ध्रुवयात्रा कहानी का सारांश || Dhruva Yatra Kahani ka Saransh

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ध्रुवयात्रा कहानी का सारांश || Dhruva Yatra Kahani ka Saransh

ध्रुवयात्रा कहानी का सारांश || Dhruva Yatra Kahani ka Saransh

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प्रश्न - 'ध्रुवयात्रा' कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।


उत्तर - 'ध्रुवयात्रा' एक मनोवैज्ञानिक कहानी है। यह कहानीकार जैनेंद्र की उत्कृष्ट कहानियों में से एक है। इसका सारांश इस प्रकार है –


राजा रिपुदमन बहादुर की उर्मिला नामक एक प्रेमिका है जिससे वह पहले विवाह के विषय में अपनी लक्ष्य-सिद्धि के कारण मना कर चुका था। वह उत्तरी ध्रुव की यात्रा के लिए जाने से पूर्व अपनी प्रेमिका से पति-पत्नीवत् संबंध बना चुका था जिसके परिणामस्वरूप उनका एक पुत्र भी उत्पन्न हो चुका था। उत्तरी ध्रुव की यात्रा तो उसने पूर्ण कर ली लेकिन उसका मन व्याकुल रहने लगा। वह भारत लौटा, उसके स्वागत की जोर-शोर से तैयारियां हुई। वह मुंबई से दिल्ली आ गया। यह सब समाचार उर्मिला समाचार-पत्रों में पढ़ती रही। रिपुदमन को नींद कम आती थी, उसका मन पर काबू नहीं रहता था, अतः वह उपचारार्थ मारुति आचार्य के पास पहुंचा। मारुति ने उसे विजेता कहकर पुकारा तो उसने कहा कि मैं रोगी हूं, विजेता छल है। उसने रिपुदमन से अगले दिन 3:20 पर आने को कहा तथा डायरी में पूर्ण दिनचर्या एवं खर्च लिखने को कहकर उसे विदा कर दिया। अगले दिन वह समय पर पहुंचा। आचार्य ने सब कुछ देखकर कहा, तुम्हें कोई रोग नहीं है। तुम्हें अच्छे संबंध मिल सकते हैं उन्हें चुन लो, विवाह अनिष्ट वस्तु नहीं, वह तो गृहस्थ आश्रम का द्वार है।


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लेकिन रिपुदमन ने कोई जवाब नहीं दिया। तब मारुति ने परसों मिलने की बात कही। अगले दिन वह सिनेमा गया जहां उसकी भेंट उर्मिला से हो गई, वह बच्चे को लाई थी। रिपुदमन ने बच्चे को लेना चाहा लेकिन उर्मिला उसे अपने कंधे से चिपकाए जीने पर चढ़ती चली गयी। उसने घंटी बजाकर एक आदमी को बॉक्स पर बुलाया और दो आइसक्रीम लाने का आदेश दिया। रिपुदमन ने उर्मिला से बच्चे के नाम के विषय में पूछा तो उसने मुस्कुराते हुए कहा कि अब नाम तुम्हीं रखोगे। उसने 2 नाम सुझाए, लेकिन उर्मिला ने कहा, मैं इसे मधु कहती हूं। सिनेमा देखना बीच में छोड़कर दोनों ने बीती जिंदगी की चर्चा की। रिपुदमन ने कहा, उर्मिला तुम अभी भी मुझसे नाराज हो। उर्मिला बोली, मैं तुम्हारे पुत्र की मां हूं। तुम अपने भीतर के वेग को शिथिल ना करो, तीर की भांति लक्ष्य की ओर बढ़ो। याद रखना कि पीछे एक है जो इसी के लिए जीती है। राजा तुम्हें रुकना नहीं है, पथ अनंत हो, यही गति का आनंद है। ना जाने कहा, मैं आचार्य मारुति के यहां गया था और उसने विवाह का सुझाव दिया है। उर्मिला उसे ढोंगी कहती है तथा कहती है कि वह प्रगतिशीलता में बाधक है, तेजस्विता का अपहर्ता है। रिपुदमन कहता है कि मुझे जाना ही होगा, तुम्हारा प्रेम दया नहीं जानता। इसके बाद वह दिए गए समयानुसार मारुति आचार्य से मिलने जाता है। उसके पूछने पर वह उर्मिला के विषय में बताता है।


