्तर - बाप ने किसी और अनिष्ट से बचने के लिए बालक को चुनिया नाम की एक दासी को सौंप दिया और स्वयं विरक्त हो गए। जब रामबोला साढ़े 5 वर्ष का हुआ तो चुनिया भी नहीं रही। वह गली-गली भटकता हुआ अनाथों की तरह जीवन जीने को विवश हो गया। इस तरह तुलसी का बचपन बड़े कष्टों में बीता।


20. तुलसीदास जी के बचपन का क्या नाम था?


उत्तर - तुलसीदास जी के बचपन का नाम राम बोला था


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