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आचार्य कहता है–ठीक है, तुम उसी से शादी कर लो, वह धनंजयी की बेटी है। वह मेरी ही बेटी है, मैं उसे समझा दूंगा। उर्मिला आचार्य से मिलती है तो वह भी अनेक प्रकार से उसे समझाता है। फिर रिपुदमन उससे पूछता है कि तुम आचार्य से मिलीं, अब बताओ मुझे क्या करना है। वह कहती है कि तुम्हें अब दक्षिणी ध्रुव जाना है। वह शरलैंण्ड द्वीप के लिए जहाज तय कर लेता है तथा परसों जाने की बात कहता है। इस पर उर्मिला कहती है, 'नहीं राजा, परसों नहीं जाओगे।' रिपुदमन कहता है, 'मैं स्त्री की बात नहीं सुनूंगा, मुझे प्रेमिका के मंत्र का वरदान है।'


यह खबर सर्वत्र फैल जाती है कि रिपुदमन दक्षिणी ध्रुव की यात्रा पर जा रहा है। उर्मिला भी कल्पनाओं में खोई रहती है– 'राष्ट्रपति की ओर से दिया गया भोज हो रहा होगा, सब राष्ट्रदूत होंगे, सब नायक, सब दलपति।' तीसरे दिन उसने अखबार में पढ़ा कि 'राजा रिपुदमन सवेरे खून में सने पाए गए, गोली का कनपटी के आर-पार निशाना है।' अखबारों ने अपने विशेषांक में मृतक के तकिए के नीचे मिले पत्र को भी छापा था, उसमें यात्रा को निजी कारणों से किया जाना बताया गया था। कहा था कि इस बार मुझे वापस नहीं आना था, दक्षिणी ध्रुव के एकांत में मृत्यु सुखकर होती। उस पत्र की अंतिम पंक्ति थी– 'मुझे संतोष है कि मैं किसी की परिपूर्णता में काम आ रहा हूं। मैं पूरे होश-हवास में अपना काम तमाम कर रहा हूं। भगवान मेरे प्रिय के अर्थ मेरी आत्मा की रक्षा करें।' लक्ष्य के प्रति उड़ान भरी कहानी का करुणांत हो जाता है।


इस प्रकार हम देखते हैं कि कहानी 'ध्रुवयात्रा' एक मनोवैज्ञानिक कहानी है। इसमें लक्ष्य प्राप्ति की बात पर कथानायक राजा रिपुदमन सिंह की अपनी प्रेमिका से खटक गई थी, प्रेमिका ने अपने प्रेमी की लक्ष्य-निष्ठा पर शान चढ़ाई, जिसकी चरम परिणति नायक का करूणांत हुआ।


प्रश्न - कहानी के प्रमुख पात्र का चरित्र चित्रण कीजिए।


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उत्तर - जैनेंद्र की ध्रुवयात्रा कहानी का नायक राजा रिपुदमन बहादुर है। उसके चरित्र की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं–


स्वयं से असंतुष्ट राजा – राजा रिपुदमन उर्मिला से प्रेम करता है। उनका बिना विवाह किए ही कुमारी उर्मिला से लगभग 1 वर्ष से कुछ अधिक अवस्था का पुत्र है।


गर्भधारण से पूर्व उर्मिला रिपुदमन से विवाह के लिए उद्यत थी किंतु रिपुदमन अपनी स्थिति और माता-पिता के कारण विवाह करने से बचता रहा। उर्मिला के गर्भधारण करने पर वह उर्मिला के साथ विवाह पूर्वक रहना चाहता था परंतु तक उर्मिला ने विवाह से इंकार कर दिया और रिपुदमन को उसकी इच्छा के अनुरूप उत्तरी ध्रुव की यात्रा को प्रेरित किया। वह ध्रुवयात्रा कर आये पर दमित इच्छाओं के कारण स्वयं से असंतुष्ट रहने लगे, उन्हें नींद नहीं आती, मन पर काबू नहीं रहता, जो नहीं चाहते वह मन के अंदर घटित होता रहता है, ध्रुव पर बहुत काम बाकथा, फिर भी भारत लौट आए (शायद पत्नी-पुत्र के प्रेम के कारण)।


भीरु स्वभाव वाला – रिपुदमन उर्मिला से प्रेम करते थे परंतु उसके आग्रह पर भी विवाह के लिए बचते रहे। उनकी सोच थी कि "विवाह व्यक्ति को बांधता है। तब वह सबका नहीं हो सकता, अपना एक कोल्हू बनाकर उसमें जुता हुआ चक्कर में घूम सकता है।"


अतृप्त प्रेम का पिपासु – उर्मिला के गर्भधारण के बाद रिपुदमन के मन में साथ रहने और विवाह करने की लालसा तो जागी, पर वह पूरी नहीं हुई, अतृप्त ही रह गई। प्रेमिका उर्मिला की प्रेरणा से उत्तरी ध्रुव जाना पड़ा। वहां से लौटा और अपनी प्रेमिका की नाराजगी दूर करते हुए अपने किए पर खेद व्यक्त किया किंतु उर्मिला ने कहा कि अब दक्षिणी ध्रुव की यात्रा पर जाओ। मेरी और बच्चे की चिंता ना करो, "भविष्य के प्रति यह तुम्हारा दान है राजा तुमको रुकना नहीं है, सिद्धि तक जाओ ……जो मृत्यु के पार है।"

तब रिपुदमन उर्मिला की प्रेरणा से दक्षिणी ध्रुव यात्रा के लिए जहाज तय करा लेता है और घर से चल पड़ता है। तीसरे दिन वह अपनी कनपटी पर गोली मारकर आत्महत्या कर लेता है।


प्रश्न - 'ध्रुवयात्रा' कहानी का उद्देश्य लिखिए।


उत्तर - 'ध्रुवयात्रा' कहानी सोद्देश्य है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि प्रेयसी जब स्त्री अथवा पत्नी बनने के कगार पर हो और वह प्रेमी की संतति धारिणी हो तब उसके विवाह की विनय को नहीं ठुकराना चाहिए अन्यथा उसका परिणाम किसी भी रूप में अच्छा नहीं, जैसा कि रिपुदमन के साथ हुआ वैसा हो सकता है। लेखक ने कहानी में कुमारी माता को ना अपनाने के परिणाम की ओर इंगित किया है, साथ है अतिप्रेरकता के परिणाम की ओर भी पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है। इस प्रकार कुल मिलाकर कहानी उच्च कोटि की है।


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प्रश्न - ध्रुवयात्रा का उद्देश्य क्या है?

उत्तर - निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि ध्रुवयात्रा एक अत्युत्कृष्ट कहानी है। प्रस्तुत कहानी में कहानीकार जैनेंद्र जी ने बताया है कि प्रेम एक पवित्र बंधन है और विवाह एक सामाजिक बंधन। प्रेम में पवित्रता होती है और विवाह में स्वार्थता। प्रेम की भावना व्यक्ति को उसके लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करती है।


प्रश्न - ध्रुव यात्रा कहानी की नायिका कौन है।

उत्तर - ध्रुव यात्रा कहानी की नायिका उर्मिला है।


प्रश्न - ध्रुव यात्रा कहानी के माध्यम से पाठक को क्या संदेश मिलता है।

उत्तर - प्रेम जो अपने सिवा किसी दया को, किसी कुछ को नहीं जानता। 'निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि प्रेम को ही सर्वोच्च दर्शाना इस कहानी का मुख्य उद्देश्य है, जिसमें कहानीकार को पूर्ण सफलता मिली है। 


प्रश्न - ध्रुवयात्रा क्या है?

उत्तर - ध्रुवयात्रा एक मनोवैज्ञानिक कहानी है। यह कहानीकार जैनेंद्र की उत्कृष्ट कहानियों में से एक है। इसका ध्रुव यात्रा का सारांश इस प्रकार है-राजा रिपुदमन बहादुर की उर्मिला नामक एक प्रेमिका है जिससे वह पहले विवाह के विषय में अपनी लक्ष्य सिद्धि के कारण मना कर चुका था।


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